देश के स्वतंत्रता आंदोलन में अनगिनत महिला सेनानियों ने योगदान दिया है. इन्हीं में से एक सिक्किम के एक छोटे गांव संगमू में पैदा हुई वीरांगना हेलन लेप्चा भी नाम शामिल हैं. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई. उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर लोगों के बीच स्वाधीनता की अलख जगाई. इसके साथ ही सुभाष चंद्र बोस को गृहबंदी से भगाने में हेलन की भूमिका को काफी सराहा जाता है.
हेलन का जन्म 1902 में सिक्किम में हुआ. उनके पिता का नाम अचुंग लेप्चा था. कुछ सालों के बाद लेप्चा परिवार सिक्किम से पलायन कर दार्जिलिंग के कुर्सियांग में आ गया और वही बस गया.
दार्जिलिंग में गांधीजी के स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर सुगबुगाहट हुई, जो हेलेन के कानों तक भी पहुंची. वह महात्मा गांधी के चरखा आंदोलन से प्रभावित होकर उससे जुड़कर काम करने लगी. वह न सिर्फ चरखा चलाने का काम करती, बल्कि अलग-अलग जगहों पर जाकर लोगों को स्वदेशी चीजों के लिए जागरूक करती थी. वह जरूरतमंद लोगों की मदद करने में भी काफी आगे रहती थी. साल 1920 में वह बिहार में आई भीषण बाढ़ के दौरान राहत कार्य में जुट गई और मुजफ्फरपुर में लोगों के लिए खूब काम किया. यहां उनके काम से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने उन्हें साबरमती आश्रम बुलाया. महात्मा गांधी ने ही हेलन लेप्चा को सावित्री देवी नाम दिया.
बाद में हेलेन ने बिहार और उत्तर प्रदेश को अपना कार्यस्थल बनाया और यहीं से स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाने लगी. हेलेन के विद्रोही स्वभाव से ब्रिटिशर्स भी वाकिफ थे, इसलिए उनके खिलाफ एक वारंट जारी कर दिया गया था. अंग्रेजों से बचने के लिए वह काफी स्थान बदला करती थी. इसी दौरान वह आनंद भवन जवाहरलाल नेहरू के घर इलाहाबाद में भी रही थीं.
आंदोलन के दौरान एक बार उन पर गोली भी चली थी, लेकिन वह बाल-बाल बच निकली थी. असहयोग आंदोलन में भी हेलेन लेप्चा का योगदान बेहद अहम था. इस आंदोलन में भाग लेने के लिए हेलेन घर-घर जाकर लोगों से सहभागिता बढ़ाने के लिए कहा करती थी. उन्होंने झरिया कोयला खदान के करीब 10,000 कोयला मजदूरों के साथ एक बड़ी रैली आयोजित की और उसका नेतृत्व भी किया. यह रैली मजदूरों के शोषण और उनके प्रतिस्थापन का विरोध करने के लिए आयोजित की गई थी.
एक समय वह गोरखा सत्याग्रहियों के साथ सिलीगुड़ी में स्वदेशी आंदोलन में भाग लेने गई. यहां कानून तोड़ने के कारण 12 सत्याग्रहियों के साथ उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया था. वह छह महीने तक जेल में रहीं थीं और 3 साल तक गृह बंदी बनाकर रहीं.
1939-40 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस गृहबंदी थे, तब हेलन ने रोटी के अंदर छुपाकर नेताजी को गुप्त सूचना भेजने का तरीका निकाला था. गृहबंदी से नेताजी को भगाने के लिए हेलेन ने ही पठान वाला पहनावा तैयार किया था.
भारत की आजादी के बाद हेलेन को उनकी कर्मठता की बदौलत कुर्सियांग म्युनिसिपालिटी का अध्यक्ष चुना गया. बंगाल सरकार ने साल 1958 में उन्हें पहाड़ की जनजाति मुखिया का सम्मान दिया. 1972 में उन्हें ताम्रपत्र सम्मान और स्वतंत्रता सेनानी पेंशन देने की शुरुआत हुई. वीरांगना हेलेन लेप्चा ने 18 अगस्त 1982 को आखरी सांस ली.