UNHRC की पहली भारतीय दलित महिला विशेष दूत - अश्विनी केपी

एक दलित परिवार में जन्मी अश्विनी केपी को साल 2022 में UNHRC में जातिवाद, नस्लीय भेदभाव, जेनोफोबिया और असहिष्णुता जैसे मुद्दों पर रिपोर्ट करने के लिए विशेष दूत नियुक्त किया गया.

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अश्विनी केपी

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जाति-धर्म, भेदभाव, टिप्पणियां और इस तरह की तमाम बांधाएं तब अपने घुटने टेक देती हैं जब सामने वाले का हौसला इससे भी बड़ा हो. ऐसा ही हुआ UNHRC में नियुक्त भारत से पहली दलित महिला विशेष दूत के साथ. एक दलित परिवार में जन्मी अश्विनी केपी को साल 2022 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद(UNHRC) में जातिवाद, नस्लीय भेदभाव, जेनोफोबिया और असहिष्णुता जैसे मुद्दों पर रिपोर्ट करने के लिए विशेष दूत नियुक्त किया गया.

कर्नाटक के कोलार के एक छोटे शहर चिकबल्लापुर की रहने वाली केपी भारत ही नहीं बल्कि एशिया की इकलौती पहली दलित महिला है जिन्हें UNHRC में विशेष दूत नियुक्त किया गया. 

केपी UNHRC जाने से पहले देश में दलित कार्यकर्ता और राजनीति विज्ञान के तौर पर काफी काम कर चुकी है. 

कर्नाटक के एक छोटे से शहर में 1986 में केपी का जन्म एक दलित परिवार में हुआ. उनके पिता वी. प्रसन्नकुमार कर्नाटक प्रशासनिक सेवा में अधिकारी थे. केपी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई कर्नाटक में ही की. उनका बचपन और पढ़ाई-लिखाई सांवले रंग, मझौले कद और एक दलित होने के कारण भेदभावपूर्ण और अपमानजनक रहा. हालांकि इन सबको दरकिनार कर उन्होंने बेंगलुरु के माउंट कार्मल कॉलेज से ग्रेजुएशन और सेंट जोसेफ कॉलेज से राजनीति विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की. अपने आसपास गरीब आदिवासी और दलित परिवारों की दयनीय स्थिति को देखकर वह काफी परेशान रहती थी और उनके लिए हमेशा ही कुछ करना चाहती थी. जिसके लिए उन्होंने दिल्ली के जेएनयू का रुख किया. यहां से उन्होंने साउथ एशियन स्टडीज से एमफिल और पीएचडी की पढ़ाई की. पढ़ाई के दौरान दलित मानवाधिकारों के संदर्भ में भारत और नेपाल का तुलनात्मक अध्ययन किया. इसी दौरान वह भारत और देश के बाहर के कई वरिष्ठ दलित शिक्षाविदों के साथ जुड़ी. उन्होंने अपनी थीसिस का मुद्दा ‘दलित मानवाधिकारों का अंतरराष्ट्रीय आयाम: भारत और नेपाल का एक केस स्टडी’ चुना. जेएनयू में पढ़ाई के दौरान केपी जाती विरोधी और अंबेडकरवादी आंदोलनों का सजग हिस्सा बनती रहती थी. दलित छात्र मंच के साथ जुड़कर भी केपी ने स्टूडेंट एक्टिविज्म के जरिए हाशिए पर खड़े लोगों को आवाज और ताकत दी.

पीएचडी पूरी करने के बाद केपी ने कुछ समय के लिए बेंगलुरु के माउंट कार्मल कॉलेज में गेस्ट फैकल्टी के तौर पर काम किया. फिर वह सामाजिक बदलाव को लेकर ज्यादा गंभीर हो गई और इसी क्षेत्र में काम करने लगी. साल 2017 में उन्होंने एमनेस्टी इंटरनेशनल, इंडिया में सीनियर कैंपेनर के रूप में ज्वाइन किया. इस दौरान ही वह छत्तीसगढ़ और उड़ीसा जैसे राज्यों में आदिवासी समुदायों के हक और भूमि अधिकारियों के संबंधित मुद्दों पर काम करने लगी. इन मुद्दों को उन्होंने पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उठाया.

अश्विनी केपी जरिया: विमेन अलायन्स फाॅर  डिग्निटी एंड इक्वलिटी की सह संस्थापक भी है. अपनी पीएचईडी के दौरान उन्होंने आजीविका और शिक्षा के अधिकारों से दूर हाशिए पर पड़े समुदाय को लेकर ध्यान केंद्रित किया. साथ ही भारतीय दलित महिलाओं को सशक्त, सक्रिय और मुख्य धारा से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई.

दलितों की समस्याओं को आवाज देने और उसे महत्वपूर्ण मंचों पर रखने की बदौलत ही अश्विनी केपी ने अलग मुकाम हासिल किया है.

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