एकता दिवस: क्या हमारे देश में विविधता में एकता बची है?

"केंद्र और बिहार में जो मौजूदा सरकार हैं उन्हें एकता दिवस जैसे कार्यक्रम करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. क्योंकि इनका आचरण इसके ठीक विपरीत है."

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पल्लवी कुमारी
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एकता दिवस: क्या हमारे देश में विविधता में एकता बची है?

केंद्र की बीजेपी सरकार साल 2014 से हर साल सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती (31 अक्टूबर) को देश को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाती है. इस दिन सरकार देश की ‘एकता और अखंडता’ के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नागरिकों को सरदार पटेल राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से भी सम्मानित करती है. इसके अलावा एकता दौड़ (Run for unity) और एकता दिवस शपथ का भी आयोजन किया जाता है.

लेकिन इस वर्ष 31 अक्टूबर को दीपावली पर्व के कारण एकता दौड़ का आयोजन 29 अक्टूबर को ही किया जा रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी जानकारी रविवार को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में दी. पीएम मोदी ने इसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को हिस्सा लेने और देश की एकता के मंत्र के साथ ही फिटनेस के मंत्र को हर तरफ फैलाने की बात कही.

मौजूदा सरकार को नहीं है अधिकार: पुष्पेंद्र कुमार  

2014 में सत्ता में आने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की सरकार देश की अखंडता और संप्रभुता को मजबूती देने की बात कहती रही है. लेकिन अगर एनडीए सरकार के बीते 10 सालों के कार्यकाल को देखा जाए तो इसी दौरान देश में सांप्रदायिक हिंसा और दलित, पिछड़ों और आदिवासियों के साथ मारपीट, मॉब लिंचिंग और अपमानित किए जाने की खबरें आती रहीं हैं.

मणिपुर हिंसा इसका ही एक उदाहरण है जो बीते 17 महीनों से राज्य में सैकड़ों लोगों की मौत का कारण बना है. मणिपुर में दो समुदायों के बीच चल रहे जातिगत हिंसा का समाधान राज्य की बीजेपी सरकार अबतक नहीं निकाल सकी है.

देश की ‘एकता’ पर भाषाई ज्ञान देने वाले पीएम मोदी हिंसा प्रभावित मणिपुर या इन जैसी घटनाओं से प्रभावित समुदायों और क्षेत्रों पर बोलने से बचते नजर आते हैं. 

मणिपुर हिंसा के ख़िलाफ़ पटना में छात्राओं का प्रदर्शन
मणिपुर हिंसा के ख़िलाफ़ पटना में छात्राओं का प्रदर्शन 

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, पटना के सेंटर फॉर डेवलपमेंट प्रैक्टिस एंड रिसर्च के प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष पुष्पेंद्र कुमार केंद्र सरकार द्वारा मनाए जा रहे एकता दिवस को केवल दिखावा और प्रपंच बताते हैं.

प्रोफ़ेसर कुमार कहते है, "केंद्र और बिहार में जो मौजूदा सरकार हैं उन्हें एकता दिवस जैसे कार्यक्रम करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. क्योंकि इनका आचरण इसके ठीक विपरीत है. मौजूदा सरकार विभाजनकारी नीति के साथ एक खास समुदाय के खिलाफ नफरत के बुनियाद पर राष्ट्रवाद का नैरेटिव खड़ा कर रही है. नफरत के बल पर ये भारत को धीरे-धीरे Theocracy state (धर्मतंत्र राष्ट्र) बनाने की राह पर लेकर जा रही है."

सरकार की मौजूदा नीतियों पर पुष्पेंद्र कहते हैं "सरकार एक समुदाय को यह विशेषाधिकार दे रही है कि वह निर्भीक होकर हिंसा करें. उनका कोई कुछ नहीं बिगड़ेगा."

एक तरफ जहां केंद्र सरकार देश में एकता और सद्भाव की बात करती है. वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी और उसके केंद्रीय नेताओं के बोल देश की एकता और अखंडता की नींव हिलाने की कोशिश करते रहे हैं. अभी हाल ही में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बिहार के सीमांचल में हिन्दू स्वाभिमान यात्रा की. जिसका मकसद हिन्दू समाज को जोड़ना बताया जा रहा है. लेकिन इस दौरान उन्होंने मुस्लिम समुदाय को लेकर कई विवादित बयान दिए. जिसमें 'लव, थूक और लैंड जिहाद' की बात कहने के साथ ही रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठ की बात कही.   

गिरिराज सिंह ने इस दौरान कहा “त्रिशूल की पूजा महादेव की तौर पर करें और जरुरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल भी करें."

प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कहते हैं "जब केंद्रीय मंत्री सीमांचल क्षेत्र में घूमकर लोगों को हिंसा के लिए उकसाता हो. कहता हो- कोई तुम्हें एक थप्पड़ मारे तो तुम सब मिलकर उसे मारो. घर में एक त्रिशूल रखो. अगर जरुरत हो तो धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करो. देश में जब ऐसी स्थिति हो तो कोई सरकार केवल फॉर्मल डेमोक्रेसी दिखाने के लिए के लिए ही इस तरह का प्रोग्राम करती है. जबकि इसके प्रति उनकी अपनी आस्था नहीं है." 

भाषण के दौरान गिरिराज सिंह

मणिपुर की तरह ही बीजेपी की सरकार जिन-जिन राज्यों में प्रत्यक्ष या सहयोगी दल के रूप में सरकार में रही है. उन राज्यों में सांप्रदायिक तनाव के मामलों में बढ़ोतरी हुई है.

बिहार में बढ़े सांप्रदायिक हिंसा के मामले

साल 2022 में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि सबसे ज़्यादा सांप्रदायिक दंगे बिहार में दर्ज किये गये.

देश में साम्प्रदायिक हिंसा को लेकर दिए गए आंकड़ों के अनुसार देश के विभन्न हिस्सों में 2018 से 2020 के बीच 1807 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें 8565 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

आंकड़ों के अनुसार इस दौरान सबसे अधिक 419 मामले बिहार में दर्ज किये गये थे. इन मामलों के खिलाफ 2777 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें 2316 के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दाखिल गया. 

भले ही यह आंकड़े पुराने हैं लेकिन बिहार में जातीय और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं नियमित अंतराल पर होती रही हैं. अभी पिछले महीने ही नवादा जिले के ददौर गांव के कृष्णानगर दलित बस्ती में दबंगों ने दलितों के 34 घर जला दिए. इस घटना के बाद नीतीश कुमार के सुशासन के दावे पर सवाल उठने लगे हैं.

बिहार शरीफ़ दंगे के दौरान मदरसे में जली किताबें
बिहार शरीफ़ दंगे के दौरान मदरसे में जली किताबें

बिहार में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एनडीए शासन के 10 साल को सुशासन और गरीबों के लिए कल्याणकारी बताया था. लेकिन चुनावी दावों और वादों के पोल कुछ ही महीनों में सामने आ गयी.

पिछले साल अप्रैल माह में बिहारशरीफ़ और सासाराम जिलें में रामनवमी शोभायात्रा के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़क गयी थी जिसमें एक व्यक्ति की मौत भी हुई थी. जानकारों का कहना है ऐसी हिंसा बिहार शरीफ और सासाराम जैसे इलाकों में कई दशकों बाद देखी गयी थी.

धार्मिक आयोजनों के दौरान भड़काऊ नारे 

बिहार में बीते कुछ वर्षों में रामनवमी, मुहर्रम और इन जैसी कई धार्मिक आयोजनों के दौरान हिंसा, उपद्रव और तनाव का माहौल बनाया जा रहा है. ऐसा कहा जा रहा है, नीतीश कुमार जब-जब भाजपा के साथ गठबंधन करके सरकार में आये हैं. राज्य में इन धार्मिक आयोजनों के दौरान तनाव देखने को मिला है.

बीते कुछ वर्षों में रामनवमीं और अन्य धार्मिक जुलूसों के दौरान होने वाली घटनाओं में हिंसा का एक समान पैटर्न देखने को मिलता है. जिसमें धर्म विशेष और समुदाय विशेष के लोगों को टार्गेट कर डीजे पर भड़काऊ गाने बजाए जाते हैं. धार्मिक जुलूस जानबुझकर ऐसे इलाकों से ले जाया जाता है जहां समुदाय विशेष के लोग रहते हों. उन्हें संबोधित करते हुए आपत्तिजनक नारे लगाए जाते हैं. ऐसे नारे लगाने वाले लोगों में समाज का युवा वर्ग सबसे पहली पंक्ति में नजर आता है. 

वर्तमान परिदृश्य में समुदायों, खासकर युवाओ में दूसरे समुदाय के प्रति नफरत की भावना बढ़ती जा रही है जो भारत के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है.

युवाओं को हिंसा से बचने को लेकर पुष्पेंद्र कहते हैं, "धार्मिक आयोजनों के दौरान युवाओं में जोश रहता है. इस दौरान जब दो समुदायों के बीच इंटरेक्शन होता है तो छोटी अफवाह भी हिंसा फैला सकती है. ऐसी परिस्थितियों के लिए उन्हें अपनी तर्क-वितर्क करने की क्षमता, सही गलत में फर्क करने और क्या नहीं करना है उसका निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने की जरुरत हैं. नहीं तो जिस तरह से चीनी के चाशनी पर मक्खियां भिनभिनाती है उसी तरह आज का युवा नफरत की चाशनी पर भिनभिनाने वाली मक्खी बनकर रह जायेगा."

मुज़फ़्फ़रपुर में मस्जिद पर भगवा झंडा लगाती भीड़
मुज़फ़्फ़रपुर में मस्जिद पर भगवा झंडा लगाती भीड़ 

बिहार में 2017 में मूर्ति विसर्जन के दौरान नवादा, औरंगाबाद, दरभंगा, भागलपुर, मुंगेर, रोसड़ा, सिवान और गया जैसे शहरों में हिंसा भड़की थी. उस समय राज्य में नीतीश कुमार बीजेपी के साथ सरकार में थे.

हिंसा का कारण भड़काऊ नारेबाजी थी, जिसमें टोपी उतारने, पाकिस्तान जाने, वंदे मातरम और जय श्री राम बोलने जैसे नारे लगाए गये. वहीं हिंदू पक्ष का आरोप था कि मुस्लिम इलाकों में जुलूस पर पथराव किए गए थे. 

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की 270 से ज़्यादा घटनाएं हुई थी. जबकि इससे पहले 2012 में राज्य में सांप्रदायिक हिंसा की 50 घटनाएं हुई थी. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि नीतीश कुमार ने, जब से बीजेपी के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई है राज्य में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है.

वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी 2017 में सबसे ज्यादा सांप्रदायिक दंगे दर्ज किये गये थे. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरों (NCRB) के अनुसार देश में पिछले दस सालों में सांप्रदायिक दंगों के 6800 मामले दर्ज हुए हैं. इसमें सबसे अधिक 822 मामले साल 2017 में दर्ज हुए थे.