बिहार और उत्तरप्रदेश में मुसहर समुदाय की बड़ी आबादी रहती है. इन्हें मुसहर चूहा खाने के कारण कहा जाता है. समय के साथ ये नाम इस समुदाय के ऊपर अभिशाप बन गया. ये समुदाय समाज के सबसे निचले पायदान पर खिसकने लगा जिसके विकास पर किसी की नजर नहीं गई. मगर एक महिला शिक्षिका ने अकेले मुसहर समुदाय को समाज में स्थापित करने के लिए बड़ी पहल की है. बिहार में मुसहर समाज के लिए काम करने वाली पदम श्री सुधा वर्गीज ने अपने जीवन को दलितों के उत्थान में झोंक दिया है.
बिहार और उत्तर प्रदेश के दलितों के लिए मुखरता से काम करने वाली सुधा वर्गीज ने शराबबंदी पर बड़ा बयान देकर सुर्खियां बटोरी थी. उन्होंने शराबबंदी को मुसहर समाज की आजीविका पर कुठाराघात बताया था और सरकार को पहले मुसहर समाज के लिए वैकल्पिक आजीविका मुहैया कराने की मांग रखी थी.
मूल रूप से सुधा वर्गीज केरल के कोट्टायम की रहने वाले हैं. महज 16 साल की उम्र में ही वह केरल छोड़ पटना में रहने लगी. पटना में उन्होंने घूम-घूम कर उन्होंने गरीब बच्चों के शिक्षा के लिए काम करना शुरू किया. राज्य के मुसहर समुदाय के अधिकार, शिक्षा इत्यादि के लिए सुधा वर्गीज ने नि:स्वार्थ भाव से काम कर रही हैं. कान्वेंट स्कूल में शिक्षिका के तौर पर काम करने वाली वर्गीज ने अपना इस्तीफा देकर 1986 में मुसहर समाज को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया.
सुधा वर्गीज का मानना है कि शिक्षा के जरिए ही बड़ी-बड़ी बाधाओं को पार किया जा सकता है. इसके लिए उन्होंने मुसहर जाति की महिलाओं और लड़कियों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया. सामाजिक और अधिकारों की लड़ाई के लिए उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की और महिलाओं को कानूनी अधिकार के साथ आगे बढ़ने के लिए जागरूक किया.
57 सालों से बिना रुके और बिना थके सुधा वर्गीज मुसहर जाति के उत्थान के लिए काम कर रही हैं. उनके इस काम का ही नतीजा है कि आज पटना के फुलवारीशरीफ, पुनपुन और बिहिटा ब्लॉक में 4 हजार से ज्यादा महिलाएं खेती से जुड़कर आर्थिक तौर पर सशक्त हो रही है. 20 लड़कियों को इनकी बदौलत ही फोर व्हीलर का लाइसेंस मिला, जो अब नौकरी की भी तलाश में है. दानापुर और पुनपुन में दो महिला बैंड भी वर्गीज की कोशिशो के बदौलत बने हैं.
वर्गीज के एनजीओ "नारी गुंजन बिहार की दलित लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा, साक्षरता, व्यावसायिक प्रशिक्षण, स्वास्थ्य सेवा, वकालत और जीवन कौशल की सुविधा दी जाती हैं. यहां कुल 1500 दलित लड़कियों को नामांकन देकर शिक्षित किया जा रहा है. वर्गीज के काम को बिहार सरकार द्वारा भी आंशिक रूप से सहायता दी जाती है. बिहार के गया में राज्य सरकार के महादलित मिशन द्वारा आंशिक रूप से सुधा वर्गीज के स्कूल को वित्त पोषित किया जाता है.
एक इंटरव्यू में वर्गीज ने कहा कि वह बी. आर अंबेडकर से प्रेरित है.
सुधा वर्गीज को उनके इस प्रयास के लिए समय-समय पर अलग-अलग पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. हाल में ही उन्हें जमन लाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस पुरस्कार राशि के तौर पर वर्गीज को 20 लाख रुपए की राशि मिली, जिसे उन्होंने मुसहर समाज के उत्थान पर खर्च करने का फैसला किया.
हमारे समाज में मुसहर जाति के साथ आज भी भेदभाव जैसी घटनाएं बड़े स्तर पर होती हैं. इस समुदाय के लोगों को सालों से पिछड़ा और आखिरी का दर्जा दिया जाता है. इनकी आवाज को दबाने के कारण मुसहर समुदाय में होने वाली घटनाओं पर पुलिस भी संज्ञान लेने से चूक जाती है. ऐसे में एक महिला का दलितों के लिए काम करना और उन्हें सशक्त बनाना समाज को प्रेरणा देता है. मगर एक कहावत है ना- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, इसलिए अकेले सुधा वर्गीज ही मुसहरों के उत्थान को सफ़ल नहीं बना सकती इसके लिए हमें भी उनकी कोशिश का हिस्सा होना होगा.