बिहार विधानसभा चुनाव अगले साल होने वाले हैं. राज्य के विधानसभा का इतिहास रहा है कि अब तक यहां से कोई भी महिला मुख्यमंत्री चुनाव जीत कर कुर्सी पर नहीं बैठी है. बिहार के सियासत में महिलाओं को अब तक वह मुकाम नहीं मिला है, जिसकी वह हकदार है. मगर इसी राज्य में एक दलित समाज की ऐसी इकलौती महिला विधायक के बारे में हम जानेंगे जो लगातार पांच बार जनता की पसंद बनती रहीं.
भंगी समाज से ताल्लुक रखने वाली भागीरथी देवी 1980 से सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनीं. 2000 में वह पहली बार विधायक बनी और उसके बाद लगातार विधायकी संभालती रही. मगर वह शुरुआत से ही राजनीति का हिस्सा नहीं थी, राजनीति में आने से पहले उन्होंने सफाई कर्मचारी के तौर पर काम किया था. पद्म श्री सम्मान प्राप्त कर चुकी भागीरथी देवी पश्चिम चंपारण जिले के नरकटियागंज में ब्लॉक विकास कार्यालय में एक सफाई कर्मचारी थी. उस समय उन्हें महीने का वेतन मात्र 800 रुपए मिलता था.
महादलित वर्ग से आने वाली भागीरथी देवी को राजनीति में गरीबों, खासकर दलित समाज के लिए आवाज उठाते हुए देखा गया है. इसके साथ ही वह शिक्षा को लेकर भी काफी जागरूक रही हैं. चंपारण जिले में ही उन्होंने अपने घर में आंगनबाड़ी केंद्र कार्यालय खोलने की अनुमति दी और लड़कियों की शिक्षा के क्षेत्र में विशेष रूप से कई काम किए. उन्होंने कई साल नरकटियागंज ब्लॉक में महिला संगठन (महिला समूह) बनाने में बिताएं और महिलाओं को संगठित कर घरेलू हिंसा, दलितों के खिलाफ हिंसा, उचित मजदूरी जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाया. इस दौरान 1991 में उन्हें जेल तक भेजा गया था. जेल जाने के बाद उनका सफर राजनीति की ओर मुड़ गया. जेल से छूटने के बाद भाजपा ने उन्हें राजनीति में आने का मौका दिया. इसके बाद राम मंदिर निर्माण के लिए निकाली गई रथ यात्रा में भी भागीरथी देवी समस्तीपुर में जेल जा गईं.
राजनीति में आने की वजह को लेकर उन्होंने बताया कि गरीब मजबूर महिलाओं को ब्लॉक से अधिकारी अक्सर भगा देते हैं. ऐसा ही एक बार उनके साथ भी हुआ, तब उन्होंने उसी पल काम छोड़ दिया और सभी महिलाओं को एकजुट कर प्रखंड का घेराव किया. उस समय ही कहीं ना कहीं उन्होंने राजनीति में कदम रख दिया था. राजनीतिक करियर की शुरुआत में उन्हें परिवार से विरोध झेलना पड़ा था. भागीरथी देवी ने बताया कि जब वह राजनीति में आई तो परिवार ने उनका काफी विरोध किया. यहां तक की पति भी उनके विरोधी हो गए. लेकिन वह भी अड़ गई और पति से साफ कह दिया कि आपको नहीं रखना है नहीं रखें, लेकिन हम राजनीति नहीं छोड़ेंगे. उनके पति ममीखन राउत रेलवे में काम करते थे और अब रिटायर हो चुके हैं.
भागीरथी देवी लगातार 2000 से 2010 तक नरकटियागंज से विधानसभा चुनाव लड़ती और जीतती रहीं. परिसीमन के बाद यह सीट बदल गई और इसका नाम रामनगर हो गया. रामनगर से भी वह विधायक चुनी गईं.
बिहार में जन समर्पण कामों के लिए केंद्र सरकार ने उन्हें 2019 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया था. राजनीति महिला मोर्चा, शिक्षा जगत के अलावा भंगी समाज की एकमात्र महिला विधायक ने अभिनय के क्षेत्र में भी हाथ आजमाया है. प्यार मोहब्बत जिंदाबाद फिल्म में उन्होंने अभिनय किया. इसके अलावा विनय बिहारी के निर्देशन में बनीं फिल्म 11 विधायकों में भी भागीरथी देवी का एक रोल था.
2 साल पहले 2022 उन्होंने बागी तेवर अपनाते हुए भाजपा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. इस्तीफा देने की एक बड़ी वजह उन्होंने खुद का दलित होना बताया था. उन्होंने बताया कि एक दलित होने के कारण पार्टी में मेरी बात नहीं सुनी जाती. मैं दलित हूं, इस कारण मेरी विधानसभा के लोग मुझे प्रताड़ित करते है. सवाल उठता है कि विकास का नारा बुलंद करने वाली दलित नेत्री के इन क़दमों को रोकने में सवर्ण समाज के लोगों का हाथ था या इस पुरुषवादी समाज को एक स्त्री का नेतृत्व खटक रहा था. इसी तरह के क़दमों ने महिलाओं को शीर्ष नेतृत्व तक पहुचने से पहले रोकने, गिराने और रास्ता बंद करने की कोशिश की है. यही कारण है कि बिहारी में जहां पंचायत स्तर पर महिलाओ को आज 50 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है, वहां अब भी पुरुषों का ही वर्चस्व कायम है.