समाज में सुंदरता की परिभाषा क्या है?

अगर लंबाई कम है तो उसकी दवाई, रंग सांवला है तो उसकी दवाई, सर पर बाल कम हैं तो उसके लिए दवाई. आज का युवा वर्ग अपनी बाहरी पहचान को ज़्यादा महत्व देता है.

author-image
पल्लवी कुमारी
एडिट
New Update
समाज में सुंदरता की परिभाषा

समाज में सुंदरता की परिभाषा

बाज़ारवाद के दौर में व्यक्ति के भावनाओं का कोई मोल नहीं रह गया है. व्यक्ति की सादगी, शालीनता और उसके व्यवहार को चरित्र ना मानकर चेहरे की बनावट, उसका रंग, उसकी कद-काठी को ज़्यादा महत्व दिया जा रहा है.

Advertisment

ऐसे में यह प्रश्न उठता है आखिर समाज में सुंदरता(beauty in society) की परिभाषा क्या है? महिला हो या पुरुष उसे समाज के किन तय मानकों पर खड़ा उतरना ज़रूरी है.

भद्दे कमेंट से परेशान होकर दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं

20 वर्षीय लक्ष्मी कुमारी नालंदा जिले की रहने वाली हैं. अपने नाक की लंबाई के कारण आसपास के लोगों के लिए लक्ष्मी सुंदर नहीं है. लक्ष्मी की पढ़ाई से ज़्यादा परिजनों को उनकी उनकी शादी की चिंता है. क्योंकि उनके नाक की लंबाई समाज के तय मानक के हिसाब से छोटी है.

Advertisment

डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए लक्ष्मी बताती हैं “मेरे नाक की लंबाई छोटी है. मेरे मम्मी-पापा को छोड़कर आसपास के सभी लोग मुझे ‘नेपाली’ और दूसरे भद्दे नामों से बुलाते हैं. वो कहते हैं नाक इतना चपटा है लगता है नेपाल से आई है.” 

लक्ष्मी बताती है “मैं बचपन से यही नाम सुनकर बड़ी हुई हूं. छोटी थी तो बहुत बुरा लगता था लेकिन मुझे इसकी आदत हो गयी है. लोग यहां तक कहते हैं इससे अच्छा सांवली रहती लेकिन नाक थोड़ा खड़ा रहता. रंग तो क्रीम लगाकर साफ़ हो जाता लेकिन नाक बिना सर्जरी के कैसे लंबा होगा.” 

समाज में सुंदरता की परिभाषा

लखीसराय के रहने वाले 20 वर्षीय राघव की कहानी लक्ष्मी से अलग है. लक्ष्मी को जहां पड़ोसियों के ताने परेशान करते हैं. वहीं राघव भविष्य में होने वाले गंजेपन की समस्या को लेकर अभी से परेशान हैं. पिछले दो-तीन महीनों में राघव बाल झड़ने की दवा समेत तेल और शैम्पू का इस्तेमाल कर रहे हैं. 

राघव की मां बताती हैं “पिछले साल उसका लिगामेंट का ऑपरेशन हुआ था. मुझे लगता है हार्ड दवाइयों के सेवन के कारण उसका बाल झड़ने लगे हैं. हम लोग समझाते हैं ज़्यादा मत सोचो लेकिन वह मानता नहीं है. उसने अपने मन से ऑनलाइन कई तरह के प्रोडक्ट मंगाकर उपयोग करना शुरू कर दिया था. उसके जिद के बाद अभी पिछले महीने हमने उसे एक आयुर्वेदिक डॉक्टर से दवा लेकर दिया है.”

‘परफेक्ट दिखने’ का तनाव, पैसे की बर्बादी के साथ देता है मानसिक तनाव 

एक पांच साल का बच्चा जिसे अभी ‘सुन्दर’ और ‘कुरूप’ होने का भेद नहीं पता, लेकिन समाज उसे रंगों में भेद के साथ यह समझा देता है कि ‘’गोरा’ मतलब सुंदर और ‘सांवला’ मतलब कम सुंदर. शायद उस बच्चे को सुंदरता की सही परिभाषा कभी बताई भी ना जाए. लेकिन समाज के तय मानकों पर सटीक ना बैठने वाले व्यक्ति से भेदभाव करना सीखा दिया जाता है.

लोग ‘परफेक्ट’ और 'सुंदर' दिखने के लिए लाखों ख़र्च करने को तैयार रहते हैं. यहां तक कि बेहद जटिल सर्जरी कराने में भी परहेज़ नहीं करते हैं. सुंदरता बढ़ाने के नाम पर किये जाने वाले ट्रीटमेंट के हज़ारों क्लिनिक अब छोटे शहरों में भी खोले जा रहे हैं.

समाज में सुंदरता

सर्जरी के बढ़ते चलन पर डाकबंगला चौराहे पर शहनाज़ हुसैन हर्बल ब्यूटी केयर की संचालिका और ब्यूटी एक्सपर्ट नूतन तनवीर कहती हैं “सर्जरी का चलन अभी छोटे शहरों में नहीं पहुंचा है. सर्जरी ज़्यादातर मॉडल या एक्ट्रेस करवाती हैं क्योंकि उनका चेहरा उनके काम का हिस्सा है. आम जीवन में बहुत कम लोग सर्जरी करवा रहे हैं क्योंकि ज़्यादातर लोग इस पर आने वाले ख़र्च अफोर्ड (वहन) नहीं कर सकते. हालांकि इधर कुछ सालों में बुटोक्स और लेज़र का चलन बढ़ा है. पार्लर आने वाली महिलाएं या लड़कियां पूछती हैं, आप अच्छा डॉक्टर बताइए. हालांकि बुटोक्स सुरक्षित नहीं है हम उन्हें बताते है कि उम्र तो समय के साथ पता चलना ही है चाहे आप कितना भी बुटोक्स ले लीजिए.” 

बॉडी शेमिंग एक बड़ी समस्या

सर्जरी के अलावा शहरों में एक चलन जिम का भी देखने को मिल रहा है. पिछले 5 सालों में जिस तेजी से छोटे शहरों में जिम खोले जा रहे हैं यह फिटनेस के अलावा किसी और संस्कृति के तरफ भी इशारा करते हैं. युवा पीढ़ी आकर्षक बॉडी पाने की लालसा में घंटो जिम में पसीना बहाते हैं.

सामान्य तौर पर बढ़ा वजन भी उनके तनाव का कारण बन जाता है. बॉडी शेमिंग की आशंका से ग्रस्त व्यक्ति बिना शारीरिक स्थिति की जांच किये जिम में पसीना बहाने लगता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े कहते हैं कि विश्व भर में मोटे लोगों की संख्या 100 करोड़ को पार कर गयी हैं. ऐसे में मोटापे को लेकर हमारे पूर्वाग्रह की धारणा को बदलना होगा.

मोटापा और गंजापन से परेशान लोग

बाहरी सुन्दरता पर व्यर्थ मेहनत और ख़र्च करने की मनोवृति पर महात्मा गांधी ने अपनी किताब ‘आत्मकथा’ में लिखा है “वास्तविक सौन्दर्य ह्रदय की पवित्रता से है. इसका बाहरी बनावट और प्रदर्शन से कोई संबंध नहीं है. यह जो रूप की सजावट, वेष विन्यास में विचित्रता का प्रसार बढ़ रहा है यह आंतरिक सौन्दर्य को छलता है इससे बचना चाहिए.”

नूतन तनवीर का कहना है “अभी भी कुछ लोग हैं जिन्हें सुंदरता केवल गोरेपन में नज़र आता है. लेकिन मेरा मानना है कि आप सुंदर तभी दिखते जब आपके पास स्किल और कांफिडेंस है. जब आप अंदर से खुद को सुंदर महसूस करियेगा तभी आप बाहर से सुंदर दिख सकती हैं.”

इसलिए बदलते रहने वाले सौन्दर्य को हमें सुन्दरता नहीं मानना चाहिए. समाज को यह नहीं भूलना चाहिए कि असली खूबसूरती चेहरे में नहीं बल्कि व्यक्ति के चरित्र में होती हैं.

beauty in society suffering from obesity and baldness