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अभिनेत्री-पीके रोजी
अभिनेत्री-पीके रोजी
फिल्म जगत की दुनिया जितनी चका चौंध लगाती है, उतनी उसके अंदर जाने पर सुनसान, वीरान और अकेली नजर आती है. फिल्मों से जुड़ना, नाम कमाना काफी लोगों की चाहत होती है, मगर इस दुनिया का दूसरा रूप झेलना बहुत मुश्किल होता है. यहां नाम कमाने के लिए पुरुष और महिलाओं का अपना अलग-अलग संघर्ष है जिसपर हमेशा बात होती रही है. मगर दलितों के संघर्ष का कुछ गिना चुना उदाहरण ही मिल पाता है. इस लेख में हम जानेंगे कि क्या हुआ जब एक दलित महिला कलाकार ने अपनी कला से इस जगत में नाम कमाने की कोशिश की.
मलयालम सिनेमा की पहली अभिनेत्री और भारतीय सिनेमा की पहली दलित अभिनेत्री पीके रोजी के बारे में काफी कम लोग जानते हैं. बीते साल उनकी 120वीं जयंती के मौके पर गूगल ने एक डूडल के जरिए उन्हें याद किया था.
पीके रोजी का जन्म 1903 में केरल के तिरुवंतपुरम में हुआ. दलित परिवार में जन्मी रोजी के घर में मां-पापा और एक छोटी बहन थी. बचपन में रोजी के पिता चल बसे, तब जिम्मेदारी बड़ी बहन होने के कारण रोजी पर आ गई. इसलिए कम उम्र में रोजी कमाने के लिए घास काट कर उसे बेचने लगी. कम उम्र में ही उन्हें कला में रुचि होने लगी जिसमें उनके चाचा ने साथ दिया. रोजी के चाचा ने आर्थिक सहायता के साथ-साथ कला के क्षेत्र में बढ़ाने के लिए उनका एडमिशन एक आर्ट स्कूल में कराया. स्कूल में रोजी ने काक्काराशि फोक डांस सीखा. उनके इस कला प्रेम से घर के लोग खुश नहीं थे, मगर वह समाज की सोच की परवाह के बगैर अपनी पहचान कला से बनाने की ठान चुकी थी.
गुलामी के उसे दौर में जातिवाद छुआछूत चरम पर था, जिस कारण काफी मेहनत के बाद भी रोजी को वह पहचान नहीं मिल पा रही थी जिसकी वह हकदार थी. मगर एक रोज उनकी किस्मत पलटी और उनके झोली में एक फिल्म में लीड रोल निभाने का मौका मिला.
1928 में फिल्म विगाथाकुमारन ‘द लॉस्ट चाइल्ड’ में उन्होंने पहली महिला एक्ट्रेस के तौर पर अभिनय किया. इस फिल्म में उन्हें अपनी असल जाति से बिल्कुल विपरीत अभिनय करना था. रोजी को एक उच्च जाति की महिला की भूमिका अदा करनी थी, जो उन्होंने बखूबी की भी. फिल्म में उनकी एक्टिंग की खूब सराहना हुई, लेकिन एक पक्ष उनके इस बढ़ते कदम को झेल नहीं पा रहा था.
जिस कारण रोजी को अपने किरदार के लिए विरोध भी झेलना पड़ा. विरोध भी ऐसा कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा. इस फिल्म के बाद ही रोजी ने अपने आंखों के सामने अपने करियर को खत्म होते और अपना सब कुछ बर्बाद होते हुए देखा था. वह भी इसलिए क्योंकि वह एक दलित अभिनेत्री थी.
दरअसल फिल्म के एक सीन में पुरुष अभिनेता ने रोजी के बालों में फूल लगाया और उन्हें चुमा. इस सीन पर उस समय खूब बवाल हुआ था. एक दलित एक्ट्रेस को चुमने से उच्च जाति के ठेकेदारों ने थिएटर और दलित एक्ट्रेस का घर तक जला दिया था. इतना नाकाफी था कि उन्हें राज्य छोड़ने तक को मजबूर किया गया.
जानकारी के मुताबिक इस विरोध के बाद रोजी एक लाॅरी से तमिलनाडु भाग गई, जहां उन्होंने लाॅरी चालक से ही शादी कर नाम बदलकर जिंदगी गुजारी.
तमिल सिनेमा में उनके इस छोटे मगर प्रभावी करियर ने दलित समुदायों को लेकर रची बसी कई सीमाओं को तोड़ने का काम किया. उस दौर में जब महिलाओं को कला के क्षेत्र में जाने पर बुरा भला कहा जाता था और न जाने किस तरह के नाम दिए जाते थे, तब पीके रोजी ने अपने योगदान से इस क्षेत्र में महिलाओं के लिए अवसरों के दरवाजे खोले थे. मगर अफसोस इस बात का है कि तमिल सिनेमा ने आज तक उनके काम की सराहना नहीं की.