क्या नए क़ानून और सज़ाओं से आपराधिक मानसिकता कम होगी?

शुरुआत से ही महिलाएं शोषित वर्ग का हिस्सा रही है. शोषण करने वाले अक्सर शोषित वर्ग को आराम से दबा देते हैं. दरअसल शोषित वर्ग को कमजोर माना जाता है, जिसकी आवाज दबाने के लिए कई हथकंडे अपनाएं जाते हैं.

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नए क़ानून और सज़ाओं से अपराध में कमी

नए क़ानून और सज़ाओं से अपराध में कमी

आंध्र प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेज में बीती रात हिडन कैमरा मिलने का मामला उजागर हुआ. गर्ल्स हॉस्टल के वॉशरूम में यह कैमरा मिला है. दावा किया जा रहा है कि 300 से ज्यादा फुटेज लीक हुई है. हॉस्टल की लड़कियों ने काॅलेज प्रशासन पर अनदेखी करने और जानकारी होने के बावजूद कार्रवाई ना करने का आरोप लगाया. घटना के उजागर होने पर छात्राओं ने कैंपस के अंदर जमा होकर विरोध प्रदर्शन किया. खबर यह भी आई कि छात्राओं के विरोध प्रदर्शन को कॉलेज प्रशासन ने दबाने की कोशिश की. खबर मीडिया में ना आए इसके लिए हॉस्टल के गेट को बंद कर दिया गया.

हमारे समाज में लड़कीयों और महिलाओं की आवाज को दबाने का यह पहला मामला नहीं है. शुरुआत से ही महिलाएं शोषित वर्ग का हिस्सा रही है. शोषण करने वाले अक्सर शोषित वर्ग को आराम से दबा देते हैं. दरअसल शोषित वर्ग को कमजोर माना जाता है, जिसकी आवाज दबाने के लिए मजबूत वर्ग धमकियों से लेकर हत्या तक की कोशिश करते है.

महिलाओं की आवाज को दबाने में पितृसत्तात्मक समाज की महिलाएं भी शामिल है. जिसके कई उदाहरण आए दिन भी देखने मिल रहे हैं. एक प्रदेश की कमान संभाल रही सीएम शोषित वर्ग के लिए आवाज उठाने की बजाय देश के जलने की धमकी दे रही हैं. खुद एक महिला होकर भी दूसरी महिलाओं के दर्द को साझा और कम करने की बजाय धमकियों पर राज्य को व्यवस्थित करने की कोशिश में हैं.

पश्चिम बंगाल की घटना के बाद से देशभर में कई इलाकों मे महिलाओं के साथ हिंसा हुई. इसमें सबसे ज्यादा रेप और हत्या शामिल है. उत्तराखंड में महिला नर्स के साथ बर्बरता हुई. महाराष्ट्र में दो छोटी बच्चियों को स्कूल के सफाई कर्मचारियों ने गलत तरीके से छूने की कोशिश की. इसी राज्य में एक ऑटो ड्राइवर ने 19 वर्षीय महिला के साथ रेप की घटना को अंजाम देकर उसे सड़क पर फेंक दिया. महिलाओं के साथ शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक, मानसिक हिंसाएं शामिल हैं. एक महिला पर हुए अपराध ने ना जाने कितनी महिलाओं और लड़कियों को समय से पीछे भेज दिया होगा. ना जाने कितनी लड़कियों की शिक्षा, नौकरी, और बाहर निकलने की आजदी पर रोक लग होगा.

मगर इन सबसे बिफक्र केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगी है. भाजपा बंगाल के मुद्दे को पूरी‌ राजनीतिक गंभीरता के साथ उठा रहा है, जिसके लिए सड़कों पर वह लाठी डंडे और मरने तक को तैयार है. मगर इंसाफ की मांग कर रही पार्टी का भी दामन साफ-सुथरा नहीं है. कभी मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई हिंसा पर विपक्ष ने‌‌ अबतक चुप्पी साध रखी है. अपने शासित राज्यों में सत्ताधारी पार्टी महिलाओं को सुरक्षा देने में नाकाम रही है. उत्तर प्रदेश की कई घटनाओं ने इसके सबूत दिए हैं.

मसला यह है कि महिलाओं के साथ हो रही घटनाएं क्या सिर्फ सरकार के बयानबाजियों, जनता के कैंडल मार्च, अदालत की सख्त टिप्पणियों और कानून में सुधार तक ही सीमित हैं? केंद्र से हम आज जिस सख्त कानून की मांग कर रहे हैं, अगर वह बन भी जाए तो रेप करने वालों की मानसिकता में क्या बदलाव आएगा. क्या किसी कानून के लागू होने से अपराध में कमी होती है? यह सवाल एक चोरी की घटना पर सोच के भी हल हो सकती है.

देश में एक छोटी छोरी से लेकर बड़ी चोरी, आधिकारिक रिकॉर्ड्स के साथ छेड़छाड़, तांक-झांक, बहरूपिया, किसी पर टिप्पणी, पीछा करना, स्टॉकिंग इत्यादि कई घटनाएं अपराध में शामिल है. इन अपराधों के लिए माफीनामे से लेकर सजा तक का प्रावधान है. मगर इनसे समाजिक सोच और अपराधिक मानसिकताओं में बदलाव की कोई गारंटी नहीं है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2012 का निर्भय कांड है. इस घटना के बाद भी ना जाने रोज कितने ही ऐसे अनगिनत अपराध दर्ज हो रहे हैं और ना जाने कितनी ही आवाजें दबने में कामयाब रही हैं.

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