साइबर दुनिया में महिलाएं असुरक्षित, 60 में से 40 प्रतिशत महिलाएं साइबर अपराध की शिकार

महिलाओं की सुरक्षा का सवाल महज फिजिकल वर्ल्ड तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि डिजिटली भी महिलाओं को असुरक्षा महसूस होती है. देश में डिजिटल अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसमें बड़े स्तर पर महिलाएं भी इसकी शिकार होती जा रही है.

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महिलाएं साइबर अपराध की शिकार

महिलाएं साइबर अपराध की शिकार

आज के समय में इंटरनेट हर हाथ में पहुंच चुका है. मोबाइल और इंटरनेट से ही सारी दुनिया एक दूसरे से जुड़ गई है. इसका एक तरफ बहुत बड़ा फायदा ग्लोबली हो रहा है, तो वहीं दूसरी ओर साइबर अपराधों में भी उछाल देखा जा रहा है. हमारे देश में महिलाओं के सुरक्षा की स्थिति से सभी रूबरू हैं. भारत में सड़क से लेकर घरों तक महिलाएं सुरक्षित नहीं है. महिलाओं की सुरक्षा का सवाल महज फिजिकल वर्ल्ड तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि डिजिटली भी महिलाओं को  असुरक्षा महसूस होती है. देश में डिजिटल अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसमें बड़े स्तर पर महिलाएं भी इसकी शिकार होती जा रही है. साइबर स्पेस में महिलाओं को असहजता और डर जैसा माहौल देखने मिल रहा है. समय-समय पर महिलाओं से संबंधित टिप्पणियां, मिम्स, रिल्स इत्यादि बनाए जा रहे हैं. महिलाओं को सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, फेक प्रोफाइल, गलत तरीके से तस्वीरों का इस्तेमाल, डीपफेक वीडियो इत्यादि अपराधों से जूझना पड़ रहा है.

सोशल मीडिया ऐसी जगह है जहां लोग अपने मन से अपनी तस्वीरों को पोस्ट कर सकते हैं. अपने विचारों को रख सकते हैं, मगर कुछ लोग महिलाओं को मानसिक, आर्थिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने के लिए इसका इस्तेमाल करने लगे हैं.

साइबर बुलिंग के कारण महिलाओं को कई बार शर्मिंदगी, उदासी, डर, गुस्सा, निराशा, डिप्रेशन आत्महत्या, हिंसा तक के मामले हो चुके हैं. महिलाओं के खिलाफ साइबर क्राइम में सेक्सटॉर्शन, फिशिंग, पोर्नोग्राफी, साइबर स्टॉकिंग, हैकिंग, तस्करी भी शामिल है.

देश में साइबर अपराध के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट 2000) में हैकिंग, इंटरनेट पर अश्लील सामग्री का प्रसार, प्राइवेसी का उल्लंघन, धोखाधड़ी के उद्देश्य से प्रकाशन इत्यादि को दंडनीय अपराध घोषित किया गया. मगर इसमें महिलाओं के सुरक्षा को लेकर विशिष्ट रूप से कोई उल्लेख नहीं किया गया. आईटी एक्ट में साइबर स्टॉकिंग, ईमेल, स्पूफिंग जैसे साइबर अपराधों को भी चिन्हित नहीं किया गया है.

एनसीआरबी के मुताबिक महिलाओं के प्रति साइबर अपराध की संख्या साल 2017 में 7000 के करीब थी, जो 2019 में 8730 पहुंच गई. वहीं कॉविड-19 महामारी के बाद महिलाओं के प्रति साइबर अपराधों में और बड़ा विस्फोट देखा गया.

हर स्टोरी पर छपे सर्वे के मुताबिक दुनियाभर की 60% महिलाओं में से 40% को सोशल मीडिया पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. इस तरह की घटना से 20% महिला या तो सोशल मीडिया से दूर हो जाती है या फिर उसके इस्तेमाल को कम कर देती हैं. यूएन वूमेन ने भी पाया कि 58% महिलाओं और लड़कियों को ऑनलाइन शोषण का शिकार होना पड़ा है.

जुलाई 2021 में महिलाओं के खिलाफ बड़े साइबर अपराध का खुलासा हुआ था, जिसका नाम “सुल्ली डील्स” था. इस घटना के 6 महीने बाद एक बार फिर सोशल मीडिया पर मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ ऐसे ही एक डीलिंग ऐप का खुलासा हुआ था. “बुल्ली बाई” ऐप पर सैकड़ो मुस्लिम महिलाओं की आपत्तिजनक तस्वीरों को अपलोड किया गया था. इस ऐप के जरिए मुस्लिम महिलाओं की नीलामी की जाती थी. जांच में खुलासा हुआ था कि ऐप पर मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरों को उनके सोशल मीडिया हैंडल से चोरी कर अपलोड किया जाता था.

सवाल उठता है कि महिलाओं के प्रति हो रही हर तरह के हिंसाओं पर लगाम लगाने के लिए सरकार क्या कर सकती है? सरकार को आईटी एक्ट के अंतर्गत ही और भी कई कड़े कानून महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे साइबर अपराध को लेकर जोड़ना होगा. साइबर वर्ल्ड में महिलाओं की अत्यधिक सुरक्षा के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को भी सहयोग करना और नए फीचर को जोड़ना होगा.

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