विश्व गरीबी उन्मूलन दिवस: गरीबी रेखा नीचे करने से गरीबी कम होगी?

नीति आयोग द्वारा जारी एसडीजी इंडेक्स 2022-23 में बिहार उन राज्यों में शामिल जिन्हें सबसे कम स्कोर प्राप्त हुआ है. बिहार को इस वर्ष 100 में से 57 अंक मिले हैं.

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बढती बेरोज़गारी का शिकार बिहार के युवा

बिहार के नालंदा जिले के रहने वाले जयशंकर शर्मा रोज़गार की तलाश में इस साल दिल्ली चले गये. जयशंकर के साथ उनकी पत्नी और बेटा भी गए. जयशंकर को उम्मीद थी कि दिल्ली में उन्हें अच्छे वेतन की नौकरी मिलेगी. उनके गांव के कुछ लोग जो पहले से दिल्ली में नौकरी कर रहे थे, उन्होंने भरोसा दिया था कि हफ्ते से 10 दिनों के भीतर उन्हें 18 से 20 हज़ार की नौकरी मिल जाएगी. लेकिन नौकरी की आस में जयशंकर को महीनों दिल्ली में भटकना पड़ा. गांव से लाए पैसे भी ख़त्म हो गये.

दिल्ली में तीन लोगों का पेट भरना और किराया देना भी मुश्किल होने लगा. गांव वापस लौटने का मन बना चुके जयशंकर को आखिर में गार्ड की नौकरी मिल गयी. साथ ही पत्नी को भी बैग बनाने की फैक्ट्री में नौकरी मिल गयी. आज जयशंकर का परिवार भरपेट भोजन के बाद कुछ पैसे बचाकर अपने घर भी भेज पा रहा है.

दिल्ली में गुजरे उन मुश्किल दिनों को याद करते हुए जयशंकर बताते हैं “पहले मैं ट्रक चलाता था. लेकिन 2022 में बहुत तबियत खराब हो गयी. तब से ट्रक चलाना छोड़ दिए हैं. मेरे पास रोजगार का कोई साधन नहीं था. गांव में छह लोगों का पेट तो भर रहा था लेकिन इसके अलावे दूसरी जरूरतों के लिए पैसे नहीं थे."

जयशंकर बताते हैं, गांव में खेती के अलावे रोजगार का कोई दूसरा कोई पक्का साधन नहीं है. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई, पक्का घर और भविष्य की बचत के बारे में सोचना परिवार के लिए संभव नहीं था.

जयशंकर आगे कहते हैं “आज भी बहुत ज़्यादा पैसे नहीं मिल रहे हैं. लेकिन गांव में 50 रुपए का सामान भी उधार लेना पड़ता था क्योंकि हमारे पास नकदी पैसे नहीं थे, उसका साधन नहीं था. आज ये दिक्कत नहीं है.”

जयशंकर की यह मज़बूरी बिहार ही नहीं पूरे भारत में रह रहे उस गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार की मजबूरी है जो रोज़गार के लिए अपना घर, गांव और शहर छोड़ता है. सरकार की कल्याणकारी योजनाएं लोगों का पेट तो भर सकती है लेकिन उन्हें उस गरीबी के दलदल से नहीं निकाल सकती जिसमें निम्नवर्गीय समाज फंसा हुआ है.

गरीबी से निकालने का दावा कितना सच?

देश में कितनी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रह रही है इसका कोई सटीक आंकड़ा सरकार के पास नहीं है. क्योंकि देश में बीते एक दशक में ‘गरीबी में फंसी’ आबादी को लेकर कोई आंकलन जारी नहीं हुआ है. साल 2011-12 में जारी हुए आंकलन के अनुसार देश में गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों की संख्या 27 करोड़ बताई गई थी. सरकार का कहना है कि देश की 21.9 फीसदी आबादी आज भी गरीबी रेखा से नीचे रह रही है.

गरीबी रेखा को लकर सरकार ने जो रेखा तय कर रखी है उसके अनुसार गांवों में रहने वाला व्यक्ति अगर 26 रुपए और शहर में रहने वाला व्यक्ति 32 रुपए खर्च नहीं कर पा रहा है तो उसे गरीबी रेखा से नीचे माना जाएगा.

लेकिन आज के समय में जहां दैनिक उपभोग की वस्तुओं के मूल्य आसमान छू रहे हैं. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं आम लोगों की जेबों पर कर्ज का बोझ बढा रही  हैं. एक हरी सब्जी और आधे लीटर दूध की कीमत 60 रुपए खर्च से ज्यादा है. उस परिस्थिति में भी सरकार गरीबी का सामना कर रहे लोगों का आकलन में 26 और 32 रुपए में दैनिक खर्च से करेगी?

क्या गरीबी रेखा का यह पयमाना समाज की परिस्थितयों से न्याय करता है.

विश्व बैंक की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के कारण भारत में वर्ष 2020 में 56 मिलियन गरीब लोगों की वृद्धि हुई है. प्यू रिसर्च इंस्टिट्यूट की मार्च 2021 की रिपोर्ट में आंकड़े और ज्यादा बड़े हैं. इसके अनुसार भारत में गरीबों की संख्या में 75 मिलियन की वृद्धि हुई है.

लेकिन भारत सरकार इन आंकड़ों को स्वीकार नहीं करती है कि कोरना महामारी, नोटबंदी, और जीएसटी के कारण देश में आर्थिक अस्थिरता पैदा हुई और गरीबी बढ़ी.

इसके उलट भारत सरकार यह दावा करती है कि बीते नौ सालों में देश में 24.8 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आये हैं. इसमें सबसे ज्यादा 3.43 करोड़ यूपी, 2.25 करोड़ बिहार और 1.36 करोड़ मध्यप्रदेश से शामिल हैं.

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार जहां वर्ष 2013-14 में देश में गरीबी दर 29.17 फीसदी थी वह वर्ष 2022-23 में घटकर 11.28 फीसदी हो गयी है.

गरीबी के आंकड़ों में आई इस गिरावट को सरकार अपनी सफलता बता रही है. लोकसभा चुनावों के दौरान सत्ता पक्ष ने इन आंकड़ों को रैलियों में भी दोहराया था. सरकार गरीबी के आंकड़ों में सुधार का श्रेय उन कल्याणकारी योजनाओं को देती है जिनके कारण लोगों के जीवन यापन की मूलभूत सुविधाओं में बदलाव आया है.

योजनाओं का नहीं मिलता है लाभ 

नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि विभिन्न सरकारी प्रयासों और कल्याणकारी योजनाओं ने समुदायों को गरीबी से निकलने में मदद किया है. लेकिन नीति आयोग द्वारा जारी एसडीजी इंडेक्स 2022-23 में बिहार उन राज्यों में शामिल जिन्हें सबसे कम स्कोर प्राप्त हुआ है. बिहार को इस वर्ष 100 में से 57 अंक मिले हैं.

एसडीजी इंडेक्स में स्कोर योजनाओं के  क्रियान्वयन पर दिए जाते हैं. ये योजनाएं 13 अलग-अलग संकेतकों में बांटे गये, हैं जिसमें गरीबी उन्मूलन, भुखमरी, शिक्षा और स्वास्थ्य प्रमुख रूप से शामिल है. बिहार को इन चारों संकेतकों में सबसे कम अंक प्राप्त हुए हैं. गरीबी उन्मूलन में बिहार को 39, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में 32 और भूख से मुक्ति (zero hunger) में 100 में से 24 अंक मिले हैं जो अन्य राज्यों के मुकाबले काफ़ी कम है.

यह स्थिति तब है जब जब सरकार यह दावा करती है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को अनाज उपलब्ध करा रही है. बिहार में आठ करोड़ से अधिक लोग योजना का लाभ उठा रहे हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि कार्ड बनने के बाद भी वंचित परिवार के सभी व्यक्ति को साल के 12 महीने राशन नहीं मिलता है.

पटना के कमला नेहरु नगर बस्ती के वार्ड नंबर 21 में रहने वाले मनीष कुमार (26 वर्ष) पटना जंक्शन स्थित पाल होटल में काम करते थे. लेकिन मार्च महीने में होटल में आग लगने के बाद उनकी नौकरी चली गयी. नौकरी के अभाव में बीते छह-सात महीनों से उनके लिए घर चलाना मुश्किल हो रहा है. सरकार की मुफ्त राशन योजना भी परिवार की मदद नहीं कर रहा है.

मनीष कुमार बताते हैं “मेरे पास सात महीने से नौकरी नहीं है. मेरे पिताजी भी नहीं है. पूरे घर की ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर है. अगर ऐसे समय में सरकार की राशन योजना मेरे काम नहीं आ रही है, तो यह योजना किस दिन के लिए है?”

मनीष कुमार बताते हैं, पिछले साल ही राशन कार्ड से उनके परिवार का नाम कट गया है. कमला नेहरू नगर बस्ती में 1600 से ज्यादा घर हैं. जिसमें लगभग सभी परिवारों के पास राशन कार्ड हैं. लेकिन उन सभी के साथ एक ही समस्या है की या तो परिवार के सभी लोगों का नाम राशन कार्ड में जुड़ा नहीं है या तो कट गया है. ऐसे में परिवार भोजन संबंधी जरूरतों के लिए कर्ज लेने या आधे पेट खाने को मजबूर है.

गरीबी उन्मूलन के लिए सरकार लम्बे समय से राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार कार्यक्रम (NREP), ग्रामीण श्रम रोज़गार गारंटी कार्यक्रम (RLEGP), शहरी गरीबों के लिये स्वरोज़गार कार्यक्रम (SEPUP), राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना (NMBS), राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना (NFBS), प्रधानमंत्री जन धन योजना, पीएम आवास योजना जैसे कार्यक्रम चला रही है.

लेकिन आज भी वंचित समुदायों के समक्ष न केवल भोजन बल्कि आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य एक चुनौती हैं. इन चुनौतियों को ख़त्म करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार को योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए संयुक्त प्रयास करने होंगे. .