लेखिका अनिता भारती दलित साहित्य में नारीवाद और आंबेडकरवाद को लिखती

दलित अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली लेखिका अनीता भारती महिलाओं से जुड़े मसलों पर भी अक्सर लिखती हैं. इसमें भी वह दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के ऊपर होने वाले शोषण पर अत्यधिक प्रहार करती हैं.

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लेखिका अनिता भारती

लेखिका अनिता भारती

सामाजिक कार्यकर्ता, लेखिका, कवयित्री,‌ नारीवादी और शिक्षिका अनीता भारती दलित अधिकारों की बड़ी पैरोकार हैं. दलित अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली लेखिका अनीता भारती महिलाओं से जुड़े मसलों पर भी अक्सर लिखती हैं. इसमें भी वह दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के ऊपर होने वाले शोषण पर अत्यधिक प्रहार करती हैं.

लेखिका अनीता भारती का जन्म 9 फरवरी 1965 को दिल्ली में हुआ था. देश की राजधानी की एक दलित घर में जन्मी लेखिका अनीता को बचपन में गरीबी के चलते स्कूल छोड़ने तक की नौबत आ गई थी. उस समय ना तो उनके परिवार के पास खाने-पीने की सुविधा थी और ना ही स्कूल पढ़ाई का खर्च. दलित होने के कारण उनका जीवन वैसे ही संघर्षपूर्ण था, ऊपर से गरीबी ने इसे और विषम कर दिया. मगर अनीता भारती ने हार नहीं मानी और अपने विचारधारा के साथ एक बदलाव की उम्मीद लेकर आगे बढ़ती गई. छात्र जीवन से ही वह महिला और दलित अधिकारों के लिए सक्रिय होती गई. इसमें उनकी कलाम ने बड़ा योगदान दिया. अपने हिंदी लेखन के जरिए उन्होंने महिलाओं के दृष्टिकोण से कई मुद्दे रचनाओं में शामिल किए हैं. 

कवयित्री अनीता वर्तमान में दलित लेखक संघ की अध्यक्ष हैं. इनके कुछ लेख ‘समकालीन नारीवाद और दलित स्त्रियों का प्रतिरोध’ (आलोचना पुस्तक), ‘एक थी कोटावाली’ (कहानी संग्रह), ‘एक कदम मेरा भी’ (कविता संग्रह), ‘रुखसाना का घर’ (कविता संग्रह), ‘छोटे पन्नों की उड़ान’ (आत्मकथा) इत्यादि कई रचनाएं शामिल है.

दलित साहित्य में सामाजिक हिंसा के साथ-साथ घरेलू हिंसा का भी चित्रण किया जा रहा है. पितृसतक समाज की सोच भी इस साहित्य का बड़ा हिस्सा है. अनीता भारती की भी रचनाओं में नारीवाद और अंबेडकरवाद का भरपूर जिक्र मिलता है. उनकी लिखी एक कविता ‘मुझ में बसता है एक आंबेडकर’ इसका बेहतरीन उदाहरण है. 65 कवियों का एक काव्य संग्रह अनीता भारती द्वारा लाया गया है, जिसका नाम ‘यथा स्थिति से टकराते हुए दलित स्त्री जीवन से जुड़ी कविताएं’ हैं. इस काव्य संग्रह में महिलाओं के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में लिखा गया है.

एक साक्षात्कार में अनीता भारती ने कहा कि दलित लेखक और दलित साहित्य हमेशा उपेक्षा का शिकार रहे है.‌ दलित संघ के बने हुए 25 साल हो गए मगर दलित लेखकों को जो सम्मान और जगह मिली चाहिए वह अब भी नदारत है. मुख्यधारा की पत्रिकाओं में दलितों के साहित्य के लिए कोई जगह नहीं है, सिर्फ दलित विशेषण के नाम पर ही दलित साहित्य को थोड़ी बहुत जगह दी जाती है.

लेखिका भारती का मानना है कि कई चर्चित दलित साहित्यकारों को स्वर्ण साहित्यकारों के मुकाबले कम सम्मान मिलता है. अगर स्वर्ण साहित्यकार दलितों-पिछड़ों पर कुछ काम करता है तो उसे दलित साहित्य का ठेकेदार घोषित किया जाता है.

अनीता भारती को शिक्षण के क्षेत्र में बेहतरीन काम के लिए राधाकृष्ण शिक्षक पुरस्कार, इंदिरा गांधी शिक्षक सम्मान, दिल्ली राज्य शिक्षक सम्मान, बिरसा मुंडा सम्मान, झलकारी बाई सम्मान से नवाजा जा चुका है.

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