भारतीय लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता उर्मिला पवार दलित और नारीवादी आंदोलन में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध है. उनके लेखों से दलितों की आवाज उजागर होती है. लेखिका उर्मिला के सभी लेख मराठी भाषा में ही है, हालांकि उनके कई बेहतरीन लेखों का अंग्रेज़ी अनुवाद भी किया गया है. वहीं उनकी आत्मकथा का नाटक मंचन होता रहा है. उनकी लघु कहानी कवच और ए चाइल्ड टेल काफी प्रसिद्ध है. जिसे देश के कई यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है.
उर्मिला पवार का जन्म 1945 में महाराष्ट्र के कोंकण के रत्नागिरी जिले के अदगांव गांव में हुआ. 12 साल की उम्र में ही उनके परिवार ने अपने समुदाय के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया. मगर इसके बावजूद उन्हें अपने स्कूल और अन्य जगहों पर भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ता था. उर्मिला बचपन से ही विद्रोही स्वभाव की थी. नारीवादी होने के कारण उनकी अपनी मां से कई बार लड़ाई होती थी. लेखिका की आत्मकथा में इसका जिक्र मिलता है कि आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए उन्होंने लिखने का काम शुरू किया था. उन्होंने मराठी साहित्य में मास्टर आफ आर्ट्स की पढ़ाई की. महाराष्ट्र राज्य के लोक निर्माण विभाग के एक कर्मचारी के रूप में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी और यहां से रिटायर हुई.
मराठी साहित्य में लेखिका उर्मिला के लेख बड़ी पहचान रखते हैं. उनके लेखों में पुरुषों और महिलाओं दोनों की आत्मकथाएं शामिल है. दो दशकों से मराठी साहित्य में दलित संस्कृति और लैंगिक मुद्दे को उन्होंने अपने लेख के जरिए समाज के बीच रखा है. 2022 में उन्होंने अपनी आत्मकथा आयदान लिखी जिसने पितृसत्तात्मक समाज के बीच हलचल मचा दी. आयदान यानी बांस से बनी वस्तु. इसके नाम से एक नाटक का मंचन करीब 25 सालों तक चला रहा था. उनकी इस आत्मकथा में एक महार और महिला के रूप में जाति और लिंग दोनों की रूढ़िवादी सोच को चुनौती देते हुए उभरने की कहानी है.
दरअसल उर्मिला पवार की मां बांस की कलाकृतियां बनाया करती थी. उर्मिला मानती है कि आयतन उनकी मां के बुनाई के समान है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि मेरी मां आयतन बनाती थी. मुझे लगता है कि उनका बुनाई का काम और मेरा लिखने का काम स्वाभाविक रूप से जुड़ा हुआ है.
आयतन में उन्होंने महिलाओं की माहवारी का भी जिक्र करते हुए एक उदाहरण लिखा. जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे पवित्रता और अशुद्धता के विचार को ब्राह्मणों और मनोवैज्ञानिकों ने खंडित किया है. अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने लिखा कि जब वह छोटी थी तब माहवारी के दौरान उनकी मां उन्हें कुछ भी छूने नहीं देती थी. तब उनके मन में यह विचार आता था कि कैसे बाहर और घर में भी परिवार के द्वारा भेदभाव किया जा रहा है.
लेखिका उर्मिला का जीवन पति और बेटे के जाने के बाद कठिनाइयों भरा हो गया. इस दौरान ही उनकी लड़कियों ने भी साथ छोड़ दिया. वह कहती है कि मेरी लड़कियां घर से परे जीवन जीने की मेरी जरूरत को नहीं समझ पाई.
लेखिका उर्मिला ने दलित महिलाओं की भागीदारी के ऊपर मीनाक्षी मून के साथ आम्हीही इतिहास घडवला लिखी, जो काफी प्रसिद्ध रही. इसका अंग्रेजी में अनुवाद वी अलसो मेड हिस्ट्री के नाम से प्रकाशित किया गया.
लेखिका पवार को मराठी में लिखी गई उनकी आत्मकथा आयदान के लिए महाराष्ट्र साहित्य परिषद, पुणे द्वारा लक्ष्मीबाई तिलक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. मगर उन्होंने इस पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया था. परिषद को पत्र लिखते हुए उन्होंने कहा कि देवी सरस्वती की प्रार्थना के साथ कार्यक्रम शुरू करने का इरादा एक ही धर्म के प्रतिको और रूपकों को दर्शाता है.