फॉगिंग और एंटी लार्वासाइड्स का छिड़काव नहीं होने के कारण पटना में इस वर्ष डेंगू का प्रकोप समय से पहले शुरू हो गया था. पिछले कुछ वर्षों से सितम्बर मध्य के बाद इसका प्रकोप तेज़ी से बढ़ता था. उससे पहले अगस्त में एकाध मरीज़ ही मिलते थे. लेकिन इस वर्ष जुलाई से ही मरीज़ मिलने लगे. अगस्त आते-आते डेंगू मरीज़ों की संख्या बढ़नी शुरू हो गयी थी.
इस वर्ष पटना में अप्रैल से लेकर अभी तक 2164 डेंगू के मामले सामने आ चुके है.
राजधानी में डेंगू के मामले बढ़ने के दो कारण हैं- पहला कारण यहां वायरस की सक्रियता बढ़ने के अनुकूल तापमान और नमी है और दूसरा आसपास आसपास फैली गंदगी. इसके साथ ही लोगों में डेंगू को लेकर जागरूकता की कमी भी इसके रूप को और भयावह बना देता है.
जागरूकता की कमी या भाग्य का लिखा पता नहीं. जब बहुत ज़्यादा हालत ख़राब हो गयी तब उसने हमें ख़बर किया. जब तक हमें पता चला तब तक उसकी हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी.
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यह कहना है राहुल के पिता रामनिवास सिंह का. रामनिवास का 22 साल का बेटा राहुल पीएमसीएच में भर्ती था. जिसे पिछले हफ्ते वहां से डिस्चार्ज किया जा चुका है. मूलरूप से सोंचरी का रहने वाला राहुल बिहारशरीफ में रहकर तैयारी करता था. जहां उसे डेंगू हो गया.
राहुल के पिता बताते हैं
3 सितंबर को उसका फ़ोन आया कि उसकी तबियत ख़राब है, जिसके बाद हम उसे बिहारशरीफ में ही निजी अस्पताल में ले गये. जहां दो दिन भर्ती करने के बाद भी उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. अस्पताल वालों ने उसे इलाज के लिए पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (PMCH) में रेफ़र कर दिया.
यहां राहुल को आईसीयू (ICU) में भर्ती किया गया. अस्पताल की अव्यवस्था को देखकर राहुल के पिता के मन मे डर था कि पता नहीं क्या होगा? चूंकि अस्पताल में गंदगी, डॉक्टर की कमी, नर्सिंग स्टाफ़ की कमी जैसी कई समस्याएं उन्होंने पहले से ही सुन रखी थी.
वो कहते है
मैं नहीं चाहता था कि उसका इलाज यहां हो. लेकिन मेरे एक परिचित अस्पताल में काम करते हैं. उन्होंने भरोसा दिलाया कि अच्छा इलाज होगा. राहुल को दो दिन आईसीयू में रखना पड़ा. सारी दवाईयां बाहर से लानी पड़ी. उसकी हालत बहुत ख़राब थी, उसे प्लेटलेट्स भी चढ़ाना पड़ा. उसका इंतजाम भी हमें बाहर से ही करना पड़ा.
उसके इलाज में पचास हज़ार से ज़्यादा ख़र्च हुआ. सरकारी अस्पताल केवल नाम का है. गरीब आदमी अगर सोच कर आये कि सरकारी अस्पताल है कम ख़र्च में इलाज हो जाएगा तो यहां संभव नहीं है. केवल डॉक्टर और आईसीयू बेड का ही चार्ज नहीं लगा. लेकिन बस इस बात का संतोष है कि ख़र्च करने के बाद भी मेरा बेटा बच गया.
स्वास्थ्य महकमें की लापरवाही
राजधानी में लगातार डेंगू के मरीज़ मिलने के बाद भी स्वास्थ्य महकमा सिर्फ़ अलर्ट होने का दावा करता है. राजधानी में फॉगिंग और लार्वासाइड्स के छिड़काव के लिए 75 वाहन मौजूद हैं, जिसमें से 35 अभी ख़राब हैं. जबकि नगर आयुक्त द्वारा सभी कार्यपालक पदाधिकारियों को प्रतिदिन तीन पालियों मे फॉगिंग करवाने के निर्देश दिए गए हैं.
डेंगू वार्ड में बेड बढ़ाने का निर्देश
बढ़ते डेंगू के प्रकोप को देखते हुए मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव, सभी जिलों के डीएम, सभी सिविल सर्जन, नगर निगम के अधिकारीयों और सरकारी अस्पतालों के अधीक्षक और प्राचार्य आदि के साथ बैठक कर डेंगू को नियंत्रित करने के लिए निर्णय लिया. बैठक के बाद स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत ने अस्पतालों में डेंगू के मरीज़ों के लिए अलग वार्ड बनाने का और पहले से निर्मित डेंगू वार्ड में बेड की संख्या बढ़ाने का भी निर्देश दिया है. पीएमसीएच (PMCH) में 100, एनएमसीएच (NMCH) में 75, आईजीआईएमएस (IGIMS) में 50 और एम्स (AIIMS) में 50 मरीज़ों के लिए डेंगू वार्ड बनाने का निर्देश दिया है. साथ ही नगर निगम को साफ़-सफ़ाई, नियमित फॉगिंग और लार्वासाइड्स का छिड़काव करने का निर्देश दिया है.
कंकड़बाग अंचल के चीफ़ सैनिट्री ऑफ़िसर कामदेव कुमार का कहना है कि
हमलोग कंकड़बाग अंचल के हर क्षेत्र में नियमित रूप से फॉगिंग करवा रहे हैं. जिस इलाके से डेंगू के मरीज़ की सूचना मिलती है उस मरीज़ के घर जाकर भी लार्वासाइड्स का छिड़काव करते हैं और 100 मीटर के इलाके में भी फॉगिंग और लार्वासाइड्स का छिड़काव करते है. अभी हमारे अंचल में 11 फॉगिंग गाड़ियां हैं.
वहीं पटना सिटी अंचल के कार्यपालक अधिकारी मोहम्मद फिरोज़ के अनुसार
पटना सिटी में डेंगू के आज मात्र तीन कंफ़र्म मरीज़ हैं. लेकिन जो लिस्ट आई है उसमें आज 10 मरीज़ों की जानकारी दी गयी है. कंफ़र्म करने के लिए जब हमने फ़ोन किया तो 10 में से 6 मरीज़ अज़ीमाबाद और मालसलामी के निकले. अभी हमारे अंचल में तीन शिफ्ट में फॉगिंग कराया जा रहा है. हमारे पास 6 हाथ के फॉगिंग मशीन और 5 फॉगिंग गाड़ियां उपलब्ध हैं.
जिला संक्रामक रोज़ नियंत्रक पदाधिकारी डा. सुभाषचंद्र प्रसाद ने बताया कि
आज मंगलावर को पटना में 169 डेंगू के नए मरीज सामने आए हैं. सबसे अधिक संक्रमित अज़ीमाबाद अंचल में जहां 83 केस और उसके बाद बांकीपुर अंचल जहां 38 मरीज मिले हैं. इसके अलावा कंकड़बाग अंचल में 14 और पाटलिपुत्र अंचल से 11 डेंगू के मरीज़ मिले हैं. वहीं संदलपुर, पटनासिटी के कुछ मोहल्लों, महेंद्रू, आदि में भी केस मिले हैं.
इस साल मलेरिया के भी बढ़ते प्रकोप का कारण डा. सुभाषचंद्र प्रसाद बीच-बीच में होने वाली वर्षा को मानते है. उनका मानना है कि यदि इसी प्रकार बीच-बीच में वर्षा होती रही तो डेंगू के मामले और बढ़ सकते हैं. ऐसे में लोगों को हर संभव उपाय करना चाहिए कि मच्छर उन्हें नहीं काट पाएं. इसके लिए शरीर के अधिकतर हिस्सों को ढंक कर रखना चाहिए. इसके अलावा 24 घंटे विभिन्न प्रकार के मासस्क्यूटो रेप्लिटेंट की सुरक्षा में रहना चाहिए. यदि घर में या आसपास कोई डेंगू का मरीज़ हो तो उसे 24 घंटे मच्छरदानी में रहने को कहें. एडीज़ मच्छर जमे पानी में पनपते हैं और दिन में काटते हैं. इसलिए घर के आस-पास यदि पानी जमा हो तो उसे तुरंत हटा देना चाहिए.
साथ ही उनका कहना है कि
एडीज़ मच्छर शिकारी प्रवृत्ति के होते है. डेंगू मच्छर काटने के बाद खून पीने के लिए नहीं रुकता है. यह काटते ही उड़ जाता है और एक साथ कई लोगों को काटता है. यही कारण है कि एक घर में संक्रमित मिलने के बाद तीन से चार दिनों बाद उस परिवार के अन्य लोगों में भी डेंगू के लक्षण सामने आने लगते हैं. अगर मरीज़ सही समय पर प्लेटलेट्स चेक नहीं करवाते, तो दिक्कत हो सकती है. अगर प्लेटलेट्स कम हो गए हैं तो ये ख़तरे की बात हो सकती है.
डेंगू से बचाव के लिए नगर विकास विभाग और स्वास्थ्य विभाग की तैयारियां नाकाफ़ी साबित हो रही हैं. साथ ही लोगों के डेंगू के लक्षण को नजरंदाज़ करना भी उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रहा है. हल्का बुख़ार भी अगर दो दिन से ज़्यादा हो तो पीड़ित को जांच करवाना चाहिए.