कोरोना के बाद बिहार में फैला डेंगू, PMCH जैसे अस्पताल में भी इलाज में हो रही कठिनाई

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कोरोना के बाद बिहार में फैला डेंगू, PMCH जैसे अस्पताल में भी इलाज में हो रही कठिनाई
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चार साल पहले डेंगू से मेरे पति की जान चली गयी. चार साल बाद आज फिर मेरे बेटे को डेंगू हुआ है. मन के अंदर एक अनहोनी का डर लगा रहता है.

ये कहते हुए रजनी का गला बैठ जाता है.

उनके पति कि उम्र मात्र 52 साल थी. पति को खोने के बाद रजनी जूते की दुकान चलाती हैं. रजनी कहती हैं

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यह दुकान ही मेरे पति के जाने के बाद हमारे परिवार का एकमात्र सहारा है. उनके जाने के बाद मेरे बड़े बेटे ने बी.टेक बीच में ही छोड़ दिया ताकि अपने दोनों छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई करवा सके. आज उसे ही डेंगू हो गया है, तो मन घबराता है.

रजनी बताती हैं निजी अस्पताल में लाखों खर्च करने के बाद भी उनके पति को बचाया नहीं जा सका. हर हफ्ते चार सौ रूपए का टेस्ट, दवा, हॉस्पिटल का खर्च और प्लेटलेट्स कम होने पर प्लेटलेट्स चढ़ाने का भी खर्च करना पड़ता है.

फॉगिंग और एंटी लार्वासाइड्स का छिड़काव नहीं होने के कारण पटना में इस वर्ष डेंगू का प्रकोप समय से पहले शुरू हो गया है. पिछले कुछ वर्षों से सितम्बर मध्य के बाद इसका प्रकोप तेजी से बढ़ता था. उससे पहले अगस्त में एकाध मरीज ही मिलते थे. लेकिन इस वर्ष जुलाई से ही मरीज मिलने लगे. अगस्त आते-आते डेंगू मरीजों कि संख्या बढ़ना आरंभ हो गया.

राजधानी में डेंगू के मामले बढ़ने के दो कारण हैं- पहला कारण यहां वायरस की सक्रियता बढ़ने के अनुकूल तापमान और नमी और दूसरा आसपास गंदगी और लोगों में जागरूकता की कमी. लेकिन लगातार डेंगू के मरीज मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग अलर्ट होने का दावा कर रहा है.

2019 में 482 संक्रमितों को छोड़ दें तो दो साल बाद इतनी संख्या में डेंगू के मरीज मिले हैं. अब तक जिले में 72 डेंगू संक्रमितों की पुष्टि हो चुकी है. इनमें से 16 लगातार तीन दिनों में मिले हैं. इस वर्ष अभी तक एक बच्चे और एक बुजुर्ग महिला की मौत डेंगू के कारण हो चुकी है.

पीएमसीएच में अभी दो डेंगू के मरीज भर्ती हैं. ओपीडी में इलाज कराने आनेवाले कई मरीज डेंगू पीड़ित पाए गए है. लेकिन वे अपना इलाज घर में रहकर करा रहे हैं. पिछले वर्ष डेंगू वार्ड में 16  बेड रिजर्व रखे गए थे. अस्पताल प्रशासन का कहना है कि आगे अगर डेंगू के और मरीज मिलेंगे तो इस साल भी अलग वार्ड और बेड रखा जाएगा.

शहर के अस्पतालों व डॉक्टरों के निजी क्लिनिकों में भी डेंगू पीड़ित बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं. यही नहीं, अलग-अलग जांच घरों में भी डेंगू पॉजिटिव मरीज़ मिल रहे हैं. यहां जांच करवाने आ रहे मरीज़ों का डाटा सिविल सर्जन के कार्यालय नहीं पहुंचने के कारण शहर में असल डेंगू पीड़ितों का आंकड़ा नहीं मिल रहा है.

वक्टर जनित रोग नियंत्रक पदाधिकारी द्वारा दिए गये आंकड़ों के अनुसार बिहार में अभी 121 डेंगू के मरीज मौजूद हैं. जिनमे से अकेले 72 केस पटना के हैं. जबकि सारण से 7, भोजपुर से 5, मुज्जफरपुर से 5 और नालंदा से 4 केस सामने आये हैं. वहीं पीएमसीएच में  18 केस पॉजिटिव आये हैं, आरएमआरआई से 28 और एम्स पटना से 26 डेंगू के केस आये हैं. ये सारे मामले 31 अगस्त तक दर्ज किये गये हैं.

वेक्टर जनित रोग नियंत्रक पदाधिकारी विनय कुमार शर्मा का कहना है कि

पटना के जिन इलाकों से मरीज ज्यादा आ रहे हैं उन इलाकों को चिन्हित कर वहां फॉगिग और एंटी लार्वासाइड्स का छिड़काव करवाया जा रहा है. पटना शहरी क्षेत्र में नगर निगम द्वारा छिड़काव कराया जाता है और ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य विभाग द्वारा करवाया जाता है. साथ ही हम जागरूकता अभियान भी चलवा रहे हैं कि कैसे अपने आसपास सफ़ाई रखकर आप डेंगू से बच सकते हैं.

हालांकि जिला एपिडेमोलॉजिस्ट डॉ प्रशांत बताते है

शहर में इस बार उतनी बारिश नहीं हुई है. जबकि डेंगू का मच्छर साफ़ और स्थिर पानी में पनपता है. इसलिए जरूरी है कि लोग अपने घर और आसपास पानी जमा नहीं होने दे."

वही सरकारी आंकड़ों के अनुसार बिहार में चिकनगुनिया के अभी मात्र 5 केस मौजूद हैं. जिसमे पटना, नवादा, लखीसराय, मधेपुरा और सारण में एक-एक केस मौजूद है.

स्थिति से निपटने के लिए जिला मलेरिया विभाग द्वारा राजधानी के पटनासिटी इलाके के कन्या मध्य विद्यालय बबुआगंज  और गुलजारबाग के राजकीय कन्या उच्च विद्यालय में जागरूकता कैंप का आयोजन किया गया है. बच्चों और शिक्षकों को डेंगू से बचने के उपाय और उसके लक्षणों के बारे जागरूक किया जा रहा है.

जिला संक्रामक नियंत्रक पदाधिकारी डा. सुभाष चंद्र प्रसाद ने बताया कि

शुक्रवार को पीएमसीएच में दो और आरएमआरआइ में चार नए मामले सामने आए हैं. सबसे अधिक संक्रमित बिस्कोमान कालोनी और उसके बाद रामकृष्णा नगर में मिले हैं. इसके अलावा संदलपुर, पटनासिटी के कुछ मोहल्लों और अजीमाबाद, महेंद्रू, कंकड़बाग आदि में भी केस मिले हैं.

वहीं मलेरिया ऑफिस द्वारा नागरिकों से अपने आस-पास सफ़ाई रखने, पानी उबालकर पीने, मच्छरदानी का उपयोग करने, ब्लीचिंग पाउडर और चूना मिश्रण का छिड़काव करने की अपील की गई है.

नगर निगम कि हड़ताल का असर

जिला संक्रमाक रोग पदाधिकारी डॉ. सुभाषचंद्र प्रसाद ने बताया कि प्रभावित इलाके की सूची निगम को सौंपी जा रही है. सूची के अनुसार निगम को फॉगिंग कराने के निर्देश भी दिए गए हैं.

हलांकि सरकारी अधिकारीयों के द्वारा जितने भी दावे किये जा रहे हों लेकिन धरातल पर इसका असर कम ही देखने को मिल रहा है. पिछले आठ दिनों से चल रहे नगर निगम कि हड़ताल का असर शहर कि स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ना तो तय है.

वेक्टर जनित रोग नियंत्रक कर्मचारी राजकुमार का कहना है कि “नगर निगम कि हड़ताल का असर फॉगिंग और लार्वासाइड्स के छिड़काव पर पर रहा है. जितनी तेजी से संवेदनशील इलाकों में फॉगिंग होनी चाहिए वो नही हो पा रहा है. जगह-जगह कचरा और पानी जमा होने के कारण बीमारी बढ़ने का खतरा तो बना ही रहता है.”

हालांकि सरकार की तरफ़ से जो दावे किए जा रहे है वो सूबे के सबसे बड़े अस्पताल में आकर ही खोखले साबित होते हैं. जबकि यहां सबसे अच्छी सरकारी सुविधाएं मिलनी चाहिए.

अस्पताल के टाटा इमरजेंसी वॉर्ड के पहले मंज़िल पर बने डेंगू वार्ड में मरीज और उनके परिजनों के पास अस्पताल की व्यवस्था को लेकर काफ़ी शिकायतें हैं. डेंगू वार्ड के एक छोटे से कमरे में जगह से ज़्यादा मरीजों को रखा गया है.

परिजनों के मुताबिक़ डॉक्टर से मिलने के लिए इंतजार करना पड़ता है, अस्पताल में दवाइयां नहीं मिलती, नर्सिंग स्टॉफ़ काम-काज में लापरवाही बरतता है, वहीं अस्पताल और शौचालय  की गंदगी से हमेशा संक्रमण का डर बना रहता है.

बिहार में कोरोना के बाद डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बिमारियों ने लोगों के मन में डर बना रखा है. ऐसे में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराने से लोगों के जीवन पर गहरा असर देखने को मिल रहा है.