बिहार में दिव्यांग आरक्षण केवल कागज़ों तक ही सीमित है. सरकार दिव्यांगों को शिक्षा और रोजगार देने का वादा तो करती है लेकिन उसके क्रियान्वयन की कोई योजना धरातल पर नज़र नहीं आती है. बिहार सरकार ने साल 2013 में BSSC यानी Bihar Staff Selection Commission की वैकेंसी निकाली. उस समय दिव्यांग व्यक्तियों को 5% आरक्षण दिया गया था. 9 साल बीत जाने के बाद भी आज तक BSSC में दिव्यांग कोटे से एक भी भर्ती नहीं ली गयी है. इसके अलावा बिहार सरकार ने दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति असंवेदनशीलता भी दिखाई.
साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में दिव्यांग व्यक्तियों की संख्या 2.68 करोड़ है. वहीं बिहार में दिव्यांगो की संख्या 23,31,009 है. बिहार की 3.2% आबादी दिव्यांग है और 90% आबादी शहरी क्षेत्र से है. हालांकि मौजूदा आंकड़े इससे अधिक हैं क्योंकि ये आंकड़े 12 साल पुराने हैं.
दिव्यांगजनों की योजना में नोडल अधिकारी की नियुक्ति भी नहीं
3 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिव्यांगजनों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर ‘सुगम्य भारत अभियान’ की शुरुआत की थी. इस अभियान का मुख्य उद्देश्य ही सरकारी कार्यालयों, रेलवे स्टेशन, एअरपोर्ट, बस स्टैंड, हॉस्पिटल, पार्क, शॉपिंग मॉल, सिनेमाघर, धार्मिक स्थलों जैसे सार्वजनिक स्थलों को दिव्यांगो के लिए सुलभ बनाया जाना है. दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक स्थलों पर मौजूद सुविधाएं आज भी नाकाफ़ी हैं. सार्वजनिक स्थलों पर दिव्यांग आज भी मुश्किलों का सामना कर रहें हैं.
सुगम्यता की बात तो दूर, बिहार राज्य में पेंशन योजना में भी भेदभाव देखा जा सकता है. बिहार में विकलांग पेंशन योजना के अन्तर्गत 1000 रुपए दिए जाते हैं. वहीं अगर बात करें दूसरे राज्यों की तो, दिल्ली में 2500 रुपए और तमिलनाडु में 2000 रुपए मिलते हैं.
अपनी संस्था तोशियाश के माध्यम से दिव्यांग में जागृति की अलख जगा रहे और उनके अधिकारों को लेकर लड़ रहे सौरभ कुमार कहते हैं
जब देश में कोई पॉलिसी बनती है तो उसके उचित पालन के लिए किसी न किसी अधिकारी को नोडल अधिकारी बनाया जाता है. लेकिन मेरे सामने तमाम ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें नोडल अधिकारी की ही नियुक्ति नहीं हुई है. ऐसे में पॉलिसी का पालन कितना और कैसे होता होगा? यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है.
सरकारी संस्थानों में दिव्यांग आरक्षण सिर्फ़ कागज़ों पर
दिव्यांगजनों को रोजगार और शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से आरपीडब्लूडी (RPWD) एक्ट 2016 बनाया गया था. इस एक्ट के तहत सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दिव्यांगों के लिए सीटें आरक्षित हैं. पहले सरकारी नौकरियों में 3% ही था लेकिन बाद में उसे बढ़ा कर 4% कर दिया गया वहीं शिक्षण संस्थानों में 5% आरक्षण कर दिया गया. हालांकि शिक्षण संस्थानों में अभी भी आपूर्ति बस कागज़ों पर है ज़मीनी स्तर पर आरक्षण के तहत आपूर्ति नहीं होती.
28 वर्षीय आदित्य जो दृष्टिबाधित हैं लेकिन उनका हौसला कभी कम नहीं हुआ. साल 2020 से UPSC की तैयारी कर रहे आदित्य की जीवन बिलकुल आसान नहीं है. सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाने से आदित्य मायूस हैं. हालांकि जीवन में कर दिखाने के उद्देश के साथ आदित्य ने कभी मेहनत करना कम नहीं किया. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए उन्होंने बताया कि
शिक्षण संस्थानों में 5% आरक्षण तो मिल जाता है लेकिन हॉस्टल में हमें कोई आरक्षण नहीं मिलता जिसके वजह से हमें बहुत परेशानी होती है, सेंट्रल यूनिवर्सिटी में हॉस्टल्स में भी आरक्षण होता है पर बिहार में ऐसा कुछ नहीं होता.
आदित्य आगे बताते हैं कि
सरकार ने महिला और एससी एसटी की शिक्षा निशुल्क रखी है लेकिन दिव्यंगों के लिए ऐसा कुछ नहीं है, सरकार को चाहिए की हमारे लिए भी शिक्षा निशुल्क हो और सरकार जिस तरह से महिलाओं के लिए बहुत सारी योजनाएं लाती वैसे ही दिव्यांगों के लिए भी और योजनाएं आएं.
देश की सरकारी नौकरियों में दिव्यांग कोटे की नौकरियों का अलग महत्व है. जिसके चलते उचित पदों पर दिव्यांग उम्मीदवारों की भर्ती और चयन प्रक्रिया आसान हो जाती है. लेकिन सरकार की तमाम सकारात्मक और कारगर नीतियों के बाद भी कई ऐसे लोग हैं, जो सरकारी नौकरियों में मिलने वाले आरक्षण कोटे के लाभ से महरूम हो जाते हैं.
दिव्यंगों की पहचान के लिए UID कार्ड भी नहीं मिले
एक सरकारी आदेश के अनुसार दिव्यांगों के लिए जो पुराने सर्टिफिकेट हैं, अब उनकी जगह यूडीआइडी कार्ड मान्य होगा. करीब 95 प्रतिशत ऐसे दिव्यांग हैं, जिनके पास यह कार्ड ही नहीं है. पटना के रमेश कुमार सिंह से जब डेमोक्रेटिक चरखा ने बात की तो उन्होंने बताया की,
बिहार सरकार हो या केंद्र सरकार इनके द्वारा लाई गई सारी योजना बस कागज़ पर है और हमें कोई सुविधा नहीं मिलती, आप आरक्षण की बात कर रहें है लेकिन हकीकत ये है की आरक्षण होने के बावजूद हमें कुछ नहीं मिलता. ऐसा नहीं है की हम योग्य नहीं पर सबसे बड़ा मसला है की हमारे पास सोर्स नहीं है.
रमेश आगे बताते हैं की
हमारा यूडियाईडी कार्ड नहीं बना है, जिसके वजह से बहुत दिक्कत होती है हालांकि इस पर सरकार की कोई नज़र नहीं है सरकार ने तो बस आदेश जारी कर दिया अब क्या?
BSSC में मिला दिव्यांग आरक्षण, लेकिन भर्ती नहीं
बिहार सरकार ने साल 2013 में BSSC यानी Bihar Staff Selection Commission की वैकेंसी निकाली. उस समय दिव्यांग व्यक्तियों को 5% आरक्षण दिया गया था. 9 साल बीत जाने के बाद भी आज तक BSSC में दिव्यांग कोटे से एक भी भर्ती नहीं ली गयी है. इसके अलावा बिहार सरकार ने दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति असंवेदनशीलता भी दिखाई.
वैशाली जिले के अखिलेश कुमार एक छात्र हैं. एक छात्र जो जीवन से मायूस है , बिहार का ऐसा भविष्य जो सरकार से नाखुश है क्योंकि उसे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा. लेकिन अखिलेश आपने सपने के बीच आने वाले सारे परेशानियों से अकेले लड़ते हैं. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए उन्होंने बताया कि
सर योजना तो बहुत सी हैं हमारे लिए पर उनका लाभ हमें नहीं मिलता, कभी पैसा मिलता तो कभी पैसा नहीं मिलता और इतनी कम राशि होती है उसमें एक इंसान क्या ही कर लेगा?
मायूस अखिलेश आगे बताते हैं की
सरकार को चाहिए की वो अपनी योजनाओं को हमारे लिए आसान बनाए ताकि सारे लाभ हम तक आसानी से पहुंच सकें. प्रधानमंत्री ने तो बड़े बड़े दावे किए थे. उसका क्या? उनसे कोई क्यों नहीं पूछता?
जब हमने समाज कल्याण विभाग के डायरेक्टरेट ऑफ सोशल सिक्योरिटी एंड डिसेबिलिटी से बात करने की कोशिश की तो कई प्रयास के बाद भी उन्होंने हमारे कॉल का जवाब नहीं दिया.
सरकार द्वारा दिव्यांग लोगों के लिए कई सारी योजनाएं हैं उनकी पढ़ाई से लेकर उनके शादी तक और उसके बाद बिहार विकलांग पेंशन योजना भी है लेकिन सभी दिव्यांगों तक सरकार के योजना का लाभ नहीं मिल पाता है और ना ही सरकार के पास इसको लेकर कोई डाटा नहीं है जिसके वजह से परेशानी और बढ़ जाती है.