भारत में दहेज प्रथा महिलाओं के प्रति होने वाले हिंसा के प्रमुख कारणों में से एक है. बिहार ‘दहेज़ हत्याओं’ के मामले में देश में दुसरे स्थान पर आता है. भारत में राजस्थान, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में दहेज एक प्रमुख समस्या के रूप में देखी जाती है. राज्य सरकार समय-समय पर इसके लिए अलग-अलग योजनाएं एवं जागरूकता अभियान चलाती रही है. हालांकि तमाम राज्य सरकारों के दावों के विपरीत दहेज पर अब तक पूरी तरह से अंकुश नहीं लग पाया है.
दहेज के नाम पर हुई हत्याओं में दूसरे नंबर पर बिहार
भारत में दहेज प्रथा का सबसे वीभत्स रूप दहेज हत्या है. जब लड़की के ससुराल परिवार के लोग केवल कुछ पैसों के लालच में अपनी बहू की हत्या तक कर देते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बिहार राज्य दहेज के नाम पर हुई हत्याओं में दूसरे नंबर पर है.
साल 2018 में नीतीश कुमार की सरकार ने दहेज प्रथा के ख़िलाफ़ जागरूकता के लिए 13,660 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला भी बनवाई थी. लेकिन फ़ायेदा ज़मीन पर नहीं दिखा. उसके बाद साल 2020 की मानव श्रृंखला में दहेज प्रथा रोकने के लिए कार्य किया गया था.
पहले स्थान पर उत्तरप्रदेश 2,222 हत्याओं के साथ है. जबकि बिहार 1000 दहेज हत्याओं के साथ दूसरे स्थान पर है. एनसीआरबी 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में दहेज हत्या से मरने वाली महिलाओं की संख्या 1047 थी. साथ ही, कई मामले ऐसे भी होते हैं जो दर्ज नहीं हो पाते हैं. असल आंकड़े इससे अधिक हैं.
दहेज हत्या के पीछे पितृसत्तात्मक सोच
इस विषय पर गहराई से समझने के लिए हमने नेहा ग्रामीण महिला विकास समिति नवादा की सचिव एवं समाजसेविका मंजू देवी जी से बात की. उन्होंने हमें बताया कि
गांव के लोगों की सोच होती है, कि जितना हमें अपने बेटे को पढ़ाने में ख़र्च हुआ है, वह सारा वसूल किया जाए. कुछ मां-बाप तो ऐसे होते हैं जो नोटबुक में पूरा खर्च लिखते हैं. शिक्षा भी यहां बहुत मायने रखता है.
दहेज और इससे संबंधित हत्या को लेकर क्या है कानून
दहेज निषेध अधिनियम 1961, दहेज प्रथा को रोकने के लिए लाया गया कानून है. इसके तहत दहेज लेना या देना दोनों अपराध की श्रेणी में आता है. अपराध में संलिप्त पाए जाने पर दोषी को 15 हजार के जुर्माने के साथ-साथ 5 साल तक की सजा भी सुनाई जा सकती है.
भारत में शादीशुदा महिलाओं के ऊपर हो रहे, हिंसा से सुरक्षा के लिए सन् 1983 में भारतीय संसद में आईपीसी के संशोधन के लिए बिल लाया गया. जिसके बाद 498 A नामक धारा आईपीसी में जोड़ा गया.
498-A एक धारा है, जिसमें पत्नी अपने पति और उसके घरवालों पर शारीरिक अथवा मानसिक हिंसा होने की स्थिति में थाने में शिकायत दर्ज करा सकती है. इसमें अधिकतम तीन साल की सज़ा का प्रावधान है.
दहेज के केस की जानकारी देते हुए मंजू देवी बताती हैं,
एक केस तो ऐसा आया था. जिसमें एक दंपत्ति के विवाह हो जाने के कुछ वर्षों बाद लड़की वालों की तरफ से दहेज के और पैसे नहीं मिले. इसके बाद लड़के ने दूसरी शादी कर ली. पुरानी पत्नी से उसे बच्चे भी थे. लेकिन समाज के दबाव से उस पति को अपनी पहली पत्नी को भी संपत्ति में हिस्सा देना पड़ा. इसके अलावा दहेज प्रथा बाल विवाह जैसी घटनाओं को भी प्रेरित करता है. दहेज हत्या अंजाम देने का एक बड़ा कारण यह भी है, कि यदि पहली पत्नी की हत्या हो जाएगी तो दोबारा शादी करने पर फिर से दहेज मिलेगा. इस तरह की मानसिकता रखने वाले लोग भी समाज में हैं.
बिहार दहेज़ हत्याओं के मामले में सज़ा का क्या है प्रावधान?
आईपीसी में ही धारा 304-B में दहेज हत्या को संगीन जुर्म मानते हुए 10 साल की कठोर सज़ा का प्रावधान है. दूसरा सबसे जरूरी एक्ट है, डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 जिसमें यह कहा गया है कि महिलाओं को सरकार द्वारा घरेलू हिंसा से सुरक्षा दी जाएगी.
इसमें सेक्शन 12 और 23 सबसे जरूरी है जो कि मेंटेनेंस यानी पति द्वारा गुजारा भत्ता दिए जाने की बात करता है. उसके बाद डावरी प्रोहिबिशन एक्ट है. जिसका धारा 3 और 4 शादीशुदा महिला से दहेज मांगने को अपराध के श्रेणी में रखता है.
इसके अतिरिक्त शादीशुदा महिला सेक्शन 125 सीआरपीसी के अन्तर्गत भी अपने पति से गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस की मांग कर सकती है. बिहार के संदर्भ में बिहार दहेज प्रतिषेध नियमावली 2003 लागू है. इसमें एक दहेज प्रतिषेध ऑफिसर बनाने की बात की गई है, जिसको महिलाएं अपनी शिकायत दे सकती हैं.
हर धर्म में हैं दहेज की समस्या
ज़ेबा अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. पटना यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की पढ़ाई करने के बाद ज़ेबा ने कई सामाजिक और जनआंदोलन संगठनों में काम किया है. ज़ेबा डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बताती हैं:-
शादी करने के बाद भी कई समस्याएं होती हैं. मेरा अनुभव अल्पसंख्यक समाज को लेकर ज़्यादा है. पहले इस्लाम में दहेज जैसी कोई प्रथा नहीं थी. लेकिन अब तो बिना दहेज के शादी संभव ही नहीं है. सिर से लेकर पैर तक का ज़ेवर भी लड़की वालों के घर से ही दिया जाता है. ख़ुद मेरे घर में ऐसे उदाहरण है. ससुराल वाले कमेंट तक पास करते हैं. कई मां-बाप ऐसे हैं. जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं. वह पैसे नहीं दे पाते हैं. ऐसी स्थिति में उनकी बेटी को तलाक देने की धमकी तक दी जाती है. इस डर से लड़की वाले किसी ना किसी तरह पैसे भरते हैं.
पुलिस कार्यवाई की क्या प्रक्रिया होती है?
दहेज प्रताड़ना और हत्या के मामलों में सबसे पहले पुलिस लड़की का बयान लेती है. जिसके आधार पर कार्यवाई की जाती है. इसे 'मृत्यु पूर्व बयान' भी कहते हैं.
यदि लड़की की मृत्यु हो जाए. ऐसी स्थिति में पुलिस सबसे पहले पीड़ित लड़की के मायके को ख़बर करती है. ऐसा इसलिए भी किया जाता है, क्योंकि यदि लड़की को ससुराल में प्रताड़ित किया जाता होगा. तो वह अपने घर वालों को ज़रूर कभी न कभी मिलकर यह बात कही होगी.
पहले लड़कियां चिट्ठी भी लिखती थी. वर्तमान में देखें तो किसी प्रकार का व्हाट्सएप मैसेज भी सबूत के तौर पर पुलिस रखती है. इस तरह के प्रमाण केस में काफी मदद करते हैं. बहुत जगह ऐसा भी होता है कि पुलिस इस तरह के मामलों में अप्राकृतिक मृत्यु का मामला दर्ज करती है.
कभी-कभी ससुराल वाले हत्या के बाद तुरंत शव का अंतिम संस्कार कर देते हैं. ताकि पोस्टमार्टम ना हो सके. आमतौर पर इसमें मुख्य अभियुक्त तो लड़की का पति ही माना जाता है. उसके बाद सास-ससुर को अपराधी माना जाता है.
यदि पुलिस आईपीसी की धारा 498-A के तहत पीड़िता द्वारा प्रताड़ित करने का केस दर्ज कराने के बाद ही इस विषय को गंभीरता से लें, तो हत्या जैसी स्थिति बनेगी ही नहीं. लोग इस तरह की घटना को अंजाम देने से ही डरेंगे.
बिहार ‘दहेज़ हत्याओं’ के मामले में नीतीश सरकार के विज्ञापन और हकीकत में फ़र्क
बिहार में दहेज प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए नीतीश सरकार ने बेहद अनोखा तरीका निकाला है. राज्य सरकार की सरकारी नौकरी में आने वाले सभी अभ्यर्थियों को शपथ पत्र भरना अनिवार्य होगा. इस पत्र में नियुक्ति के समय दहेज लेने और नहीं देने के लिए की शपथ लेनी होगी. शपथ पत्र के गलत भरे जाने पर नौकरी भी जा सकती है. सरकार ने अधिसूचना में स्पष्ट रूप से यह कहा है कि सभी पुरुष और महिला अभ्यर्थियों को यह शपथ पत्र भरना अनिवार्य होगा.
इसके साथ ही प्रमाण पत्र को गलत पाए जाने पर उनकी नियुक्ति पर सक्षम प्राधिकार द्वारा प्रतिकूल आदेश पारित किया जाएगा. इसके अलावा उस दहेज संबंधी घोषणा पत्र में यह भी साफ लिखा है, कि यदि नियुक्ति के बाद किसी भी प्रकार का दहेज संबंधी शिकायत विभागीय न्यायालय में दर्ज कराई जाती है, तो बिहार सरकार को उस व्यक्ति की नियुक्ति को समाप्त करने का पूर्ण अधिकार होगा.
हालांकि सरकार के इस प्रयास का असर जमीनी स्तर पर नहीं दिख पा रहा है. दहेज से संबंधित अपराधों में कोई कमी देखने को नहीं मिल पाई है. आंकड़े तो यही बताते हैं कि सरकार द्वारा किए गए प्रयास उतने सफल नहीं हो पा रहे हैं.
वर्ष 2019 के एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में दहेज हत्या से होने वाली मृत्यु की संख्या लगभग 1127 है. वर्ष 2018 में भी यह संख्या लगभग 1111 और 2017 में दहेज से होने वाली हत्याओं की संख्या लगभग 1081 थी.
समाज-सरकार-प्रशासन के आपसी तालमेल से रुकेगी कुप्रथा
दहेज प्रथा कोई आज की बात नहीं है. यह सदियों से चली आ रही एक कुरीति है, जिसने महिलाओं को समाज के ऊपर एक बोझ के रूप में प्रस्तुत किया है.
बेटी के जन्म के बाद मां-बाप को उसकी शादी की चिंता समाज में बेटियों को मिलने वाले अधिकार से वंचित कर देती है. यही कारण है कि कई मां-बाप अपनी बेटी को नहीं पढ़ाते हैं. उन्हें लगता है कि इसकी पढ़ाई में खर्चा करने से अच्छा उस पैसे को दहेज के समय इस्तेमाल करना ठीक होगा.
इस तरह की मानसिकता तभी बदल सकती है जब समाज शिक्षित हो. सरकार के स्तर पर दहेज के ऊपर न केवल ठोस कानून हो, बल्कि इसे पूरी सख्ती के साथ क्रियान्वित भी किया जाए. प्रशासन दहेज से संबंधित अपराध को गंभीरता से ले.
पुलिस और न्यायालय समाज में ऐसे उदाहरण पेश करें. जिससे दहेज का लेन-देन करने वाले लोगों के मन में एक डर की स्थिति पैदा हो. तभी जाकर बिहार में दहेज और उससे संबंधित अपराध कम हो सकेंगे, और बेटियां समाज पर बोझ के रूप में नहीं बल्कि एक उज्जवल भविष्य के रूप में देखी जा सकेंगी.