जल ही जीवन है। ये बातें हम सभी ने एक बार नहीं बल्कि हजारों बार पढ़ी होंगी। लेकिन बिहार के साथ सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि राज्य के कुछ जिलों को छोड़ दिया जाए तो करीब-करीब सभी जिलों में पीने का पानी जीवन नहीं, बल्कि मौत की तरफ लेकर जा रहा है।
दक्षिण बिहार के झारखंड से सटे नवादा जिले के रजौली ब्लॉक के हरदिया पंचायत में कई टोले हैं। इन टोले में से एक हरदिया टोला के निवासी पानी के कारण ही अभिशप्त जीवन जी रहे हैं। दरअसल इस टोले में करीब 200 की संख्या में निवासी फ्लोरोसिस नामक बीमारी से त्रस्त हैं और उनकी ये बीमारी यहां के पेयजल में फ्लोराइड की हद से ज्यादा उपलब्ध्ता के कारण है.
पूर्णिया जिले के धमदाहा ब्लॉक में स्थित एक हैंडपंप के पास पीले रंग के जमे हुए तत्व को देख कर सहज अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इस पानी मे आइरन की ज्यादा उपलब्धता है। जबकि सरकार की तरफ से लगाये गए इस हैंडपंप में यह दावा किया गया था कि इस पम्प से शुद्ध पानी मिलेगा। लेकिन पानी अपनी कहानी को खुद ही कह रहा है।

बिहार सरकार के बिहार स्टेट वाटर एंड सैनिटेशन मिशन के आधिकारिक वेबसाइट पर दी गए जानकारी के अनुसार बिहार में 13 ऐसे जिले हैं, जिनमें पानी में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 एमजी प्रति लीटर है। इन जिलों में ज्यादातर वैसे जिले हैं जो गंगा नदी के प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष रूप से जुडे हुए हैं। जिलों में बक्सर, भोजपुर, पटना, सारण, वैशाली, समस्तीपुर, मुंगेर, लखीसराय, खगडिया, बेगूसराय, भागलपुर, कटिहार व दरभंगा शामिल हैं।
वहीं पेयजल में फ्लोराइड प्रभावित जिलों में वैसे जिले शामिल हैं जो झारखंड से सटे हुए हैं। इन जिलों में औरंगाबाद, बांका, भभुआ, गया, जमुई, नवादा, नालंदा, रोहतास, मुंगेर, शेखपुरा व भागलपुर शामिल हैं। सैनिटेशन मिशन द्वारा दिए गए आंकडें के अनुसार नौ ऐसे जिले भी बिहार में शामिल हैं जहां पर भूगर्भ पेयजल में प्रति लीटर एक एमजी से ज्यादा आयरन है। इन जिलों में पूर्णिया,किशनगंज, अररिया, कटिहार, सुपौल, मधेपुरा, खगडिया व बेगूसराय शामिल हैं। सबसे अहम बात यह कि बेगूसराय, खगडिया, भागलपुर व मुंगेर ऐसे जिलों की सूची में शामिल हैं, जहां की पानी में फ्लोराइड के साथ ही आयरन की भी मात्रा तय मानक से ज्यादा पायी गयी है और यह घातक है।

गड़िया जिले के गोगरी ब्लॉक के निवासी भोला पासवान का परिवार ऐसे परिवार में से एक है जो पानी के कारण जीवन को दूभर तरीके से जीने को विवश हैं। भोला बताते हैं, पूरे इलाके में पानी मे आर्सेनिक है, जिस कारण एक बड़ी आबादी घुट घुट कर जीवन जीने को मजबूर है। भोला बताते हैं, गांव के लोगों ने कई बार आर्सेनिक को लेकर अपनी बातों को सरकार के दरवाजे तक पहुंचाने की कोशिश की लेकिन हमारी आवाज को आज तक किसी ने सुना ही नहीं। भोला बताते हैं, उनका पूरा परिवार आर्सेनिक के कारण परेशान है। घर में उनको तो दिक्कत है ही, इसके अलावा उनकी पत्नी को भी परेशानी है। घर के बाकी सदस्य भी किसी न किसी बीमारी से त्रस्त है।
भोला बताते हैं, आलम ये है कि पूरे गांव में 70 साल से ज्यादा उम्र वाले लोग ही नहीं मिलेंगे। सबकी मौत हो चुकी है,इस पानी के कारण। हम लोग भी अपने जीवन को लेकर बराबर चिंतित रहते हैं।

वाटर क्वालिटी में लंबे वक्त से काम कर रहे व मेघ पइन अभियान से जुडे एकलव्य प्रसाद कहते हैं, वाटर क्वालिटी के डाटा के अनुसार दो तरह के टेस्ट होते हैं, एक फिल्ड टेस्टिंग व दूसरा लेबोरेट्री टेस्ट। हमने एक रिसर्च किया है, जहां पर अलग-अलग डाटा सेंस लेकर यह एनालाइज करने की कोशिश की है कि आखिरकार बिहार की वाटर क्वालिटी में इश्यू क्या है? और अगर क्वालिटी का इश्यू है तो जो भी अवयव हैं, वह व्यापक रूप से कैसे पाये जा रहे हैं। कहीं ज्यादा तो कही कम पाये जा रहे हैं। यूरेनियम भी पाया जा रहा है और सबसे बडी बात यह है कि यूरेनियम नार्थ के साथ साउथ बिहार के जिलों के जल में पाया गया है।

रजौली ब्लॉक के फ्लोराइड प्रभावित हरदिया टोले के मुखिया पिंटू साव कहते हैं, पहले की तुलना में पानी की क्वालिटी में कुछ सुधार हुआ है। राज्य सरकार के हर घर नल का जल स्कीम के तहत गांव में बेहतर पानी की आपूर्ति शुरू हुई है। हालांकि पहले जिस पानी का सेवन लोगों ने किया, उससे शरीर पर असर तो पडा ही है। उम्मीद है कि अगर इस पानी का सेवन हो तो शायद कुछ बेहतर हो।
बिहार सरकार के बिहार स्टेट वाटर एंड सैनिटेशन मिशन की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार पूरे बिहार के करीब करीब सभी जिलों की पानी में कुछ न कुछ तत्व हैं लेकिन दुखद यह है कि इसके बारे में अधिकृत आंकडों को एकत्र करने के लिए कोइ पुख्ता व्यवस्था नहीं है।
बिहार में पानी के हालात को अगर देखा जाए तो इससे सरकार के व्यवस्था के भरोसे कतई नहीं देखा जा सकता है। अगर सरकार के आधिकारिक वेबसाइट को देखे तो वह 2018 के बाद से अपडेट ही नहीं की गई है, जिस कारण भूजल व पेयजल की अद्यतन रिपोर्ट को सरकारी स्तर पर कम से कम नहीं प्राप्त किया जा सकता है। इस वेबसाइट पर दिए गए 2009 के आंकडों के अनुसार राज्य के 18673 टोलों के जल में आयरन, 1590 टोलों में आर्सेनिक तथा 4157 टोलों में फ्लोराइड का संक्रमण है यानि प्रदेश के कुल 24420 टोलों के भूजल संक्रमित हैं।
ज्ञात हो कि खुद राज्य सरकार इस बात को मान चुकी है कि बिहार के 38 जिलों में से 37 जिलों का पानी पीने के लायक नहीं है। करीब दो साल पहले एनआइटी पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में तत्कालीन डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने इंडियन वाटर वक्र्स एसोसिएशन के 52वें एनुअल सम्मेलन में दिए गए अपनी स्पीच में इस बात को स्वीकार किया था कि सूबे की बडी आबादी आज भी संक्रमित पेयजल का उपयोग करने को मजबूर है, जिससे उनके जीवन को खतरा है। इसी आयोजन में यह भी जानकारी दी गई कि पहले संक्रमित जल का दायरा प्रदेश के 28 जिलों तक था।

संक्रमित जल के उपयोग करने से किस तरह से लोगों को जीवन खतरे में पड रहा है। यह बहुत चौकाने वाला है। फिजिशियन डॉक्टर राणा एसपी सिंह कहते हैं, हमारे पास ऐसी जानकारी है कि भूजल में आर्सेनिक के संक्रमण के कारण बिहार में बडी संख्या में कैंसर के रोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। वह यह भी कहते हैं, ऐसा भी सामने आया है कि बिहार में पिछले कुछ सालों में गॉल ब्लॉडर के कैंसर के मरीजों की संख्या में बढोत्तरी हुई है। इसके पीछे आर्सेनिक को कारण माना जा रहा है। वह कहते हैं, फ्लोराइड सीधे हड्डियों पर असर डालता है जबकि आयरन के कारण संक्रमित क्षेत्र में गैस व इससे जुडी बीमारियां देखने को मिली हैं।