बिहार को सूखा ग्रसित घोषित करने की तैयारी चल रही है. पिछले कुछ सालों से आधा बिहार बाढ़ और आधा सुखाड़ से परेशान रहता है. कहते हैं अति का होना किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं होता है चाहे वो मौसम ही क्यों ना हो. जहां मानसूनी बारिश के कारण महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात और उत्तराखंड जैसे राज्यों में लोग बाढ़ के चपेट में हैं. वहीं बिहार में लोग बारिश का इंतजार कर रहे हैं.
इस साल बिहार में मानसून ने समय से एक दिन पहले ही दस्तक दे दिया था. शुरुआत के कुछ दिनों में अच्छी बारिश भी हुई थी. जिससे धान रोपने वाले किसानों को अच्छे फ़सल होने की उम्मीद थी. लेकिन कुछ दिनों बाद ही बिहार में मानसून कमज़ोर हो गया.
कम बारिश के कारण उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाब में धान की फसल प्रभावित हो सकती है. उत्तर भारत ही देश का वो हिस्सा है जहां करीब 65% खरीफ़ फ़सल यानी धान, तिलहन और दलहन की खेती होती है. यहां के किसान अच्छी पैदावार के लिए पूर्णतया बारिश पर निर्भर रहते हैं.
44% कम बारिश की वजह से बिहार में सूखा, धान रोपाई में परेशानी
बिहार में सामान्य तौर पर 992 मिलीमीटर बारिश का लक्ष्य है. लेकिन अब तक सामान्य से 44% कम वर्षा हुई है. जुलाई महीने में सामन्य से कम बारिश होने के कारण किसानों को धान रोपने में परेशानी हो रही है. जुलाई का महीना अब बीतने वाला है. राज्य में सामान्य तौर पर जुलाई महीने में 414.4 मिलीमीटर वर्षा होनी चाहिए थी. लेकिन वर्षा केवल 239.1 मिलीमीटर ही हुई है.
वही मौसम विज्ञान केंद्र पटना ने किसानों के लिए 24 जुलाई को जारी अपने प्रेस विज्ञप्ति में बताया है कि राज्य में 28 जुलाई तक कम बारिश की संभावना बनी हुई है. किसानों को इस पूर्वानुमान के अनुसार खरीफ़ फ़सल को सूखने या नष्ट होने से बचाने के लिए पानी का प्रबंध रखना होगा. वहीं धान रोपने या रोपे गये धान के पौधे को बचाने के लिए पानी का प्रबंध करने का सलाह दिया गया है.
लेकिन किसान मौसम की मार धान की रोपनी पर भी देखने को मिल रहा है. धान की रोपनी अब तक 47-48% ही हो पाई है. अगर राज्य में बारिश सामान्य रहती तो अब तक 80 से 82 फीसदी तक रोपनी हो चुकी होती.
अच्छी उपज के लिए रोपाई का समय बीता
धान की अच्छी उपज के लिए खेत में बिचड़ा डालने से लेकर रोपाई तक का सही समय एक जून से 31 जुलाई तक होता है. खेती के लिहाज से इन दो महीनों में अच्छी बारिश होनी चाहिए, लेकिन पूरे बिहार के अधिकांश जिले कम बारिश का सामना कर रहे हैं. मौसम विज्ञान केंद्र पटना ने 3 अगस्त तक बारिश होने की संभावना जताई है लेकिन वह भी सामान्य से कम.
पटना जिले में लगभग 1,30,500 हेक्टेयर में धान की खेती होती है. लेकिन जिले में 54% कम बारिश हुई है. सूखे के कारण जिले में धान की रोपनी प्रभावित हुई है. जहां पटना जिले में जुलाई के महीने में 35 फ़ीसदी तक धान की रोपनी हो जाती थी, वह अभी 20 से 22 फ़ीसदी तक ही हो सकी है. वहीं जिन किसानों ने रोपनी कर ली है उनके पास पटवन की समस्या उत्पन्न हो गयी है.
बिक्रम से तीन किलोमीटर पहले निसरपुरा गांव के किसान खेत में पर्याप्त पानी नहीं मिलने के कारण धान की रोपनी नहीं कर पा रहे हैं. निसरपुरा में 50 से 60 के लगभग छोटे किसान रहते हैं जो खुद की जमीन या पट्टे पर लेकर धान की खेती करते हैं. लेकिन सूखे की समस्या के कारण उन्हें नुकसान का अंदेशा अभी से ही होने लगा है.
निसरपुरा के रहने वाले मंजय कुमार बताते हैं
पानी तो बिल्कुल नहीं है. ना नहर में हैं और ना ही धरती में. जहां बोरिंग काम कर रहा है वहां लोग डिज़ल और बिजली से किसी तरह रोपनी कर रहा है. लेकिन पानी का लेवल नीचे जाने के कारण बोरिंग भी फ़ेल कर जा रहा है.
पटना जिले के जिला कृषि पदाधिकारी विकास कुमार बताते हैं
जिले में 24.46% ही रोपनी हुई है. जबकि जुलाई में 32% तक रोपनी हो जानी चाहिए थी. नहरों में पानी छोड़ा गया है लेकिन पानी बहुत कम है. किसान ड्रिप इरीगेशन (सिंचाई) पद्धति से सिंचाई कर रहे हैं. सरकार 12 घंटे बिजली सप्लाई कर रही है ताकि किसान पंप चलाकर सिंचाई कर सके. साथ ही डीज़ल अनुदान भी दे रही हैं.
क्या डीज़ल अनुदान किसानों के नुकसान की भरपाई करेगा?
राज्य में अनियमित मानसून और कम बारिश के कारण सुखाड़ के हालात बनते जा रहे हैं. इस स्थिति को देखते हुए मंगलवार 25 जुलाई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में डीज़ल अनुदान के लिए राशि को मंजूरी दी गयी है. किसानों को डीज़ल अनुदान के लिए 100 करोड़ रूपए की मंजूरी दी गयी है. इससे पहले डीज़ल अनुदान के लिए कैबिनेट ने 50 करोड़ रूपए की मंजूरी दी थी.
कैबिनेट बैठक के बाद सचिव आमिर सुबहानी ने बताया कि
75 रूपए प्रति लीटर डीजल पर अनुदान के आलोक में किसानों को 750 रूपए प्रति एकड़ प्रति सिंचाई की दर से अनुदान मिलेगा.
किसानों को पटवन के लिए नहरों से पानी नहीं मिल रहा है. ऐसे में किसान पूरी तरह भूजल पर निर्भर हो गये हैं. भूजल निकालने के लिए किसानों को मोटर पंप चलाना पड़ता है. जिसके लिए बिजली या डीजल की आवश्यता होती है.
निसरपुरा के किसान मंजय सिंह डीजल अनुदान से फसल लागत में सहायता से इंकार करते हैं, और कहते हैं
खेती में सबकुछ घर से लगाना पड़ता है. डीजल अनुदान मिलता कहां है. दो से ढाई हज़ार रूपए बीघा जोताई में, 2500 रूपए बीघा रोपाई में और जब पानी नहीं पड़ेगा तो पटवन में भी 1000 हज़ार रूपए बीघा लगेगा. जहां 30-40 हज़ार का नुकसान हो रहा है वहां 2-4 हज़ार और हो जाएगा.
राज्य के पटना ग्रामीण, बक्सर, भोजपुर, रोहतास, कैमूर, वैशाली, भागलपुर, गया, नालंदा सहित कई ऐसे जिले हीं जिनकी पहचान धान की अच्छी उपज के लिए जाना जाता है. लेकिन इन जिलों में भी सामान्य से कम बारिश होने के कारण धान की रोपनी नहीं हो सकी है.
नालंदा और गया में भी धान रोपनी की स्थिति ख़राब
नालंदा जिले के कृषि पदाधिकारी महेंद्र कुमार बताते हैं
जिले में अब तक केवल 9% धान की रोपनी हो सकी है जबकि जुलाई महीने में 40% से 50% तक रोपनी हो जानी चाहिए थी. लेकिन बारिश नहीं होने के कारण किसान विवश हैं.
गया जिले के कृषि पदाधिकारी अजय कुमार सिंह बताते हैं
जिले में अभी मात्र 5% ही रोपनी हुई है. क्योंकि यहां लेट से बिचड़ा गिराया जाता है. और बिचड़ा गिराने के बाद बारिश ही नहीं हुआ है. जिले में 55% कम बारिश हुई है. बोरिंग चलाकर किसान किसी तरह सिंचाई कर रहे हैं. क्योंकि नहरों में पानी नहीं है. सोन नदी क्षेत्र के नहरों में थोड़ा पानी है लेकिन बाकि क्षेत्रों के नहर में पानी नहीं है.
बिहार में 35 लाख 97 हज़ार हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन अभी मात्र 17 लाख 69 हज़ार हेक्टेयर में ही रोपनी हो सकी है.
हालांकि कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने किसानों को आश्वासन दिया है कि अगर आगे बारिश नहीं होती है तो राज्य में सुखाड़ की घोषणा कर किसानों को सहायता दी जाएगी. साथ ही 15 अगस्त तक रोपनी नहीं होने की स्थिति में किसानों को अल्प अवधि के धान, संकर मक्का, अरहर, मडुआ, बरसीम, कोदो, सरसों आदि के बीज मुफ्त में उपलब्ध कराएं जाएंगे.