बिहार का शिक्षा विभाग बीते एक साल से सुर्ख़ियों में बना हुआ है. बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था, खासकर सरकारी स्कूलों में सुधार लाने के लिए पिछले एक साल में काफी प्रयास किये जा रहे हैं. इसके लिए शिक्षकों की नियुक्ति, उनके नियमित और समय पर स्कूल में उपस्थित रहने संबंधी नियम या फिर नियमित स्कूल नहीं आने वाले बच्चों का नामांकन तक रद्द किया जा रहा था. ये सभी आदेश किसी ना किसी कारण चर्चा में रहे थे.
अब एकबार फिर बिहार का शिक्षा विभाग राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में हैं. लेकिन इस बार चर्चा शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने को लेकर नहीं है, बल्कि उस व्यवस्था को छुपाने को लेकर हैं. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफार्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (Udise+) पोर्टल पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थित सरकारी, गैर-सरकारी और मान्यता प्राप्त स्कूल अपने विद्यालय की सभी जानकारियां अपलोड करते हैं.
इन जानकारियों के आधार पर ही केंद्रीय और राजकीय योजनाएं तैयार किए जाते हैं.
बिहार के स्कूल नहीं दिखा रहे रूचि
वर्ष 2024-25 के लिए तैयार किये जा रहे यू-डायस डाटा में बिहार के स्कूल रूचि नहीं ले रहे हैं. बार-बार निर्देश जारी किये जाने बाद भी अबतक मात्र 60.50 फीसदी स्कूलों ने ही अपनी पूरी जानकारी पोर्टल पर अपलोड की है.
वहीं झारखंड और उत्तरप्रदेश के स्कूल डाटा अपलोड करने के मामले में बिहार से काफी आगे हैं. झारखंड के 99.7 फीसदी तो उत्तर प्रदेश के 98.10 फीसदी स्कूलों की जानकारी यू-डायस पोर्टल पर अपलोड हो चुकी हैं.
बिहार में सरकारी एवं निजी मिलाकर कुल 94,598 पंजीकृत स्कूल कार्यरत है. इनमें से 57,255 स्कूलों ने ही अपनी जानकारी पोर्टल पर दी गई है. जबकि 37,343 स्कूलों का डाटा अपलोड होना बाकी है.
अगर जिलेवार आंकड़ों को देखा जाए तो पटना जिले में सरकारी एवं निजी मिलाकर कुल 4,864 पंजीकृत स्कूल कार्यरत है. लेकिन इनमें से मात्र 757 स्कूलों ने ही यू-डायस पोर्टल पर जानकारी दी है. जबकि 4,107 स्कूल अभीतक डाटा अपलोड नहीं कर पाए हैं. पटना जिले के जिला शिक्षा पदाधिकारी ने सभी स्कूलों को 28 अक्टूबर तक डाटा अपलोड करने का समय दिया है.
वहीं नवादा जिले में 2,189 स्कूल हैं. इनमें 1832 सरकारी जबकि 357 निजी स्कूल हैं. इनमें से 410 सरकारी जबकि 166 निजी स्कूलों ने अपनी जानकारी पोर्टल पर अपलोड की हैं.
समस्तीपुर जिलें में कुल 3468 स्कूल हैं. इनमें से अबतक 1717 स्कूलों के आंकड़े पोर्टल पर नहीं डाले गए हैं. इसके साथ ही जिले तीन लाख 84 हजार 43 छात्रों के पिछले सत्र के आंकड़े भी चालू सत्र में नहीं डाले गये हैं.
इस स्थिति में छात्रों के केंद्रीय योजनाओं से वंचित होने की स्थिति उत्पन्न हो सकती. यू-डायस पोर्टल पर अपलोड आंकड़े पब्लिक डोमेन में उपलब्ध होने के कारण सरकार और अभिभावकों के लिए उपयोगी होती हैं. सरकार इन आंकड़ों के आधार पर शिक्षा बजट और योजनायें तैयार करती हैं. वहीं अभिभावक इनके आधार पर अपने बच्चों के लिए बेहतर स्कूलों का चयन कर पाते हैं. क्योंकि पोर्टल पर केवल पंजीकृत स्कूल ही आंकड़े साझा कर सकते हैं.
प्राथमिक से हाईस्कूल तक के आंकड़े रहते है मौजूद
यू-डायस पोर्टल पर प्राथमिक विद्यालयों से लेकर बारहवीं कक्षाओं तक के स्कूलों की जानकारी मौजूद रहती हैं. जहां विद्यालय प्रशासन को अपने विद्यालय में नामांकित कुल छात्रों (जेंडर सहित) और उन्हें पढ़ाने के लिए उपलब्ध कुल शिक्षकों (जेंडर सहित) की जानकारी देनी होती हैं.
इसके अलावा विद्यालय में मौजूद मुलभूत सुविधाएं- जिसमें वर्गवार छात्रों के लिए उपलब्ध कक्षाएं, लड़के और लड़कियों के लिए मौजूद शौचालय, पीने के पानी की व्यवस्था, खेल के मैदान, लाइब्रेरी, साइंस और कंप्यूटर लैब, विद्यालय के भवन की स्थिति, विद्यालय की चाहरदीवारी जैसी महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराई जाती हैं.
बिहार के सरकारी स्कूलों में तमाम सरकारी दावों के बावजूद कुछ खास बदलाव नहीं देखा जा रहा है. छात्र और शिक्षक ऐसे स्कूल परिसर में दिन के आठ से 10 घंटे गुजारने को मजबूर होते हैं, पीने के साफ पानी और शौचालय की व्यवस्था नहीं हैं.
साल 2021-22 के यू डायस के आंकड़ों के अनुसार राज्य के 2047 सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय नहीं थे. वहीं तीन हजार स्कूलों में लड़कों के लिए शौचालय मौजूद नहीं थे.
बात अगर शैक्षणिक गतिविधियों के लिए मौजूद सुविधाओं की कि जाए तो मात्र 61.6 फीसदी सरकारी स्कूल में लाइब्रेरी, 8.6 फीसदी में कंप्यूटर लैब जिनमें से मात्र तीन फीसदी के पास कंप्यूटर और 5.9 फीसदी के पास इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध थी.
राज्य में 9,341 सेकेंडरी स्कूल मौजूद हैं लेकिन इनमें से मात्र 20 फीसदी स्कूलों में ही साइंस लैब मौजूद हैं.
बिहार में शिक्षक-छात्र अनुपात में भी सुधार किये जाने की आवश्यकता है. पिछले आंकड़ों के अनुसार प्राइमरी में छात्र शिक्षक अनुपात 54:1, सेकेंडरी में 55:1 जबकि हायर सेकण्ड्री में 63:1 था.
यू-डायस रिपोर्ट के अनुसार साल 2014-15 में माध्यमिक स्तर पर कुल बच्चों का 25.33%, साल 2015-16 में 25.90% और 2016-17 में 39.73% बच्चों ने स्कूल छोड़ा है. हालांकि साल 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में ड्राप आउट की संख्या कम होकर 21.4% पर पहुंची है.
लड़कियों के माध्यमिक कक्षाओं में ड्राप आउट की संख्या अभी भी चिंताजनक है. साल 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार 22.7% लड़कियां 10वीं के बाद स्कूल छोड़ देती हैं. जबकि 2021-22 में यह आंकड़ा 21.4% रहा था.
बीते तीन सालों में इन आंकड़ों में कितना बदलाव आया है इसकी जानकारी तभी मिल सकती है, जब स्कूल आंकड़े उपलब्ध कराएंगे. यू-डायस के आंकड़े बताते हैं कि एक तरफ जहां केंद्र द्वारा संचालित या निजी संचालित स्कूल डिजीटल शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं. वहां बिहार के सरकारी स्कूल आज भी शौचालय, पानी, बेंच-डेस्क, कॉपी-किताब और छात्रों के अनुपात में पर्याप्त शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं. इन स्कूलों में कंप्यूटर, प्रोजेक्टर, स्मार्ट लैब, साइंस लैब जैसी सुविधाएं नदारद हैं.
चार सेक्शन में होता है डाटा कलेक्शन
वर्ष 2024-25 के लिए एकत्रित किये जा रहे डाटा में लिए यू-डायस ने सूचनाओं को चार अलग-अलग भागों में बांटा हुआ है. इसमें पहले सेक्शन में स्कूल के प्रोफाइल जिसमें सुरक्षा, विभिन्न मदों पर होने वाला खर्च और वोकेशनल विषयों की पढ़ाई को लेकर जानकारी मांगी गयी है.
इसके दूसरे भाग में स्कूल में मौजूद भौतिक सुविधाओं (physical facility), उपकरण (Equipments), कंप्यूटर और डिजिटल शिक्षा के लिए उठाए गए क़दमों की जानकारी मांगी गयी है.
तीसरे हिस्से में शिक्षकों और गैर-शिक्षकों की जानकारी जबकि चौथे हिस्से में छात्रों की जानकारी मांगी गयी है. जिसमें उम्र समेत जाति, वर्ग, और धर्म की जानकारी मांगी गयी है.
इससे पहले 2023-24 के यू-डायस आंकड़े अपलोड करने में भी कई राज्य काफी देर कर रहे थे. जिसके बाद शिक्षा मंत्रालय के सचिव संजय कुमार ने सभी राज्यों और विद्यालयों को पत्र जारी कर 15 मार्च 2024 तक डाटा अपलोड करने को कहा था.
पत्र में सचिव ने डाटा अपलोड नहीं किये जाने को 'राइट टू एजुकेशन, 2009' का उल्लंघन माना था. साथ ही कहा चूंकि इन्हीं आंकड़ों के आधार पर ‘समग्र शिक्षा परियोजना’ के तहत केंद्र द्वारा सहायता राशि दी जाती है इसलिए आंकड़े जमा करने में देर नहीं करें.