बाज़ार से गायब NCERT किताबें, स्टूडेंट्स महंगी किताबें ख़रीदने को मजबूर

क्या होगा अगर बाज़ार से NCERT की किताबें गायब रहें? मजबूरन लोगों को निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदनी पड़ेंगी. जिसकी कीमत 5 हज़ार रूपए तक होती है.

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आमिर अब्बास
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बाज़ार से गायब NCERT किताबें,

बिहार में औसत सैलरी 20 हज़ार रूपए से भी कम है. ऐसे में अगर बच्चों की महंगी किताबों का बोझ लोगों के जेब पर पड़ने लगेगा तो उनकी स्थिति ख़राब होना लाज़मी है. लेकिन शायद शिक्षा विभाग को इसकी नहीं पड़ी है. इसलिए बाज़ारों से NCERT की किताबें गायब हैं. NCERT किताबों की पूरी सेट की कीमत छह सौ रूपए तक होती है.

लेकिन क्या होगा अगर बाज़ार से NCERT की किताबें गायब रहें? मजबूरन लोगों को निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदनी पड़ेंगी. जिसकी कीमत 5 हज़ार रूपए तक होती है. अब सोचिये कि इस किताब के व्यापार में निजी प्रकाशकों का कितना फ़ायदा होता होगा.

निजी स्कूल जो सीबीएसई बोर्ड से पढ़ाई करवाते हैं, उनमें अधिकांश मध्यम वर्गीय घर के स्टूडेंट्स ही पढ़ाई करते हैं. घरवालों के लिए हर साल नयी किताबों को खरीदना बहुत मुश्किल का काम होता है. लेकिन बच्चों की पढ़ाई से कोई भी कोताही नहीं करना चाहता है. इसलिए वो NCERT की किताबों का इंतेज़ार करने के बजाये निजी प्रकाशकों की किताबें ही ख़रीदने को मजबूर हैं. 

केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय में ही किताबें मौजूद

NCERT की किताबें राज्य में केवल 2 स्कूलों में ही मौजूद हैं. नई कक्षा में पहुंचने वाले छात्र दूसरे छात्रों से पुरानी किताबें ही ख़रीद कर पढ़ने को मजबूर हैं. छोटे-छोटे निजी स्कूलों में पढ़ने वाले इन छात्रों के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी मज़बूत नहीं है कि माता-पिता एक साथ दो-तीन बच्चों को नई कॉपी-किताब दिला सकें.

पटना के भोला पासवान बस्ती में रहने वाले अंकिता कुमारी पास के एक छोटे से निजी स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ाई करती हैं. लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन्हें नई किताब मिल सके. अंकिता दो बहन हैं जिनका पालन-पोषण उनकी मां अकेले कर रही हैं.

अंकिता की मां दूसरों के घरों में खाना बनाकर अपने तीनों बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रही हैं. अंकिता की बड़ी बहन आकांक्षा कहती हैं “मां की तबियत ख़राब रहती है. लेकिन फिर भी वो काम पर जाती हैं. जो भी पैसे मिलते हैं उनसे हम दोनों बहन को पढ़ाती हैं. अभी जब अंकिता की किताबें ख़रीदने की बारी आई तो मैंने उसे अपनी पुरानी किताबें दे दी. क्योंकि पैसे नहीं रहने पर मां अपनी दवाई नहीं खरीदती हैं. लेकिन स्कूल वाले कहते हैं कि उन्हें नयी किताबें चाहिए. जब सिलेबस नहीं बदला तो हर साल किताब लेना ज़रूरी क्यों है?"

शिक्षा के निजीकरण का क्या असर है?

बढ़ते बाज़ारवाद और निजीकरण में गरीब और पिछड़े तबके से शिक्षा का मूलभूत अधिकार छीनने का काम किया जा रहा है. शिक्षा के निजीकरण के दौर से पहले सभी को सरकारी स्कूल में मुफ़्त शिक्षा और पुरानी किताबों से आसानी से पढ़ाई होती थी. और उन्हीं सरकारी स्कूलों से इंजीनियर, साइंटिस्ट, आईएएस और राजनेता पढ़ाई कर चुके हैं. उसके बाद निजी स्कूल के बोलबाले में सरकारी स्कूल की स्थिति बद से बदतर होनी शुरू हो गयी. 

किताबों के साथ भी यही किया जा रहा है. NCERT की किताबों के आधार पर ही परीक्षा और सिलेबस बनाया जाता है. उसके बावजूद NCERT किताबों के बदले निजी प्रकाशकों की किताब जो लगभग 5 से 10 गुना अधिक महंगी होती हैं, उसी से पढ़ाया जाता है. ऐसे में महंगी फ़ीस और किताबों के बाद भी बच्चों को बेहतर गुणवत्ता की शिक्षा नहीं मिल पाती है. 

इसी तरह की कहानी अमन की भी है. अमन चितकोहरा के पास एक छोटे से घर में रहता है. उसके पिता मंगनू बस ड्राइवर हैं. पूरे घर की मासिक आय 20 हज़ार रूपए है. मंगनू की एक ही ख्वाहिश है कि उनके तरह उनके बच्चे को ड्राइवर का काम नहीं करना पड़े. इसके लिए उन्होंने पास के एक निजी स्कूल उसका दाख़िला करवाया. महंगी फ़ीस और हर साल नयी किताबों के चलते मंगनू ने अमन का दाख़िला सरकारी स्कूल में करवाया. अब मंगनू को हमेशा अमन के पढ़ाई की चिंता लगी रहती है. क्योंकि बिहार के सरकारी स्कूलों की हालत किसी से भी छुपी हुई नहीं है. 

सरकारी स्कूलों में किताबों की कमी

राज्य के सरकारी स्कूलों में भी कक्षा 1 से कक्षा 8 तक मुफ़्त किताबें बांटने का प्रावधान है. लेकिन हर साल राज्य शिक्षा विभाग किताबों की आपूर्ति करने में विफ़ल हो रहे हैं. कोविड लॉकडाउन के दौरान कुछ समय के लिए बच्चों के खाते में किताब के पैसे भेजे जाते थें. लेकिन बाज़ार में किताबों की कमी की वजह से खाते में पैसे देना बंद कर दिया गया. 

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उसके बाद सरकारी स्कूल के बच्चों को किताबें स्कूल में उपलब्ध करवाई जाने लगी. लेकिन विभाग हर साल सभी बच्चों को किताब बांटने में 4 से 5 महीने लगा दे रहा है. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई बर्बाद होती है और वो निजी स्कूल की तरफ़ जाना शुरू कर देते हैं. निजीकरण के बढ़ने के लिए सरकारी तंत्र का फ़ेल होना सबसे ज़रूरी है, और यही काम सरकार ने शिक्षा के साथ किया है. 

अभी तक शिक्षा विभाग ने राजधानी पटना के 70% छात्रों को किताबें मुहैया करवाई है. इसमें भी छठी कक्षा के बच्चों को किताबें उपलब्ध नहीं हुई हैं. इस मामले पर अधिक जानकारी लेने के लिए हमारी टीम ने जिला शिक्षा पदाधिकारी, पटना से बात की. उन्होंने हमें बताया कि "किताबें मिलनी शुरू हो गयी हैं और छठी कक्षा की किताबों का मामला भी देखा जा रहा है. कल से छठी कक्षा की किताबें बांटना शुरू कर दिया गया है. जिले के ग्रामीण इलाकों में भी किताबें पहुंचाई जा रही हैं और जल्द ही सभी के पास किताबें मौजूद होंगी."  

अब देखना है कि क्या शिक्षा विभाग इस साल बच्चों को सही समय पर किताब मुहैया करवा पाता है या नहीं.

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