पटना विश्वविद्यालय: हिंदी विभाग में बैच 80 छात्रों का, आते हैं केवल 10

जब रूटीन जारी होता है तो उसमे एक दिन में चार से पांच क्लास लगाए जाते हैं लेकिन मुश्किल से एक या दो क्लास होती है. उसमें भी मात्र 10 से 12 बच्चे ही आते हैं, जबकि बैच 80 बच्चों का बनाया जाता है.

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पटना यूनिवर्सिटी में गोलीबारी

नवंबर महीने के अंतिम सप्ताह में बिहार सरकार के राजभाषा विभाग ने ‘रोजगार की भाषा हिंदी’ विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया था. इसमें बिहार के कई महाविद्यालयों के 50 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था. कार्यशाला को संबोधित करते हुए विभाग के निदेशक सुमन कुमार ने कहा 'हिंदी करोड़ों लोगों की भाषा है और ऐसी भाषा के लिए रोजगार की असीमित संभावनाएं हैं.'

‘रोजगार की भाषा हिंदी’ विषय सुनने में जरूर अच्छा लग रहा है लेकिन क्या सरकार यह दावा कर सकती है कि उसने विवि और कॉलेजों में इस तरह की सुविधाएं बहाल कर दी हैं जहां से पढ़कर निकलने वाले छात्र उस भाषा के बल पर कही भी नौकरी प्राप्त कर सकते हैं.

हिंदी की कक्षाओं में नहीं आते हैं छात्र

देश के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक पटना विवि की गिनती बिहार के सबसे प्रतिष्ठित विवि में होती हैं. लेकिन हाल के वर्षों में गिरते मानकों की वजह से विवि की विश्वसनीयता में कमी आई है. विवि द्वारा शैक्षणिक गतिविधियों को बढ़ावा देने का प्रयास नहीं किया जा रहा है. हम अगर केवल हिंदी विभाग की बात करें तो राज्य के अन्य विवि की तरह ही यहां भी हिंदी विभाग की स्थिति जर्जर है. जिस राज्य में छात्र केवल डिग्री लेने के लिए कॉलेज या विवि में  नामांकन लेते हों उस राज्य में हिंदी भाषा का विकास और उस विषय को पढ़ने के बाद रोजगार मिलने की कितनी संभावनाएं होंगी?

सुपौल जिले के रहने वाले आनंद प्रवीण पटना विवि के हिंदी विभाग से स्नातकोत्तर कर रहे हैं. वर्ष 2023-25 बैच के छात्र आनंद बताते हैं कैसे हिंदी विषय से स्नातक या पीजी करना केवल डिग्री लेने का माध्यम बनकर रह गया है. क्योंकि ना तो छात्र और ना ही शिक्षक भाषा साहित्य के विकास के लिए समर्पित नजर आते हैं.

आनंद कहते हैं “जब रूटीन जारी होता है तो उसमे एक दिन में चार से पांच क्लास लगाए जाते हैं लेकिन मुश्किल से एक या दो क्लास होते हैं. उसमें भी मात्र 10 से 12 बच्चे ही आते हैं, जबकि 80 बच्चों का बैच बनाया जाता है. अगर सीटें खाली भी रहती होगी तब भी 70 से ज्यादा बच्चे हर साल एडमिशन लेते हैं.” 

छात्रों का कहना है कि ज्यादातर छात्र पीजी के साथ-साथ अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे पीसीएस, बीपीएससी या बिहार पुलिस जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे होते हैं. ऐसे में छात्र कॉलेज में क्लास जाना समय की बर्बादी समझते हैं. वहीं विभाग और शिक्षक भी छात्रों को पढ़ाने के दौरान ऐसा माहौल नहीं दे पाते हैं जहां से कुछ सीखकर जाना छात्रों को सार्थक परिणाम प्राप्त करने जैसा महसूस हो.

पटना विवि में आज से दो साल पहले तक हिंदी विभाग में स्वीकृत पदों की संख्या के अनुसार प्रोफ़ेसर भी मौजूद नहीं थे. केवल दो शिक्षकों के द्वारा विभाग संचालित किया जा रहा था. हालांकि अप्रैल 2023 में पांच असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की नियुक्ति यहां की गयी थी. वर्तमान में विभाग में सात प्रोफ़ेसर मौजूद हैं. लेकिन प्रोफ़ेसर की नियुक्तियां भी विभाग में छात्रों की उपस्थिति में खासा सुधार नहीं ला सकी है.

प्लेसमेंट की नहीं कोई सुविधा

पटना विवि में साइंस, कॉमर्स और वोकेशनल विषय के छात्रों के लिए प्लेसमेंट की व्यवस्था की जाती है. लेकिन ह्यूमैनिटीज़ स्ट्रीम के तहत आने वाले हिंदी विषय के छात्रों के लिए प्लेसमेंट की कोई व्यवस्था नहीं है. पढ़ाई पूरी होने के बाद छात्रों को रोजगार मिलेगा या नहीं इसकी चिंता विभाग को नहीं है.

हिंदी विभाग के छात्र कुमार दिव्यम कहते हैं “यहां प्लेसमेंट की कोई सुविधा नहीं है. छात्रों के सामने केवल एक विकल्प है कि वे नेट जेआरएफ निकालें. उसके बाद ही उन्हें किसी कॉलेज में पढ़ाने का काम मिल सकता है. या फिर जेनरल कॉम्पीटिशन की तैयारी करें. और यह स्थिति पूरे बिहार की है, केवल पटना विवि की नहीं.”

हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर उत्तम कुमार भी इस बात की पुष्टि करते हैं. उनका कहना है “यह सही है कि हिंदी विभाग में प्लेसमेंट की कोई व्यवस्था नहीं है. लेकिन यूनिवर्सिटी में प्लेसमेंट सेल काम करती है. अगर हिंदी विभाग के किसी छात्र को करियर संबंधी कोई मदद चाहिए तो वे वहां जाकर मदद ले सकते हैं.”

आनंद प्रवीन कहते हैं “जब आप कॉलेज जाते हैं तो एक उम्मीद रहता है कि आप वहां जाकर कुछ सीखेंगे. लेकिन जब आपको वहां कुछ सीखने को नहीं मिलता है तो बहुत निराशा होती है. वैसे ही जब रोजगार की बात आती है तो सरकार का एक डायलोग सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि आप रोजगार मांगने वाले नहीं रोजगार देने वाले बने. इससे जाहिर होता है सरकार अपनी कमियां छुपाने के लिए  चाहती है कि युवा पढाई करने के बाद रोजगार ही ना मांगे.”

पटना विवि के हिंदी विभाग में ही जर्नलिज्म ऑफ मास कम्युनिकेशन विभाग भी  चलाया जा रहा है. इसके लिए अलग से किसी विभाग की स्थापना नहीं की गयी है. हालांकि हिंदी विभाग के छात्रों और शिक्षकों को इससे कोई परेशानी नहीं है. लेकिन उनका कहना है कि अगर मासकॉम विभाग के शिक्षक हिंदी विभाग के छात्रों को अखबार, पत्रिका या वेब मीडिया में रोजगार के अवसरों की जानकारी दें तो छात्रों को लाभ हो सकता है.

हाल के वर्षों में हिंदी भाषा की श्रेष्ठता को लेकर राजनीतिक गतिविधियां तेज हुई है. केंद्र सरकार की नीतियों के साथ ही हिंदी भाषी राज्यों की सरकारें भी हिंदी भाषा को अन्य भारतीय भाषाओं से श्रेष्ठ साबित करने के खोखले प्रयास कर रही हैं. लेकिन किसी भी भाषा का विकास और अस्तित्व तभी तक बना रह सकता है जब उसकों सीखने की चाह अगली पीढ़ी के युवाओं में बनी रहे. उस भाषा में शोध कार्य और वैज्ञानिक अनुसंधान हो. उस भाषा को जानने और पढ़ने वाले युवाओं को रोजगार मिले.

छात्रों की अनुपस्थिति

बीते वर्ष कॉलेज में छात्रों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए राजभवन द्वारा नियम बनाया गया था. राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को इस संबंध में पत्र जारी कर कहा था, “75 फीसदी से कम उपस्थिति वाले छात्रों को विवि परीक्षाओं में बैठने की अनुमति नहीं दिया जाएगा. जिन छात्रों की उपस्थिति 75 फीसदी से कम होगी उनका परीक्षा फॉर्म स्वीकार नहीं किया जाएगा. केवल वैध कारणों वाले छात्रों को उचित जांच के बाद विवि परीक्षाओं में बैठने की अनुमति दी जाएगी.”

लेकिन इस नियम के बाद भी क्लास में नामांकित बच्चों की संख्या से कम छात्र उपस्थित हो रहे हैं. विवि प्रशासन ऐसे छात्रों को परीक्षा देने से नहीं रोक रहा है. पटना विवि के एक छात्र नाम नहीं बताए जाने के शर्त पर कहते हैं, “केवल पहले सेमेस्टर में रेगुलर क्लास गया था. अभी तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा होने वाली है. इस पुरे सेमेस्टर में भी गिनकर पांच दिन क्लास गया हूं. उससे पहले सेकंड सेमेस्टर में भी इसी तरह चार से पांच दिन क्लास गया होऊंगा. लेकिन दोनों में से किसी भी सेमेस्टर में परीक्षा देने से नहीं रोका गया.”

एक तरह राज्यपाल का आदेश दूसरी तरफ विवि या कॉलेजों द्वारा क्लास नहीं आने वाले छात्रों दी जाने वाली छूट यह जाहिर करती हैं कि कमी विवि और कॉलेजों में हैं. एकेडमिक कमियां छुपाने के लिए विवि  प्रशासन छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं. छात्र फीस देने के बाद भी केवल डिग्रियां ले रहे हैं. वहीं शिक्षक भी छात्रों को ईमानदारी पूर्वक पढ़ाएं बिना वेतन ले रहे हैं.

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