बिहार शिक्षा विभाग सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को निर्देश देता है कि वह यह सुनिश्चित करें कि विद्यालय आने वाले छात्र, प्रत्येक दिन की समय सारणी (Time table) के अनुसार किताबें लेकर विद्यालय पहुंचें. यह नियम बनाना कि बच्चे किताबों के साथ स्कूल पहुंचे सराहनीय कदम है. लेकिन क्या शिक्षा विभाग कभी अपनी घोषणाओं की समीक्षा करता है?
दरअसल, पूर्व अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने माध्यमिक और उच्च माध्यमिक यानी नौवीं से 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों को भी मुफ़्त किताबें देने की घोषणा की थी. जिसके बाद उच्च कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को उम्मीद थी कि उन्हें भी नये सत्र में नई किताबें मिलेंगी. लेकिन अफ़सोस, छह महीने बीत जाने के बाद भी छात्रों को किताबें नहीं मिली.
सिलेबस बदला, उसके बाद भी पुरानी किताबें पढ़ रहे बच्चे
नई कक्षा में पहुंचने वाले छात्र अपने भाई-बहनों या सीनियर छात्रों की पुरानी किताबों से पढ़ाई करने को मजबूर हैं. क्योंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले इन छात्रों के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी मज़बूत नहीं है कि माता-पिता एक साथ दो-तीन बच्चों को नई कॉपी-किताब दिला सकें.
पटना के आर ब्लॉक बस्ती में रहने वाले रेहान अंसारी वीरचंद पटेल स्थित मिलर हाईस्कूल में नौवी कक्षा के छात्र हैं. सामान्य छात्रों की तरह ही रेहान को भी अगली कक्षा में जाने पर नई किताबें मिलने का इंतज़ार था. लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन्हें नई किताब मिल सके. रेहान तीन भाई-बहन हैं जिनका पालन-पोषण उनकी मां अकेले कर रही हैं.
रेहान की मां दूसरों के घरों में खाना बनाकर अपने तीनों बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रही हैं. रेहान की बड़ी बहन मुस्कान कहती हैं “मां की तबियत ख़राब रहती है. लेकिन फिर भी वो काम पर जाती हैं. जो भी पैसे मिलते हैं उनसे हम तीनों भाई बहन को पढ़ाती हैं. अभी जब रेहान की किताबें ख़रीदने की बारी आई तो मैंने उसे अपनी पुरानी किताबें दे दी. क्योंकि पैसे नहीं रहने पर मां अपनी दवाई नहीं खरीदती हैं.”
वहीं रेहान ने बातचीत में बताया कि उन्हें नई किताबें लेने का मन था. क्योंकि सिलेबस में हुए बदलाव के कारण कई नए टॉपिक पुरानी किताबों में नहीं है. दरअसल, रेहान के पास सत्र 2020-21 की किताबें हैं. ऐसे में उस टॉपिक के लिए उन्हें दूसरों से किताबें मांगनी पड़ती हैं. रेहान के पास कई विषयों जैसे- केमिस्ट्री, इंग्लिश और इकोनॉमिक्स की किताबें भी नहीं हैं.
रेहान की तरह ही कमला नेहरु नगर बस्ती में रहने वाले दसवीं के छात्र रोहित कुमार के पास भी किताबें नहीं हैं. आठ भाई बहनों में केवल रोहित पढ़ाई कर रहे हैं. क्योंकि बस्ती के माहौल और परिवार की स्थिति ने बाकि भाई बहनों को पढ़ाई से दूर कर दिया.
शिक्षा का निजीकरण: गरीबों को पढ़ाई से दूर करने की कोशिश
दसवीं कक्षा में पढ़ने वाला मनीष कुमार कमला नेहरु नगर बस्ती में रहते हैं. मनीष के पिता रेलवे स्टेशन पर दुकान लगाकर चार बच्चों को शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन बदहाल हो चुके सरकारी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था और निजी संस्थानों की मंहगी हो चुकी शिक्षा व्यवस्था गरीबों के बच्चे को शिक्षा से वंचित कर रही है.
डेमोक्रेटिक चरखा से बातचीत में मनीष बताते हैं “मेरे क्लास में 50 से ज़्यादा बच्चे हैं लेकिन 4-5 बच्चों के पास ही नई किताब होगी. बाकी दसवीं पास करने वाले सीनियर से किताबें मांगते हैं. या बस्ती के बगल में यारपुर में अपनी पुरानी किताब बेचकर गांधी मैदान से सेकंडहैंड बुक खरीदते हैं.”
स्कूल के बाद मनीष निजी कोचिंग संस्थान में पढ़ाई करने जाते हैं. उनके कक्षा के अधिकांश बच्चे कोचिंग में पढ़ते हैं. क्योंकि स्कूल में उस स्तर की पढ़ाई नहीं होती है. छात्र बतातें में स्कूल कुछ विषयों के शिक्षक भी मौजूद नहीं हैं.
आर ब्लॉक बस्ती में ही रहने वाले समीर नौवीं कक्षा के छात्र हैं. चार भाई बहनों में सबसे छोटे समीर के पिता प्राइवेट संस्थान में काम करते हैं. लेकिन चाहते हैं बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करें. समीर की मां खुशबू कुमारी बताती हैं “प्राइवेट काम से चार बच्चों को पढ़ाना आसान नहीं है. कभी किसी की किताब, किसी का जूता, किसी को ड्रेस तो किसी की फ़ीस चाहिए. इसीलिए पांचवी-छठी के बाद सबकों सरकारी स्कूल में डाल दिए. लेकिन सरकारी स्कूल के भरोसे नहीं रह सकते इसलिए सबको कोचिंग भेजते हैं.”
सरकारी स्कूलों की स्थापना जिस उद्देश्य के साथ की गई थी आज समाप्त हो चुकी है. वर्तमान में गरीब परिवार भी अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए कोचिंग संस्थानों में फ़ीस भरते हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 38 जिलों में 12,761 कोचिंग संस्थान हैं, जिनमें 9.9 लाख से अधिक छात्र नामांकित हैं.
"ऐसी कोई योजना है ही नहीं"- जिला शिक्षा पदाधिकारी
शिक्षा विभाग के पूर्व अपर मुख्य सचिव केके पाठक के निर्देश पर बिहार शिक्षा परियोजना परिषद (बीईपी) ने इस वर्ष की शुरुआत में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक कक्षाओं के छात्रों को किताब देने का प्रस्ताव तैयार किया था. इस प्रस्ताव को 2024-25 के बजट आवंटन के लिए समग्र शिक्षा योजना के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड (PAB) के समक्ष रखा जाना था. इससे माध्यमिक और उच्च माध्यमिक कक्षाओं के करीब 40 लाख छात्र-छात्राओं को लाभ मिल सकता था.
पटना जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार से जब हमने इस संबंध में जानकारी मांगी तो उन्होंने बताया “मुफ़्त किताबें उपलब्ध कराने की योजना केवल प्रारंभिक कक्षाओं के छात्रों के लिए हैं. नौवीं से 12वीं के छात्रों के लिए ऐसी कोई योजना नहीं है. नौवीं से 12वीं के लिए बिहार टेक्स्टबुक जो किताबें उपलब्ध कराएगा वह स्कूल के लाइब्रेरी में रखी जाएंगी. बच्चे यहां से किताब लेकर पढ़ेंगे और वापस जमा करा देंगे.”
लाइब्रेरी में किताबों की जिस योजना की बात डीईओ करते हैं, वह राज्य के 75,286 प्राथमिक से उच्च माध्यमिक विद्यालयों के लिए हैं. जिसमें छात्रों को कोर्स बुक के अलावा कहानी, प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी की किताबें, विज्ञान, गणित और इतिहास की किताबें उपलब्ध कराई जाएंगी.
इसके अलावा शिक्षा विभाग की ओर से इनहांसमेंट प्रोफिसेंट (एलइपी) किट उपलब्ध कराई जा रही है. जिसमें नौवी व दसवीं कक्षा के प्रत्येक छात्रों को एक ज्योमेट्री बाक्स, एक एटलस, एक ग्राफ़बुक, तीन नोटबुक, पांच पीस पेन एक मिनी आक्सफोर्ड डिक्शनरी है. वहीं 11वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों को सामान्य ज्ञान की एक किताब, दो नोटबुक, एक रीजनिंग बुक एवं एक स्पोकेन इंग्लिश बुक दी जानी है. लेकिन ये किट भी बच्चों को अब तक नहीं मिली है.
समग्र शिक्षा प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड के समक्ष विभाग ने नौवीं से 12वीं में पढ़ने वाले 30,22,785 छात्रों के लिए राशि की मांग की थी लेकिन बोर्ड ने केवल 25 फ़ीसदी यानी 10,37,054 छात्रों के लिए राशि आवंटित की है. यह किट केवल उन्हीं छात्रों को मिलेगा जिनका विवरण आधार नंबर के साथ ई-शिक्षा कोष पोर्टल पर अपलोड है.