बिहार के सरकारी स्कूल की दयनीय स्थिति: भविष्य से खिलवाड़

एनसीईआरटी की एफएसएल रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के 19% सरकारी स्कूलों में आज भी बच्चों को पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता. कई स्कूलों में कुएं का पानी ही एक मात्र स्रोत है.

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नाजिश महताब
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बिहार के सरकारी स्कूल की दयनीय स्थिति: भविष्य से खिलवाड़

शिक्षा किसी भी समाज की रीढ़ होती है. लेकिन जब यह रीढ़ ख़ुद कमज़ोर हो, तो समाज का भविष्य कितना उज्ज्वल होगा, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है. बिहार के सरकारी स्कूलों की हालत देखकर यही सवाल उठता है कि क्या हमारे बच्चे सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पा रहे हैं? सरकारी दावों और हकीकत के बीच एक गहरी खाई नज़र आती है

बच्चों के साथ भेदभाव और अनदेखी 

एनसीईआरटी की एफएसएल रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के 19% सरकारी स्कूलों में आज भी बच्चों को पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता. कई स्कूलों में कुएं का पानी ही एक मात्र स्रोत है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. देशभर में 20% स्कूलों में अभी भी यही हाल है

79% स्कूलों में चापाकल की सुविधा मौजूद है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? रिपोर्ट बताती है कि 15% स्कूलों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग से पानी स्टोर कर उसे पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि 65% स्कूलों में नल का जल उपलब्ध है. परंतु यह जल स्वच्छ और शुद्ध है या नहीं, इस पर सवाल बना रहता है

बिहार के विद्यालय की ख़राब स्थिति

शिवानी कुमारी जो दूसरे कक्षा में पढ़ती हैं वो बताते हैं कि "स्कूल में सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है. भवन और कक्षा एकदम जर्जर है जिसके कारण स्कूल आने का मन नहीं करता. हमें डर लगता है की कहीं भवन हमारे ऊपर गिर जाए. पानी की व्यवस्था की अच्छी नहीं है. हमने कई बार इसकी शिकायत की है."

विद्यालयों की जर्जर हालत: डर के साए में पढ़ाई 

बिहार के कई सरकारी विद्यालयों की इमारतें इतनी जर्जर हो चुकी हैं कि वहां पढ़ने वाले बच्चों की जिंदगी खतरे में है. हलसी प्रखंड के बेला महरथ गांव का सरकारी मध्य विद्यालय इसका एक उदाहरण है

यह विद्यालय 1953 में बना था, और अब इसकी छतों पर घास उग आई है. बरसात के दिनों में छत से पानी टपकता है, दीवारें कमजोर हो चुकी हैं, और प्लास्टर गिरने से बच्चों और शिक्षकों की जान को हमेशा खतरा बना रहता है

रोशनी (बदला हुआ नाम) कक्षा 8 में पढ़ती है. जब हमने उनसे इस विषय पर बात को तो उन्होंने बताया कि "भवन काफ़ी पुराना है. इतना पुराना की छत पर घास तक उग चुका है. बारिश होती है तो कक्षा में पानी भर जाता है.हर दिन डर लगा रहता है की कहीं छत गिर जाए. हमने कई बार शिकायत की है लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ."

स्कूल का गोदाम

विद्यालय के प्रधानाध्यापक राजकुमार बताते हैं कि यहां कुल 226 छात्र-छात्राएं नामांकित हैं, लेकिन कक्षाओं की संख्या इतनी कम है कि पहली से आठवीं तक के बच्चों को तीन ही कमरों में पढ़ाया जाता है. इनमें से एक कमरा कार्यालय के रूप में उपयोग किया जाता है. जर्जर कमरे को स्टोर रूम और रसोईघर के रूप में इस्तेमाल करना पड़ता है, लेकिन इसकी हालत इतनी खराब है कि कभी भी हादसा हो सकता है. बरसात के समय में छत से पानी टपकने के कारण स्टोर रूम रखा मध्यान्ह भोजन का चावल एवं बेंच डेस्क भी सड़ जाता है.

गया जिले के टेकरी प्रखंड की दयनीय स्थिति

गया जिले के टेकरी प्रखंड में दरियापुर के प्राथमिक विद्यालय  बेहद जर्जर हालत में है. यहां पढ़ने वाले बच्चे स्कूल आने से डरते हैं. सवाल उठता है कि जब शिक्षा का मंदिर ही असुरक्षित हो, तो माता-पिता अपने बच्चों को वहां भेजने का साहस कैसे करें?

मोहित कुमार दरियापुर गांव का एक होनहार बच्चा जो बड़ा होकर सरकारी अधिकारी बनना चाहता है, लेकिन ये विद्या की मंदिर उसके सपनों को कुचल रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस विद्यालय में मूलभूत सुविधाएं भी मौजूद नहीं है.

जब हमने मोहित से बात की तो उसने बताया कि "भवन जर्जर है और 1 भवन में पढ़ाई होती है अगर बारिश हो गई तो बाहर दरी पर बैठ कर पढ़ाई करनी पड़ती है. हमें हमेशा डर लगा रहता है की कहीं भवन गिर जाए. इतने सारे बच्चे हैं और शिक्षक भी बस एक है ऐसे में एक शिक्षक हर बच्चे पर किस तरह ध्यान देगा."

दरियापुर के सरकारी स्कूल में 2 कक्षा जर्जर है वहीं 1 ठीक है. ऐसे में बच्चों को काफ़ी समस्याओं से गुज़रना पड़ता है. स्कूल में पूरे 209 बच्चों के नामांकन हैं वहीं शिक्षक की संख्या मात्र एक है

सरकारी प्रयास और हकीकत

16 जनवरी 2025 को खबर आई कि सरकार ने 78 करोड़ रुपये की राशि जारी की है, जिसमें 14 करोड़ रुपये प्राथमिक विद्यालयों की बाउंड्री वॉल के लिए, 19 करोड़ आधारभूत संरचना के निर्माण के लिए, और 45 करोड़ रुपये माध्यमिक उच्च माध्यमिक विद्यालयों के विकास के लिए हैं. लेकिन क्या यह राशि इन जर्जर विद्यालयों को सुरक्षित बना पाएगी

तकनीकी शिक्षा से वंचित बच्चे

शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करना होता है, लेकिन जब तक वे तकनीकी रूप से सक्षम नहीं होंगे, तब तक वे आधुनिक युग की चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे

यूडायस रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में बिहार के केवल 11.6% सरकारी स्कूलों में ही कंप्यूटर उपलब्ध हैं. इनमें से सिर्फ 10.9% विद्यालयों में कंप्यूटर वास्तव में कार्य कर रहे हैं. वहीं, निजी विद्यालयों में यह संख्या 68.3% है, जिसमें से 64.6% विद्यालयों में कंप्यूटर का उपयोग पढ़ाई के लिए किया जाता है. सरकारी और निजी विद्यालयों के बीच यह बड़ा अंतर यह दर्शाता है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को तकनीकी शिक्षा से दूर रखा जा रहा है, जिससे उनके भविष्य की संभावनाएं सीमित हो रही हैं

स्कूल की टूटी फर्श

120 बच्चों पर पांच शिक्षक होने चाहिए

शिक्षकों का वास्तविक आंकलन विद्यालय में कमरों की उपलब्धता के आधार पर किया जाता है.  कक्षा एक से पांच तक के विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या एक से 120 तक रहेगी तो वहां पांच शिक्षक रहेंगे. 121 से 150 की संख्या होने पर छह शिक्षक रहेंगे. 150 से अधिक प्रत्येक 40 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक बढ़ेंगे.

इसी प्रकार कक्षा छह से आठ के लिए एक से 105 विद्यार्थी पर विज्ञान एवं गणित के एक, सामाजिक अध्ययन के एक तथा हिन्दी और अंग्रेजी के एक-एक शिक्षक होंगे. आवश्यकतानुसार उर्दू और संस्कृत विषय के शिक्षक का प्रावधान किया जा सकता है. 105 से अधिक प्रत्येक 35 विद्यार्थी पर एक शिक्षक होंगे

जब हमने बच्चों के परिजनों से इस समस्या पर बात की तो उन्होंने बताया कि "सरकार जहां बड़े बड़े वादे करती है और दावे करती है की बिहार का सरकारी स्कूल दिल्ली जैसा है पेरिस जैसे है लेकिन यहां के स्कूलों में तो मूलभूत सुविधाएं तक नहीं है. कंप्यूटर तो दूर की बात है बच्चों को तो अच्छा भवन तक नसीब नहीं होता है . ऊपर से शिक्षक की कमी बहुत भयावह है. सरकार को चाहिए की सरकार इन सारे चीज़ों पर ध्यान दे और हमें बच्चों का भविष्य बेहतर करने में सहयोग करे. हम नहीं चाहते कि हमारा बच्चा भी मज़दूरी करे."

क्या होगा इन बच्चों का भविष्य?

बिहार के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे आमतौर पर गरीब और वंचित परिवारों से आते हैं. उनके माता-पिता महंगे निजी स्कूलों की फीस नहीं भर सकते. इन बच्चों का सपना भी डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक या शिक्षक बनने का होता है, लेकिन जब उन्हें बुनियादी सुविधाएं मिलती हैं, तकनीकी शिक्षा, तो वे प्रतियोगिता में पीछे रह जाते हैं

यह सिर्फ़ इन बच्चों की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज की समस्या है. जब हमारी आने वाली पीढ़ी शिक्षा से वंचित रह जाएगी, तो देश का विकास कैसे होगा? क्या केवल ऊंची इमारतें और हाईवे बनाना ही विकास है, या फिर देश के हर बच्चे को अच्छी शिक्षा देना भीरूरी है

बिहार के सरकारी स्कूलों की वर्तमान स्थिति किसी त्रासदी से कम नहीं है. यहां पढ़ने वाले बच्चे किसी सुविधा की मांग नहीं कर रहे, वे सिर्फ़ अपना हक मांग रहे हैं एक सुरक्षित स्कूल, स्वच्छ पानी, तकनीकी शिक्षा और एक उज्ज्वल भविष्य.  इस विषय पर जब हमने जिला शिक्षा अधिकारी से बात की तो लगातार कॉल करने के बावजूद हमारी उनसे बात नहीं हो पाई. लेकिन हम लगातार कोशिश करेंगे की इस समस्या का जल्द से जल्द निदान हो सके.

सरकार को चाहिए कि वह महज घोषणाएं करने के बजाय इन बच्चों के लिए ठोस कदम उठाए. जब तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को समान अवसर नहीं मिलेंगे, तब तक सामाजिक और आर्थिक असमानता बनी रहेगी. शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है. यह सिर्फ़ सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज का कर्तव्य है कि इन बच्चों को बेहतर भविष्य दिया जाए. क्योंकि अगर हम आज इनकी शिक्षा पर ध्यान नहीं देंगे, तो कल हमारा समाज और देश ही पिछड़ जाएगा.