कहां खर्च हो रहा है शिक्षा का पैसा, मिड डे मील में चावल का बजट नहीं

राज्य के 20 प्रतिशत स्कूलों में मिड डे मिल का बजट अपर्याप्त है, खासकर अंडे का बजट कम आता है. कई जगहों पर अंडे का ब्राह्मणवादी विरोध भी होता रहा है.

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कहां खर्च हो रहा है शिक्षा का पैसा, मिड डे मील में चावल का बजट नहीं

शिक्षा का पैसा, मिड डे मील में चावल का बजट नहीं

बिहार के अपर मुख्य शिक्षा सचिव के के पाठक बिहार के सरकारी स्कूलों में पिछले दो महीनों से लागातार निरीक्षण कर रहे हैं. जिस भी स्कूल में उनके जाने कि खबर आती है उस जगह पर सभी व्यवस्था को शुरू करा दिया जाता है.

देश में 1975 में बच्चों के बीच कुपोषण की समस्या को खत्म करने के लिए एकीकृत बाल विकास योजना प्रारंभिक बचपन का विकास कार्यक्रम (आईसीडीएस) शुरू किया गया था. जिसका उद्देश्य बच्चों में कुपोषण, स्वास्थ और युवा बच्चों, गर्भवती और नर्सिंग मां की विकास की आवाश्कता को पूरा करना था.

अंडा देने का सरकार के पास बजट नहीं

जन जागरण शक्ति संगठन के आशीष बताते हैं कि स्कूलों में मिड डे मिल में बच्चों को अंडा देना कई बार एक समस्या बन चुकी है. कई स्कूल धार्मिक पक्ष रखते हैं लेकिन बच्चों को अंडा चाहिए. पैसे के आभाव में बच्चें को बिस्कुट नहीं दिया जा रहा है. 

जन जागरण शक्ति संगठन की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 20 प्रतिशत स्कूलों में मिड डे मिल का बजट अपर्याप्त है, खासकर अंडे का बजट कम आता है. कई जगहों पर अंडे का ब्राह्मणवादी विरोध भी होता रहा है.

पटना के लोहिया नगर के रघुनाथपुर स्कूल के कक्षा 8 में पढ़ने वाले छात्र बताते हैं कि उनके स्कूल में पिछले 4 सालों से अंडा नहीं मिला है. सर कहते हैं कि अंडे से ज्यादा ताकत केले में होती है इसलिए हमें हर शुक्रवार को बस एक केला ही दिया जाता है.

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कई स्कूल में मंदिर हैं इस वजह से वहां अंडा नहीं मिलता
(Photo credit:- Priyansh Sinha and Rahul Malviya)

स्कूल की मनीषा बताती हैं कि उनके स्कूल में मिड डे मिल के निर्धारित मेन्यू के अनुसार कुछ भी नहीं मिलता. पिछले 25 अगस्त से हमें चावल ना होने की वजह से मिड डे मिल नहीं मिला है. वो सभी रोज घर से लंच ले कर आती हैं नहीं तो लंच में भूखे रह जाती हैं.

स्कूल के प्रधानाध्यापक अंकेश कुमार कहते हैं कि मिड डे मिल(mid day meal) में चावल ख़त्म होने की शिकायत बीआरपी को लगातार भेजी जा रही है मगर अभी तक चावल नहीं आया है. अंडा नहीं देने के सवाल पर अंकेश कहते हैं कि लॉकडाउन के पहले बच्चों को अंडा दिया जाता था मगर कोरोना के बाद से महंगाई बढ़ गई है तो हम अंडे की जगह बच्चों को फल दे रहे हैं.

अंकेश आगे कहते हैं कि कई जगहों पर स्कूल मंदिर में चलते हैं वहां भी अंडा नहीं दिया जाता है और अंडा कृत्रिम तरीके से बनाया जाता है जो सेहत के लिए भी अच्छा नहीं होता.

बैठने की जगह नहीं तो कैसे 100% होगी उपस्थिति दर

शिक्षा सचिव के के पाठक ने ने सभी सरकारी स्कूलों को आदेश दिया कि जिस भी स्कूल में बच्चे 15 दिन से ज्यादा से नहीं आ रहे है उनका नामांकन रद्द कर दिया जायेगा. जिसके तहत राज्य में अब तक 1 लाख बच्चों का नामांकन स्कूल ने रद्द कर दिया है. बीते दिन वैशाली के एक सरकारी स्कूल की छत्राओं ने इस आदेश का विरोध करते हुए प्रदर्शन किया और कहा कि स्कूल में बैठने के लिए बेंच नहीं होता तो स्कूल क्यों जायें और कहां बैठे? स्कूलों में बेंच और बैठने की सही व्यवस्था नहीं होने की वजह से कई बच्चें स्कूल नहीं आते.

बच्चों के पास बैठने की भी जगह नहीं है
बच्चों के पास बैठने की भी जगह नहीं है
(Photo credit:- Shashank Sinha and Harsh Raj)

अररिया के प्राथमिक विद्यालय संथाली टोला में बच्चे ठंड के दिनों में पतली बोरियों पर बैठेते हैं. क्लासरूम में कोई भी टेबल या कुर्सी नहीं लगी रहती है. एक फर्नीचर स्कूल के शिक्षक ने अपने पैसों से ख़रीदा था. ठीक यही स्थिति राजधानी पटना में है.

पटना के भारती मध्य विद्यालय की छात्रा मोहिनी बताती हैं कि एक बेंच पर पांच बच्चें बैठते हैं. क्लास में बैठने की भी जगह नहीं रहती है कई बच्चें ज़मीन पर दरी बिछा कर बैठते है. क्लास में कुल 110 बच्चे हैं जिसमें से 70 के करीब बच्चे रोज आते है.

विद्यालय के रवि सर(बदला हुआ नाम) बताते है “बच्चें तो पढ़ना चाहते हैं वो रोज क्लास भी आते हैं. लेकिन क्लास में बैठने की पर्याप्त जगह नहीं है. कुछ बच्चें जमीन पर दरी बिछा कर बैठते हैं. अगर व्यवस्था अच्छी दी जाये तो हमारे स्कूल में भी बच्चों की उपस्तिथि 100% होगी.” 

"जल्द ही व्यवस्था अच्छी होगी"- शिक्षा मंत्री

बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर बात करने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने शिक्षा मंत्री प्रो.चंद्रशेखर से बात की. उन्होंने कहा "बिहार की शिक्षा व्यवस्था हर दिन बेहतर हो रही है. बच्चों की संख्या बढ़ी है. सारी चीज़ें पहले से बेहतर हुई हैं. अब जो भी चीजें अधूरी बची हुई हैं उन्हें हम जल्द पूरा करेंगे."

बिहार में शिक्षा की बदहाल स्थिति 30-35 सालों में अधिक हुई है. जब राजधानी पटना के सरकारी स्कूल की स्थिति ऐसी है तो विचारनीय है कि बिहार के गांव में स्कूल की क्या स्थिति होगी.

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