बिहार में अक्सर बिजली चली जाती है या पोल पर से कोई न कोई समस्या सामने आती है. ऐसे में बिजली विभाग, बिजली मज़दूर को समस्या ठीक करने भेजती है. लेकिन बिहार में ऐसा कई बार हुआ है कि काम के दौरान बिजली मज़दूरों की करंट लगने से मौत हो जाती है.
नवादा के वारसलीगंज के दरियापुर गांव के संटू कुमार, जो बिजली मज़दूर थे, उनकी करंट लगने से मृत्यु हो गई. दूसरे मज़दूर बताते हैं कि
हम तीन आदमी थे. संटू काम कर रहा था. हम दो आदमी नीचे थे और इसी दौरान करंट आ गया और संटू की मौत हो गई.
दूसरे मज़दूर आगे बताते हैं कि
संटू को किसी तरह का सुरक्षा उपकरण नहीं मिला था जिसके वजह से काम से दौरान उसे करंट लगा
हालांकि यह घटना कुछ दिन पहले की है. लेकिन सोचने वाली बात ये है कि आख़िर बिजली मज़दूरों को सुरक्षा उपकरण क्यों नहीं मिल पाता है.
बिजली विभाग उड़ा रहा नियमावली की धज्जियां
भारत में इंडियन इलेक्ट्रिसिटी नियमावली 1956 लागू है. इसमें नियम संख्या 36 विद्युत कामगारों के सुरक्षा एवं बचाव की बात करता है. नियम 36 के अनुसार कोई भी कामगार यदि विद्युत लाइन अथवा बिजली से जुड़ा कोई कार्य कर रहा हो तो उसे रबर के जूते, दस्ताने, हेलमेट, हैंड लैंप, लाइन टेस्टर इत्यादि दिए जाने चाहिए.
यह एंप्लॉयर यानी कि जो उनसे यह कार्य ले रहा है. उसकी जिम्मेदारी बनती है कि यह सारे उपकरण उन्हें मुहैया करवाएं.
बड़ी-बड़ी कंपनियों में जैसे कि लिफ्ट बनाने वाली कंपनी शिंडलर, जनरेटर बनाने वाली कंपनी किरोलस्कर या रिलायंस पावर या अडानी पावर या फिर सरकारी विद्युत आपूर्ति संस्थान साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी इन सभी नियमों के अधीन आती है.
ड्यूटी के वक्त किसी भी अनहोनी होने पर लेबर लॉ के तहत ये कंपनियां ज़िम्मेदार होती हैं. इसके लिए हर कंपनी में बकायदा लेबर लॉ कंप्लायंस टीम काम करती है जिसमें वकील और बाकी के सुरक्षा विशेषज्ञ शामिल होते हैं.
बिहार स्टेट इलेक्ट्रिक सप्लाई वर्कर्स यूनियन के महासचिव भरत झा से जब हमने बात कि तो उन्होंने बताया कि
होल्डिंग कंपनी में निर्देश है कि कर्मचारियों को जूते, ग्लव्स और अन्य चीज़ें मुहैया कराई जाए. परंतु ऐसा होता नज़र नहीं आता है. बिजली मज़दूरों को कोई सुविधा नहीं मिलती है. वो अपने जान पर खेल कर काम करते हैं. कई बार बिजली कर्मचारियों की जान गई है लेकिन कोई भी देखने नहीं आता है.
पटना में काम करने वाले बिजली मज़दूर जिन्होंने नाम ना बताने के शर्त पर हमसे बात की. उन्होंने बताया कि
मैं पिछले 4 सालों से काम कर रहा हूं. मुझे काम करने में बहुत डर लगता है. हमें सुविधा के नाम पर ग्लव्स दे दिया जाता है लेकिन उतना काफ़ी नहीं है. हमारे लिए बहुत सारी चीज़ें हैं लेकिन हमें सारी चीज़ें मुहैय्या नहीं हो पाती है.
विभाग बच रहा सवालों से
हमने बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड के सीई (प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग) अभिजीत कुमार से बात की. जब हमने उनसे सुविधाओं के बारे में पूछा तो उन्होंने कॉल काट दिया. हमने दोबारा कोशिश की लेकिन हमारे कॉल का जवाब नहीं दिया गया.
फिर हमने एच आर बिपिन कुमार सिंह से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि ये हमारा डिपार्टमेंट नहीं. फिर हमने बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड के सीनियर लॉ एडवाइजर एस. एन. एल कर्ण को कॉल किया विभाग द्वारा दिए गए नंबर पर तो जवाब आया की गलत जगह कॉल लगा है.
बात सिर्फ़ कर्मचारियों के सुरक्षा की ही नहीं है इसी साल के जनवरी के महीने में बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी इंप्लॉयज एसोसिएशन ने धरना प्रदर्शन किया जिनका मांग था की जो भी टेक्निकल इंप्लॉयज हैं उनका वेतन 10% अधिक होना चाहिए और जो बिजली कर्मचारी हैं उन्हें समानजनक वेतन दी जाए.
जान जोख़िम में डालने के मिलते हैं बिजली मज़दूर को मात्र 8400 रूपए
वैशाली जिला के महुआ के एक गरीब परिवार से आने वाले अरुण बिजली कर्मचारी हैं. अरुण की शादी हो चुकी है और उनके 3 बच्चे हैं.
2 बच्चे की पढ़ाई चल रही है. अरुण को महीने का 8400 रूपया ही मिलता है. जब हमने अरुण से बात कि की वो किस तरह अपना घर चलाते हैं तो उन्होंने बताया कि
हमें काफ़ी परेशानियों से गुजरना पड़ता है. हमें मात्र 8400 रुपए वेतन मिलता है और 24 घंटे तक काम कराया जाता है और किसी भी तरह का सुरक्षा उपकरण नहीं मिलता.
अरुण आगे बताते हैं कि
चाहे बारिश हो या रात हमें किसी वक्त भी बुला लिया जाता है. मैं अपने परिवार का ठीक से ख्याल नहीं रख पाता हूं क्योंकि पैसा ही नहीं बच पाता.
बिहार में अगर न्यूनतम मज़दूरी की बात करें तो अकुशल कामगारों को 388 रुपए, अर्द्ध कुशल के लिए 403, कुशल के लिए 491 और अत्यधिक कुशल के लिए 600 रुपए तय की गई है. लेकिन बिहार सरकार ख़ुद अपने द्वारा तय किये गए न्यूनतम वेतनमान के नियम को लागू नहीं करती है.
लेकिन बिजली कर्मचारियों को एक दिन का मात्र 280 रूपया मिलता है जो की अकुशल कामगारों की न्यूनतम मजदूरी से भी कम है.
लेकिन आज भी बिजली कर्मचारियों को अपनी जान जोख़िम में डाल कर काम करना पड़ता है. इंडियन इलेक्ट्रिसिटी रूल्स 1956 के हिसाब से कर्मचारियों को जूते, दास्ताने देने की बात थी लेकिन सुरक्षा उपकरण ना मिलने की वजह से कई कर्मचारियों ने अपनी जान गंवाई है.