बिहार के हस्तशिल्पकार: कला की विरासत और संघर्ष की अनकही दास्तां

2019-20 की केंद्रीय सांख्यिकी एजेंसी की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में हस्तशिल्प क्षेत्र की वार्षिक आमदनी लगभग 2500 करोड़ रुपये के करीब है. बिहार में लगभग 4 लाख से अधिक लोग सीधे या परोक्ष रूप से हस्तशिल्प से जुड़े हैं.

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आमिर अब्बास
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मिथिला पेंटिंग का बना रिकॉर्ड

“मेरे हाथों में ये मिट्टी की खुशबू बसती है,” कहते हैं गया जिले के रमेश यादव, जो पीढ़ी दर पीढ़ी कुम्हारों के परिवार से आते हैं. पर आज ये खुशबू कहीं खोती जा रही है. मशीनीकरण और सस्ते उत्पादों के बाजार में उनके हुनर को ज़िंदा रखना आसान नहीं है.

रमेश के घर के बाहर रखे मिट्टी के बर्तन उनकी पुरानी मेहनत की गवाही देते हैं, पर उनकी बेटी पूजा (18) अब शहर जाकर पढ़ना चाहती है, क्योंकि घर में रोज़ाना की कमाई मुश्किल से चलती है.

कला से आजीविका तक — बिहार की हस्तशिल्प विरासत

बिहार की सांस्कृतिक पहचान में हस्तशिल्प कला का बड़ा हिस्सा है. मधुबनी की पेंटिंग, गया के कुम्हार, और पटना के तांबे के काम की कहानियां दशकों से घर-घर में सुनाई जाती रही हैं.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बिहार में लगभग 4 लाख से अधिक लोग सीधे या परोक्ष रूप से हस्तशिल्प से जुड़े हैं. 2019-20 की केंद्रीय सांख्यिकी एजेंसी की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में हस्तशिल्प क्षेत्र की वार्षिक आमदनी लगभग 2500 करोड़ रुपये के करीब है.

लेकिन ये आंकड़े छुपा देते हैं उन कारीगरों की ज़िंदगी के संघर्ष को जो हर दिन गरीबी, असमर्थता और आर्थिक अनिश्चितता से जूझ रहे हैं.

मशीनी दुनिया में हताश कुम्हार — रमेश की कहानी

रमेश कहते हैं, “पहले मिट्टी के बर्तन हमारी शान थे, शादी-समारोह में हर घर में हमारी चीजें होती थीं. लेकिन अब बाज़ार में प्लास्टिक और मशीन से बने सामान ने हमारी जगह ले ली है.”

उन्होंने पिछले साल अपने 12 साल के बेटे को पढ़ाई के लिए पटना भेजा. रमेश के लिए यह एक कड़वा फैसला था — क्यों कि उनकी आंखों के सामने जो काम चलता था, वो अब टिक नहीं रहा.

एक बुनकर की मजबूरी — गीता मांडल की ज़िंदगी

अररिया जिले के भीलवा गांव की गीता मांडल, 27 साल की युवती, बुनाई की पारंपरिक कला में माहिर हैं. पर गीता बताती हैं, “जब कपड़े सस्ते मिल रहे हैं, तब हमारे बुने हुए कपड़ों को लोग खरीदने से कतराते हैं. ये हमारे परिवार की आजीविका का मुख्य स्रोत है, फिर भी हमे अपनी कला के लिए सम्मान नहीं मिलता.”

गीता का परिवार पिछले तीन सालों में दो बार ऋण लेने पर मजबूर हुआ है. यह ऋण वे अपने उपकरण और कच्चा माल खरीदने के लिए लेते हैं.

सरकारी मदद: योजनाएं और हकीकत

केंद्र और बिहार सरकार ने हस्तशिल्पकारों के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं — कौशल विकास, सस्ते ऋण, मार्केटिंग सहायता.

लेकिन उनके लाभार्थियों तक पहुंचने की दर बहुत कम है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2023 में बिहार में हस्तशिल्पकारों के लिए कुल 150 करोड़ रुपये की योजनाएं थीं, जिनमें से केवल 30% राशि ही ज़मीनी स्तर पर प्रभावी रूप से उपयोग हुई.

पटना के ‘हाथों का जादू’ कार्यक्रम के आयोजक, प्रिया शर्मा बताती हैं, “मैंने कई बार देखा है कि सरकारी फंडिंग का पैकेज तो बड़े-बड़े शहरों में पहुंच जाता है, लेकिन गांव के कुम्हार, बुनकर तक वो पहुंचती ही नहीं. हमारे यहां 70% कारीगर सरकार की योजनाओं से वंचित हैं.”

राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार सर्वेक्षण 2023 के अनुसार, बिहार में हस्तशिल्प क्षेत्र से जुड़े युवाओं की संख्या पिछले पांच साल में 20% घट चुकी है. रोज़गार की कमी और कमाई के अंधकार में युवा शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं.

मधेपुरा के रामसागर ठाकुर की कहानी मन को झकझोर देती है. 55 वर्षीय रामसागर, जो मधुबनी पेंटिंग करते हैं, कहते हैं, “मेरी कला मेरे पूर्वजों से मिली विरासत है, लेकिन अब मैं इसे छोड़कर दूसरी नौकरी करने पर मजबूर हो गया हूं. मैं चाहता था कि मेरी बेटियां इस कला को आगे बढ़ाएं, पर वे कहती हैं कि ये काम कहीं भी उनका भविष्य नहीं बना सकता.”

आगे का रास्ता: क्या सुधार जरूरी हैं?

  • सरकारी योजनाओं की पारदर्शिता और पहुंच: गांव-गांव तक मदद पहुंचे, आवेदन प्रक्रिया आसान हो.

  • डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से व्यापक बाजार: कारीगरों को ऑनलाइन बेचने की ट्रेनिंग और प्लेटफॉर्म मुहैया कराना.

  • कौशल प्रशिक्षण और नवाचार: पारंपरिक कला में आधुनिकता का मिश्रण.

  • स्थानीय स्तर पर कला संरक्षण केंद्र: जहां नई पीढ़ी को कला सिखाई जाए.

  • सस्ता ऋण और वित्तीय सुरक्षा: जिससे कारीगर निवेश कर सकें.

विरासत की ज़िम्मेदारी हम सबकी

बिहार की हस्तशिल्प कला सिर्फ उत्पाद नहीं, बल्कि हज़ारों परिवारों की उम्मीद और जज़्बा है.यह कला हमें हमारी पहचान, इतिहास और संस्कृति से जोड़ती है.

अगर हमने आज इसके संरक्षक बनना है, तो केवल सरकारी नीतियां ही नहीं, बल्कि समाज की जागरूकता और सहयोग भी जरूरी है. तभी बिहार की कला और उसकी विरासत जीवित रह पाएगी.