अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन द्वारा जारी रिपोर्ट देश में युवा बेरोज़गारी को लेकर परेशान करने वाले आंकड़े सामने लेकर आया है. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि 25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं में बेरोज़गारी की दर 42.3% हो गयी है. वहीं 25 से 29 वर्ष के स्नातक (Graduate) या उच्च योग्यता (Post graduate) वाले युवाओं में बेरोज़गारी दर 22.8% है.
इसके बाद उच्च माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त यानी 12वीं पास 25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं में बेरोज़गारी दर सबसे ज़्यादा है. इनमें बेरोज़गरी दर 21.4% दर्ज की गई है. जबकि इसी आयु वर्ग के अनपढ़ युवाओं में बेरोज़गारी दर 13.5% है.
रिपोर्ट के मुताबिक देश में कोरोनाकाल यानी 2019-20 के दौरान बेरोज़गारी दर 8.8% थी, जो वित्तीय वर्ष 2021-22 में घटकर 7.5% और वित्तीय वर्ष 2022-23 में घटकर 6.6% हो गई है. साल दर साल बेरोज़गारी दर में कमी आने के बावजूद देश के पढ़े-लिखे युवाओं में बेरोज़गारी बढ़ी है. वहीं 25 साल से कम आयु वर्ग के अनपढ़ युवाओं में बेरोज़गारी दर 13.5% है. जिससे पता चलता है कि देश में पढ़े-लिखे युवकों के लिए रोज़गार के अवसर कम हुए हैं.
हालांकि रिपोर्ट बताती है कि 35 वर्ष और उससे अधिक आयु के स्नातकों में बेरोज़गारी दर पांच फीसदी से कम है. जिसका अर्थ यह हो सकता है कि उम्र बढ़ने के बाद युवा सामाजिक और आर्थिक मजबूरी के कारण व्यक्ति किसी भी तरह का काम करने को तैयार हो जाते हैं. दूसरी तरफ 40 वर्ष या उससे ज़्यादा उम्र के ग्रेजुएट लोगों में बेरोजगारी दर महज 1.6% दर्ज की गई है. इसी उम्र के अनपढ़ वर्ग में यह दर 2.4% दर्ज की गई.
क्या कौशल और अनुरूप के रोज़गार मौजूद है?
पटना यूनिवर्सिटी के शिक्षक प्रभाकर कहते हैं “सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि रोज़गार के अवसर किस सेक्टर में बढ़े हैं. ज़्यादातर नौकरियां सी सेक्टर जैसे- मॉल या रिटेल सेक्टर में आईं हैं. जिनमें पढ़े लिखे ग्रेजुएट युवा काम नहीं करना चाहते हैं. वो सरकारी नौकरी या इधर-उधर अच्छे काम की तलाश करते हैं. लेकिन 35 की उम्र के बाद बेरोजगारी दर में कमी का कारण कुछ और है. इनकी भागीदारी हमारी कुल आबादी में सबसे ज़्यादा है. लेकिन स्किल और गुणवत्ता की कमी के कारण उन्हें समझौता करना पड़ता है.”
रिपोर्ट में युवाओं को उनके कौशल और अपेक्षाओं के अनुरूप नौकरियों पर भी प्रश्न किया गया है. क्या वैसे युवा जो पढ़े लिखे हैं उन्हें उनकी क्षमता के अनुरूप काम मिल रहा है. हालांकि इसका जवाब इस रिपोर्ट में नहीं दिया गया है. रिपोर्ट कहती है कि यह महत्वपूर्ण विषय है, जिसपर और शोध करने की ज़रूरत है.
पटना एनआईटी के पास का क्षेत्र सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले छात्रों का गढ़ माना जाता है. इस इलाके में सरकारी नौकरी की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों का भी जमावड़ा है. लखीसराय के रहने वाले लक्ष्मीकांत यहां साल 2019 से रह रहे हैं. एसएससी की तैयारी करने वाले लक्ष्मीकांत बताते हैं, “2019 में पटना तैयारी करने आया था. तब से कई बार पीटी (प्रारंभिक परीक्षा) निकल जा रहा है लेकिन मेंस (mains) में रह जाता है. पीटी निकलने के कारण अगली बार फिर से फॉर्म भरने का मन करता है. जब तक फॉर्म भरने की उम्र है, तैयारी करना कैसे छोड़ दें.”
महिला बेरोज़गारी दर बिहार और राजस्थान में सबसे ज़्यादा
देश में महिला बेरोज़गारी दर बिहार और राजस्थान में सबसे ज़्यादा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि यहां महिलाओं को काम करने के लिए उस तरह का माहौल नहीं मिल पाता है जहां वो काम कर सके. बिहार समेत राजस्थान, उत्तराखंड, झारखंड और उत्तर प्रदेश उन राज्यों में शामिल हैं.
जहां शहरी महिलाओं की भागीदारी कार्यक्षेत्र में बहुत कम है. रिपोर्ट के अनुसार 2021-22 के दौरान शहरी क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं में बेरोज़गारी दर 9.9% थी. हालांकि 2017-18 की तुलना में इसमें 22% की कमी आई है. वहीं पुरुषों में यह आंकड़ा केवल 7.8% ही घटा था. इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं में इस दौरान बेरोज़गारी दर 4.5% दर्ज की गई. जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा महिलाओं से ज़्यादा 6.5% रहा.
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं आमतौर पर खेती के सीज़न में बाहरी कामों में ज़्यादा योगदान देती हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि खेती के समय में काम में लगी महिलाएं काम के दौरान भी बच्चों और घरेलू कामों में अपना समय ख़र्च करती हैं. जबकि पुरषों के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं आती है.
समाजसेवी प्रभाकर महिलाओं के कार्यक्षेत्र में कम भागीदारी को समाजिक ढांचे को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. प्रभाकर कहते हैं “महिला बेरोज़गारी दर का बड़ा कारण जेंडर असामनता है. लड़कियां पढ़ाई तो कर रहीं है लेकिन नौकरी करने के लिए तत्पर नहीं है. वहीं वर्क सेक्टर में भी महिलाओं को पुरुषों से कम दर्जा मिलता है. समाज भी महिलाओं को पुरुषों से कम आंकता है."
रिपोर्ट बताती है कि समय के साथ महिलाओं और पुरुषों की आय के बीच अंतर घट रहा है. आंकड़ों के अनुसार 2004 में, जहां महिलाओं का वेतन पुरुषों के वेतन का केवल 70% था. वहीं 2017 में यह अंतर बढ़कर 76% हो गया है. हालांकि साल 2021-22 तक इन आंकड़ों कोई बदलाव नहीं हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया कि वैसी महिलाओं के काम करने की संभावना कम हो जाती है जिनके पति की आय ज़्यादा हो. हालांकि शहरी क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं के लिए इस स्थिति में संभावनाएं बढ़ जाती हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘पति की आय प्रति माह 40 हज़ार रूपए से अधिक होने पर, पत्नी के फिर से काम करने की संभावना कहीं ज्यादा बढ़ जाती है.’ बिहार में लोगों को सामान्य तौर पर 9,449 रूपए वेतन दिया जाता है. जबकि अपना रोज़गार चलाने वाले लोग महीने में लगभग 11 हज़ार रूपए कमा लेते हैं.