मगध विश्वविद्यालय में रुका वोकेशनल कोर्स का दाख़िला, छात्रों की परेशानी बढ़ी

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मगध विश्वविद्यालय में रुका वोकेशनल कोर्स का दाख़िला, छात्रों की परेशानी बढ़ी
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मगध विश्वविद्यालय ने स्नातक स्तरीय वोकेशनल पाठ्यक्रमों में दाखिले पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है. इस संबंध में कुलसचिव ने कार्यालय आदेश जारी करते हुए कहा है कि सिंडिकेट व सीनेट में लिए गए निर्णय के आलोक में स्नातक वोकेशनल पाठ्यक्रम सत्र 2022-25 व 2022-26 में तब तक नामांकन नहीं होगा, जब तक सरकार से सीटों का निर्धारण नहीं हो जाता है.

मगध विवि में अब तक सरकार से सीटों का निर्धारण होने की उम्मीद में ही में नामांकन एवं  परीक्षा होता रहा है. कुलसचिव ने स्नातकोत्तर विभागाध्यक्षों, अंगीभूत कॉलेज के प्राचार्यों को वोकेशनल पाठ्यक्रम संचालन की अनुमति का आदेश, शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की सूची, उनका आधार संख्या व उससे जुरे बैंक खाता की भी जानकारी मांगी है. पाठ्यक्रम से संबंधित आधारभूत संरचना कि उपलब्धता की भी जानकारी मांगी गई है.

साथ ही कुलसचिव ने कोर्स संचालकों से पूर्व में निर्धारित कॉपर्स फण्ड की राशि का 20 प्रतिशत विश्विद्यालय में जमा करने संबंधी कागजात भी मांगे हैं. साथ ही यदि विभाग द्वारा यदि यह राशि अभी नही जमा की गयी है तो उसे तत्काल विश्विद्यालय फण्ड में जमा करने का भी निर्देश दिया है.

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जब तक पाठ्यक्रम संचालन को अनुमति पत्र नहीं मिल जाता है, तब तक किसी भी हाल में नामांकन नहीं लेने का निर्देश दिया गया है. साल 2008 से स्व- वित्त पोषित वोकेशनल विभागों की शुरुआत हुई थी और पिछले 14 सालों में भी कागजी कार्रवाई पूरी नहीं हो सकी थी.

वहीं कुछ वोकेशनल पाठ्यक्रमों के संचालकों का कहना है, चार-पांच साल पहले निर्धारित प्रपत्र में सभी जानकारी विश्विद्यालय में जमा की गई थी. विश्वविद्यालय की लापरवाही का खामियाजा उनको और छात्रों को भुगतना होगा.

मगध विश्वविद्यालय में सत्र में देरी की समस्या लंबे अरसे से चली आ रही है, बीए पार्ट-वन और वोकेशनल कोर्स में तीन-तीन बैच का एडमिशन हो चुका है. पर एक कि भी परीक्षा नहीं हुई और जो परीक्षा हुई भी है, उसका रिजल्ट जारी नहीं किया गया, जिससे लाखों छात्र प्रभावित हैं. वहीं नामांकन के लिए छात्र विभाग पहुंचकर जानकारी ले रहे हैं. वोकेशनल कोर्स के विभागाध्यक्ष और छात्र नेता इस स्थिति के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन को जिम्मेवार बता रहे हैं.

वजीरगंज महाविद्यालय, वजीरगंज में पढने वाले छात्र सुधांशु भारद्वाज बताते हैं

मैंने साल 2019 में इतिहास में स्नातक के लिए इस कॉलेज में नामांकन लिया था. लेकिन अभी तक मैं पार्ट-वन में ही हूं. रजिस्ट्रेशन हुआ था लेकिन परीक्षा की तिथि आज तक घोषित नहीं हुआ है. कल हमलोगों ने प्रिंसिपल ऑफिस का घेराव भी किया था. यहां न तो समय से परीक्षा ली जाती है, न ही समय पर रिजल्ट दिया जाता है. छात्रों का भविष्य अंधेरे में चला गया है. जब से यहां राजेंद्र प्रसाद कुलपति बने यूनिवर्सिटी को और गर्त में डाल दिया. इससे दुर्भाग्य की बात क्या होगी कि इतने बड़े यूनिवर्सिटी के सीनेट की बैठक दूसरे यूनिवर्सिटी (ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी) में होता है.

मगध विश्वविद्यालय कैंपस के अलावे इसके अंदर आने वाले विभिन्न कॉलेजों में वोकेशनल कोर्स चल रहा है, जिसमें करीब छह हजार से ज्यादा छात्र नामांकन लेते हैं. लेकिन इस साल वोकेशनल कोर्स में रोक लगने के कारण छात्रों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा.

वोकेसनल कोर्स में नामांकन पर रोक के सवाल पर सुधांशु कहते हैं

अच्छा हुआ है रोक लग गया है. ऐसे नामांकन लेकर क्या होता है? तीन साल का कोर्स पांच साल में पूरा होता है. कोई विशेष सुविधा भी कॉलेज में नहीं है इन कोर्सो के लिए. थोड़ी परेशानी तो होगी छात्रों को लेकिन किसी अन्य विश्विद्यालय में नामांकन लेकर वो अपना भविष्य बना सकते हैं. यहां उनका भविष्य अंधेरे में ही रहता. अभी वोकेशनल कोर्स में नामांकन को लेकर अनुग्रह मेमोरियल कॉलेज, गया में छात्रों ने हंगामा किया था. रोज किसी न किसी कॉलेज में हंगामा होता है.

इस मामले में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र नेता ने का कहना है, बिहार के कई विश्वविद्यालयों में नामांकन की प्रक्रिया शुरू भी हो गई है. लेकिन मगध विश्वविद्यालय में अभी तक इसके लिए कोई तैयारी नहीं दिख रही है. जिससे छात्रों का भविष्य अधर में लटकता हुआ दिख रहा है. मगध विश्वविद्यालय का सत्र वैसे ही बिल्कुल अनियमित रहता है. लेकिन विश्वविद्यालय इसे सुधारने के बजाय इस पर पर्दा डालने का प्रयास करता है. एमयू द्वारा ऐसे सत्र का परीक्षा कैलेंडर जारी कर दिया जाता है जिस सत्र के छात्रों का अभी तक पंजीयन भी नहीं हुआ है. छात्रों का परीक्षा फॉर्म भी नहीं भरा गया है. पूरी तरह से छात्रों को मूर्ख बनाने जैसा कार्य विश्वविद्यालय के द्वारा किया जाता है.

बिहार में विश्वविद्यालयों में छात्र-छात्राओं को तीन साल की डिग्री पांच साल में मिल रही है. ज्यादातर विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक कैलेंडर बेपटरी है. सत्र नियमित करने को विश्वविद्यालयों में गठित कमेटी भी इसे लेकर गंभीर नही है. पूर्व राष्ट्रपति सह उस समय के कुलाधिपति रामनाथ कोविंद के समय सत्र नियमित करने के लिए कुलपतियों की कमिटी बनी थी.

प्रत्येक माह कुलपतियों की बैठक होने से कुछ विश्वविद्यालयों का सत्र नियमित होने लगा था पर कोरोना काल में सभी व्यवस्था फिर से ध्वस्त हो गयी. अभी कई विश्वविद्यालयों में सत्र छह महीने से लेकर दो साल तक विलंब चल रहा है. पूर्व कुलाधिपति डॉ. डीवाई पाटिल के समय सभी विवि की परीक्षाएं एक साथ कराने के लिए एक कमेटी गठित की गई थी, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका.