वायु प्रदूषण: विकास की गति में हवा हुई ज़हरीली, सांस की बीमारी बढ़ी

नवंबर के दूसरे सप्ताह में ही राजधानी पटना सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों की सूची में दूसरे स्थान पर था. इस दौरान पटना का एक्यूआई 340 दर्ज किया गया था.

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बिहार में बढ़ा वायु प्रदूषण का जिम्मेदार कौन? कैसे कर सकते हैं बचाव?

ठंड की शुरुआत और वायु प्रदूषण का बढ़ना अब हर आने वाले साल की नियति बन गया है. अब एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) के लाल निशान लोगों को अचंभित नहीं कर रहे हैं. क्योंकि जैसे-जैसे सर्दियां बढ़ती है शहरों में एक्यूआई का इंडेक्स बढ़ जाता है. देश में राजधानी दिल्ली के बाद बिहार के शहरों ने एयर क्वालिटी इंडेक्स में अपनी जगह बनाई हुई है. अभी नवंबर के दूसरे सप्ताह में ही राजधानी पटना सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों की सूची में दूसरे स्थान पर था. इस दौरान पटना का एक्यूआई 340 दर्ज किया गया था. वहीं पटना को पीछे छोड़ते हुए हाजीपुर ‘427’ एक्यूआई के साथ इस लिस्ट में शीर्ष पर पहुंच गया था.

बिहार में वायु प्रदुषण की यह स्थिति तब है जब राज्य सरकार और बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (BSPCB) इस पर नियंत्रण लगाने के लिए ज़रूरी कदम उठाए जाने की बात कहता रहता है. इसी क्रम में दीपावली एवं छठ के दौरान पटाखे के बिक्री और आतिशबाजी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना भी शामिल था. इस दौरान राजधानी पटना समेत गया, हाजीपुर एवं मुज़फ़्फ़रपुर में किसी तरह के पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगाया गया था. लेकिन इन कागज़ी आदेशों और नियमों का पालन प्रशासन किस तरह करती यह हम सभी प्रत्येक वर्ष देख ही रहे हैं.

केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (CPCB) द्वारा 29 नवंबर को जारी हुए शहरों के एयर क्वालिटी इंडेक्स के अनुसार बिहार के सभी शहरों (जहां एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन लगे हैं) की हवा की गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में पाए गये हैं. इसमें बिहार का हाजीपुर (312) राजधानी दिल्ली (331) के बाद देश का दूसरा सबसे अधिक वायु प्रदूषित शहर था.

वहीं राजधानी पटना का एक्यूआई 253, सासाराम (258), बेगूसराय (249) और समस्तीपुर का एक्यूआई (237) रहा.

क्या है वायु प्रदुषण का कारण?

बिहार के लगभग शहर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं. लेकिन पटना, बेगूसराय और हाजीपुर जैसे शहरों की स्तिथि बेहद गंभीर है. कारण है, इन शहरों में तेजी से होता विकास कार्य. शहरों के बीचों-बीच बड़े-बड़े कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट जैसे- मेट्रो निर्माण, पुल निर्माण, सड़कों का चौड़ीकरण, नए सड़कों का निर्माण और बड़े भवनों के निर्माण कार्य तेजी से हो रहे हैं. राज्य के अधिकांश शहरों में आवासीय इमारतों, वाणिज्यिक भवनों जैसे शोपिंग मॉल, कॉम्प्लेक्सों आदि के निर्माण में तेज़ी आई है.

लेकिन इन निर्माण कार्यों के दौरान प्रदूषण नियंत्रण के मानकों का ध्यान नहीं रखा जा रहा है. धूलकण रोकने के लिए कंस्ट्रक्शन साइट को हरे कपड़े से ढंका जाना ज़रूरी है, लेकिन यह नहीं किया जाता है. और ना ही विभाग इसकी निगरानी करता है. यही कारण है कि निर्माण कार्य भारत के शहरों में प्रदूषण का तीसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है.

इन निर्माणस्थलों से निकलने वाले मलबे और धूलकण जिनमें तरह-तरह के केमिकल्स मिले हो सकते हैं, बड़ी मात्रा में हवा में घुलकर उसे जानलेवा बना रही हैं. इन हवाओं में सांस लेने से फेफड़ों में संक्रमण और सांस लेने में तकलीफ़ जैसी समस्याएं हो रही हैं.

शहरों में बढ़ते कंस्ट्रक्शन को डॉ शकील डेवलपमेंट का भयावह परिणाम बताते हैं. उनका कहना है, वायुमंडल में व्याप्त कोई भी प्रदूषण डेवलपमेंट का ही नतीजा है. जैसे-जैसे विकास की गति बढ़ेगी प्रदूषण भी बढेगा.

डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए डॉ शकील कहते हैं “पिछले कई साल से पटना में सरकारी और निजी कंस्ट्रक्शन का काम बहुत तेजी से हो रहा है. एक ही इलाके में मेट्रो कंस्ट्रक्शन, फ्लाईओवर, सड़क निर्माण और भवन निर्माण जैसे कार्य एक साथ हो रहे हैं. और इसकी निगरानी किस तरह की जा रही है वह भी हम देख रहे हैं.”

पटना का AQI

पटना नगर निगम भी मानता है कि विभिन्न निर्माणएजेन्सियों द्वारा निगम क्षेत्रें में हो रहे सरकारी और निजी निर्माण कार्यों में नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. पटना नगर निगम की पीआरओ स्वेता भास्कर इसपर कहती हैं “पीएमसी द्वारा शहर के विभिन्न अंचल में निर्माणाधीन भवनों को चेकलिस्ट दिया जा रहा है. इन भवनों से सुनिश्चित किया जा रहा है कि उनके निर्माणस्थल पर नियमों का पालन किया जाए. हमने निर्माण एजेंसियों और भवन मालिकों को चेकलिस्ट भी दिया है अगर उसका पालन नहीं किया जाएगा तो पटना नगर निगम द्वारा निर्माण एजेंसी चाहे वह सरकारी हो या गैरसरकारी उनपर बिल्डिंग बायलॉज के तहत जुर्माना लगाया जाएगा.”

पटना नगर निगम द्वारा दिया गया चेकलिस्ट:

 •    निर्माण स्थल पर निरंतर (02-03 घंटे के अंतराल पर) पानी के छिडकाव की समुचित व्यवस्था की जाए.

•    कार्य स्थल के नजदीक के सम्पर्क पथ को धूल रहित किया जाय तथा छिडकाव कार्यो के संबंध में एक लॉग बुक निर्माण स्थल पर तैयार किया जाए.

•    निर्माणाधीन क्षेत्रफल में ग्रीन मेस कवर लगाया जाए.

•    निर्माणाधीन स्थल में रखे निर्माण सामग्रियों को भी ग्रीन मेस कवर से ढंका जाए.

•    निर्माण स्थल पर उत्पन्न होने वाले मलबे और कचरे का समय पर सुरक्षित निपटान किया जाए. वही मलबे के सुरक्षित निस्तारण के लिए नगर निगम की भी मदद ली जा सकती है.

•    निर्माण कार्य के लिए आवश्यक सामाग्रियों का परिवहन पूर्णरूपेण ढंके हुए अवस्था में ही सुनिश्चित करवाया जाए.

इसके अलावा पीएमसी निगम क्षेत्र में निरंतर स्प्रिंकलर मशीन द्वारा पानी के छिड़काव का दावा कर रहा है. लेकिन इन उपायों का असर शहर की हवा पर ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जितना ही नजर आ रहा है.

पीएम 10 की मात्रा में वृद्धि

दिल्ली के इंटरनेशनल फॉरम फॉर एनवायरमेंट सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आईफॉरेस्ट) द्वारा पटना के वायु प्रदूषण को लेकर जारी एनालिसिस रिपोर्ट के अनुसार बीते तीन वर्षों में पटना शहर में पीएम 10 की मात्रा में 33 फीसदी की वृद्धि हुई है. रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में जहां पीएम 10 का स्तर 153.7 प्रतिशत प्रति घन माइक्रोमीटर था वह 2023 में बढ़कर 210.1 प्रति घन माइक्रोमीटर हो गया है. यह दिल्ली की हवा में मौजूद पीएम 10 (205 प्रति घन माइक्रोमीटर) की मात्रा से भी अधिक है.

वहीं पीएम 2.5 की मात्रा में भी 18 फीसदी की वृद्धि हुई है. 2021 में जहां इसकी मात्रा 74.2 प्रति घन माइक्रोमीटर दर्ज की गई थी वह 2023 में बढ़कर 88.8 प्रति घन माइक्रोमीटर हो गया है.

इस अध्ययन के दौरान पाया गया कि दिसंबर और जनवरी माह में पीएम 10 और पीएम 2.5 की सांद्रता बढ़ जाती है. वहीं अप्रैल और मई महीने के दौरान SO2 और ओज़ोन गैस की मात्रा हवा में बढ़ी रहती है.

बिहार की हवा हो रही है खराब, वायु प्रदूषण से सांस के मरीजों की संख्या बढ़ी

प्रदूषित हवा का मुख्य अवयव इसमें शामिल पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) होते है जो प्रदूषित हवा के साथ हमारे फेफड़े में पहुंच जाता है. यदि पीएम 2.5 और पीएम 10 के कण हमारे फेफड़े के अंदर जाता है तो यह खतरे का कारण बन सकता है. पीएम का मतलब होता पार्टिकुलेट मैटर और 2.5 और 10 इस मैटर या कण का आकार होता है. दिखने वाली धूल हमारे नाक में घुसकर म्यूकस में मिल जाती है, जिसे धोकर साफ़ कर सकते हैं, लेकिन पार्टिकुलेट मैटर 2.5 और 10 का आकार इतना छोटा होता है कि यह धीरे-धीरे हमारे फेफड़ों के अंदर बैठता चला जाता है. और यह हमारी बॉडी के नेचुरल फिल्टरेशन प्रोसेस से भी बाहर नहीं निकलता है. 

शहरों में पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा बढ़ने के कई कारण है जैसे- उद्योगों से निकल रहा प्रदूषण, अपशिष्ट पदार्थों का अनुचित निस्तारण, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, असुरक्षित तरीके से किया जा रहा कंस्ट्रक्शन आदि.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में लगभग 70 लाख लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण समय से पहले मर रहे हैं. आईसीएमआर द्वारा ज़ारी एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में भारत में वायु प्रदूषण की वजह से 16.7 लाख लोगों की मौत हुई थी. रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण फेफड़ों से जुड़ी 40 फ़ीसदी बीमारियों के लिए ज़िम्मेदार हैं. वहीं इस्केमिक हार्ट डिजी, स्ट्रोक, डायबिटीज़ और समय से पहले पैदा होने वाले नवजात बच्चों की मौत के लिए भी वायु प्रदूषण 60 फ़ीसदी तक ज़िम्मेदार है.

रिसर्च द्वारा एकत्र किए जा रहे आंकड़े बता रहे हैं कि वायु प्रदूषण भविष्य में कितने गंभीर परिणाम दे सकता है. लेकिन प्रशासन अभी भी इसके प्रभाव को कम करने की दिशा में गंभीरता से प्रयास नहीं कर रहा है. और न ही आम जनमानस इसके परिणामों को लेकर गंभीर नजर आता है.

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