नया रोजगार योजना: अगर सरकार चाहे तो 'पौधा उद्योग' से मिलेगी कई नौकरियां

शहरों में छोटे-छोटे पौधों की मांग को पूरा करने में नर्सरी संचालक काफी सहायक बनते है. इससे ना केवल लोगों की जरूरतें पूरी होती हैं, बल्कि नर्सरी संचालकों की भी अच्छी कमाई हो जाती है.

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नया रोजगार: अगर सरकार चाहे तो पौधा उद्योग से मिलेगी कई नौकरियां

नर्सरी में मुन्ना भारती

पौधे लगाने और बेचने का चलन इन दिनों शहरों में काफी देखने को मिल रहा है. बढ़ते शहरीकरण के दौर में प्रकृति और पौधे के बीच रहने का एक मात्र उपाय किचन गार्डन, रूफ गार्डन या बालकनी गार्डन ही है. शहर में रह रहे लोग जिनके पास प्रदूषण का घेरा है वो अपने आसपास छोटे-छोटे पौधे लगाकर प्रकृति को अपने पास बुला सकते हैं.

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10 सालों में राजधानी में बढ़ा नर्सरी का चलन

राजधानी पटना में पिछले 10 सालों में नर्सरी का कारोबार काफी बढ़ा है. मुन्ना भारती साल 2013 से कंकड़बाग के हनुमान नगर में नर्सरी चला रहे हैं. उनकी नर्सरी में 20 हजार के करीब पौधे हैं. मुन्ना कहते हैं हनुमान नगर में उनकी नर्सरी सबसे बड़ी है. नर्सरी चलाने के अपने अनुभव पर मुन्ना भारती कहते हैं “2013 से नर्सरी चला रहे हैं. जब बुडको के द्वारा पंप हाउस का निर्माण हुआ तो उन्होंने हमें अंदर खाली पड़े जमीन में हमें नर्सरी चलाने की जगह दे दी. अब हम पंप हाउस के देखभाल के साथ-साथ अपनी नर्सरी भी चलाते हैं. ठंढ़ के मौसम में फूलों वाले पौधे की मांग बढ़ जाती है क्योंकि इस मौसम में पौधे जल्दी फूल देते हैं.”

नर्सरी के लिए पौधे कहा से मंगाए जाते हैं, इस पर मुन्ना भारती कहते हैं, “हमलोग पौधे कलकत्ता, बंगलौर, पुणे, रांची, बनारस, सिक्किम और हाजीपुर से मंगाते हैं. पौधे की लंबाई के अनुसार हमें पैसे देने पड़ते हैं. एक टेम्पू पौधा मांगने का 30-35 हज़ार रूपया लगता है. अभी के मौसम में यह 10-15 दिनों में बिक जाता है.” 

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मुन्ना बताते हैं कि बिहार में केवल हाजीपुर से पौधों की मांग पूरी होती है. लेकिन हाजीपुर के किसान भी पौधे बाहरी राज्यों से ही मंगाते हैं. अगर सरकार यहां किसानों को जमीन उपलब्ध कराए तो पौधे मंगाने की लागत कम हो सकती है.

सरकार चाहे तो इन पौधों के व्यापार को बढ़ा सकती है

पढ़ाई के डर ने बनाया पौधों का जानकार 

शिक्षक की पिटाई से भागकर पटना आए रोहित कुमार पांच साल की उम्र से पौधे तैयार करने और उसकी देखभाल करने का हुनर सीखने लगे. पटना में रोहित के दादाजी एक नर्सरी(Nursery) में काम करते थे. रोहित भी उनके साथ नर्सरी में काम करने लगे. साल 2003 से रोहित अपनी खुद की नर्सरी चला रहे हैं.

डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए रोहित बताते हैं “पढ़ाई के डर से भागकर दादाजी के पास पटना आ गये थे. यहां उनसे नर्सरी का काम सीखे. फिर 2003 में 500 रुपया लगाकर पौधा बेचने का काम शुरू कर दिए. राजेंद्रनगर में एक डॉक्टर साहब ने अपने घर में जगह दिया था वहां अपना पहला दुकान खोले थे. फिर डॉक्टर साहब विदेश चले गये, उनका मकान बिक गया. वहां से दुकान हटा तो राजा बाजार चले गये. वहां भी स्थाई जगह नहीं मिला तो वापस कंकड़बाग आ गये. यहां वार्ड 44 के पार्षद ने कचरा पॉइंट वाला जगह मुझे दुकान के लिए दिया. अभी एक साल से कंकड़बाग में दुकान चला रहे हैं.” 

राहुल कुमार ने अपने मेहनत से सालों से कचरा पॉइंट बना हनुमान नगर का वह क्षेत्र आज फूलों और पौधों से सज़ा हुआ है. इससे ना केवल राहुल को रोजगार मिला बल्कि आसपास के लोगों को कचरे की बदबू से भी मुक्ति मिली है. रोहित कहते हैं अगर सरकार छोटे नर्सरी संचालकों के लिए योजना चलाती तो उनके जैसे लोगों को रोजगार बढ़ाने में मदद मिल जाता.

छोटे नर्सरी संचालकों के लिए नहीं है कोई योजना

छोटे नर्सरी संचालकों के लिए बिहार सरकार कौन सी योजना चला रही है इस पर पटना, जिला उद्यान अधिकारी अमरजीत कुमार कहते हैं “नर्सरी संचालकों के लिए कोई योजना नहीं है. क्योंकि नर्सरी लाइसेंसिंग की बिहार में अभी कोई सटीक योजना नहीं है. अभी जिले में कृषि पदाधिकारी लाइसेंसिंग अथोरिटी है. फ़िलहाल विभाग की सारी योजनाएं किसानों को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है.”

छोटे नर्सरी संचालकों के लिए नहीं है कोई योजना

अमरजीत राय बताते हैं “नर्सरी स्थापना के लिए योजना है. एक छोटी नर्सरी के लिए आपके पास एक हेक्टेयर की जमीन होनी चाहिए. नर्सरी बनाने में कम से कम साढ़े सात लाख तक का ख़र्च आता है. पहले इस योजना के तहत 50% की सब्सिडी दी जाती थी लेकिन अब इसे कमकर 35% कर दिया गया है. सब्सिडी लेने के लिए आवेदन करने वाले को सब्सिडी राशि के करीब की राशि बैंक से लोन करवाना ज़रूरी होता है.”

अभी शहर में जो भी नर्सरी चल रहे हैं उनमें ज़्यादातर एक कट्ठे में चल रहे हैं. यही कारण है कि इस योजना का लाभ उनतक नहीं पहुंच रहा है.

'छत पर बागवानी योजना' नहीं है मददगार 

उद्यान निदेशालय, बिहार भी शहरी बागवानी को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री बागवानी योजना का संचालन कर रहा है. इसके तहत शहर में रहने वाले वैसे लोग जो बागवानी में रूचि रखते हैं घर के छत पर फल, फूल और सब्ज़ी उगाने के लिए आर्थिक लाभ ले सकते हैं. राजधानी पटना समेत कुछ अन्य जिलों के लोग भी इस योजना का लाभ ले सकते हैं.

पटना ज़िले के पटना सदर, संपतचक, दानापुर और फुलवारी के लोग इस योजना का लाभ ले सकते हैं. वहीं गया ज़िले के गया शहरी, बोध गया, मानपुर, मुजफ्फरपुर जिले मुशहरी, कांटी, नालंदा ज़िले के बिहार शरीफ और भागलपुर जिले के जगदीशपुर, नाथनगर और सबौर ब्लॉक के लोग इस योजना का लाभ ले सकते हैं. 

योजना का लाभ लेने के लिए कुछ नियमों को पूरा करना आवश्यक है, जैसे- घर, अपार्टमेंट में फ्लैट या किसी भी तरह के अन्य संस्थान, जिसके छत पर 300 वर्ग फीट जगह है वे इस योजना के लिए आवेदन दे सकते हैं. खुद के मकान की स्थिति में छत पर 300 वर्ग फुट खाली जगह जो किसी भी आपत्ति से स्वतंत्र हो और अपार्टमेन्ट की स्थिति में अपार्टमेंट की पंजीकृत सोसाइटी से अनापत्ति प्रमाण-पत्र देना आवश्यक है.

आवेदनकर्ता को प्रति इकाई (300 वर्ग फीट) का इकाई लागत 50,000 रुपए पर 50% का अनुदान यानि 25,000 रुपये दिए जाते है. योजना में महिलाओं को 30%, अनुसूचित जाति को 16% और अनुसूचित जनजाति को 1% हिस्सेदारी सुनश्चित है.

हालांकि 300 वर्ग फुट का स्थान ज़्यादातर मकानों में ना होने के कारण लाभार्थियों को परेशानी होती है.

पटना जिला उद्यान अधिकारी अमरजीत कुमार राय कहते हैं “बागवानी योजना को वित्तीय वर्ष 2023-24 में बंद कर दिया गया है. अभी योजना में बदलाव किया जा रहा है. योजना को नए फॉर्म (रूप) में लाया जाना है जिसमें सब्सिडी बढ़ाया जाएगा. फ़िलहाल शहरों में बागवानी के लिए कोई योजना चल रही है या नहीं मुझे इसकी जानकारी नहीं है.”

New employment scheme plant industry Nursery