बिहार में बढ़ा वायु प्रदूषण का जिम्मेदार कौन? कैसे कर सकते हैं बचाव?

बिहार में वायु प्रदूषण के खतरों को कम करने के लिए पटाखों पर बैन लगाया गया था. लेकिन फिर भी पटाखों की बिक्री खुले आम हुई है. ऐसे में बिहार का एयर क्वालिटी इंडेक्स पूरे देश में सबसे खराब हो गया है.

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पल्लवी कुमारी
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बिहार में बढ़ा वायु प्रदूषण का जिम्मेदार कौन? कैसे कर सकते हैं बचाव?

बिहार में बढ़ा वायु प्रदूषण

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (BSPCB) ने दीपावली एवं छठ के दौरान पटाखे के बिक्री और आतिशबाजी पर पूर्ण रोक लगाया था. इस दौरान राजधानी पटना समेत गया, हाजीपुर एवं मुजफ्फरपुर में किसी तरह के पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगाया गया है. लेकिन दीपवाली के ठीक पहले और चार दिन बीत जाने के बाद भी शहर की आबोहवा इस प्रतिबंध को ‘कागज़ी आदेश’ साबित करने के लिए काफी हैं. केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड द्वारा दीपावली के अगले दिन यानि 13 नवंबर को जारी हुए शहरों के एयर क्वालिटी इंडेक्स की सूची में बिहार का बेगूसराय (393) पहले स्थान पर था. वहीं राजधानी पटना (333) समेत राज्य के प्रमुख आठ शहर देश के 15 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल थे.

राजधानी पटना के अलावा भागलपुर (346), सीवान (343), आरा (311), छपरा (360), मोतिहारी (281), मुज्जफरपुर (268), राजगीर (315), सहरसा (311) और समस्तीपुर (303) राज्य के अत्यधिक वायु प्रदूषण वाले शहर में शामिल हैं. वहीं दीपावली के दिन यानी 12 नवंबर को शाम 4 बजे पटना का एयर क्वालिटी इंडेक्स 336 जबकि आरा का 395 था जो ‘बहुत ज्यादा खराब’ की  श्रेणी में आता है.

पटना में पीएम 2.5 का दैनिक औसत स्तर पिछले वर्ष 102.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था वह इस साल दीपावली के दिन बढ़कर 206.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच गया था. पीएम 2.5 ऐसे सूक्ष्म कण हैं जो सांस लेने पर हमारे फेफड़े में प्रवेश कर सकते हैं और श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं. विशेषज्ञों द्वारा इनकी सांद्रता 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर सुरक्षित मानी जाती है. लेकिन पटना में इसका स्तर तीन गुना से भी ज्यादा था.

वहीं 15 नवंबर को जारी विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों की सूची में पटना (551) चौथे स्थान पर है. पटना के अलावा राजगीर (371) और भागलपुर (346) इस सूची में क्रमशः 12वें और 15वें स्थान पर है.

बैन के बावजूद कैसे बेचे गए पटाखे

पटाखों पर बैन के बावजूद शहर के सभी प्रमुख बाजारों के साथ-साथ हर गली मोहल्ले में पटाखे खुलेआम बिकते नजर आए. सबने प्रदूषण की चिंता किये बिना बेधड़क पटाखे बेचे और खरीदे. इन सब कमियों के साथ ही इसमें सबसे बड़ी कमी, प्रशासनिक शिथिलता की थी. दीपावली पर किसी अनहोनी से बचाव के लिए अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती सभी भीड़भाड़ वाले स्थानों पर की गयी थी. ऐसे में यह तो तय है कि पुलिस की कार्रवाई नहीं होने के कारण ही पटाखे बेचे और फोड़े गए. जिसका नतीजा शहरों में साफ़ देखा जा सकता है.

पटाखे जलाने पर रोक के बाद भी उसका उपयोग किये जाने पर डॉ शकील का कहना हैं “कानून तो बनते ही तोड़े जाने के लिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है. दीपावली के अवसर पर ना केवल वायु प्रदूषण बढ़ता है बल्कि उस दौरान ध्वनि और लाइट प्रदूषण में भी इजाफा होता है.  कुछ ऐसे पटाखे हैं जिनसे निकलने वाली रौशनी आंखों के लिए मुनासिब नहीं है. साथ ही काफी मात्रा में एक साथ दीप और मोमबत्ती जलने से भी भारी मात्रा में धुआं निकलता है.”

हालांकि अब लोग बिजली वाले झालर का उपयोग ज्यादा करते हैं, तो इसमें कुछ कमी आयी है. लेकिन हाल में जारी हुए डाटा बताते हैं कि शहरी गरीबी बढ़ी है. छह हजार तक कमाने वाले 30 फीसदी और 10 हजार से कम कमाने वाले 50 फीसदी परिवार हैं. ऐसे में बिजली वाले झालर लगाना उनके लिए संभव नहीं है. वो लोग दीप और मोमबत्ती का उपयोग करते हैं जिससे धुआं होता है.

बड़ी संख्या में पेड़ का कटाव सामान्य दिनों में शहर में बढ़ते वायु प्रदूषण के अन्य कारणों पर डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए डॉ शकील कहते हैं “वायुमंडल में व्याप्त कोई भी प्रदूषण डेवलपमेंट का ही नतीजा है. जैसे-जैसे विकास की गति बढ़ेगी प्रदूषण भी बढेगा. अभी शहर में सरकारी और निजी कंस्ट्रक्शन का काम बहुत तेजी से हो रहा है. मेट्रो कंस्ट्रक्शन, फ्लाईओवर, पीएमसीएच में बड़े स्तर पर कंस्ट्रक्शन का काम और साथ में गंगा में फ्लाईओवर का निर्माण, सारे काम एकसाथ हो रहे हैं."

वातावरण सुरक्षा के उपाय नदारद

जितनी बड़ी मात्रा में कंस्ट्रक्शन साइट पर सुरक्षा के उपाए किए जाने चाहिए वह किए नहीं जाते हैं. डस्ट रोकने के लिए कंस्ट्रक्शन साइट को कपड़े से ढंका जाना जरूरी है. लेकिन यह किया नहीं जाता है. दूसरा- कई जगह सड़के इतनी ज्यादा खराब हैं जिसकी वजह से ऑटोमोबाइल गाड़ियों से होने वाला एमिशन (फ्यूल जलने से होने वाला उत्सर्जन) बढ़ जाता है. ऐसे में यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह वैसी गाड़ियां जो बहुत ज्यादा एमिशन निकाल रही है उन्हें सड़क से हटाए. साथ ही सड़कों की मरम्मत कराएं ताकि गाड़ियां अपनी सही रफ्तार पर चल सकें.

पेड़ काटना शहर पर सबसे बड़ा कुप्रभाव

विकास का सबसे बड़ा कुप्रभाव जो इस शहर पर पड़ा है वह बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा जाना है. पेड़ किसी भी शहर में सबसे बड़े फ़िल्टर होते हैं लेकिन विकास के नाम पर इनका तेजी से कटाव हुआ है. डॉ शकील कहते हैं “सड़क और फ्लाईओवर बनाने के लिए बड़ी संख्या में शहर से पेड़ काटे गए हैं. पेड़ शहर के फ़िल्टर होते हैं जो जो कुदरत ने हमें दिया है. ऐसे में यह प्रशासनिक जिम्मेदारी है की अगर पेड़ काटे जा रहे हैं तो लगाए भी जाएं.”

इस प्रदूषण से कैसे बच सकते हैं?

बुरी तरह से वायु प्रदूषित क्षेत्र में जाने या रहने वाले लोगों को मास्क का उपयोग करना आवश्यक है. खासकर वैसा मास्क जो डस्ट पार्टिकल को रोक सके. रुमाल बांधने से काम नहीं चलेगा. N95 मास्क इसमें कारगर हैं. वायु प्रदूषण तब होता है जब हवा में तैरते पार्टीकुलेट मैटर का आकार बड़ा हो जाता हैं. यही पार्टीकुलेट मैटर सांस के द्वारा हमारे श्वसन नलियों में जमा हो जाता हैं जिससे सांस संबंधी बीमारी होती है. इसे एलेर्जिक ब्रोंकाईटिस या दमा की बीमारी भी कहते हैं जो धूल के प्रदूषण के कारण होता है.

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