सरकार अपने गेंहू ख़रीद के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पायी, अब लगी निर्यात पर रोक

भारत में गेहूं का भंडार 2022-23 में 2016-17 के बाद से अपने निम्नतम स्तर तक गिर सकता है. ऐसा हुआ तो यह पिछले 13 वर्षों में दूसरा सबसे कम भंडार होगा. इतना ही नहीं, अनाज की खरीद 15 वर्षों में सबसे कम होने के आसार हैं.

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पटना के योगीपुर स्थित जन वितरण केंद्र (पीडीएस) पर आनाज लेने के लिए लोग खड़े हैं और आपस में बात कर रहे हैं कि इसबार गेहूं की जगह सिर्फ चावल दिया जा रहा है. हमने इसका कारण जानने के लिए जब उनसे बात की तब पता चला कि इस बार डीलर सिर्फ चावल दे रहा है. हमने जब इसका कारण पूछा क्यों तो जवाब था गेहूं खत्म हो गया है, सिर्फ चावल आया है.

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सोनू कुमार सीवान के मैरवां में रहते हैं. सोनू का पूरा परिवार खेती से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है. सोनू डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बताते हैं

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PACS ने गेंहू खरीदा ही नहीं. दूसरी ओर सरकार ये कह रही है कि इस बार उसने गेंहू की रिकॉर्ड अधिप्राप्ति की है. लेकिन ऐसा है नहीं. सुदूर ग्रामीण इलाकों में किसानों के गेंहू की खरीद नहीं हुई है.

भारत जो विश्व में गेहूं उत्पादन में दूसरे स्थान पर आता है, आज अपने नागरिकों की मांग को सीमित करने को मजबूर हैं.

खाद्य मंत्रालय की ओर से कहा गया कि आम जनों के लिए गेहूं की आपूर्ति के लिए पर्याप्त भंडार उपलब्ध है. लेकिन मार्च माह में लंबे समय तक गर्मी की वजह से उत्पादन पर इसका असर पड़ा है, जिसके चलते गेहूं के निर्यात को रोका गया है ताकि सर्दियों में इसके भंडारण को पर्याप्त मात्रा में किया जा सके.

जब देश में गेहूं के पर्याप्त भंडार उपलब्ध हैं तो आमलोगों को क्यों जन वितरण केंद्र पर केवल चावल दिया जा रहा है जिससे सवाल तो खड़े होंगे ही?

दरअसल देश में लगातार बढ़ती महंगाई के बीच सरकार ने 13 मई को गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने का फैसला किया. देश में महंगाई दर 7.79 फीसदी तक पहुंच गया है, जबकि खाद्य महंगाई दर 8.38 फीसदी तक पहुंच गया है. अनाज महंगाई दर तकरीबन 6 फीसदी तक पहुंच गया है. सरकार कि ओर से गेहूं  के निर्यात को यह कहते हुए प्रतिबंधित कर दिया गया कि भारत में खाद्य सुरक्षा को इससे जोखिम हो सकता है.

भारत में गेहूं का भंडार 2022-23 में 2016-17 के बाद से अपने निम्नतम स्तर तक गिर सकता है. ऐसा हुआ तो यह पिछले 13 वर्षों में दूसरा सबसे कम भंडार होगा. इतना ही नहीं, अनाज की खरीद 15 वर्षों में सबसे कम होने के आसार हैं.

बिहार किसान संघर्ष मोर्चा के महासचिव अशोक प्रसाद बताते हैं

सरकार हर चीज़ को प्राइवेट करना चाहती है. वो किसानों के गेंहू की अधिप्राप्ति नहीं करना चाहती है. वो चाहती है कि किसान अपनी फ़सल को बिचौलियों के हाथ बेच दें. इस वजह से इस बार सरकार के पास गेंहू है ही नहीं. और अब लोगों के पास अनाज की कमी हो चुकी है.

सरकारी एजेंसियों ने 2 मई 2022 तक देश में 161.92 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की है. जबकि पिछले साल 27 अप्रैल 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि 232.49 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया था, जो पिछले साल के मुकाबले इस साल लगभग 30 प्रतिशत कम है.

सरकार ने 2022-23 में 444 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा था, लेकिन पर्याप्त गेंहूं न पहूंचने के कारण गेहूं खरीद का लक्ष्य पूरा नही हो सका. सरकार ने फिर से इसे घटाकर 195 लाख मीट्रिक कर दिया गया. लेकिन एक माह के दौरान जिस तरह से खरीद हो रही है, जानकारों का अनुमान है कि सरकार इस लक्ष्य को भी पूरा नही कर पाएगी क्योंकि अब मंडियों में गेहूं न के बराबर पहुच रहा है.

सरकारी खरीद में गिरावट की दो बड़ी वजह बताई जा रही हैं. एक, मार्च में शुरू हुए भीषण गर्मी के कारण गेहूं के उत्पादन में कमी और दूसरा रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद उपजे वैश्विक संकट का फायदा उठाने के लिए कारोबारियों ने पहले ही गेहूं का स्टॉक कर लिया जिससे मंडियों में गेंहूं पर्याप्त मात्रा में पंहुचा ही नही.

नीति आयोग के सदस्य एवं अर्थशास्त्री रमेश चंद ने बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए एक साक्षात्कार में यह माना कि मार्च-अप्रैल की गर्मी के कारण 6 से 10 मीलियन टन गेंहू का उत्पादन कम हुआ है. लेकिन पंजाब और हरियाणा के किसान गेहूं उत्पादन में 10 से 30 फीसदी नुकसान होने का अनुमान लगा रहे हैं.

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केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने 15 अप्रैल 2022 को एक ट्वीट किया, जिसमें कहा कि भारतीय किसान दुनिया का पेट भर रहा है. मिस्र ने भारत से गेहूं के आयात को मंजूरी दे दी है. वैश्विक बाजार में बढ़ती मांग को देखते हुए वित्त वर्ष 2022-23 में गेहूं का निर्यात 100 लाख (10 मिलियन) टन पार कर जाएगा. लेकिन अब सरकार का रुख बदलने से कुछ किसान संगठन नाराज हैं, उनका कहना ऐसा करने से गेहूं के दाम घटेंगे जिससे किसानो को नुकसान होगा लेकिन कुछ संगठनो का मानना है की इससे आम लोगों को उचित दाम पर गेहूं मिलेगा.

तब सरकार ने यह भी भरोसा दिलाया था कि गेहूं का निर्यात सुगम बनाने के लिए विशाखापट्टनम, काकीनाडा औन न्हावा शेवा जैसा बंदरगाहों से भी गेहूं का निर्यात शुरू किया जाएगा, क्योंकि अभी तक केवल कांडला बंदरगाह से गेहूं का निर्यात होता रहा है.

सरकार के इस उत्साहजनक बयान के बाद निजी व्यापारियों ने गेहूं की खरीद शुरू कर दी, और कई राज्यों में किसानों ने भी पैक्स के बजाय निजी व्यापारियों को गेंहू बेचना शुरू कर दिया था.

लेकिन अब सवाल यह उठता है कि आखिर गेहूं की सरकारी खरीद कम होने से क्या होगा?

दरअसल अनाज की सरकारी खरीद का प्रमुख उद्देश्य गरीब व कमजोर आय वर्ग के लोगों को सस्ती कीमतों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना है, जो जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत किया जाता है. इसके लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की अलग-अलग योजनाओं जैसे- अंतोदय अन्न योजना, प्राथमिकता परिवार (पीएचएच) राशन कार्ड धारक, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस), पीएम पोशन, गेहूं आधारित पोषण कार्यक्रम (डब्ल्यूबीएनपी) आदि चलाया जाता है. जबकि अन्य कल्याणकारी योजनाओं (हॉस्टल एवं कल्याणकारी संस्थानों, किशोर कन्याओं के लिए योजना) आदि के लिए गेहूं आवंटित किया जाता है.

इसके अलावा कोविड-19 महामारी की वजह से शुरू की गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना भी  चलाया जाता है जिसे सितम्बर 2022 तक के लिए बढाया गया है.

अब जब देश में गेहूं की कमी होगी तो सरकार के इन सारी योजनाओं पर भी प्रभाव पड़ेगा.  

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