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बदलते मौसम के कारण इधर कुछ महीनों से बिहार में आई फ्लू यानी कंजक्टिवाइटिस का फैलाव हो रहा है. हमारे आसपास देखने पर हर दूसरा आदमी आई फ्लू से संक्रमित नज़र आ रहा है. आई फ्लू से संक्रमित व्यक्ति के आंखों में जलन के साथ, खुजली, पानी आने लगता है. वहीं आंखें सूजकर गहरे लाल रंग में हो जाती है.
इस वायरल संक्रमण के कारण अस्पतालों के आंख वार्ड में रोज़ाना औसतन 20 से 30 मरीज़ आ रहे हैं.
आई फ्लू यानि कंजक्टिवाइटिस के बढ़ते प्रकोप को डॉक्टर सीज़नल बीमारी मानते हैं और इससे बचने का एक मात्र उपाय परहेज़ और साफ़-सफ़ाई रखना है.
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बदलते मौसम के कारण बढ़ रहा है संक्रमण
कंजक्टिवाइटिस बीमारी क्यों तेजी से फ़ैल रही है इस पर जानकारी के लिए हमने पीएमसीएच के डॉक्टर अक्षित से बात की. डॉ अक्षित बताते हैं
ये बीमारी सीजनल है जो मानसून और बरसाती (Rainy) मौसम में ही होता है. अचानक गर्मी वाले मौसम में जब बारिश होती है तो इसके वायरस और बैक्टीरिया सक्रीय हो जाते हैं. यह बीमारी हर साल ही देखने को मिलती है.
कंजक्टिवाइटिस किसी एक वायरस के कारण नहीं होता है. इसके मल्टीपल वायरस होते हैं. वहीं यह मानना कि यह केवल वायरस से होने वाली बीमारी है तो यह गलत है. यह वायरस, बैक्टीरिया और एलर्जी तीन कारणों से होता है. ऐसे ज़्यादातर केस वायरल कंजक्टिवाइटिस के ही देखने को मिल रहे हैं. वायरल और बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस ज़्यादा इन्फेक्शियस होते हैं जबकि एलर्जी के कारण होने वाले कंजक्टिवाइटिस संक्रामक (infectious) नहीं है.
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आंख के ऊपर एक परत (layer) होती है जिसे कांजेक्टाइवा कहते हैं, ये वायरस या बैक्टीरिया कांजेक्टाइवा में सूजन (inflammation) करा देता है. जिसके कारण आंखें लाल हो जाती हैं. इसके साथ ही आंखों में दर्द, आंखों से पानी तो किसी को आंख में सूखापन (dry eye), आंखों में खुजली और बुखार की शिकायत होती है.
कंजक्टिवाइटिस से संक्रमित लोगों में फोटोफोबिक (photophobic) लक्षण आ जाते हैं. ‘फ़ोटोफोबिक’ ऐसे लक्षण को कहा जाता है जिसमें संक्रमित व्यक्ति को प्रकाश (light) से आंखों में चुभन होती है. संक्रमित व्यक्ति को तेज रौशनी से आंखों में जलन होने लगती है.
डॉ अक्षित बताते हैं
संक्रमित व्यक्ति फोटोफ़ोबिक हो जाता है. फोटोफ़ोबिक होने के कारण उन्हें लाइट से हेडेक (सर दर्द) होने लगता है. इसी कारण डॉक्टर संक्रमित व्यक्ति को गहरे रंग का चश्मा लगाने को बोलते हैं.
डॉ अक्षित आगे कहते हैं
यह पूरी तरह से गलत धारणा है कि आंख आए (eye flu) हुए व्यक्ति के आंख में देखने से संक्रमण हो जाता है. संक्रमित व्यक्ति को गहरे रंग का चश्मा इसलिए दिया जाता है ताकि उन्हें तेज रौशनी से तकलीफ़ ना हो. इसका आंख में देखने से कोई संबंध नहीं है.
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आई फ्लू से बचाव के लिए क्या करना चाहिए
इस मौसम में उमस (humidity) की वजह से बैक्टीरिया और वायरस को फैलने का मौका मिलता है, क्योंकि नमी की वजह से इन्फेक्शन हमारे वातावरण और शरीर में लंबे समय तक जीवित रह सकता है. अगर आप संक्रमित हो चुके हैं तो बिना डॉक्टर के सलाह के कोई दवा अपने आंखों में ना डालें.
डॉ अक्षित बताते हैं
डॉक्टर के सलाह पर ही कोई दवा आंखों में डाले. किसी केमिस्ट के शॉप से खरीदकर कर दवा ना डाले. क्योंकि बहुत बार वे लोग स्टेरॉयड वाली दवा दे देते हैं जिससे और ज़्यादा नुकसान हो जाता है. इसलिए हमेशा किसी अच्छे नेत्र विशेषज्ञ (Ophthalmology) से सलाह लेकर ही दवा लेनी चाहिए.
वही इस बीमारी से बचाव का एक ही उपाय है कि बिना कारण आंखों को ना छुएं और ना ही रगड़े. बार-बार छूने या रगड़ने से आंखों में बैक्टीरिया, वायरस के पहुंचने का खतरा बढ़ जाता है. इससे स्वस्थ और संक्रमित दोनों व्यक्ति में खतरा बढ़ सकता है.
बार-बार आंख छूने पर रोग जनक (pathogen) बैक्टीरिया, वायरस हाथों के माध्यम से आंखों में पहुंच जाता है. वहीं संक्रमित व्यक्ति में आंखों के माध्यम से पैथोजन हाथ में पहुंच जाता है जिससे दूसरा व्यक्ति संक्रमित हो सकता है. वहीं संक्रमित व्यक्ति के दूसरे आंख में भी संक्रमण हो सकता है. और यह प्रोसेस चलते रह सकता है.
संक्रमण से बचने के लिए बाहर से आने के बाद हाथ और चेहरे को साबुन से धोएं, अपना तौलिया दुसरे व्यक्ति से साझा (share) ना करे, आंखों को धुल और गंदगी से बचाएं. वहीं तेज लाइट और धुल-गंदगी से बचाव के लिए चश्मा लगाएं. कांटेक्ट लेंस का उपयोग ना करें.
अगर परिवार में कोई संक्रमित है तो उसे अपने पर्सनल सामना जैसे तौलिया, साबुन, बिस्तर या मेकअप का सामान दूसरों से साझा नहीं करना चाहिए.
बैक्टीरिया, वायरस और एलर्जी से होने वाले आई फ्लू के लिए अलग दवा
सर्दी, खांसी या बुखार में अपने मन से दवा खरीदकर खाने की आदत हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है. यह जानते हुए भी हम अक्सर पास के केमिस्ट से दवा खरीदकर खा लेते हैं और ठीक भी हो जाते हैं. लेकिन यही लापरवाही कभी कभी हमारे ऊपर बुरा प्रभाव डाल देता है.
अभी वायरल बीमारी कंजक्टिवाइटिस के केस में भी ऐसा ही देखा जा रहा है. लोग केमिस्ट दुकान से मॉक्सीफ्लोक्सासिन नाम की दवा खरीदकर उपयोग कर रहे हैं. बाजार में दवा की मांग बढ़ने के कारण इस दवा की कमी हो गयी है. जबकि इसी ग्रुप की दवा सीप्रोफ्लोक्सासिन बाजार में उपलब्ध होने के बाद भी लोग इसके बजाय मॉक्सीफ्लोक्सासिन की मांग कर रहे हैं.
मॉक्सीफ्लोक्सासिन, सीप्रोफ्लोक्सासिन दोनों एंटीबायोटिक ग्रुप की दवाएं हैं.
बैक्टीरिया, वायरस या एलर्जी किसके कारण कंजक्टिवाइटिस हुआ पहले यह जांचा जाता है. उसके बाद ही आई ड्राप दिया जाता है. अगर संक्रमण बैक्टीरियल है तो डॉक्टर उसे एंटीबायोटिक आई ड्राप देंगे. अगर एलर्जिक या वायरस से संक्रमण हुआ है तो उसके लिए अलग दवा दी जाती है.
संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सभी को स्वच्छता बनाए रखने और बार-बार अपने हाथ और चेहरा धोते रहना चाहिए.