बिहार में पान और गुटखा खाने के शौक़ीन लोगों की तादाद बड़ी संख्या में हैं. बिहार के कुछ जिलों में पान खिलाकर अतिथियों का स्वागत करना उनकी संस्कृति का हिस्सा भी रहा है. और उन जिलों में केवल पुरुष ही नही महिलाएं भी पान का सेवन बड़े चाव से करती आयीं हैं.
समस्या पान के पत्ते में नही बल्कि में उसमें मिलाए जाने वाले जर्दे और पान मसाले में हैं. पान के पत्ते के साथ उसमे स्वाद के लिए मिलाए जाने वाले मसाले और जर्दे में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक निकोटिन और मैग्नीशियम पाया जाता है.
साल 2019 में स्वास्थ्य विभाग की उच्च स्तरीय बैठक के बाद बिहार में गुटखा और पान मसालों पर प्रतिबंध लगाया था. यह प्रतिबंध एक साल की अवधि के लिए लगाया गया था. जिसे साल दर साल बढ़ाया जाता रहा है. फूड सेफ्टी एक्ट 2011 के रेगुलेशन 2.3.4 के तहत किसी भी खाद्य पदार्थ में तम्बाकू या निकोटिन की मिलावट प्रतिबंधित है.
खाद्य सुरक्षा आयुक्त के आदेशानुसार 23 फरवरी 2023 तक एकबार फिर इस पर प्रतिबंध लगाया गया है. जिसके तहत राज्य में पान मसालों की बिक्री, उत्पादन, भंडारण, सेवन और परिवहन को अवैध माना गया है.
स्वास्थ्य विभाग के जारी आदेश में कहा गया है कि गुटखा और पान मसाला में तंबाकू व निकोटिन मिलाकर बेचना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. सर्वोच्च न्यायालय के सितंबर, 2016 के आदेश का हवाला देते हुए कहा गया है कि इस प्रकार के खाद्य पदार्थों की बिक्री पर पूरी तरह रोक रहेगी. गुटखा और पान मसाला खाद्य पदार्थ की श्रेणी में आते हैं. लिहाजा ऐसे पदार्थों की बिक्री को राज्य में प्रतिबंधित किया गया है.
लेकिन इस आदेश के बावजूद आपकों शहर के चौक-चौराहों पर आसानी से पान मसाला और गुटखा बिकते नजर आता है. तो सवाल उठता है कि आखिर यह क्या है? इसकी जानकारी के लिए डेमोक्रेटिक चरखा के रिपोर्टर कुणाल पान मसाला और गुटखा बेचने वाले इन्ही दुकानों पर जाकर इसकी पड़ताल करते हैं. कुणाल डाकबंगला चौराहे से गांधी मैदान के तरफ जाने वाले रास्ते के एक पान दुकानदर से पूछते है आखिर बैन के बाद आप यह कैसे बेच रहे हैं.
दुकानदार ने सीधे शब्दों में जवाब दिया
कोर्ट ने वैसे गुटखा और पान मसाला को बैन किया है जिसमें तंबाकू व निकोटिन मिला है. लेकिन हम जो बेचते हैं उसमे निकोटिन नहीं है. और जो बेच रहे हैं वो घर में थोड़े ही बनाते हैं. वह भी तो मार्केट से ही लाते हैं. तंबाकू ब्लैक में तो मिल ही रहा है. और लोग इसको खा भी रहे हैं तो हमको बेचने में क्या दिक्कत होगा.
डाकबंगला चौराहे पर पान और सिगरेट की दुकान चलाने वाले एक अन्य दुकानदार से जब कुणाल ने तंबाकू और पान मसाले पर लगाए गए प्रतिबंध के विषय में पूछा तो शुरुआत में उन्होंने कुछ भी कहने से मना किया लेकिन बाद में उन्होंने बताया कि
जब भी सरकार तंबाकू पर बैन लगाती है तब शुरू-शुरू में कई दुकानदारों को फाइन देना पड़ता है लेकिन धीरे-धीरे सब शांत हो जाता है और तंबाकू फिर से बिकने लगता है.
दरअसल कोर्ट ने 'गुटखा और पान मसाला में तंबाकू व निकोटिन मिलाकर बेचने को प्रतिबंधित किया है. लेकिन तम्बाकू और पान मसाला बनाने वाली कंपनी बड़ी ही चालाकी से इसका तोड़ निकाल रहे हैं. कंपनी इन्ही उत्पादों को अब अलग-अलग पैकेट में बनाकर मार्केट में भेज रही है. जैसे अलग गुटखा, अलग पान मसाला और अलग तंबाकू.
यही कारण है कि आपको चौराहों और सड़कों के किनारे ये पैकेट आसानी से बिकते नजर आते हैं. ग्राहक अब खुद दुकान पर ही पैकेट खरीदकर इन तीनो को मिलाकर प्रतिबंधित सामान गुटखा बनाकर खा लेते हैं.
यह जानते हुए की गुटखा या तम्बाकू का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है फिर भी लोग इसका सेवन क्यों कर रहे हैं.
हमने एक और तंबाकू सेवनकर्ता राकेश से जब पूछा कि तंबाकू खाने से आपके स्वास्थ्य पर असर पड़ता है फिर आप क्यों तंबाकू का सेवन करते हैं? इस पर राकेश ने उत्तर दिया कि
जब मैंने इसे खाना शुरू किया था तब शुरुआत में इसका स्वाद मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आता था. लेकिन धीरे-धीरे यह ठीक लगने लगा और मैंने इसे नियमित रूप से खाना भी शुरू कर दिया. हां मुझे पता है कि इसे खाने से स्वास्थ संबंधी बीमारियों खासकर कैंसर होने का ज्यादा खतरा रहता है लेकिन फिर भी मैं इस बुरी लत का शिकार हूं और इसका सेवन करता हूं.
वहीं पीएमसीएच के डॉक्टर ऐश्वर्य सरकार के इस फैसले को सही बताते हैं. डॉक्टर ऐश्वर्य बताते हैं
तंबाकू खाना निश्चित रूप से स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है. तंबाकू का नियमित सेवन किसी व्यक्ति के शरीर की इम्यूनिटी को कमजोर कर सकता है. इसके अलावा तंबाकू खाने से कैंसर का खतरा काफी बढ़ जाता है. खासकर तंबाकू खाने वाले ज्यादातर मरीज आगे चलकर मुंह के कैंसर से पीड़ित हो सकते हैं. तंबाकू खाने से दातों में ओरल कैविटी और जीभ दोनों को नुकसान होता है. सबसे महत्वपूर्ण बात तंबाकू से लीस-लिपिडीमिया यानी कि हार्ट-अटैक का खतरा भी काफी बढ़ जाता है.
तम्बाकू के सेवन का लोगों के जेब पर कितना असर डालता है इसपर ग्राहक राकेश कहते हैं
अगर देखा जाए तो एक व्यक्ति कम से कम 1 दिन में 10 पैकेट गुटका तो खाएगा ही. मेरे हिसाब से मैं करीबन 1 दिन में 50 रूपये का गुटखा खा जाता हूं और अगर पूरे महीने का देखें तो 1500 से 2000 रूपए तक का गुटखा खाने में खर्च कर देता हूं.
एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 तक बिहार में 2 करोड़ के करीब लोग तम्बाकू का सेवन कर रहे थें. बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद तंबाकू सेवन करने वाले लोगों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखा जा रहा है.
एग्जिबिशन रोड में तंबाकू बेचने वाले एक बुजुर्ग दुकानदार बताते हैं
एक दिन में करीब 500 से 1500 तक का गुटखा बिक जाता है. खासकर जब से बिहार में शराबबंदी हुआ है तब से गरीब तबके के लोग ज्यादातर गुटका और खैनी ही अधिक खरीदते हैं.
वहीं दुकान पर खैनी खरीद रहे एक ग्राहक सुजीत बताते हैं
हमलोग ठेला चलाते हैं. बीच में जब भूख लग जाता है तो खैनी खा लेते हैं. कभी-कभी बीड़ी पी लेते हैं चूंकि सिगरेट काफी मंहगा आता है और जल्दी खत्म भी हो जाता है.
सरकार के फ़ैसले पर कामोबेश यही मत शहर के अलग-अलग इलाकों के दुकानदारों और ग्राहकों की है. उनकी बातों से जाहिर होता है कि वे शराबंदी के फैसले के तरह ही सरकार के इस निर्णय को भी व्यवहारिक नहीं मान रहे हैं.
आने वाले समय में सरकार के इस फ़ैसले का प्रभाव कैसा रहेगा यह भविष्य में देखने वाली बात होगी. लेकिन वर्तमान में 5 से 6 साल गुजरने के बाद भी सरकार की यह पहल धरातल पर अनुपयोगी ही साबित हो रही है. क्योंकि शराब की तरह ही गुटखे और पान मसाले की कालाबाजारी भी बिहार में आम बात बन गयी है.