विभाग पराली जलाने की वैकल्पिक व्यवस्था करने में असफ़ल, मजबूरी में जल रही पराली

हमने किसानों को पराली जलाते हुए कई बार ख़बरों में सुना है. पराली जलाना किसानों के लिए एक परंपरा जैसी है. आपको बता दें अभी हाल फ़िलहाल में बिहार सरकार ने पराली जलाने वाले किसानों पर एक सख्त कार्रवाई की है. यह कार्यवाही 20 जिलों के किसानों के ऊपर की गई है. जिसमें करीबन 6066 किसान शामिल हैं.

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कुणाल कुमार शांडिल्य
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हमने किसानों को पराली जलाते हुए कई बार ख़बरों में सुना है. पराली जलाना किसानों के लिए एक परंपरा जैसी है. आपको बता दें अभी हाल फ़िलहाल में बिहार सरकार ने पराली जलाने वाले किसानों पर एक सख्त कार्रवाई की है. यह कार्यवाही 20 जिलों के किसानों के ऊपर की गई है. जिसमें करीबन 6066 किसान शामिल हैं.

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इन किसानों को चेतावनी के बाद भी या यूं कहें नोटिस के बाद भी प्रणाली जलाते देखा गया. जिसके बाद सरकार ने यह निर्णय लिया है. सरकार ने ऐसे किसानों को 3 वर्ष के लिए ब्लैक लिस्ट कर दिया है.

आइए आपको बताते हैं ब्लैक लिस्ट होने से क्या है नुकसान

किसानों को ब्लैक लिस्ट करने का मतलब यह है कि अब वह किसान जिनके ऊपर कार्यवाई की गई है वह ना तो अगले 3 सालों तक सरकार की किसी योजना का लाभ उठा पाएंगे ना ही कोई मुआवज़ा ले पाएंगे. सरकार की तरफ़ से मिलने वाली किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता या अनुदान किसानों को नहीं मिलेगा.

यहां तक की जो किसान कृषि विभाग की योजना के लिए पहले ही आवेदन कर चुके हैं या फिर रजिस्टर्ड भी है तो भी उन पर यह कानून लागू होगा और उनका रजिस्ट्रेशन कैंसिल कर उन पर कार्यवाही की जाएगी.

पराली जलाने के बाद ब्लैक लिस्ट होने वाले बिहार के किसान की मानें तो उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है. जिससे वह इस समस्या को रोक पाएं. किसानों का यह भी कहना है कि यदि सरकार के पास इसका कोई अच्छा विकल्प हो तो सरकार सुझाव दें.

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आख़िर यह पराली है क्या

आपको बता दें करीबन दीपावली के आसपास या फिर यूं कह लीजिए कि हर साल अक्टूबर और नवंबर के महीनों में जब किसान धान की फ़सल को काटते हैं तो उसके बचे हुए भाग को जला देते हैं. दरअसल पहले किसान धान की फ़सल को अपने हाथों से काटा करते थें जिसमें वह जड़ से फ़सल को काट दिया करते थे लेकिन अब मशीन के आ जाने से उसके ऊपर का हिस्सा तो कट पाता है लेकिन नीचे कुछ बचा हिस्सा छूट जाता है, इसे ही पराली कहते हैं.

चूंकि धान की फ़सल के तुरंत बाद किसानों को गेहूं की बुवाई करनी पड़ती है. इसलिए उन्हें सबसे जल्दी अगर कोई उपाय सूझता है तो वह है उसके बचे हुए हिस्से को जला देना, और किसान ऐसा ही करते हैं. पराली जलाना किसानों के द्वारा कोई नई बात नहीं है. यह एक परंपरा सी बन गई है.

हमने पराली को जलाने वाले एक किसान सुदामा से बात की. सुदामा ने बताया कि-

"कोई भी किसान पराली शौक से नहीं जलाता. पराली जलाना उसकी विवशता है. यह सबसे सरल उपाय जरूर हो सकता है लेकिन इससे खेतों को काफी नुकसान होता है. पराली जलाने की वजह से खेतों की मिट्टी कम उपजाऊ होने लगती है. सरकार कोई ऐसी प्रणाली विकसित करे जिससे पराली के शीघ्र निस्तारण की व्यवस्था की जा सके. क्योंकि हम किसानों को सबसे कम समय में और कम लागत पर पराली जलाने के सिवाय कोई और विकल्प ही नहीं है"

पराली जलाना किसानों के लिए सबसे सरल, तेज और सस्ता समाधान है. आमतौर पर भारत के पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश के खेतों में पराली लगभग एक ही समय पर जलाया जाता है. इससे काफी प्रदूषण की समस्या पैदा हो जाती है.

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क्या पराली जलाने से किसानों को नुकसान भी होता है

जी हां, यह ज़रूर कहा जा सकता है पराली जलाना किसानों के लिए सबसे सरल, तेज़ और सस्ता समाधान है. लेकिन इससे किसानों को भी नुकसान है. हम सभी जानते हैं केंचुआ किसानों का अच्छा दोस्त माना जाता है. वह मिट्टी में किसानों के द्वारा रोपी गई फ़सल की उपज को बढ़ाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

लेकिन प्रणाली के जलाने से केंचवा मर जाता है जिससे किसानों को ही नुकसान है. इसके अलावा मिट्टी में पाए जाने वाला राइजोबियम बैक्टीरिया जो मिट्टी में नाइट्रोजन को फिक्स करने के लिए जाना जाता है वह भी ख़म हो जाता है. इस वजह से किसानों को नाइट्रोजन वाली खाद के लिए अलग से पैसा खर्च करना पड़ता है. जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है. यह तो बात हो गई किसानों के नुकसान की.

इसके अलावा आम लोगों को भी पराली के धुएं से स्वास्थ्य संबंधी काफ़ी समस्याएं होती है. इससे ना केवल प्रदूषण फैलता है बल्कि यह मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डालता है. इससे त्वचा और आंखों में जलन, गंभीर तंत्रिका संबंधी, हृदय संबंधी और स्वास्थ्य संबंधी रोग हो सकता है.

पराली जलाने से कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं जिससे गंभीर वायु प्रदूषण होता है. इससे अस्थमा क्रॉनिक, ऑब्स्ट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज, ब्रोक आईटी, फेफड़ों की क्षमता का क्षरण और कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं.

पराली जलाने पर भी सजा का है प्रावधान

आपको बता दें कि भारत में खेतों में पराली जलाना ग़ैरकानूनी है और भारतीय दंड संहिता की धारा 188 यानी आईपीसी 188 के तहत ग़ैरकानूनी माना गया है. अपराध करते हुए पकड़े जाने पर दोषी को इस धारा के तहत 6 महीने की कारावास और 15000 का जुर्माना भी हो सकता है. इसके अलावा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी पराली जलाने पर बैन किया हुआ है. लेकिन किसान इसके विकल्प की मांग करते हैं.

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क्या इसका कोई समाधान है

पराली जलाने का कोई स्थाई समाधान तो अब तक नहीं मिल पाया लेकिन इसके लिए कई उपायों की तलाश की गई है. उनमें से एक है टर्बो हैप्पी सीडर यानी टीएचएस जो एक उपकरण है जो ट्रैक्टर पर लगा होता है और यह फसल को जड़ से उखाड़ फेंकता है. इससे पराली का बचा हुआ हिस्सा मिट्टी में मिल कर खाद बनाने के काम में आता है.

लेकिन इसमें थोड़ा वक्त लगता है. चुकीं किसानों को गेहूं की बुवाई करनी होती है इसलिए वह सबसे तेज समाधान ढूंढते हैं और इसे जला देते हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के द्वारा प्रस्तावित पूसा बायो डी कंपोजर 15 से 20 दिनों में प्रणाली को खाद में बदल देता है. यह एक कारगर विकल्प हो सकता है.

विभिन्न राज्य सरकारें अलग-अलग समय पर कानून लागू करने के साथ किसानों को पराली प्रबंधन के उपकरण मुहैया कराने की व्यवस्था कर रही है जिससे किसानों को पराली जलाना ना पड़े. अगर सामान्य समाधान की बात करें तो पहला तो यह है कि पराली मशीनों से काटा ही ना जाए लेकिन इसमें किसानों को शारीरिक श्रम ज़्यादा देना होगा.

दूसरा यह कि बचा हुआ पराली शीट बनाने के काम में भी आता है. अगर सरकार चाहे तो किसानों से पराली का भाव ख़रीदकर उसे शीट बनाने में इस्तेमाल कर सकती है. इसके अलावा इस पराली को किसी गड्ढे में भरकर खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

बिहार में पराली की स्थिति को जानने के लिए हमने किसान नेता अशोक प्रसाद से बात की उन्होंने कहा कि-

  "सरकार के पास उचित व्यवस्था है लेकिन सरकार बस करना नहीं चाहती. पराली से कागज बनता है. अगर सरकार चाहे तो उन परालियों को ख़रीद कर उससे कागज का निर्माण कर सकती है. लेकिन सरकार अपने बजट से पैसे खर्च नहीं करना चाहती और दबाव किसानों के ऊपर बनाती है. सरकार भी जानती है कि किसानों के पास उसे जलाने के अतिरिक्त कोई और सरल साधन नहीं बच जाता"

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पराली जलाना किसानों की एक वाजिब समस्या है और इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि सरकार के पास इसका कोई स्थाई समाधान नहीं है. यदि होता तो किसानों को पराली जलाने के लिए विवश ना होना पड़ता. सरकार इस विषय पर अंतरराष्ट्रीय नीति का सहारा ले सकती है.

सरकार चाहे तो पराली का कुछ भाव देकर किसानों को उसे ना जलाने का लालच भी दे सकती है. कुल मिलाकर यह सरकार के प्रबंधन पर निर्भर करता है. बहरहाल पराली जलाना पर्यावरण प्रदूषण की दृष्टि से एक जटिल समस्या है, इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता. सरकार पराली के निपटान की कोई उचित व्यवस्था करें तभी इसका पूर्ण हल संभव है.