किसान दिवस विशेष: क्या <strong>PACS </strong>किसानों को धान पर <strong>MSP </strong>दे रहा है?

कई किसान PACS द्वारा धान की फसल नहीं ख़रीदे जाने पर काफ़ी परेशान हैं. समय-समय पर किसानों द्वारा यह मांग उठती रही है कि PACS, किसानों का पूरा धान खरीदे और उन्हें अपनी फसल का उचित मूल्य प्रदान करें. किसान अपनी फ़सल बिचौलियों को बेचने पर मजबूर हैं जिस वजह से उन्हें अपनी फसल का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है

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पटना: कई किसान PACS द्वारा धान की फसल नहीं ख़रीदे जाने पर काफ़ी परेशान हैं. समय-समय पर किसानों द्वारा यह मांग उठती रही है कि PACS, किसानों का पूरा धान खरीदे और उन्हें अपनी फसल का उचित मूल्य प्रदान करें. लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है. किसान अपनी फ़सल बिचौलियों को बेचने पर मजबूर हैं जिस वजह से उन्हें अपनी फसल का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है.

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आज 23 दिसंबर 2022 है, जिसे किसान दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. सरकार किसानों से न जाने कितने अनगिनत वादे करती है लेकिन ज़मीनी स्तर पर वह बातें कितने सफ़ल हैं इसका हाल तो किसानों के नज़दीक जाकर ही समझ में आता है. कुछ ऐसा ही हाल बिहार के किसानों का भी है.

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आख़िर PACS है क्या

PACS यानी प्राथमिक कृषि सहकारी समिति एक ऐसी संस्था है जहां कोई भी किसान अपनी फ़सल को उचित मूल्य पर बेच सकता है. इसका मुख्य उद्देश्य किसानों द्वारा अपनी फसल किसी बिचौलिये या बड़े व्यापारियों को कम दाम पर फ़सल ना बेचकर  सरकार को बेचना है और अपनी फ़सल का उचित मूल्य प्राप्त करना है. किसी भी ग्राम पंचायत में एक PACS अध्यक्ष होता है. ग्राम पंचायतों में हर 5 साल में PACS अध्यक्ष का चुनाव सभी PACS सदस्यों के वोट के द्वारा किया जाता है.

बिहार में कृषि की क्या है स्थिति?

बिहार की 77% आबादी कृषि से सीधे तौर से जुड़ी हुई है. ये संख्या पंजाब जैसे कृषि समृद्ध राज्य से भी अधिक है. पंजाब की 75% आबादी कृषि से जुड़ी हुई है. जबकि धान उपजाने वाले किसानों की आबादी इससे कहीं अधिक है. धान ख़रीद के लिहाज़ से सहकारिता विभाग, बिहार सरकार के आंकड़ों के अनुसार पूरे बिहार में 8463 PACS और 521 व्यापार मंडल हैं. सरकार इन्हीं के माध्यम से धान या अन्य फ़सलों की सरकारी ख़रीद को सुनिश्चित करती है. फिर इन्हीं के ज़रिये किसानों के खाते तक उनकी रकम को पहुंचाने का काम करती है. लेकिन पैसे मिलने में देरी की वजह से किसान PACS की जगह व्यापारियों को फ़सल बेचना प्राथमिकता देते हैं.

पटना के किसानों के धान पड़े हैं, PACS ख़रीदने को तैयार नहीं



पटना जिले के निसरपुरा गांव के किसानों का भी यही दर्द है. किसानों का कहना है कि उनके धान यूं ही पड़े हैं और PACS उन्हें लेने के लिए तैयार नहीं है. इस वजह से उन्हें मजबूरन अपनी फ़सल बिचौलियों को बेचनी पड़ रही है. आपको बता दें कि केवल निसरपुरा (बिक्रम) गांव से लगभग 2500 क्विंटल धान की उपज होती है. ऐसे में यह बेहद ज़रूरी है कि उन्हें अपनी फ़सल का उचित मूल्य मिल सके. लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. हमने वहां उपस्थित कई किसानों से बात की.

वहां उपस्थित किसान मनंजय शर्मा जी ने हमें बताया कि

"जब हम लोग अपनी फसल PACS को बेचते हैं तो PACS हमें इसका दाम 2040 रुपये प्रति क्विंटल देती है. लेकिन जब हम वही धान बिचौलियों के पास बेजते हैं तो वह इसे 1500 रुपये प्रति क्विंटल खरीदते हैं. इस वजह से हमें प्रति क्विंटल 540 रुपये का घाटा होता है. उदाहरण के तौर पर ऐसे समझिए कि किसी किसान के पास 100 बोरा धान है. लेकिन सरकार द्वारा लक्ष्य निर्धारित कर देने के बाद PACS केवल 70 बोरा धान ही किसानों से ख़रीद सकती है. ऐसे में किसानों को बाकी बचे हुए फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पाता."

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पिछले साल की तुलना में कम कर दिया गया पटना जिले का लक्ष्य

बिहार सरकार द्वारा पटना जिले में पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष धान अधिप्राप्ति के लक्ष्य को 23% तक घटा दिया गया है. इससे किसानों को काफ़ी परेशानी हो रही है. पिछले वर्ष 2,81,000 मेट्रिक टन धान अधिप्राप्ति का लक्ष्य रखा गया था जिसे इस वर्ष घटाकर 2,15,949 मेट्रिक टन कर दिया गया है.

हमने अक्सर देखा है कि बिहार सरकार धान अधिप्राप्ति के अपने लक्ष्य से पीछे ही रही है. इस वजह से कई किसानों के धान की ख़रीद ही नहीं हो पाती है और वो बड़े  बिचौलियों को कम कीमत में बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं. कई बरसों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि सरकार की तरफ़ से PACS के लिए धान-ख़रीद का जो लक्ष्य निर्धारित हुआ, उसका 30 फ़ीसद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीदा गया हो.

सहकारिता विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, ख़रीफ़ सीज़न 2020-202 में बिहार के डेढ़ लाख किसानों को ही उनकी फ़सल पर MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य मिला था. इससे पहले ख़रीफ़ सीज़न 2019-2020 में सिर्फ़ 2,79,440 किसानों को धान का एमएसपी मिल सका था. रबी सीज़न 2020-2021 में केवल 980 किसान MSP पर गेहूं बेच पाये थे.

इस समस्या पर हमने पटना जिले के निसरपुरा गांव के एक किसान संजय कुमार से बात की. उन्होंने बताया कि

"पटना जिले का टारगेट और घटा दिया गया है. इसे पिछले साल की तुलना में 30% घटा दिया गया है. 100 क्विंटल की जगह 70 क्विंटल ही लिया जा रहा है. यही नहीं फसलों का दाम भी घटा दिया गया है. इससे हमें काफ़ी दिक्कत होती है. जब हम लोग PACS के द्वारा धान बेचते हैं तो भारत सरकार द्वारा जो धान का मूल्य निर्धारित किया गया है उसी के अनुसार पैसे मिलते हैं. लेकिन इस साल सरकार की नीति रीति, ख़ासकर पटना जिले को लेकर काफी ख़राब है."

बिचौलियों को फ़सल बेचने के अतिरिक्त नहीं है कोई विकल्प

जब PACS किसानों की फ़सल नहीं  खरीदती तो ऐसे में उन्हें मजबूरन अपनी फ़सल बिचौलियों को बेचनी पड़ती है. बिचौलिये भी किसानों की इस मजबूरी का जमकर फ़ायदा उठाते हैं. बिचौलियों के अनुसार निर्धारित मूल्य पर किसानों को प्रति क्विंटल लगभग 500 से 700 रुपये का नुकसान झेलना पड़ता है.

 इस विषय पर हमने निसरपुरा गांव के एक किसान रामभवन शर्मा उर्फ सिपाही जी से बात की. उन्होंने हमें बताया कि

"बिचौलियों को धान बेचने पर रेट में बहुत अंतर हो जाता है. कोई 1400 रुपये प्रति क्विंटल धान ख़रीदता है तो कोई 1600 रुपये प्रति क्विंटल. लेकिन 1600 रुपये प्रति क्विंटल से तो आगे कोई बढ़ता ही नहीं. सरकार किसानों के साथ बिल्कुल सौतेला व्यवहार कर रही है. केवल घोषणा की जाती है और किसानों से बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं. लेकिन सरकार उन्हें पूरा नहीं करती. ऐसा लगता है जैसे हाथी के दांत दिखाने के कुछ और है और खाने के कुछ और हैं. मीडिया के माध्यम से हम कहना चाहते हैं कि हमारी आवाज सरकार के कानों तक पहुंचाई जाए ताकि वे हमारा दर्द समझ सकें."

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आंदोलन हुआ लेकिन नहीं आया कोई बड़ा नेता या अधिकारी

अपनी धान की फ़सल उचित मूल्य पर बेचने के लिए परेशान किसानों ने 15 दिसंबर को विक्रम के चौक पर आंदोलन भी किया. लेकिन उस आंदोलन के दौरान कोई भी बड़े अधिकारी या नेता नहीं आए. यहां तक की वहां के स्थानीय जनप्रतिनिधि भी उस आंदोलन में किसानों का साथ देने नहीं पहुंचे. स्थानीय लोगों की माने तो केवल सहकारिता विभाग के पदाधिकारी आए और ज्ञापन लेकर चले गए.

लेकिन इस विषय पर सुधार करने के लिए किसी भी प्रकार का सार्थक प्रयास नहीं किया गया. इससे पहले भी लोगों ने वहां के स्थानीय विधायक सिद्धार्थ सौरव से अपनी इस समस्या के विषय में बात की थी, जिस पर उन्होंने केवल आश्वासन देकर लोगों को छोड़ दिया था. आपको बता दें कि निसरपुरा गांव जिस विधानसभा क्षेत्र में आता है वहां से विधायक कांग्रेस के सिद्धार्थ सौरव हैं और सांसद रामकृपाल यादव हैं. आंदोलन के विषय पर हमने निसरपुरा के कई किसानों से बात की जिनमें मनंजय शर्मा, संजय कुमार, रामभवन शर्मा, विनय शर्मा, मोनू कुमार, सौरभ सिंह, राकेश कुमार और राजीव कुमार शामिल थे.

PACS की भी है अपनी मजबूरी

केवल यह कह देना ठीक नहीं है कि PACS द्वारा किसानों का धान नहीं लिया जा रहा. PACS की भी अपनी मजबूरियां हैं. सरकार द्वारा लक्ष्य निर्धारित कर देने और अनुपात को घटा देने के बाद PACS एक सीमा तक ही किसानों से धान खरीद सकती है. PACS की समस्या के ऊपर हमने निसरपुरा गांव के स्थानीय PACS अध्यक्ष राकेश कुमार से बात की. राकेश कुमार ने हमें बताया कि

"PACS मजबूर है, क्योंकि किसानों के पास धान अधिक है और सरकार का लक्ष्य कम. ऐसे में PACS किन-किन किसानों से धान ले और किन-किन किसान का धान छोड़े? पिछले साल की तुलना में इस साल लक्ष्य को 2500 क्विंटल कम कर दिया गया है लेकिन पैदावार ही काफ़ी ज़्यादा हुई है. इसके लिए हमलोगों ने धरना भी दिया है और प्रदर्शन भी किए हैं. दिल्ली तक आवाज़ उठी है. पटना जिले की हालत तो और भी ख़राब है. पटना के जिलाधिकारी के द्वारा किसानों का धान नहीं खरीदने पर PACS अध्यक्षों के ऊपर एफ.आई.आर दर्ज करने का आदेश तक जारी किया गया है. लेकिन हमलोग इस पर क्या कर सकते हैं जब सरकार ने लक्ष्य निर्धारित कर दिया है."

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किसानों की समस्या को लेकर जल्द उठाना होगा कोई ठोस कदम

बिहार सरकार को जल्द ही किसानों की इस समस्या को लेकर कोई सफल नीति बनानी होगी. अन्यथा हमेशा किसानों को नुकसान ही झेलना पड़ेगा. ख़ासकर पटना जिले के किसानों की स्थिति पर सरकार को और ज़्यादा गौर करने की आवश्यकता है. किसी वर्ष धान की पैदावार अधिक हो सकती है तो किसी वर्ष कम भी हो सकती है. ऐसे में किसानों को नुकसान ना हो इसके लिए सरकार को एक संतुलन नीति बनाने की काफ़ी ज़्यादा ज़रूरी है.

इसके साथ ही बिहार सरकार पटना जिले में PACS अध्यक्षों के खिलाफ जारी एफ.आई.आर के आदेश को भी गंभीरता से लें और उनकी विवशता पर भी ध्यान दें. जब तक सरकार की नीति किसानों के संपूर्ण हित में नहीं होगी तब तक सरकार द्वारा किए गए किसी भी वादे का कोई मतलब नहीं है. किसानों को होने वाली इस समस्या पर सरकार को गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है ताकि किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सके और उन्हें नुकसान ना झेलना पड़े.

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