बिहार के 35 जिलों में मानसून की बेरुख़ी से अब तक कम बारिश हुई है। ऐसे में इन जिलों में सुखाड़ का संकट गहरा गया है। अगर कुछ दिन में बारिश नहीं हुई तो हालात और बिगड़ सकते हैं। मौसम विभाग के रिपोर्ट के मुताबिक 1 जून 2022 से 24 अगस्त 2022 तक राज्य में केवल 427.9 मिलीमीटर बारिश दर्ज की जो कि सामान्य से बहुत कम है। कम से कम 720.9 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए। मौसम विभाग के मुताबिक 22 अगस्त तक राज्य में केवल सुपौल, अररिया और किशनगंज जिलों में सामान्य बारिश हुई है और प्रदेश के कई जिलों में सूखे की स्थिति बनी हुई है। सूखे से किसान अपने रोपे गए धान की फसल और उसका बिचड़ा बचाने की जुगत में हैं। भादो-सावन महीने में जहां चारों तरफ़ पानी ही पानी दिखता था, अभी खेत सूखे पड़े हैं।
सुखाड़ की वजह से टूट चुके किसान अब यूरिया और खाद की किल्लत से भारी मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 2022-2023 तक बिहार को 4800 मीट्रिक टन अकार्बनिक उर्वरक देने का लक्ष्य है। जबकि 31 जुलाई तक 1316 मीट्रिक टन दिया गया है।
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मानसून के मौसम में बाढ़ नहीं सुखाड़ से मर रहे बिहार के किसान
बिहार के सुपौल जिला के एकमा पंचायत के आदित्य झा पिछले साल लगभग 22 कट्ठा खेत में दस क्विंटल धान का उत्पादन किया था, लेकिन इस बार बारिश नहीं होने की वजह से उन्होंने अब एक किलो धान के उपज की भी उम्मीद छोड़ दी है।
बिहार में भागलपुर ज़िले के नारायणपुर प्रखंड के भ्रमरपुर गांव निवासी मंगलेश्वर नाथ झा के पास लगभग सात बीघा ( एक बीघा में 20 कट्ठा) ज़मीन है। जिसमें वो 4 बीघे में धान की खेती करते हैं। लेकिन इस बार सिर्फ डेढ़ बीघा में धान लगा पाए। बचे हुए खेत को परती छोड़ना पड़ा। मंगलेश्वर नाथ झा बताते हैं कि
पटवन के लिए बहुत दिक्कत हो रही है। नहर सूखा पड़ा हुआ है। गांवों में आहर, पइन व तालाब का जीर्णोद्धार ज़रूरी है। बिना पटवन के धान संभव नहीं है। किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं।
भागलपुर में 259.9 मिलीमीटर बारिश दर्ज की जो कि सामान्य से बहुत कम है। कम से कम 700.8 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए।
कुछ दिन अगर बारिश नहीं होगी तो जो किसान फसल लगाए हैं उनकी खड़ी फसलें सूख जाएंगी। इस नुकसान को किसान सहन नहीं पाएगा, वो टूट जायेगा। अगस्त महीने में बड़े-बड़े पौधा होने की वजह से धान के खेत में जाना मुश्किल होता था। लेकिन अभी देखिए जैसे बोया था वैसा ही लग रहा है।
भ्रमरपुर गांव के ही आशु बाबा (82 वर्ष) कहते हैं।
कृषि वैज्ञानिक सुखाड़ पर बताते हैं कि
धान की अच्छी उपज के लिए खेत में बिचड़ा डालने से लेकर रोपाई तक का सही समय एक जून से 31 जुलाई तक होता है। यानी खेती के लिहाज से इस बीच अच्छी बारिश होनी चाहिए, लेकिन पूरे बिहार में 35 जिले से अधिक जगह बहुत कम बारिश हुई हैं।
सूखा घोषित कराने के लिए किसानों का तेज होगा आंदोलन
बिहार के बांका जिला में विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी डा. मृणाल शेखर की अगुवाई में किसानों की बैठक बिहार को सूखा घोषित करने के लिए किया गया। पूर्व नगर अध्यक्ष प्रदीप गांय इस पूरे बैठक पर हुए चर्चा को लेकर बताते हैं कि
अपने क्षेत्र में अधिकांश किसान किसान बारिश पर ही निर्भर रहते हैं। ऐसे में बारिश नहीं होने के बाद भी सरकार राज्य को सूखा घोषित नहीं कर रही है। जबकि लगभग 60% जिले में आधा से ज़्यादा बुवाई भी नहीं हुई है। सरकार सत्ता की मलाई और गठजोड़ में लगी है। समय रहते सरकार नहीं जगी तो पूरे जिले में भीषण संकट उत्पन्न होगा और इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
सरकार सुखाड़ घोषित क्यों नहीं कर रहा?
19 अगस्त के दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हवाई सर्वेक्षण कर जहानाबाद, गया एवं औरंगाबाद में अल्प वर्षापात से उत्पन्न स्थिति का जायज़ा लिया। फिर 20 अगस्त के दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नालंदा, शेखपुरा, जमुई एवं लखीसराय में अल्प वर्षापात से उत्पन्न स्थिति तथा धान की रोपनी के आच्छादन का जायजा लिया।
जायज़ा लेने के बाद नीतीश कुमार ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि किसानों के लिए सिंचाई कार्य का प्रबंध कराएं ताकि उन्हें किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हो। साथ ही किसानों को 16 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति, सिंचाई की सुविधा, वैकल्पिक फसल योजना के तहत बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कहा गया।
बिहार सुपौल के कोसी नवनिर्माण मंच के अध्यक्ष महेंद्र यादव बताते हैं कि
35 से ज्यादा जिले में न्यूनतम बारिश हुई है। इन सब के बावजूद अभी तक बिहार में सुखाड़ घोषित करने पर किसी भी तरह का कोई बयान नहीं दिया गया हैं। वह सरकार बनाने के लिए लड़ रही है। इधर किसान अपने जिंदगी के लिए जद्दोजहद कर रहा है।
जल प्रबंधन विभाग के अधिकारियों को इस पूरे विषय के बारे में जानकारी लेने के लिए हमने संपर्क किया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया। आपदा प्रबंधन विभाग के पदाधिकारियों से इस विषय पर बात नहीं किए। संपर्क होने की स्थिति में इस रिपोर्ट को अपडेट किया जायेगा।
खाद की किल्लत से ज़्यादा कालाबाज़ारी से त्रस्त हैं किसान
बिहार के जिस जिले और जगह पर रोपनी हो गई है, वहां महंगे दर पर पंपिंग सेट से वह सिंचाई कर रहे हैं। लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी मुसीबत बन रही है यूरिया की कमी। सुपौल जिला के मरोना पंचायत, जो बांध के भीतर स्थित है, वहां के लगभग 7 से 8 किसान 21 अगस्त के दिन सुबह 7 बजे से शहर के बड़े दुकान पर लाइन लगे खड़े थे। जिन्हें शाम 5:00 बजे एक एक बोरा यूरिया मिला। गांव के किसान बसंत ठाकुर बताते हैं कि
पहले गांव में आसानी से यूरिया मिल जाता था। लेकिन पिछले 3-4 साल से बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। खास कर बिहार के बांध के भीतर वाले गांव में। भ्रष्ट पदाधिकारियों और नेताओं की मिलीभगत से खाद की कालाबाजारी की जाती है। नहीं तो कुव्यवस्था की ऐसी तस्वीरें सामने नहीं आती।
सुपौल शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर वीणा बभनगामा, एकमा और लौढ पंचायत स्थित हैं। इन तीनों गांव के किसान वीणा बभनगामा पंचायत में अवस्थित तीन खुदरा दूकानों से खाद खरीदते थे। इस बार तीनों दुकानों में कोई यूरिया नहीं लाया है। तीनों पंचायत के किसान शहर के तीन चार दुकानों से यूरिया खरीदने को मजबूर हैं।
स्थानीय दुकानदार चंद्र नाथ झा बताते हैं कि
सारे ग्रामीण और किसान इस बात से वाकिफ हैं कि ऊपर से खाद महंगी आ रही है। इसके बावजूद धान और गेहूं के सीजन समय कुछ अधिकारी सक्रिय हो जाते हैं जो दुकानदारों पर दबाव बनाते है। इसलिए डर से हम लोग मंगाते ही नहीं हैं।
बिहार के पूर्णिया जिला में खुदरा विक्रेता संघ ने जिला कृषि पदाधिकारी को बाकायदा थोक विक्रेता के विरोध में पत्र लिखा है।
इन सब के बीच किसानों की स्थिति दयनीय बनी हुई है और बिहार में कृषि संकट गहराया हुआ है।