बिहार में सूखा की वजह से खेती पर असर, किसानों की पूरी फ़सल बर्बाद

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बिहार में सूखा की वजह से खेती पर असर, किसानों की पूरी फ़सल बर्बाद
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राज्य में बारिश नहीं होने के कारण धान और मक्का की खेती पर असर पड़ना अब तय माना जा रहा है. बड़े-बुजुर्ग कहते आए हैं कि आद्रा नक्षत्र में झमाझम बारिश होती है. उसके बाद धान की रोपनी करने पर फसल अच्छी होती है. लेकिन आद्रा नक्षत्र जाने के बाद भी राज्य में अच्छी बारिश नहीं हुई, जिससे किसानों में निराशा है.

बिहार हर साल सूखा और बाढ़ की मार झेलता आया है. लेकिन पिछले दो सालों में राज्य में अच्छी बारिश हुई है. इस साल भी मानसून के शुरुआत में मौसम वैज्ञानिकों द्वारा बिहार में अच्छी बारिश होने की संभावना जताई गयी थी. भारतीय मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार बिहार में इस साल मानसून जून से सितम्बर तक अच्छा बना रहेगा और पिछले साल की तरह इस साल भी प्रदेश में सामान्य से ज्यादा बारिश होने की संभावना जताई गयी थी.

प्रदेश के लोगों के लिए ये राहत की खबर थी. मानसून बिहार में समय पर आ भी गया था, और कुछ एक जिलों में बारिश भी अच्छी हुई थी. उत्तर बिहार के जिले पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, सहरसा, मधेपुरा में अच्छी बारिश हुई है लेकिन दक्षिण बिहार में सामान्य से कम  बारिश हुई है.

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मौसम विभाग का पूर्वानुमान था की बिहार में जुलाई में मानसून अपने पीक पर होगा लेकिन जुलाई में भी मानसून कमजोर ही बना रहा, जिससे जिले में सूखे जैसे हालत बन गए है. किसानों के बिचड़े अब खेतों में ही सूखने लगे हैं. जिले में अभी धान की रोपनी शुरू होनी थी लेकिन बारिश नहीं होने के कारण अब किसानो को सूखे की मार झेलनी पड़ रही है. बिहार को एक साथ बाढ़ और सुखाड़ की मार झेलनी पड़ रही है.

उत्तर बिहार में बाढ़ का कहर जारी है. उत्तरी बिहार के जिलों में बाढ़ का कारण नेपाल में हुई भारी बारिश को भी माना जा रहा है. वही दक्षिण बिहार के कई जिलों में सुखाड़ ने किसानो की फसल को चौपट कर दिया है. कृषि विभाग की माने तो राज्य में बारिश तो हुई है लेकिन इतनी अच्छी भी नही हुई है कि खेतों को धान की रोपनी के लिए तैयार किया जा सके.

बिहार में सूखे की मार झेल रहे किसानों को दर्द के बारे में किसान नेता अशोक का कहना है

सरकार को चाहिए कि अब जिलों में सूखे की समीक्षा करके किसानों को डीजल अनुदान दें और सूखा घोषित करे. किसान को प्रकृति की मार तो मिल ही रही है और सरकार भी किसानों की मदद नहीं करती है. मौसम की मार का असर हमारे फसलो पर पड़ता है. मौसम के मार के कारण गेहूं के दाने सूख जाते हैं और उनका वजन कम हो जाता है. जिसके कारण हमारे किसानों को उनके फसल का अच्छा दाम नहीं मिलता है. खाद, कीटनाशक, बीज और बाकि सभी चीजों के दाम बढ़ गए हैं. सरकार ने दावा किया था किसानों के आय दोगुनी कर दी जाएगी लेकिन आज हमारे किसान भाईयों की आय आधी हो गयी है.

कभी सुखा कभी बाढ़ के लिए अशोक उद्योग जगत को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं

उद्योग जगत अपने फायदे के लिए प्रकृति का दोहन करते है लेकिन इसका खामियाजा किसान भुगतते हैं. सरकार तो चाहती है कि किसानों को नुकसान हो और बिना किसी नियम कानून के ही किसान अपनी जमीने कॉर्पोरेट को दे दें. सरकार तो कॉर्पोरेट के लिए है, किसानो का कोई नहीं है.

जल संसाधन विभाग ने बिहार में  1 जून 2022 से अब तक जिले में हुए बारिश के आंकड़ों का विश्लेष्ण किया. इस दौरान पता चला कि राज्य में अब तक सामान्य से 36 फीसदी कम बारिश

हुई है. जुलाई के आंकड़े तो और भी खराब है, मौजूदा महीने में राज्य में 86 फीसदी कम बारिश हुई है . आकड़ों के मुताबिक,राज्य में अब तक 263 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन नौ जुलाई तक 191.7 मिलीमीटर ही बारिश हुई है. राज्य के 20 से 22 जिले ऐसे है जहाँ सामान्य से 40 प्रतिशत या उससे भी कम बारिश हुई है. अरवल, गया और शिवहर में 70 फीसदी से भी कम बारिश हुई है. शेखपुरा में 68, औरंगाबाद 67 फीसदी, सारण और लखीसराय में 63 फीसदी, भागलपुर,कटिहार और नवादा में 58 फीसदी, रोहतास  में 50 फीसदी, नालंदा, भोजपुर, गोपालगंज में 60 फीसदी से कम, शेखपुरा में 68, सीतामढ़ी में 33, सीवान में 54, वैशाली में 48, पश्चिम चंपारण में 39 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है.

मौसम विज्ञानं केंद्र का किसानों को सलाह

वही मौसम विज्ञानं केंद्र पटना ने किसानों के लिए 13 जुलाई को जारी अपने प्रेस विज्ञप्ति में बताया है कि राज्य में 13 तारीख तक सामन्य से 38 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है. वहीं राज्य में जुलाई महीने में बारिश 86 प्रतिशत तक कम हुई है. पटना मौसम विज्ञानं केंद्र ने राज्य में मौसम को लेकर अपने अनुमान में कहा है कि राज्य में 14 तारीख के आसपास बंगाल की खारी में कम दबाव वाला क्षेत्र बन रहा है जिससे राज्य में 19 तारीख के आसपास प्रत्येक जिलों में हल्की या सामान्य वर्षा होने की संभावना है जो अगले 3-4 दिनों तक जारी रहेगी. कृषि विभाग ने किसानों को इस पूर्वानुमान के अनुसार धान की रोपनी करने का सलाह दिया है.

नहरों में भी पर्याप्त पानी नही

किसानों की मुश्किल यहीं खत्म नहीं होती. खेती के लिए मानसून के अलावा किसान नहरों पर भी निर्भर रहते है. इस बार नहरों में भी पानी पर्याप्त नहीं है. सोन, उत्तर कोयल, कोसी, गंडक नहर प्रणाली में पर्याप्त पानी नही है. जिसके कारण नहरो में पानी कि बहुत समस्या है. सोन नहर प्रणाली में इंद्रपुरी बराज से पर्याप्त पानी नहीं आ रहा है. रिहंद और बाणसागर से बिहार को पानी नहीं मिलने के कारण लगभग एक दर्जन जिलों में किसानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. पिछले एक सप्ताह में बिहार की तरफ से 90,059 क्यूसेक पानी की मांग की गयी थी लेकिन मिला केवल 47,998 क्यूसेक पानी और वो भी केवल बाणसागर परियोजना से. मंगलवार को जल संसाधन विभाग के मंत्री संजय कुमार ने उत्तर प्रदेश सरकार से रिहंद  परियोजना से बिहार के इन्द्रपुरी बराज के लिए पानी की मांग की थी लेकिन उत्तर प्रदेश  सरकार ने पानी देने से अपने हाथ खड़े कर दिए हैं. उत्तर प्रदेश सरकार ने कम बारिश का हवाला देते हुए पानी छोरने से मना कर दिया और कहा कि बारिश कम होने के कारण पानी की कमी है. जल संसाधन विभाग के अनुसार सोंन नदी के इन्द्रपुरी बराज पर 9760 क्युसेक पानी डिस्चार्ज के लिए मौजूद था. सोंन नदी में पानी की कमी के कारण इन्द्रपुरी बराज से 7500 क्यूसेक पानी की मांग की थी लेकिन मात्र 2779 क्यूसेक पानी दिया जा रहा है. कोसी नहर प्रणाली से पूर्वी व पश्चिमी मुख्य नहरों में 3500 व1800 क्यूसेक पानी दिया जा रहा है.

बिहार में अच्छी बारिश नही होने के कारण किसान मायूस हैं. राज्य के पटना ग्रामीण, बक्सर, भोजपुर, रोहतास, कैमूर, वैशाली, भागलपुर सहित कई ऐसे जिले हीं जिनकी पहचान धान की अच्छी उपज के लिए जाना जाता है, लेकिन इन जिलों में भी सामान्य से कम बारिश होने के कारण किसान निराश है.

बक्सर में भीषण गर्मी के कारण जलस्तर काफी नीचे चला गया है. जिले में कृषि कार्य प्रभावित हुआ है. कई ट्यूबेल और चापाकलों से पानी निकलना भी बंद हो गया है. खेतो में ही धान के बिचड़े सूखने लगे हैं. खेतों तक पानी पहुंचाने वाली नहरें खुद पानी के लिए तरस रही हैं. किसानो को एग्रीकल्चर फीडर से बिजली भी 24 घंटे में मात्र 5-6 घंटे ही मिल रहा है. वही पटना ग्रामीण क्षेत्र भी पानी की कमी से जूझ रहे हैं. किसानो का कहना है कि अगर 2 से 3 दिन में पानी नही बरसा तो हमारे बिचड़े भी बर्बाद हो जायेंगे. हमारे लिए तो अब उपज से ज्यादा अपने बिचड़े कि ही चिंता है.

नालंदा जिले के सरगांव निवासी किसान शिवाजी प्रसाद कहते है

रोपनी तो हमने ट्यूबवेल के सहारे कर लिया था कि आगे बारिश होगी तो हमारे पौधे बच जायेंगे. लेकिन आगे भी बारिश नही हुआ. अब हम ट्यूबवेल के सहारे खेतो को कितना पटायेंगे. खेतो में तैयार हमारे पौधे अब सुख रहे हैं. महंगे बीज खरीदकर हमने रोपनी किया था. अब तो सिर्फ नुकसान ही उठाना होगा.

कृषि विभाग के अनुसार इस साल बिहार में 34 लाख 69 हजार हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए 36 हजार 718 हेक्टेयर में बिचड़े लगाए गए हैं. बताया जाता है कि इसमें से 190 गांवों के 22 हजार एकड़ से ज्यादा की भूमि में जलवायु अनुकूल कृषि तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा.