कन्या भ्रूण हत्या: क्यों समाज बेटियों को 'पराया धन' की तरह देखता है?

बिहार में कन्या भ्रूण हत्या आज भी एक कलंक के रूप में बना हुआ है, जहां लोग कन्या भ्रूण को जन्म से पहले ही गर्भ समापन करते देते हैं.

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कन्या भ्रूण हत्या: क्यों समाज बेटियों को 'पराया धन' की तरह देखता है?
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बिहार में कन्या भ्रूण हत्या आज भी एक कलंक के रूप में बना हुआ है, जहां लोग कन्या भ्रूण को जन्म से पहले ही गर्भ समापन करते देते हैं. लिंग अनुपात एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय सूचक है, जो किसी भी समाज की सामाजिक-आर्थिक संरचना को दर्शाता है. लिंग अनुपात से हम कन्या भ्रूण हत्या का अंदाजा भी लगा सकते हैं.

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विभिन्न आयु समूहों में महिला मृत्यु दर का उच्च होना और कम लिंग अनुपात एक चिंता का विषय है. कन्या भ्रूण हत्या एक जटिल समस्या बन जाता है. जब इसे सामाजिक, आर्थिक और क्षेत्रीय गतिशीलता के संदर्भ में देखा जाता है.

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राज्य में 1 हजार बेटों पर केवल 908 बेटियां

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS) की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में 1 हजार लड़कों पर केवल 908 बेटियां हैं. बिहार के कई जिलों में लिंगानुपात में कमी दर्ज की गई है. भारत में बिहार सहित गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश जैसे राज्य में आज भी लिंगानुपात की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है.

राज्य का पटना जिला लिंगानुपात के मामले में सबसे कम

बिहार के पटना जिले में 1000 पुरुषों पर केवल 950 महिलाएं हैं. इसके अलावा भागलपुर में भी यह संख्या केवल 986 है. बिहार के अन्य जिलों में भी आंकड़े पिछले NFHS रिपोर्ट के मुकाबले कम पाए गए हैं.

एनएचएसएफ की रिपोर्ट के मुताबिक, अररिया जिले में यह स्थिति पिछले सर्वे की रिपोर्ट से खराब है. 2015-16 के सर्वे के अनुसार अररिया जिले में यह संख्या 1,110 थी जबकि नए सर्वे में यह घटकर 1094 हो गई है.

भागलपुर में भी पिछले सर्वे के मुकाबले इस सर्वे में लिंगानुपात में कमी देखने को मिली है. पिछले सर्वे के अनुसार प्रति 1 हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1015 थी. जबकि इस वर्ष नए सर्वे के अनुसार यह संख्या घटकर 986 हो गई है.

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2011 और 2001 में भी बिहार में लिंगानुपात की स्थिति थी बेहद खराब

अगर बात 2011 की जनगणना की करें तो उस वक्त भी बिहार में लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुषों पर केवल 916 महिलाओं का था. यह आंकड़ा 2001 की जनगणना से भी कम है.

2001 में प्रति 1000 पुरुषों पर 919 महिलाएं थीं. 2011 के आंकड़ों के अनुसार भागलपुर और मुंगेर जिले का लिंगानुपात सबसे कम पाया गया था. जिसमें प्रति 1000 पुरुषों पर केवल 879 महिलाएं थी.

क्या हैं कन्या भ्रूण हत्या के कारण?

कन्या भ्रूण हत्या के कई सामाजिक और आर्थिक कारण है. जिसकी वजह से लोग कन्या भ्रूण को जन्म से पूर्व ही मां के गर्भ में उसकी हत्या करते हैं. इन कारणों में शामिल है:-

1. मां-बाप का यह मानना की पुत्र समाज में उनका नाम आगे बढ़ाएगा. जबकि लड़कियां केवल घर संभालती हैं.

2. पुरुषवादी भारतीय समाज में महिलाओं को निम्न मानना. साथ ही ये मानना कि बेटियां 'पराया धन' होती हैं.

3. गैरकानूनी लिंग परीक्षण से भी कन्या भ्रूण हत्या जैसे मामलों को काफी बढ़ावा मिलता है.

4. आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावक बेटी को दहेज देने से बचने के लिए भी इस तरह का कदम उठाते हैं.

भारत में गर्भ समापन की नहीं की जा सकती मांग, निवेदन पर महिलाएं आश्रित

भारत में गर्भसमापन के लिए महिलाएं किसी प्रकार की मांग नहीं कर सकती. वो केवल संबंधित डॉक्टर से इसके लिए आग्रह कर सकती हैं. इस विषय पर डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने रांची की संस्था 'हाशिया-सोशियो लीगल सेंटर फ़ॉर वीमेन' की संस्थापक अपूर्वा विवेक से बात की. 'हाशिया' झारखंड में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार पर कार्य करता है. अपूर्वा विवेक बताती हैं:-

सबसे बड़ी समस्या है कि भारत में यदि किसी महिला को अबॉर्शन करवाना है. तो वह इसकी मांग नहीं कर सकती. उसे जाकर डॉक्टर से निवेदन करना होगा. अब डॉक्टर की मर्जी पर है कि वह सामने वाले की स्थिति को देखते हुए क्या निर्णय लेता है.

कन्या भ्रूण हत्या (हाशिया-सोशियो लीगल सेंटर फ़ॉर वीमेन)

(हाशिया की संस्थापक अपूर्वा विवेक)

सुरक्षित गर्भसमापन में 'पूर्वाग्रह' सबसे बड़ा खतरा

जब महिलायें सुरक्षित गर्भसमापन के लिए डॉक्टर के पास जाती हैं. तो उन्हें कई रुकावटों का सामना करना पड़ता है. 'हाशिया' की संस्थापक अपूर्वा इस मुद्दे पर कहती हैं:-

निर्णय लेने में डॉक्टर का पूर्वाग्रह भी बहुत बड़ी रुकावट है. कई बार डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी कहते हैं कि 'महिलाएं जानबूझकर गरीबी का बहाना बनाती हैं. और कहती है कि हमें पालन पोषण करने के लिए पैसे नहीं है. इसलिए हम अबॉर्शन करवाना चाहते हैं.' यह व्यवस्था थोड़ी बदलनी चाहिए. यदि कोई महिला अपनी निजी समस्या के कारण गर्भसमापन कराना चाहती है. तो उसे इसका अधिकार होना चाहिए.

MTP एक्ट 2021 में सुरक्षित गर्भसमापन की परिस्थितियां

कन्या भ्रूण हत्या (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट)

भारत में एमटीपी यानी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 2021 के तहत कई परिस्थितियों में महिलाएं अपना गर्भसमापन करा सकती हैं. एमटीपी एक्ट, 2021 के अनुसार यदि उसके पार्टनर के द्वारा गर्भावस्था से बचने के लिए किए गए उपायों के विफल हो जाने पर, किसी महिला के साथ दुष्कर्म हुआ हो या भ्रूण में विकृति हो तो गर्भसमापन कराया जा सकता है.

भावना कटिहार की रहने वाली वाली हैं. जब वो गर्भवती हुईं तो डॉक्टर ने जांच के दौरान उन्हें बताया कि बच्चे के हार्ट में कुछ समस्या है. तब भावना ने गर्भसमापन करना उचित समझा. इस विषय पर हमने शिवम कुमारी (भावना की बहन) से बात की. शिवम ने अपनी बड़ी बहन के साथ होने वाली घटना को साझा करते हुए बताया कि

मेरी बड़ी बहन को पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम था. उसके साथ पहले भी ऐसा हो चुका है. प्रेगनेंसी के 5 महीने बाद डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे को हार्ट डिफेक्ट है. अगर आप चाहें तो डिलीवरी करवा सकते हैं. लेकिन इसके तुरंत बाद उसकी सर्जरी करनी होगी. यदि बच्चे का वजन कम हुआ तो वह सर्जरी भी मुश्किल है. बच्चे को आगे जीवन में कठिनाई हो सकती हैं. इसके बाद हमने फैसला लिया कि बच्चे को टर्मिनेट करना ही ठीक होगा.

कन्या भ्रूण हत्या को लेकर क्या है कानून?

भारतीय दंड संहिता धारा 312 के अनुसार यदि कोई जानबूझकर किसी महिला का गर्भसमापन, उसकी मर्जी के बिना करता है, जबकि गर्भधारण से महिला को किसी भी प्रकार का नुकसान या जीवन हानि ना हो, ऐसे व्यक्ति को 7 साल की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा असुरक्षित ढंग से गर्भसमापन करने की कोशिश से यदि महिला की मृत्यु हो‌ जाए तो वह एक दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है.

इस विषय पर हमने वरिष्ठ अधिवक्ता विशाल कुमार सिंह जी से बात की. उन्होंने हमें बताया कि

1994 में कन्या भ्रूण हत्या को लेकर Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques Act, 1994 भारतीय संसद द्वारा बनाया गया जो पूरे देश में लागू है. इसके अनुसार किसी भी परिस्थिति में गर्भ ठहरने के पश्चात लिंग जांच करना अथवा लिंग जांच करना दंडनीय अपराध है.

सुप्रीम कोर्ट ने पीआईएल नंबर 349/2006 पंजाब स्वैच्छिक स्वास्थ्य संगठन बनाम, भारत सरकार मामले में सरकार को इस कानून के क्रियान्वयन पर कड़ी फटकार लगाई थी. और कहा था कि इस कानून को सही से लागू किया जाए. इसके बाद सरकार ने 2014 में इससे जुड़ी नियमावली जारी की थी.

कन्या भ्रूण हत्या के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है, कि इसके केस दर्ज नहीं होते. आमतौर पर इस घटना को सभी परिवार के ही लोग आपस में छुपा लेते हैं. इससे वो खुद तो बचते हैं ही साथ ही ऐसा करने वाले डॉक्टर और क्लीनिक को भी बचा देते हैं.

लिंगानुपात को बनाए रखने के लिए सरकार को चलाने होंगे कई अभियान

जिस प्रकार केंद्र सरकार 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान चला रही है. ठीक वैसे ही बिहार सरकार को भी कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए राज्य स्तर पर अभियान चलाने की आवश्यकता है.

पितृसत्तात्मक समाज में बदलते दौर के साथ महिलाओं को उनके सभी अधिकार मिलने बेहद आवश्यक हैं. सरकार को चाहिए कि वह कन्या भ्रूण हत्या के कारणों की समीक्षा करें, और इसे जल्द से जल्द समाप्त करें. जब तक समाज में दहेज प्रथा तथा लोगों के दृष्टिकोण महिलाओं के लिए नहीं बदलेंगे, तब तक यह कुप्रथा समाप्त होना बेहद मुश्किल है.