लाइब्रेरियन की बहाली की मांग को लेकर पुस्तकालयाध्यक्ष अभ्यर्थी पिछले 14 वर्षो से इंतज़ार कर रहे हैं. राज्य के सभी सरकारी स्कूल, कॉलेज व विश्विद्यालयों समेत अन्य सभी लाइब्रेरी में पुस्तकालाध्यक्ष की बहाली साल 2008 के बाद से नहीं हुई है.
राज्य में अभी स्कूल, कॉलेज व विश्विद्यालयों समेत अन्य लाइब्रेरियों में 20 हज़ार से अधिक पद रिक्त हैं लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण इन पदों को अभी तक भरा नहीं जा सका है. एक आंकलन के अनुसार राज्य में अभी 50 हज़ार से ज़्यादा लाइब्रेरी साइंस पास अभ्यर्थी बहाली का इंतज़ार कर रहे हैं.
कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस की छात्रा विद्या भारती का कहना है
साल 2018 में मैंने लाइब्रेरी साइंस में बैचलर किया था उसके बाद 2019 में मैंने लाइब्रेरी साइंस से मास्टर डिग्री पूरा किया है. चार साल से मैं लाइब्रेरियन की बहाली का इंतजार कर रही हूं. अभी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही हूं.
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कॉमर्स कॉलेज के ही छात्र फ़रहान आज़मी का कहना है
सरकार और कॉलेज तो अपना ख़ज़ाना भरने में लगे हैं. पैसा और समय तो हम जैसे गरीब छात्रों का ख़र्च होता है. अगर वैकेंसी ही नहीं निकालना है तो कॉलेजों में कोर्स बंद कर देना चाहिए. कम पैसे के कारण बी.एड की जगह पर बी.लिस (बैचलर इन लाइब्रेरी साइंस) किए थे. सोचा इसको करने के बाद भी तो सरकारी नौकरी हो जाएगा. लेकिन कहां पता था कि समय और पैसा दोनों बर्बाद कर रहें हैं. अभी पांच साल से बेरोज़गार घूम रहा हूं. थक-हारकर अलग-अलग सरकारी भर्तियों की तैयारी कर रहे हैं. जुलाई में पटना हाईकोर्ट में असिस्टेंट लाइब्रेरियन का वैकेंसी आया था. अगस्त में परीक्षा भी दिए हैं लेकिन अभी तक रिजल्ट का कोई पता नहीं है.
वहीं लाइब्रेरियन नहीं रहने के कारण स्कूल और कॉलेजों के लाइब्रेरी की स्थिति भी बदतर होती जा रही है. संस्थानों में लाइब्रेरी में किताबों की उचित देखभाल नहीं हो पा रही है. वहीं ज़्यादातर सरकारी स्कूल में तो लाइब्रेरी भी मौजूद नहीं है. कॉलेज में मौजूद लाइब्रेरी ‘नो-ड्यूस’ करने भर का स्थान बनकर रह गया है. कॉलेज जाने वाले ज़्यादातर छात्रों को अपने कॉलेज में मौजूद लाइब्रेरी से कोर्से की किताबें नहीं मिलती है. शिक्षक छात्रों को पुस्तकालय जाने के लिए प्रेरित भी नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें संस्थान में मौजूद लाइब्रेरी की दुर्दशा पता है.
कॉलेज या अन्य संस्थानों में मौजूद लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन नहीं होने के कारण उसकी देखभाल चपरासी या अन्य दूसरे कर्मचारी के ऊपर होता है. चपरासी ही किताबों की देखभाल के साथ-साथ, छात्रों को किताबें जारी करते हैं और रजिस्टर भी मेंटेन करते हैं.
स्कूल में लाइब्रेरियन को लेकर बिहार सरकार की नियमावली
बिहार सरकार के नियमावली के अनुसार प्रत्येक माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूल में पुस्तकालय अध्यक्ष और कनीय पुस्तकालय अध्यक्ष का होना आवश्यक है. बिहार में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों की संख्या 9360 है. लाइब्रेरियन के लिए साल 2008 में 2,789 पदों के लिए बहाली निकला गया था, जिसमे से सिर्फ 1841 पद ही भरे जा सके थे. 928 पद उस समय खाली रह गये थे जो अभी भी खाली हैं. माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों की संख्या के अनुसार स्कूलों में 18,720 पद लाइब्रेरियन के लिए हैं. जिसमे साल 2008 में आयी बहाली में केवल 1,841 पद भरे गये हैं. अभी भी इन स्कूलों लाइब्रेरियन के 16,879 पद रिक्त हैं जिन्हें अभी तक स्वीकृत नहीं किया गया है.
पटना साइंस कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ.अशोक कुमार झा पटना यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट लाइब्रेरियन का अतिरिक्त कार्य भी करते हैं. विश्वविद्यालय में लाइब्रेरियन की कमी को लेकर उनका कहना है कि
लाइब्रेरी किसी भी शिक्षण संस्थान का महत्वपूर्ण अंग होता है. छात्र का विकास किताबों द्वारा और संस्थान का विकास उसके छात्रों द्वारा होता है. लाइब्रेरी में किताबों कि कमी नहीं है. पटना साइंस कॉलेज के लाइब्रेरी में अभी 75 हज़ार किताबें मौजूद हैं. वहीं पटना विवि के लाइब्रेरी में डेढ़ लाख से ज़्यादा किताबें मौजूद हैं. लेकिन इन किताबों के रखरखाव के लिए आवश्यक कर्मियों के कमी के कारण परेशानी उठाना पड़ रहा है.
ऑल बिहार ट्रेड लाइब्रेरियन एसोसिएशन लगातार लाइब्रेरियन की बहाली के लिए सरकार के समक्ष छात्रों के लिए आवाज उठा रहा है. जनवरी में गर्दनीबाग में एक दिवसीय शांतिपूर्ण धरना का आयोजन भी किया गया था जिसमें लाइब्रेरी साइंस के छात्रों ने बड़ी संख्या में धरना प्रदर्शन में भाग लिया था. जिसके बाद उस समय शिक्षा मंत्री रहे विजय कुमार चौधरी ने इसे गंभीरता से लेते हुए आश्वासन दिया था कि नगर निकाय चुनाव के तुरंत बाद भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ कर दिया जाएगा.
डॉ. अशोक कुमार झा आगे बताए हैं
चूंकि यह टेक्निकल पद है तो इसके लिए वैसे कर्मी भी आवश्यक हैं. अभी हमारे यहां लाइब्रेरियन नहीं हैं. असिस्टेंट लाइब्रेरियन के पद भी खाली हैं. लाइब्रेरी में अन्य स्टाफ की भी कमी है. अभी आउट सोर्सिंग के माध्यम से कुछ कर्मी को रखकर काम चलाया जा रहा है. वैसे ही कॉलेज की लाइब्रेरी में भी आउट सोर्सिंग के माध्यम से काम चलाया जा रहा है.
चूंकि अब सरकार भी बदल गयी है और नगर निकाय चुनाव की तिथि का भी कोई निश्चित समय निर्धारित नहीं है तो क्या लाइब्रेरी साइंस की पढ़ाई पूरी कर चुके छात्रों का भविष्य यूं ही अधर में लटका रहेगा और बिहार की लाइब्रेरी में पड़ी किताबें छात्रों के हाथ में पहुंचने के बजाये धूल खाती रहेंगी?