"बिहार स्वास्थ्य विभाग के अनुसार पटना में 1 अप्रैल से लेकर 30 अप्रैल तक कुल 293 मौत हुई है. ये आंकड़ें स्वास्थ्य विभाग ने ट्वीट करके सार्वजनिक किये थे. लेकिन पटना नगर निगम के आंकड़ें कुछ और ही कहते हैं. पटना नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक 1 अप्रैल से लेकर 30 अप्रैल तक सिर्फ़ बांस घाट पर 939 दाह संस्कार कोविड प्रोटोकॉल के तहत किये गए हैं. इसके अलावा गुलबी घाट पर 441, खाजेकलाँ घाट पर 107 और शाहगंज कब्रिस्तान में 35 लोगों को दफ़नाया गया है"
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 30 मई 2021 को एक ट्वीट के ज़रिये ये घोषणा की कि बिहार में वैसे बच्चे-बच्चियां जिनके माता-पिता दोनो की मृत्यु हो गई हो और उनमें से कम से कम एक की मौत कोरोना से हुई हो, उनको ‘बाल सहायता योजना’ के तहत राज्य सरकार द्वारा 18 वर्ष होने तक 1500 रू हर महीने दिया जाएगा. ना सिर्फ़ बिहार सरकार बल्कि Disaster Management Act, 2005 के सेक्शन 12 (iii) के तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकार को महामारी से मृत लोगों के परिजनों को 4 लाख मुआवज़े देने का प्रावधान है.
अभी तक देश में 3.38 लाख लोगों की मौत कोरोना (death covid) से हुई है. ये आंकड़ें 1 जून 2021 तक के हैं. इस हिसाब से केंद्र और राज्य सरकार को 12 हज़ार करोड़ से भी अधिक का मुआवज़ा कोरोना से मृत व्यक्ति के परिवार वालों को देना है. लेकिन ये सारे वादे बेमानी तब हो जाते हैं जब सरकार के पास इसके आंकड़ें ही सही ना हों.
सरकार भी मान रही आंकड़ों में गड़बड़ी
अगर मीडिया रिपोर्ट्स को साइड भी कर दें तब भी सरकार ख़ुद ये मान रही है कि आंकड़ों में भारी गड़बड़ी हुई है. 17 मई 2021 को पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार के मुख्य सचिव त्रिपुरारी शरण और पटना प्रमंडल आयुक्त संजय कुमार अग्रवाल ने बक्सर में मौतों के संबंध में अलग-अलग आंकड़े पेश किए थे. दरअसल पटना प्रमंडल (जिसमें बक्सर ज़िला आता है) आयुक्त द्वारा पेश एफ़िडेविट में बताया गया था कि बक्सर जिले के सिर्फ़ चरित्रवन मुक्तिधाम में 5 मई से 14 मई तक 789 मृत व्यक्तियों का अंतिम संस्कार किया गया था. लेकिन राज्य के मुख्य सचिव के एफ़िडेविट के मुताबिक 1 मार्च 2021 से बक्सर ज़िले में सिर्फ़ 6 मौतें हुई हैं.
ठीक यही स्थिति पटना की भी है. बिहार स्वास्थ्य विभाग के अनुसार पटना में 1 अप्रैल से लेकर 30 अप्रैल तक कुल 293 मौत हुई है. ये आंकड़ें स्वास्थ्य विभाग ने ट्वीट करके सार्वजनिक किये थे. लेकिन पटना नगर निगम के आंकड़ें कुछ और ही कहते हैं. पटना नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक 1 अप्रैल से लेकर 30 अप्रैल तक सिर्फ़ बांस घाट पर 939 दाह संस्कार कोविड प्रोटोकॉल के तहत किये गए हैं. इसके अलावा गुलबी घाट पर 441, खाजेकलाँ घाट पर 107 और शाहगंज कब्रिस्तान में 35 लोगों को दफ़नाया गया है. इसके अलावा पटना में कई और कब्रिस्तानों में कोविड मृतकों को दफ़नाया गया है.
मृत्यु प्रमाण पत्र ना देने के शर्त पर इलाज
पटना के 29 वर्षीय हसीब हाशमी की मौत कोरोना से हुई. डॉ. काशिफ रहमान (फुलवारी शरीफ़, पटना) ने हसीब हाश्मी का कोरोना में इलाज किया लेकिन उनके इलाज से हसीब हाशमी की तबियत और बिगड़ गयी. हसीब हाश्मी की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव थी. जब उनकी तबियत बिगड़ी तब उनके परिवार वाले उन्हें लेकर निदान हॉस्पिटल अनीसाबाद गए जहां पर उनसे साफ़ कह दिया गया कि अगर उनकी मौत हो जाती है तो उन्हें मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं दिया जाएगा.
हसीब हाश्मी के बड़े भाई ज़मीर हाश्मी ने उनका इलाज करवाया लेकिन इलाज के दौरान ही उनकी मौत हो गयी. ऐसे में उन्हें फुलवारी शरीफ़ के एक कब्रिस्तान में दफ़नाया गया. कब्रिस्तान के द्वारा उन्हें मृत्यु प्रमाण पत्र दिया गया जिसमें कोरोना का कोई ज़िक्र था ही नहीं. इस पूरे मामले के ख़िलाफ़ ज़मीर हाश्मी ने बिहार सरकार और प्रधानमंत्री को भी मेल के ज़रिये शिकायत की लेकिन इसपर कोई सुनवाई नहीं हुई.
"अब बात करते हैं मई के महीने की. बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 446 मौत हुई है लेकिन नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक मई के पहले 13 दिनों में ही 1060 लोगों का अंतिम संस्कार कोविड प्रोटोकॉल से किया गया है. इसमें से 541 बांस घाट, 397 गुलबी घाट, 90 खाजेकलां घाट, 4 नंदगोला घाट और 28 शाहगंज कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार किया गया"
लक्षण के बाद भी कोरोना से मौत नहीं मान रही सरकार
गांव में कई लोगों की मौत कोरोना के लक्षणों से हो रही है जिन्हें सरकार कोरोना गिन भी नहीं रही है. सीवान के अत्खम्बा गांव में सुगरा ख़ातून की मौत फेफड़े के इन्फेक्शन से हुई. घर पर इलाज भी कोरोना का हुआ, 4 दिन ऑक्सीजन में रहने के बाद उनकी मौत हो गयी. वारिस अहमद को बुखार और खांसी थी, पांच दिन ऑक्सीजन में रहने के बाद उनकी मौत हो गयी.
अरशद अहमद को बुखार था और सांस लेने में काफ़ी तकलीफ़ थी, हॉस्पिटल ले जाने के दौरान में उनकी मौत हो गयी. आसमा ख़ातून को दो दिन बुखार रहा फिर उन्हें सांस लेने में तकलीफ़ हुई, डॉक्टर के पास ले जाने के दौरान उनकी मौत हो गयी. ये सभी घटनाएं सीवान के एक ही गांव की है. लेकिन सरकार के प्रोटोकॉल के अनुसार जिनके पास कोरोना पॉजिटिव होने की रिपोर्ट है उन्हें ही कोरोना से हुई मौत मानी जायेगी. अगर सरकार लक्षणों के बाद हुई मौत के आंकड़ें इकठ्ठा करेगी तो ये आंकड़ें और भी बढ़ सकते हैं.
लेकिन कई लोग जो कोरोना पॉजिटिव थे उन्हें मृत्यु प्रमाण पत्र ही नहीं दिया जा रहा है जिससे वो ये साबित कर पायें कि उनके परिजन की मौत कोरोना से हुई थी. कलीमा ख़ातून की मौत बेतिया (पश्चिम चंपारण) के राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय सह अस्पताल में कोरोना से मृत्यु हुई. RT-PCR में रिपोर्ट नेगेटिव आई थी लेकिन CT-Scan में रिपोर्ट पॉजिटिव आई. 14 मई को उनकी मृत्यु इलाज के दौरान हुई. लेकिन आज तक उन्हें उनका मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं मिला है. कलीमा ख़ातून के बेटे अफसर अली ने बताया कि
"जिस दिन मां की मौत हुई उस दिन हमें कुछ समझ में नहीं आया कि उनका मृत्यु प्रमाण पत्र भी लेना है. लेकिन दो दिन बाद जब हॉस्पिटल में अप्लाई करने गए तो बड़ा बाबू, उदय कुमार, ने मृत्यु प्रमाण पत्र देने से साफ़ इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि मृत्यु प्रमाण पत्र बनायेंगे तो वो सिर्फ़ नॉर्मल डेथ का बनायेंगे"
सही आंकड़ा जल्द होगा जारी- जिलाधिकारी
कोरोना से हुई मौत के आंकड़ों पर जब डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने नगर निगम के अधिकारियों से बात करनी चाही तो उन्होंने इससे साफ़ इंकार कर दिया. लेकिन पटना के जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने कहा है कि
"अभी हम मौत के आंकड़ें इकठ्ठा कर रहे हैं. 2 दिनों में आंकड़ें पूरे तरीके से इकठ्ठा हो जायेंगे तब हम मौत का आंकड़ा जारी करेंगे"
अभी तक डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने जितने आंकड़ें इकठ्ठा किये हैं वो शहरी इलाकों के ही हैं. गांव में कई जगहों पर कोरोना से हुई मौत को मृतकों के परिजन ही मानने से इंकार कर रहे हैं. ऐसे में अप्रैल और मई के आंकड़ें ज़्यादा होने की संभावना है.