<strong>मिशन 60: स्वास्थ्य व्यवस्था सुधारने की कवायद या पॉलिटिकल प्रोपगेंडा?</strong>

पटना के दूसरे बड़े सरकारी अस्पताल एनएमसीएच (NMCH, Patna) के इमरजेंसी वार्ड का भवन तो बाहरी तौर पर काफी बढ़िया और दुरुस्त नजर आता है. लेकिन इसी वार्ड के मुख्य द्वार पर पड़ा शव मानवीय संवेदना को भी झकझोरता है.

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पटना के दूसरे बड़े सरकारी अस्पताल एनएमसीएच (NMCH, Patna) के इमरजेंसी वार्ड का भवन तो बाहरी तौर पर काफी बढ़िया और दुरुस्त नजर आता है. लेकिन इसी वार्ड के मुख्य द्वार पर पड़ा शव मानवीय संवेदना को भी झकझोरता है.

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क्या है ‘मिशन 60 योजना 
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बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, जो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री भी हैं, ने 7 सितंबर को स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे बिहार के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सदर अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों की स्वास्थ्य सेवाओं को 60 दिनों में सुधार लें. अस्पताल में साफ-सफाई, मरीजों के लिए बेहतर सुविधाएं और उनकी समस्याओं पर कार्यवाई करने की बात कही.

यह सब 6 सितंबर की रात को तब शुरू हुआ जब तेजस्वी यादव अचानक राजधानी पटना के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच (PMCH) में निरीक्षण के लिए पहुंच गए. वहां उन्होंने गंदगी का अंबार देखा और डॉक्टरों को ड्यूटी से गैरहाजिर पाया. तेजस्वी ने उस रात पटना के गार्डिनर रोड अस्पताल का भी औचक निरीक्षण किया था. इस घटना के बाद ही तेजस्वी ने अगले दिन राज्य के सभी सिविल सर्जन, मेडिकल कॉलेज के सुपरिंटेंडेंट सहित अन्य अफसरों की बैठक बुलाई और ‘मिशन 60’ के लक्ष्य को निर्धारित किया.

तेजस्वी यादव की इस तरह की सक्रियता देखकर लोगों को लगा कि इस बार राज्य के सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था में बड़ा सुधार देखने को मिलेगा. मगर उसके बाद भी पीएमसीएच (PMCH) और एनएमसीएच (NMCH) जैसे बड़े अस्पतालों में कोई खास सुधार नहीं दिख रहा है.

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Bihar Deputy CM Tejashwi Yadav
NMCH की स्थिति अमानवीय

पटना के दूसरे बड़े सरकारी अस्पताल एनएमसीएच (NMCH, Patna) के इमरजेंसी वार्ड का भवन तो बाहरी तौर पर काफी बढ़िया और दुरुस्त नजर आता है. लेकिन इसी वार्ड के मुख्य द्वार पर पड़ा शव मानवीय संवेदना को भी झकझोरता है.

शव को अनदेखा करते हुए आप जैसे ही वार्ड के अंदर घुसेंगें आपको वहां फ़ैली गंध बर्दाश्त नहीं होगी. पूरे गलियारे में अजीब तरह की फैली गंध आपको सांस लेने से रोकती है. लेकिन मरीज, उनके परिजन और वहां काम कर रहे लोगों के लिए इसको बर्दास्त करके रहना और काम करना उनकी मजबूरी है.

पूरे गलियारे में पांच से छह की संख्या में मरीजों के स्ट्रेचर आकार के बेड लगे हुए हैं. इस स्ट्रेचरनुमा बेड पर मरीज तो किसी तरह लेटे हुए हैं लेकिन मरीजों के परिजन वहीं बेड के नीचे बैठने को मजबूर हैं. गलियारे में दो खुले डस्टबिन पड़े हैं जिनसे निकलने वाली दुर्गंध पूरे गलियारे में फैली हुई है.

इमरजेंसी वार्ड गलियारे के दोनों ओर बने मरीज रूम की हालत और भी ज्यादा खराब है. यहां फैली गंदगी बर्दाशत के बाहर है. पांच बेड के इस कमरे में एक बूढ़े मरीज के बेड के नीचे फैले खून की उल्टियों को ना जाने कितने घंटों से साफ नहीं किया गया है. वहीं बाकि अन्य बेडों पर पड़े मरीज भी इसी गंदगी में पड़े हुए हैं.

इस छोटे से कमरे में मरीजों के उपयोग के लिए एक खुला डस्टबिन भी रखा हुआ है. लेकिन इस डस्टबिन में स्वास्थ्य कर्मचारियों द्वारा मेडिकल वेस्ट भी फेंका जा रहा है. जो स्वास्थ्य के नजरिए से काफी खतरनाक है.

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मरीजों की संख्या के मुकाबले बेड की संख्या है कम

इमरजेंसी वार्ड किसी भी आपात स्थिति में आए मरीजों के इलाज के लिए बना होता है. यहां पर्याप्त संख्या में बेड का उपलब्ध होना आवश्यक है. लेकिन वार्ड में मरीजों के अनुपात में बेड कि संख्या कम होने के कारण ठंड के मौसम में भी मरीजों को जमीन पर लेटकर इलाज करवाने को मजबूर होना पड़ रहा है.

कंकड़बाग से आई सविता देवी अपने ससुर का इलाज़ करवाने आई हैं. सविता के साथ उनके पति भी आए हैं. सविता बताती हैं

“मेरे ससुर का तबियत अचानक ख़राब हो गया. हमलोग उनको वहां निजी अस्पताल में ले गए. लेकिन वहां से फिर उनको एनएमसीएच भेज दिया गया.”

अस्पताल में उनको क्या-क्या परेशानी हो रहा है. इसपर सविता कहतीं हैं

“परेशानी एक हो तब बताएं. बाथरूम में सफाई नहीं है, पीने का पानी जहां से भरते है वहां भी बहुत गंदगी है. अभी तो आप देख ही रहीं हैं मेरे बगल में ही कचड़ा का डब्बा रखा है. उसमे लोग आके थूकते हैं सब कचड़ा फेंकता है और हमको वहीं बैठना पड़ता है.”

सविता आगे कहती हैं

“रात में सोने का जगह नहीं है इसलिए रात में आराम करने अपने घर चले जाते हैं. फिर सुबह नहा-धोकर वापस यहां आते हैं. क्योंकि यहां का बाथरूम बहुत गंदा रहता है. फिर पूरे दिन किसी तरह काम चलाते हैं.”      

सविता का घर तो पटना में है लेकिन अन्य मरीजों के लिए यह संभव नही है की वो घर जाकर आराम कर सकें. उन्हें अस्पताल में ही किसी तरह रहना पड़ रहा है.

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बाथरूम में भी फ़ैला है गंदगी

इमरजेंसी वार्ड के निचले तल पर बने शौचालय के अंदर चार कमरे बने हुए हैं. शौचालय ढांचागत तौर पर तो अच्छी स्थिति में है लेकिन उसके अंदर काफी गंदगी फैली हुई है. शौचालय के अंदर एक लाइन में चार से पांच नल लगे हुए हैं. पांच नल में से दो नलों से लगातार पानी बहने के कारण पूरे बाथरूम में चलना खतरनाक हो गया है.

ऐसी ही समस्या वार्ड के ऊपरी तल पर बने शौचालय में भी देखने को मिल रहा है. इस  शौचालय में भी पानी के कारण फिसलन बना हुआ है. साथ ही शौचालय में महिला और पुरुष के इस्तेमाल के लिए कोई इंडिकेटर भी नहीं लगा हुआ है.

इमरजेंसी वार्ड के ऊपर बने मेल वार्ड की स्थिति भी खराब है. यहां भी मरीजों को गलियारों में जमीन पर लगे गद्दों पर भर्ती किया गया है. क्योंकि वार्ड के अंदर उपलब्ध सारे बेड भरे हुए हैं. गलियारे में दोनों ओर फर्श पर लगें गद्दों पर मरीज लेटे हुए हैं. उनके परिजन वहीं किसी तरह समय काटने को मजबूर हैं.

सीतामढ़ी से आई रामो देवी के पति का पैर टुटा हुआ ही. उन्हें अस्पताल में भर्ती तो किया गया लेकिन बेड नहीं मिला. रामो देवी कहती हैं

“खेत के पगडंडी पर गिर गए थे. पैर घूम गया है. वहां दिखाए तो बस मोच बताया और पट्टी बांध के घर भेज दिया. लेकिन धीरे-धीरे पैर सूजने लगा और दर्द भी बढ़ गया. एक्स-रे कराने पर हड्डी टूटने का पता चला. अच्छा इलाज के लिए पटना लेके चले आए. इलाज तो बढ़िया हो रहा है लेकिन ठंडा में नीचे सोना पड़ रहा है. हम तो किसी तरह सो ले रहे हैं लेकिन इनको बेड मिल जाता तो अच्छा रहता.”

पूरे अस्पताल में कमोबेश यही स्थिति है. पीने के पानी, मरीज और उनके परिजनों के लिए बने  शौचालय, परिसर में खुले पड़े डस्टबिन, मरीजों के बैठने के लिए बने शेड में फैली गंदगी और यहां-वहां परिसर में फैली गंदगी अस्पताल कर्मचारियों और मरीज के परिजनों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं.   

अस्पताल कि एक महिला कर्मचारी नाम नही बताने के शर्त पर कहती हैं

“देखिए गंदगी के लिए सिर्फ हमलोग या प्रशासन जिम्मेदार नहीं है. मरीज भी शौचालय का इस्तेमाल करके उसकों गंदा छोड़ देते हैं. इधर-उधर कचड़ा फेंक देते हैं, सीढी पर गुटखा थूक देते हैं. हमलोग तो साफ करते ही रहते हैं.”    

यह स्थिति तब बनी हुई है जब उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अस्पतालों के अंदर व्याप्त कमी को 60 दिनों के अंदर दुरुस्त करने का अल्टिमेटम दिया था. उपमुख्यमंत्री द्वारा दिया गया अल्टिमेटम बीते हुए भी 30 दिन हो चुके हैं.

क्या है पीएमसीएच (PMCH) का हाल? 

राज्य के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच (PMCH, Patna) का हाल कुछ ऐसा है कि गंदगी से मरीजों की हालत काफी खराब है. नए इमरजेंसी वार्ड में हालत कुछ ठीक जरूर है लेकिन बाकि स्थानों पर नहीं. आपको बता दें कि पीएमसीएच (Patna Medical College and Hospital) में कुल 36 वार्ड हैं जिनमें अधिकतर वार्डों में बेड की कमी है. इसके साथ ही साफ-सफाई को लेकर स्थिति बेहद खराब और दयनीय है. मरीज गंदे और बदबूदार शौचालयों को इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं.

उपमुख्यमंत्री के औचक निरीक्षण के बाद भी हालत ज्यों-की-त्यों

पीएमसीएच (PMCH) की यह हालत बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के औचक निरीक्षण के बाद भी नहीं सुधर पाई है. जैसा कि आपको पता होगा की कुछ दिनों पहले ही बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने PMCH का औचक निरीक्षण किया था जिसके बाद उन्होंने PMCH की बदहाल व्यवस्था को ठीक करने और गलती करने वाले अधिकारियों पर कार्यवाई करने की बात कही थी.

हमने बाहर खड़े कई मरीजों से बात की एक मरीज आनंद ने बताया कि

“मैं कई घंटों से इंतजार कर रहा हूं. लेकिन समय हो जाने के बावजूद भी डॉक्टर साहब अब तक नहीं आए हैं. मुझे पेट में दर्द हो रहा है. मेरे परिजन भी मेरी वजह से अस्पताल में कई समस्याओं को झेल रहे हैं.”

स्ट्रेचर पर लेटी एक औरत जिनके पति ने हमें बताया कि

“मेरी पत्नी को लंबे समय से छाती में दर्द है. वैसे उसे पहले भी PMCH में डॉक्टर से दिखा चुका हूं. लेकिन स्थिति में सुधार नहीं होने की वजह से मुझे फिर डॉक्टर से मिलना पड़ा.डॉक्टर ज्यादातर अपने चेंबर से नदारद रहते हैं. सीनियर डॉक्टर के स्थान पर जूनियर डॉक्टर मौजूद रहते हैं. जिस डॉक्टर ने पहले मेरी पत्नी का इलाज किया था अबकी बार कोई दूसरा डॉक्टर उसे देखने वाला है. जबकि अच्छा यह होता कि जिस डॉक्टर ने पहले समस्या देखी है वही दोबारा भी देखें.”

शुभम जिसकी मां पीएमसीएच में भर्ती हैं. शुभम ने बताया कि

“मैं अपनी मां के इलाज के लिए आया हूं. लेकिन कल जब एक जांच के लिए मैं अपनी मां को शौचालय की ओर ले जा रहा था तो वहां की गंदगी देखकर मैं दंग रह गया. पीएमसीएच प्रशासन साफ-सफाई को लेकर बहुत लापरवाह है. शौचालयों से काफी बदबू आती है.”

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बड़ा बजट लेकिन कोई फायदा नहीं

आपको बता दें पिछले साल बिहार सरकार ने पीएमसीएच के लिए 5500 करोड़ रुपए का बजट रखा था. सवाल यह उठता है कि आखिर यह पैसा जा कहां रहा है? जब सुविधा के नाम पर मरीजों को जमीन पर सोना पड़े और बदबूदार शौचालयों का इस्तेमाल करना पड़े तो ऐसे में सवाल उठना लाजमी है.

मिशन 60 के अंतर्गत सरकारी अस्पतालों को 60 दिनों के अंदर दुरुस्त करने की योजना कितनी सफल रही है. इस पर पॉलीक्लिनिक के डॉक्टर और स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. शकील का कहना है कि

“आप जब मिशन 60 योजना को पढेंगे तो देखेंगे इसमें केवल अस्पतालों के रंग-रोगन और साफ़-सफ़ाई करवाने का निर्देश दिया गया है. इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने की बात नहीं कही गई है. तो इसतरह से मिशन 60 एकतरह से पॉलिटिकल अनाउंसमेंट मात्र है. एकतरह से लचर हो चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था को 60 दिनों में ठीक करना कहीं से भी संभव नही है. लेकिन यहां एकबात सही है कि सरकार कम से कम अब इसपर बात कर रही है.”

इसके अलावा समय पर डॉक्टरों का मरीजों के लिए उपस्थित ना होना एक बड़ी समस्या है. आपको बता दें कि पीएमसीएच में डॉक्टरों और शिक्षकों को मिलाकर कुल 586 पद रिक्त है लेकिन वर्तमान में केवल 331 सीट ही भरे हुए हैं जबकि 225 पद खाली हैं.

इसके अलावा फार्मेसी में भी दवाइयों की अनुपलब्धता भी सरकार के द्वारा रखे गए इतने बड़े बजट को लेकर कई सवाल खड़े करती है. सरकार का यदि यही रवैया रहा तो बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत हमेशा बदहाल ही रहेगी. बिहार के लोग इसी तरह अपना इलाज करवाते हुए अस्पताल में परेशानियों का सामना करेंगे और यह सिर्फ कहने की बात होगी कि पीएमसीएच राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल है.  

डॉक्टर शकील ने मिशन 60 के अलावा स्वास्थ्य बजट को बढ़ाने पर जोर देते हए कहा

“इसके लिए अब सरकार को स्वास्थ्य विभाग का बजट बढ़ाना होगा. साथ ही उस बजट के अनुसार रोडमैप भी बनाना होगा. कई बार बजट होने के बाद भी रोडमैप के कमी के कारण काम बहुत धीरे होता है. साथ ही अस्पतालों में मानव संसाधन की भी भारी कमी है इसको भी दूर करना होगा. दूसरी बात सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों में सॉफ्ट स्कील डेवलप (विकसित) होना भी जरूरी है. क्योंकि सरकारी अस्पतालों में ज्यादातर निम्न तबके लोग इलाज के लिए आते हैं. इसकारण उनके साथ कई बार बुरा व्यवहार भी किया जाता है, जो की डिग्निटी ऑफ़ हेल्थ (स्वास्थ्य की गरिमा) के खिलाफ़ है.”

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