बिहार: चुनाव नज़दीक आते ही अमित शाह को याद आया चीनी मिल का मुद्दा

चीनी मिल के मुद्दे पर बिहार के साथ सिर्फ़ धोखा किया गया है. 20 सालों से चीनी मिल शुरू करने का वादा अब झूठा साबित हो चुका है. लेकिन चुनाव आते ही फिर से चीनी मिल का मुद्दा वादा बनकर सबके सामने आया है.

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आमिर अब्बास
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बंद चीनी मील

मढ़ौरा (सारण) में बंद पड़ी चीनी मिल

बिहार की बंद हुई चीनी मिल की मिठास कब लौटेगी? बंद हुई चीनी मिलों में काम कर चुके हज़ारों मज़दूरों और किसानों को उनका बकाया पैसा कब मिलेगा? कब नए सिरे से शुरू हुई मिल से बिहार के लोगों को रोज़गार मिलेगा? इन सब सवालों का जवाब शायद सरकार के पास नहीं हैं. तभी तो चुनाव के समय वोट के लिए मुद्दे उठाये जाते हैं और फिर मुद्दा ठंडे बसते में चले जाते हैं.

चुनावी सरगर्मी के साथ चुनावी जुमले भी शुरू

2005 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने चीनी मिल का मुद्दा उठाया था. मोतीपुर चीनी मिल के मैदान में आयोजित जनसभा में मुख्यमंत्री प्रत्याशी नीतीश कुमार ने किसानों और चीनी मिल के मज़दूरों से दुबारा मिल शुरू किए जाने का वादा किया था. लेकिन सरकार बनाने और लगभग 20 सालों से बिहार की सत्ता में काबिज़ नीतीश कुमार अपना वादा पूरा नहीं कर पाए.

वहीं समाधान यात्रा के दौरान सासामुसा चीनी मिल शुरू किए जाने का वादा भी नीतीश कुमार कर चुके हैं. 

ऐसा नहीं है कि मिल खोलने का वादा केवल नीतीश कुमार ने ही किया. बल्कि बिहार में नीतीश कुमार के सहारे सत्ता में आने वाली बीजेपी और 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भी बिहार की जनता को चीनी मिल का सपना दिखाया था.

अप्रैल 2014 में नवादा जिला मुख्यालय के आईटीआई ग्राउंड में चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने जनता से पूछा था आखिर वारिसलीगंज चीनी मिल से दशकों से धुआं क्यों नहीं निकला है? इसे सुनकर जनता के मन में उम्मीद जगी कि शायद प्रधानमंत्री बनने पर नरेंद्र मोदी मिल को चालू करवा देंगे.

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर तीसरी बार चुने गए हैं. लेकिन आज भी वारिसलीगंज चीनी मिल के ताले बंद हैं. बीते कुछ समय से उसकी जगह सीमेंट फैक्ट्री शुरू किये जाने की बात कही जा रही है. लेकिन स्थानीय लोग इस फ़ैसले से सहमत नहीं हैं. 

इसके अलावा सीतामढ़ी स्थित रीगा चीनी मिल भी शुरू नहीं किया जा सका है. गृह मंत्री अमित शाह ने 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान सरकार बनने पर इसे शुरू करने का वादा किया था.

30 मार्च 2025 को गृहमंत्री अमित शाह बिहार के दौरे पर आते हैं. इस दौरे में गृहमंत्री फिर से चीनी मिल खुलवाने का वादा करते हैं. गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 30 चीनी मिल को दुबारा शुरू किया जाएगा."

रीगा चीनी मिल इस दिन होगी चालू
बंद पड़ी रीगा चीनी मिल

सरकार चीनी मिल के मुद्दे पर निष्क्रिय क्यों है?

बिहार में साल 2018-19 के बाद चीनी के उत्पादन में गिरावट का कारण शायद दो चीनी मिल का बंद होना रहा है. दरअसल, साल 2020 में सीतामढ़ी स्थित रीगा चीनी मिल के घाटे में जाने के बाद मिल मालिक ओमप्रकाश धनुका ने मिल को बंद कर दिया. मिल पर 25 हज़ार किसानों और 1200 कर्मचारियों के करोड़ों रूपए का भुगतान बकाया है.

वहीं गोपालगंज की सासामुसा चीनी मिल भी बंद पड़ी है. सासामुसा चीनी मिल पर किसानों के 43 करोड़ रूपए का बकाया है. लेकिन इसके बाद भी सरकार का इस मामले में कोई उचित हस्तक्षेप नहीं रहा. फ़िलहाल ये मामला कोर्ट में है.

किसान नेता अशोक प्रसाद गन्ना किसानों का मिल के ऊपर करोड़ो रुपए  बकाया होने पर किसान की मजबूरी और सरकार की विफलता को दोष देते हैं. उनका कहना है, अगर सरकार नियमित भुगतान की निगरानी करती तो किसानों को करोड़ों का नुकसान नहीं होता.

अशोक प्रसाद कहते हैं “बिहार में किसानों के नगदी आमदनी का साधन पशुपालन और गन्ना था. गन्ना की फ़सल नगदी फ़सल है. इसको उपजाकर घर में नहीं रखा जा सकता है. मिल वाले इसका फ़ायदा उठाते हैं. इसलिए पैसा नहीं मिलने पर भी किसान हाथ-पैर जोड़कर फ़सल मिल को दे देता हैं. इस उम्मीद पर कि आज नहीं तो कल पैसा मिल जायेगा. अगर किसान नवंबर में फ़सल देना शुरू करता है तो मिल वाले पिछले मूल्य पर ही भुगतान करते हैं या पर्ची (रसीद) देकर छोड़ देते हैं.”

गन्ना की खेती में सिचाई की समस्या

गन्ना किसानों की बात कब सुनेगी सरकार? 

राज्य सरकार गन्ना उत्पादन में लगे किसानों को सहूलियत पहुंचाने का दावा करती है. सरकार का दावा है कि वह किसानों को सिंचाई के साधन उपलब्ध कराकर, अनुदान पर बीज उपलब्ध कराकर और प्रशिक्षण कार्यकर्मों के माध्यम से सशक्त बना रही है.

लेकिन सहरसा जिले के नरियार ब्लॉक के किसान इस तरह की किसी भी सुविधा के मिलने से इंकार करते हैं. यहां के किसानों की गन्ना फ़सल पानी के अभाव में बर्बाद हो गयी. सिंचाई का साधन नहीं होने के कारण किसानों ने निजी बोरिंग के माध्यम से फ़सल बचाने का प्रयास किया. लेकिन मंहगे पटवन लागत के कारण किसान एक से ज़्यादा बार फ़सल को पानी नहीं दे सके.

किसान छोटे लाल दास ने एक बीघे में गन्ना का फसल लगायी थी. लेकिन पानी के आभाव में फ़सल सूख गयी. छोटे लाल कहते हैं “यहां ना तो फसल बचाने के लिए पानी का व्यवस्था है और न ही बेचने के लिए नज़दीक में कोई मिल. इस साल एक बीघा में गन्ना लगाए थे सब सूख गया.” 

छोटे लाल के अलावा, सुरेंद्र दास, धर्मेंद्र दास, रिंकू देवी और किसन दास की भी गन्ना फसल सूख चुकी है. इन सभी किसानों ने आगे गन्ना लगाने से इंकार किया है.

बंद चीनी मिल पार्ट 2

मुख्यमंत्री गन्ना विकास योजना के तहत पंचायती राज्य संस्थाओं के जरिए चुनिंदा किसानों को सब्सिडी दर पर प्रमाणित बीज उपलब्ध कराया जाता है. किसानों को अधिकतम 2.5 एकड़ जमीन के लिए प्रमाणित ईख बीज की खरीद पर 210 रुपए प्रति क्विंटल और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए 240 रुपए प्रति क्विंटल सब्सिडी दी जाती है.

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार साल 2022-23 में बीज उत्पादन, वितरण और कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए 1275.62 लाख रुपए खर्च किए गए थे. वहीं 2.9 लाख टन बीज बांटे गये थे.

बिहार औद्योगिक प्रोत्साहन नीति 2016 के तहत सितंबर 2023 तक राज्य सरकार को विभिन्न उद्योग लगाने के लिए 1934 प्रस्ताव मिले थे. जिसमें से प्रथम चरण में 1689 को मंजूरी दी गयी. इसमें पांच चीनी मिलों के विस्तार के लिए 1922.34 करोड़ रुपए का निवेश प्रस्तावित है. लेकिन साल 2025 तक इन पर कोई काम शुरू नहीं हो सका है.

बिहार में चीनी मिल शुरू किये जाने का वादा नेताओं के लिए 'सत्ता की चाशनी' चखने का भर का रास्ता बनकर रह गया है. जो सरकार बनाने से पहले वादा तो करते हैं, पर सरकार बनते ही इसे अगले पांच सालों के लिए डब्बे में बंद कर देते हैं.

 

 

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