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बिहार के सीतामढ़ी जिले के बेलसंड प्रखंड में स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की 42 बच्चियों ने शायद कभी नहीं सोचा था कि जिस भोजन से वे अपने सपनों को ऊर्जा देंगी, वही उनकी सेहत के लिए ख़तरा बन जाएगा. बुधवार की रात भोजन में कथित तौर पर छिपकली गिरने से ये बच्चियां बीमार पड़ गईं. किसी को उल्टियां हुईं, किसी को चक्कर आया, तो किसी का पेट दर्द से कराह उठा. ये मासूम बच्चियां शिक्षा और बेहतर भविष्य की उम्मीद लिए इस विद्यालय में आई थीं, लेकिन यहां मिली सिर्फ़ लापरवाही और असुरक्षित भोजन.
बर्ड फ्लू के बीच चिकन परोसने की लापरवाही
बर्ड फ्लू के खतरे को देखते हुए स्कूलों में अंडा और चिकन परोसने पर प्रतिबंध लगा हुआ था. इसके बावजूद कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में बच्चियों को चिकन दिया गया. यह महज एक गलती नहीं, बल्कि एक गंभीर लापरवाही है, जिससे दर्जनों बच्चियों की जान खतरे में पड़ गई. विद्यालय की बच्ची विभा कुमारी ने बताया कि “रात के खाने में चिकेन परोसा गया था, लेकिन जैसे ही खाना खाने वालों को पता चला कि खाने में छिपकली गिर गई है, वहां अफरा-तफरी मच गई. कई लड़कियों को उल्टी होने लगी और कुछ बेहोश हो गईं. मुझे भी उल्टी होने लगी और मेरी हालत ख़राब हो गई. तुरंत हमें एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया गया, जहां हमें तुरंत इलाज दिया गया.
भोजन से बीमार पड़ीं बच्चियां, प्रशासन जांच में उलझा
जैसे ही भोजन में छिपकली गिरने की ख़बर फैली, बच्चियों की तबीयत बिगड़ने लगी. डर, घबराहट और विषाक्त भोजन का असर तुरंत दिखने लगा. कुछ ही समय में उन्हें अनुमंडलीय अस्पताल बेलसंड ले जाया गया. जहां चिकित्सकों ने बताया कि यह विषाक्त भोजन के कारण हुआ है. चिकित्सकों ने बताया कि इस प्रकार की स्थिति अक्सर तब होती है, जब भोजन में किसी तरह के कीटाणु या विषाक्त पदार्थ मिल जाए. प्रशासन ने जांच के आदेश दिए, लेकिन क्या यह जांच उन बच्चियों के डर को मिटा पाएगी? क्या यह सुनिश्चित कर पाएगी कि आगे से कोई और बच्ची ऐसी स्थिति का शिकार न हो?
उसी विद्यालय में पढ़ने वाली कोमल बताती हैं कि “ जब ये घटना हुई बच्चे इधर उधर भागने लगे, हंगामा सा हो गया था, कोई बेहोश होती तो कोई उल्टियां करती. ऐसे में मैं सरकार से ये सवाल करना चाहती हूं की आख़िर सरकारी विद्यालय में ही ऐसा क्यों होता है की कभी छिपकली गिर जाती तो कभी कुछ. हमारे आपसे विनती है की इसपर ध्यान दिया जाए अन्यथा हम भोजन खाना ही बंद कर देंगे.”
सरकारी स्कूलों में भोजन की व्यवस्था पर सवाल
प्रधानाध्यापक मनोज शाही ने कहा कि “रसोई से सूचना मिलने पर तुरंत बच्चियों को अस्पताल भेजा गया. सभी का इलाज कराया गया.”
लेकिन यह कोई पहली बार नहीं है जब मिड डे मील योजना में ऐसी लापरवाही सामने आई है. बिहार सरकार ने 2005 में इस योजना को पूरे राज्य में लागू किया था, जिसका उद्देश्य बच्चों को पौष्टिक भोजन देना और उनके स्वास्थ्य को बेहतर बनाना था. लेकिन जब इस योजना में ही लापरवाही हो, जब साफ़-सफ़ाई और सुरक्षा के नाम पर केवल खानापूर्ति हो, तो फिर यह योजना अपने असल मकसद से भटक जाती है.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स और भारत की स्थिति
भारत में भूख और कुपोषण की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है. 2021 में भारत का ग्लोबल हंगर इंडेक्स रैंक 101 था, जो 2022 में गिरकर 107 हो गया. 2023 में यह 111 तक पहुंच गया और 2024 में भी कोई खास सुधार नहीं हुआ, भारत 105वें स्थान पर रहा. यह आंकड़े बताते हैं कि देश में भोजन की व्यवस्था केवल कागजों पर चल रही है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही है.
बाल कुपोषण और सरकारी योजनाओं की हकीकत
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, देश के कई राज्यों में बाल कुपोषण की स्थिति और बदतर हो गई है. भारत दुनिया के लगभग 30% अविकसित बच्चों और पांच वर्ष से कम आयु के 50% गंभीर रूप से कमजोर बच्चों का घर बन चुका है. यह आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं हैं, बल्कि यह उन मासूमों की कहानी कहते हैं, जिनके हिस्से में भरपेट भोजन तक नहीं आता.
मिड डे मील योजना में घोटाले और पक्षपात
जन जागरण शक्ति संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, 20% स्कूलों में मिड डे मील का बजट अपर्याप्त है. खासकर अंडे के बजट को लेकर समस्या बनी हुई है. कई स्कूलों में धार्मिक कारणों से अंडे परोसे ही नहीं जाते, जबकि यह बच्चों के पोषण के लिए ज़रूरी है. आशीष, जो इस मामले को नज़दीक से देख रहे हैं, बताते हैं कि “ कई जगहों पर अंडा नहीं दिया जाता और पैसों की कमी के कारण बच्चों को बिस्कुट तक नहीं मिल पाता. यह तब हो रहा है जब सरकारी नियमों के अनुसार प्रत्येक प्राथमिक कक्षा के बच्चे के लिए 4.97 रुपये और उच्च प्राथमिक के लिए 7.45 रुपये का दैनिक भोजन बजट तय है.”
ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट और भारत की सच्चाई
ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत एनीमिया और चाइल्डहुड वेस्टिंग (कम वजन और कुपोषण) पर कोई ख़ास प्रगति नहीं कर सका. 2019 में भारत में भूख का स्तर 14% था, जो 2020 में बढ़कर 15.3% हो गया. यह संकेत देता है कि हम अपने बच्चों को भोजन तो नहीं ही दे पा रहे हैं, बल्कि उन्हें कुपोषण और बीमारी की ओर भी धकेल रहे हैं.
अगली बार खाने की थाली में क्या होगा?
बेलसंड की ये 42 बच्चियां आज अस्पताल से ठीक होकर घर आ गई होंगी, लेकिन उनके मन में यह डर शायद हमेशा बना रहेगा कि अगली बार खाने की थाली में क्या होगा? सरकार और प्रशासन इस मामले की जांच करेगा, लेकिन क्या यह जांच केवल एक फाइल बनकर रह जाएगी?
सरकारी स्कूलों में भोजन की गुणवत्ता पर सवाल उठाने का यह सही समय है. बच्चों को केवल भोजन ही नहीं, बल्कि सुरक्षित और पोषणयुक्त भोजन मिले—यह सुनिश्चित करना सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है. जब तक इस जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा, तब तक कोई न कोई बेलसंड हर दिन जन्म लेता रहेगा, और मिड डे मील योजना अपने उद्देश्य से भटकती ही रहेगी.