क्या बिहार के आंगनबाड़ी में कुपोषण से लड़ने की ताकत बची है?

देश में आंगनबाड़ी पोषण सहायता, शिक्षा, महिला एवं बाल स्वास्थ्य देखभाल में अहम भूमिका निभाती हैं. लेकिन योजनाओं के बढ़ते बोझ, संसाधन की कमी, काम के अनियमित घंटे और कम वेतनमान से परेशान आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अब सरकार के लिए काम करने के लिए तैयार नहीं है.

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क्या बिहार के आंगनबाड़ी में कुपोषण से लड़ने की ताकत बची है?

क्या बिहार के आंगनबाड़ी में कुपोषण से लड़ने की ताकत बची है?

पटना के यारपुर स्लम बस्ती में रहने वाली वर्षा देवी के दो बच्चे हैं जिनकी उम्र छह साल और तीन साल है. वर्षा के पति पटना नगर निगम में सफ़ाई कर्मचारी हैं.

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कुछ महीने पहले मोहल्ले में चलने वाला आंगनबाड़ी बंद हो जाने के कारण वर्षा के दोनों बच्चे अब घर पर ही रहते हैं. आंगनबाड़ी बंद होने से उन्हें क्या समस्या होती है? इस पर वर्षा कहती हैं “पहले घर के पास ही आंगनबाड़ी चलता था. वहां कुछ नहीं तो सुबह में बच्चे को खिचड़ी मिल जाती था. लेकिन जब से आंगनबाड़ी बंद हुआ बच्चे घर पर ही रहते हैं.”

वर्षा का कहना है आंगनबाड़ी दूर चले जाने के कारण बच्चे की पढ़ाई रुक गयी है. घर की कमाई कम होने के कारण वर्षा अपने बच्चे को प्ले स्कूल नहीं भेज पाती हैं.

यह समस्या केवल वर्षा की नहीं है. स्लम बस्ती में रहने वाली हजारों परिवारों की यही समस्या है. बस्ती में आंगनबाड़ी केंद्र होने के बावजूद वह खुलता नहीं है. दूसरा आंगनबाड़ी केंद्र बस्ती में है ही नहीं और जहां आंगनबाड़ी केंद्र हैं भी वह संसाधनों की कमी के कारण नियमित ढंग से काम नहीं करते हैं.

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आंगनबाड़ी पर बढ़ता बोझ

वंचित समुदायों के लिए पोषण, स्वास्थ्य या बच्चों के लिए प्रारंभिक शिक्षा देने के लिए जब भी कोई योजना बनाई जाती है तो उसकी ज़िम्मेदारी आंगनबाड़ी को सौंप दी जाती है. साल 2020 में आई ‘नई शिक्षा नीति’ भी आंगनबाड़ी को प्रारंभिक शिक्षण के लिए तैयार किए जाने की हिमायत करती है.

इस साल मई महीने में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने ‘पोषण भी, पढ़ाई भी’ नाम से एक योजना की शुरुआत की है. इसका उद्देश्य देशभर में चल रहे आंगनबाड़ी केन्द्रों पर बच्चों को प्रारंभिक देखभाल और बुनियादी शिक्षा (Early Childhood Care and Education – ECCE) देना है.

बच्चों की प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा (ECCE), मिशन सक्षम आंगनबाड़ी और पोषण 2.0 का महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसकी परिकल्पना ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के तहत की गयी है.

अधिकांश आंगनबाड़ी पूरे महीने नहीं खुलते

बिहार आईसीडीएस पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बिहार में कुल 1 लाख 17 हजार 820 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. जिसमें से 1 लाख 14 हजार 988 आंगनबाड़ी ही मौजूदा समय में कार्यरत हैं. इनमें 7 हज़ार 115 मिनी आंगनबाड़ी केंद्र हैं. बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से 18 हज़ार अतिरिक्त आंगनबाड़ी केंद्र की मांग की है.

गांव और स्लम बस्तियों के बीच स्थापित होने वाले इन आंगनबाड़ी केन्द्रों से एक करोड़ 84 लाख न्यूनतम आय वाले परिवार की महिलाएं एवं बच्चे जुड़े हुए हैं.

लेकिन काफी संख्या में आंगनबाड़ी केंद्र महीने के 28 दिन नहीं खुलते हैं. पोषण ट्रैकर पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार महीने में 21 दिन तक खुलने वाले आंगनबाड़ी केन्द्रों की संख्या मात्र 84 हजार 303 है. वहीं महीने में कम से कम 15 दिनों तक खुलने वाले आंगनबाड़ी केन्द्रों की संख्या 1,03,439 है.

नवजात से लेकर छह वर्ष तक के बच्चों के लिए हैं योजनाएं

राज्य में इस समय एक लाख 12 हजार 299 महिला कार्यकर्ता आंगनबाड़ी केन्द्रों से जुड़ी हैं. ये महिलाएं वेतनमान और पेंशन सुविधा जैसी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन कर रही हैं. प्रदर्शन और विरोध के कारण समय-समय पर आंगनबाड़ी केंद्रों को बंद कर दिया जाता है. ऐसे में 100 प्रतिशत बच्चों को पोषण और प्रारंभिक शिक्षा मिल पाना बमुश्किल ही संभव लगता है.

राज्य में छह महीने से छह साल तक के 95 लाख 50 हजार 532 बच्चे आंगनबाड़ी केन्द्रों से जुड़े हैं. वहीं नवजात शिशुओं और छह महीनों (0-6 महीने) तक के बच्चों की संख्या 2 लाख 55 हजार 494 है.

बच्चों के अलावा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए भी आंगनबाड़ी केन्द्रों में योजनाएं चलाई जाती हैं. राज्यभर में 6 लाख 85 हजार 221 गर्भवती महिलाएं आंगनबाड़ी से जुड़ी है. वहीं स्तनपान करने वाली महिलाओं की संख्या 3 लाख 58 हजार 224 है.

हालांकि बिहार जैसे घनी आबादी और न्यूनतम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्य में यह संख्या काफी कम है.

आंगनबाड़ी में मिलने वाली सुविधाओं पर वर्षा कहती हैं “आंगनबाड़ी में कुछ सुविधा मिली कुछ नहीं. जब बेटी होने वाली थी उस समय आंगनबाड़ी में गोदभराई हुआ था. दोनों बच्चों का टीकाकरण भी हुआ. छह महीने तक राशन भी मिला. लेकिन जब बेटी हुई उसके बाद आंगनवाड़ी सेविका फॉर्म भरकर ले गयी लेकिन डिलीवरी के बाद मिलने वाला पैसा आज तक नहीं मिला. महीने में मिलने वाला पैसा भी नहीं दिया गया. बच्चों के ड्रेस का पैसा भी नहीं मिला.”

काम का बढ़ गया है बोझ- आंगनवाड़ी सेविका

राजधानी पटना के सब्जीबाग में आंगनवाड़ी चलाने वाली फ़ातिमा ख़ातून पिछले एक महीने से आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित होने वाले प्रदर्शन में शामिल हो रही हैं. फ़ातिमा का कहना है उनलोगों के ऊपर काम का बोझ बहुत ज़्यादा बढ़ा दिया गया है. सरकार जबतक मानदेय नहीं बढ़ाएगी वे लोग काम पर नहीं लौटेंगी.

डेमोक्रेटिक चरखा से बातचीत में फ़ातिमा कहती हैं “प्रेगनेंसी, जन्म, टीकाकरण, पोषण देखभाल, बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा, सर्वे सारा काम हमलोग करते हैं. इतने सारे काम के बदले हमें क्या मिलता है 5,950 रुपया. नीतीश कुमार हमारी बात सुनने को तैयार नहीं है. उनके दबाव में ICDS ने लेटर जारी कर हमलोगों से काम पर वापस लौटने को कहा है. नहीं आने पर चयनमुक्त किया जाने की धमकी दी गयी है. लेकिन हमारा कहना है आप अल्टीमेटम देते रहिए छह हजार के लिए अब हम लोग जान नहीं देंगे.”

सरकार कुपोषण और अशिक्षा से निपटने के लिए योजनाएं तो बना रही है लेकिन उसके क्रियान्वयन करने वाले माध्यम या संस्थाओं का संचालन नहीं कर पा रही है.