कैसे केंद्र सरकार की आवास योजना में पिछड़ रहा है बिहार?

प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में बेघरों को आवास प्रदान करना है. लेकिन नेतूपुर जैसे गांवों की कहानियां यह दर्शाती हैं कि इस योजना की ज़मीनी हक़ीक़त सरकार के दावों से काफ़ी दूर है.

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नाजिश महताब
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कैसे केंद्र सरकार की आवास योजना में पिछड़ रहा है बिहार?

गया-पटना के रास्ते में बेलागंज विधानसभा क्षेत्र से कुछ दूरी पर एक छोटा सा गांव है नेतूपुर. यह गांव आज भी प्राचीन समय के जैसे मिट्टी के घरों के साथ जीवित है. यहां अधिकतर लोग अत्यधिक गरीबी में जीवन गुज़ार रहे हैं. विकास की किरण यहां तक तो पहुंची है, लेकिन इन घरों तक स्थायी छत का सपना अभी भी दूर है. प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) जैसी केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ यहां के लोगों तक नहीं पहुंच पाया है. 

जब हमने इस मुद्दे पर लोगों से बात करने का मन बनाया और नेतूपुर गांव पहुंचे, तो वहां की स्थिति देखकर यकीन नहीं हुआ कि विकास की बातें सिर्फ़ कागज़ों तक सीमित है. गांव के बीच एक बूढ़ी अम्मा से मुलाकात हुई, जिनका नाम बिछिया देवी था. उनकी उम्र लगभग 70 वर्ष से अधिक होगी. उनकी झुर्रियों वाली आंखें और थका हुआ चेहरा इस बात का गवाह था कि उन्होंने जीवन में अनेक सरकारों को बदलते देखा है, लेकिन उनके जीवन में सुधार का कोई अंश नहीं पहुंचा.

जब हमने उनसे बात की, तो उन्होंने बताया कि “मेरे बच्चे बाहर काम करते हैं, और मैं इस टूटे-फूटे मिट्टी के घर में अकेली रहती हूं. पिछले 10 साल से किसी तरह गुजर-बसर कर रही हूं, लेकिन अब तक प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का लाभ मुझे नहीं मिला. बारिश में घर में पानी भर जाता है और मेरी सारी चीज़ें ख़राब हो जाती हैं. खेत से कभी-कभी सांप भी आ जाता है. यहां बहुत परेशानी है.”

बिछिया देवी की यह कहानी केवल उनकी नहीं, बल्कि नेतूपुर गांव के कई लोगों की है, जो आज भी कच्चे और कमजोर मिट्टी के घरों में रहने को मजबूर हैं.

नेतुपुर गांव

क्या है प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण (PMAY-G)?

प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण (PMAY-G) केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाने वाली एक महत्त्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बेघर और कच्चे मकानों में रहने वाले लोगों को पक्का घर मुहैया करना है. इस योजना के अंतर्गत पात्र परिवारों को तीन किस्तों में सहायता राशि प्रदान की जाती है, जिससे वो अपना घर बना सकें. योजना का एक प्रमुख लक्ष्य वर्ष 2024 तक 'सभी के लिए आवास' प्राप्त करना है.

पहले इसे इंदिरा आवास योजना (IAY) के नाम से जाना जाता था, लेकिन 2015 में इसे पुनर्गठित कर प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के नाम से लागू किया गया. बिहार में इस योजना के अंतर्गत मैदानी क्षेत्रों के लिए 1.20 लाख रुपये और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए 1.30 लाख रुपये की सहायता दी जाती है. इस योजना का उद्देश्य है कि ग्रामीण क्षेत्रों में हर नागरिक को एक सुरक्षित और स्थायी आवास मिल सके.

सरकारी आंकड़ों और दावों का सच

सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बिहार में लाखों लोगों को लाभ मिला है. बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार के अनुसार- 2015 से 2024 तक बिहार को 37 लाख घर बनाने का लक्ष्य मिला था, जिसमें से 36 लाख से अधिक घर बनाकर वितरित कर दिए गए हैं. इसके साथ ही, 2023 तक 1.5 लाख लाभार्थियों को पहली किस्त के रूप में 420 करोड़ रुपये भी दिए जा चुके हैं.

हालांकि, ज़मीनी हक़ीक़त इससे काफ़ी अलग है. वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार, बिहार में अब तक मात्र 2,259 घर ही पूरे हुए हैं. नेतूपुर जैसे गांवों में रहने वाले लोग, जिनका नाम लाभार्थी सूची में शामिल नहीं है, अभी भी अपनी उम्मीदें लगाए बैठे हैं.

नेतूपुर में रहने वाले राजेश (परिवर्तित नाम) ने कहा, “सरकार चाहे वो केंद्र की हो या राज्य की, योजनाएं तो बहुत लाती हैं, लेकिन वे ज़मीन पर ठीक से लागू नहीं हो पातीं. हम जैसे लोगों के पास घर नहीं है. क्या हम इस योजना के योग्य नहीं हैं? सरकार दावा करती है कि इतने घर बना दिए, लेकिन सच्चाई यह है कि यहां के लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिला है.”

नेतुपुर गांव में कच्चा मकान

नेतूपुर में प्रधानमंत्री आवास योजना की स्थिति

नेतूपुर में पंकज नाम के एक व्यक्ति से जब हमने बात की, तो उन्होंने बताया कि, “हम सब मिट्टी के बने झोपड़ियों में रहते हैं. सरकार कहती है कि आवास योजना गरीबों के लिए है, जिनके पास घर नहीं है. लेकिन इसका लाभ हमें क्यों नहीं मिलता? मैंने कई बार फॉर्म भरा, लेकिन मेरा नाम लिस्ट में नहीं आया. हम सरकार से गुहार लगाते हैं कि हमारे लिए भी छत का इंतजाम किया जाए.” इस गांव में रहने वाले अधिकांश लोगों की यही शिकायत है कि सरकार की योजनाएं यहां तक पहुंच नहीं पाई हैं, या फिर वे सूची में स्थान पाने में असमर्थ रहे हैं.

प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में अनियमितताएं

प्रधानमंत्री आवास योजना में गड़बड़ी की ख़बरें भी आती रहती हैं. उदाहरण के तौर पर, भागलपुर जिले के कई गांवों में जांच के दौरान अनियमितताएं पाई गईं. कुछ आवास निर्माणों के लिए पूरा भुगतान किया जा चुका है, लेकिन कई वर्षों बाद भी वे अधूरे पड़े हैं. यह समस्या केवल भागलपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि बिहार के कई अन्य क्षेत्रों में भी प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत लाभार्थियों को उनके मकान नहीं मिल पाए हैं.

भागलपुर में रहने वाली मंजू देवी जिन्हें आवास योजना का लाभ नहीं मिला है, जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि “8 वर्ष पहले पैसे का भुगतान हो गया था लेकिन अभी तक घर नहीं बना है. पता नहीं चलता की क्या हो रहा है. ये योजना इसीलिए बनाई गई थी की कोई भी गरीब बेघर न हो, लेकिन पिछले 8 सालों से हम बेघर ही हैं.”

नेतुपुर गांव का कच्चा मकान

बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री के बदलते बयान

बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने हाल ही में यह स्वीकार किया कि वर्ष 2022-23 और 2023-24 में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत गरीबों को कोई सहायता नहीं मिली. उन्होंने यह भी बताया कि बिहार के 13 लाख से अधिक लोग अभी भी अपने घर का इंतजार कर रहे हैं, और केंद्र सरकार से अतिरिक्त 6 लाख घरों की मांग की गई है.

बिछिया देवी जैसी कई कहानियां

बिछिया देवी के जैसे और भी कई लोग हैं, जो नेतूपुर और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभ से वंचित हैं. जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपने मुखिया या अन्य सरकारी अधिकारियों से इस बारे में बात की है या नहीं, तो उन्होंने बताया, “मैंने मुखिया से कई बार कहा है, लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिलता. मैं अकेली नहीं हूं, यहां और भी लोग हैं जिन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिला है.”

प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में बेघरों को आवास प्रदान करना है. लेकिन नेतूपुर जैसे गांवों की कहानियां यह दर्शाती हैं कि इस योजना की ज़मीनी हक़ीक़त सरकार के दावों से काफ़ी दूर है. जहां एक ओर लाखों लोगों को पक्के मकान मिल चुके हैं, वहीं दूसरी ओर लाखों लोग अब भी इस उम्मीद में हैं कि उनके सिर पर भी एक स्थायी छत हो.

सरकार को ना केवल इस योजना की पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों तक इसकी पहुंच को भी मज़बूत बनाना होगा, ताकि बिछिया देवी जैसी और भी कई बूढ़ी अम्माओं को उनका हक मिल सके.

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