बिहार में खुले में शौच मुक्त अभियान: एक उपलब्धि या अधूरी सफलता?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में गांधी जयंती के अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन की नींव रखी थी, जिसमें 2 अक्टूबर 2019 तक संपूर्ण भारत को खुले में शौच मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया।

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नाजिश महताब
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बिहार, वह राज्य जिसने अपने ऐतिहासिक धरोहरों, समृद्ध संस्कृति और अनगिनत संघर्षों से हमेशा देशभर में अपनी पहचान बनाई है, 2019 में एक और बड़ी उपलब्धि की ओर बढ़ा। यह उपलब्धि थी 'खुले में शौच मुक्त' (ओडीएफ) राज्य बनने की। केंद्र सरकार द्वारा संचालित स्वच्छ भारत अभियान के तहत बिहार ने खुद को ओडीएफ घोषित किया और देश का 30वां ओडीएफ राज्य बनने का गौरव प्राप्त किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में गांधी जयंती के अवसर पर स्वच्छ भारत मिशन की नींव रखी थी, जिसमें 2 अक्टूबर 2019 तक संपूर्ण भारत को खुले में शौच मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया। बिहार ने इस दिशा में तेजी से कार्य किया और 2019 तक 141 निकायों में शौचालय निर्माण कराकर खुले में शौच की समस्या को खत्म करने का दावा किया। पटना, जो बिहार की राजधानी है, को दिसंबर 2020 में ओडीएफ प्लस घोषित कर दिया गया। इसका मतलब था कि वहां पर्याप्त संख्या में सार्वजनिक एवं सामुदायिक शौचालय उपलब्ध थे और उनकी देखभाल भी हो रही थी।

क्या बिहार वास्तव में ओडीएफ हो सका?

बिहार के 99 शहरी निकाय पहले ओडीएफ घोषित हुए थे, लेकिन जब तृतीय-पक्ष निरीक्षण हुआ, तो 36 निकाय इस मानक पर खरे नहीं उतरे। खुले में शौच की समस्या अब भी वहां बनी हुई थी। इसके अलावा, ओडीएफ निकायों को हर छह महीने में पुनः प्रमाणन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था, जिसे पूरा नहीं करने पर वे फिर से नॉन-ओडीएफ हो जाते थे।

यहां यह सवाल उठता है कि क्या सिर्फ़ शौचालयों का निर्माण कर देना ही पर्याप्त था? क्या लोगों में जागरूकता लाने की आवश्यकता नहीं थी? सरकार ने करोड़ों रुपये ख़र्च कर सामुदायिक शौचालयों का निर्माण तो किया, लेकिन उनका रखरखाव सही ढंग से नहीं किया गया। नतीजा यह हुआ कि कई जगहों पर शौचालय अनुपयोगी साबित हो गए। नालंदा जिले के कई पंचायतों में सामुदायिक शौचालयों की हालत इतनी खराब हो गई कि या तो वे बंद पड़े हैं या उनकी सीटें और दरवाजे तक टूट चुके हैं।

सामुदायिक शौचालयों की दुर्दशा

लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान के अंतर्गत नालंदा और अन्य जिलों में करोड़ों रुपये की लागत से सामुदायिक शौचालय बनाए गए। इन शौचालयों को महादलित टोले और भूमिहीन गरीब परिवारों की सुविधा के लिए प्राथमिकता दी गई थी। सरकार ने इनमें पानी की टंकी लगाने और नल-जल योजना के माध्यम से जलापूर्ति की व्यवस्था करने की बात कही थी। लेकिन वास्तविकता में इनका उचित रखरखाव नहीं किया गया। कई जगहों पर इन शौचालयों में पानी की सुविधा नहीं है, जिसके कारण लोग इन्हें इस्तेमाल करने से कतराते हैं।

नालंदा के निवासी साजिद बताते हैं कि, "बिहार खुले में शौच मुक्त बिल्कुल भी नहीं हुआ है। सरकार कभी आए और देखे कि यहां का रेलवे स्टेशन हो, बस स्टैंड हो या कोई भी सार्वजनिक स्थल, हर जगह लोग खुले में शौच करते हैं। वजह बहुत सारी हैं – सरकारी नाकामी, शौचालय की कमी, रखरखाव ठीक से न होना और लोगों में जागरूकता की कमी। सरकार को चाहिए कि बड़े-बड़े दावे करने से अच्छा है कि धरातल पर काम किया जाए।"

ओडीएफ प्लस की दिशा में बढ़ते कदम

हालांकि, बिहार सरकार ने ओडीएफ प्लस की दिशा में आगे बढ़ने के प्रयास किए हैं। राज्य में कुल 37,021 गांव हैं, जिनमें से 13,980 गांव ओडीएफ प्लस घोषित किए गए हैं। इसका अर्थ यह है कि इन गांवों में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली लागू की गई है और खुले में शौच मुक्त स्थिति को बनाए रखा गया है। लेकिन क्या यह संपूर्ण बिहार की स्थिति को दर्शाता है? आंकड़ों की बात करें तो अभी भी हजारों गांव इस स्थिति तक पहुंचने से कोसों दूर हैं।

सरकारी धन की बर्बादी या अधूरे प्रयास?

सरकार द्वारा ओडीएफ मिशन के तहत करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन यह देखा गया कि कई स्थानों पर सामुदायिक शौचालय सिर्फ़ दिखावे के लिए बने और उनका कोई नियमित उपयोग नहीं हुआ। यह न केवल सरकारी धन की बर्बादी है, बल्कि स्वच्छता अभियान की सफलता पर भी सवाल उठाता है।

बिहार के चाकंद स्टेशन पर जब हमने देखा तो यात्री ट्रेन से उतरते ही स्टेशन के बाहर खुले में शौच करने लगे। इतने पैसे ख़र्च करने के बावजूद अगर यह स्थिति बनी हुई है, तो सरकार को दोबारा सोचना चाहिए। यदि इन शौचालयों का उपयोग नहीं हो रहा है, तो इसका मतलब है कि या तो उनकी स्थिति ख़राब है या फिर लोगों में जागरूकता की कमी है। सरकार को चाहिए कि वह न केवल शौचालयों का निर्माण करे, बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि वे सुचारू रूप से काम करें। इसके लिए पंचायतों और स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।

पटना स्टेशन का भी हाल बदतर

पटना स्टेशन का हाल भी अलग कहानी बयान करता है। शौचालय या तो बंद रहते हैं या फिर इतने गंदे होते हैं कि लोग उनका उपयोग नहीं कर पाते। ऐसे में लोगों को काफ़ी समस्याओं से गुज़रना पड़ता है। पटना जंक्शन सरकारी बयान को गलत साबित कर रहा है क्योंकि आज भी यह खुले में शौच मुक्त नहीं हुआ है।

पटना जंक्शन के यात्री बताते हैं कि, "सिर्फ़ पटना जंक्शन ही नहीं, पटना के हर इलाके में आज भी लोग खुले में शौच करते हैं और कारण बस एक ही है – सार्वजनिक शौचालयों की कमी और यदि कुछ इलाकों में हैं भी, तो उनकी स्थिति ख़राब है। यहां तक कि पटना के घाटों पर बने शौचालय तो हर वक्त बंद रहते हैं।"

जनता की भागीदारी आवश्यक

स्वच्छता केवल सरकारी योजनाओं तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह जनता की सामूहिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। सरकार का कर्तव्य है कि वह बुनियादी ढांचे को विकसित करे, लेकिन जनता की भी जिम्मेदारी है कि वह इसे सही तरीके से उपयोग करे।

ओडीएफ मिशन को सही मायनों में सफल बनाने के लिए केवल शौचालय निर्माण ही नहीं, बल्कि उनकी निरंतर सफाई, जल आपूर्ति और जागरूकता अभियान भी आवश्यक हैं। यदि लोग इन शौचालयों का उपयोग नहीं करेंगे, तो फिर यह योजना अपने उद्देश्य में असफल ही साबित होगी।

बिहार का ओडीएफ बनने का सफ़र निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, लेकिन यह पूरी तरह सफल नहीं रहा। शौचालयों का निर्माण केवल पहला कदम था, लेकिन उनका रखरखाव और उपयोगिता सुनिश्चित करना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यदि सरकार और जनता दोनों मिलकर इस दिशा में कार्य करें, तो बिहार सही मायनों में खुले में शौच मुक्त राज्य बन सकता है। जागरूकता और जिम्मेदारी की भावना के बिना यह मिशन अधूरा ही रहेगा।

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