अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025: वकीलों के अधिकारों पर संकट!

भारत में अधिवक्ता न्याय व्यवस्था की रीढ़ रहा हैं। वे एक निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, परंतु अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025 ने वकीलों की स्वतंत्रता और अधिकारों पर एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया है

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नाजिश महताब
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भारत में अधिवक्ता समुदाय हमेशा से न्याय व्यवस्था की रीढ़ रहा है। वकील न केवल अपने मुवक्किल के अधिकारों की रक्षा करते हैं, बल्कि वे एक निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।परंतु अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025 ने वकीलों की स्वतंत्रता, स्वायत्तता और अधिकारों पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है । यह विधेयक अधिवक्ता समुदाय के लिए एक गहरी चिंता का विषय बन गया है, जिसके कारण पूरे देश में विरोध की लहर उठ खड़ी हुई है।  

क्या है अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2025?  

कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित इस विधेयक में कई संशोधन किए गए हैं, जो वकीलों के अधिकारों, हड़ताल करने की स्वतंत्रता और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) की स्वायत्तता को प्रभावित करते हैं।  

1. "कानून स्नातक" और "कानूनी व्यवसायी" की परिभाषा में बदलाव
   विधेयक के अनुसार, "कानून स्नातक" उसे माना जाएगा, जिसने तीन, पांच या किसी अन्य अवधि का कोर्स पूरा कर लिया हो। यह परिभाषा अस्पष्ट है और इससे भविष्य में कई जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।  

2. बार काउंसिल ऑफ इंडिया में केंद्र सरकार द्वारा नामित सदस्य
   अधिनियम की धारा 4 में संशोधन कर केंद्र सरकार को BCI में तीन सदस्य नामित करने की शक्ति दी गई है। इसमें दो महिला वकीलों को भी शामिल करने का प्रस्ताव है। इससे बार काउंसिल की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर खतरा मंडराने लगा है।  

3. हड़ताल और बहिष्कार पर प्रतिबंध 
   विधेयक में धारा 35-A जोड़ी गई है, जिसके तहत वकीलों के हड़ताल करने और न्यायिक कार्यों से बहिष्कार करने पर रोक लगाई गई है। इसका मतलब यह है कि यदि किसी मुद्दे को लेकर वकील विरोध प्रदर्शन करना चाहें, तो यह उन्हें कानूनी रूप से निषिद्ध होगा। यह संशोधन वकीलों की आवाज दबाने का एक प्रयास माना जा रहा है।  

4. मुवक्किल के केस हारने पर वकील के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान  
 धारा 45बी जो सबसे विवादास्पद प्रावधानों में से एक यह है कि अगर कोई मुवक्किल केस हार जाता है, तो वह वकील के खिलाफ दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज करा सकता है। क्या वकील को मुवक्किल की हार के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना न्यायसंगत है? न्यायालय में फैसले कई कारकों पर निर्भर करते हैं, लेकिन इस कानून के तहत वकील को ही दोषी मानने का प्रयास किया जा रहा है।  

प्रणवेश जो की इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं वो बताते हैं कि “ धारा 35A जिसमें "अदालतों के काम से बहिष्कार या विरत रहने पर रोक" का आह्वान किया गया था। यहां कोई भी अधिवक्ता स्ट्राइक या प्रदर्शन नहीं कर सकता।
वहीं धारा 45बी में कहा गया है कि, "यदि किसी व्यक्ति को जानबूझकर या अधिवक्ता के कदाचार के कारण नुकसान होता है, तो ऐसा व्यक्ति अधिवक्ता के दायित्व का निर्धारण करने के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा निर्धारित उचित नियमों के तहत अधिवक्ता के खिलाफ़ कदाचार की शिकायत कर सकता है।” अब सोचने वाली बात ये है की दो क्लाइंट में से कोई एक तो केस हारेगा ही ना।”

विरोध की आग और वकीलों की नाराजगी

विधेयक के प्रस्तावित संशोधनों ने देशभर के वकीलों में आक्रोश पैदा कर दिया है। बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के हाईकोर्ट बार एसोसिएशनों ने इस विधेयक के खिलाफ हड़ताल का ऐलान किया था।  

पटना सिविल कोर्ट के अधिवक्ता नदीम बताते हैं कि “ अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 हमारे अधिकारों का हनन है। हम चाहते हैं की केंद्र सरकार जल्द से जल्द इसमें संशोधन करे। अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 के अनुसार अगर कोई मुवक्किल केस हार जाता है, तो वह वकील के खिलाफ दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज करा सकता है उसके बाद आपका लाइसेंस भी रद्द हो सकता है और 3 लाख तक जुर्माना भी लग सकता है।”

पटना सिविल कोर्ट परिसर में हुए विरोध प्रदर्शन में अधिवक्ता खुला मंच, बिहार के वकीलों ने खुलेआम इस विधेयक को "गैर-संवैधानिक" और "न्याय व्यवस्था के खिलाफ़" करार दिया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि यह विधेयक न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करने की साजिश है।  

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने भी केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को पत्र लिखकर अपनी आपत्तियाँ दर्ज कराई हैं। उन्होंने कहा कि यह विधेयक बार काउंसिल की स्वायत्तता को समाप्त करने की कोशिश कर रहा है और इससे वकीलों के मौलिक अधिकारों का हनन होगा।  

वकीलों के लिए क्यों खतरनाक है यह विधेयक? 
 

यह विधेयक अधिवक्ता समुदाय को अपनी आवाज उठाने से रोकता है। जब हड़ताल करने और विरोध करने का अधिकार छीना जाएगा, तो वकील अपने अधिकारों की रक्षा कैसे कर पाएंगे?  न्यायिक प्रक्रिया में सरकार का दखल:  बार काउंसिल में केंद्र सरकार के सदस्य नामित करने का प्रावधान एक तरह से सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ावा देगा, जिससे वकीलों की स्वतंत्रता पर खतरा बढ़ सकता है।  वकीलों को मुवक्किल की हार के लिए दोषी ठहराना अन्यायपूर्ण : अगर कोई मुवक्किल केस हार जाता है, तो उसके लिए वकील को जिम्मेदार ठहराना न केवल अनुचित है, बल्कि यह कानूनी पेशे की गरिमा के खिलाफ भी है। वकील का कार्य न्यायालय में अपने मुवक्किल की सही पैरवी करना होता है, न कि जीत की गारंटी देना। बार काउंसिल की स्वायत्तता खतरे में : यह विधेयक बार काउंसिल को सरकारी नियंत्रण में लाने की कोशिश कर रहा है। यह कदम न केवल बार काउंसिल की स्वतंत्रता को कमजोर करेगा, बल्कि इससे कानूनी व्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।  

प्रणवेश आगे बताते हैं कि “ धारा 48बी में प्रस्तावित है कि “निर्देश देने की शक्ति। - (1) राज्य बार काउंसिल या उसकी किसी समिति के कार्यों के उचित और कुशल निर्वहन के लिए, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, सामान्य पर्यवेक्षण और नियंत्रण की अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, राज्य बार काउंसिल या उसकी किसी समिति को ऐसे निर्देश दे सकती है जो उसे आवश्यक प्रतीत हों और राज्य बार काउंसिल या समिति ऐसे निर्देशों का पालन करेगी।” जिसका मतलब ये है की बार काउंसिल स्टेट बार काउंसिल को रेग्यूलेट करेगी वहीं धारा 49बी जो केंद्र को बीसीआई को बाध्यकारी निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करती है। यानी केंद्र सरकारी बार काउंसिल ऑफ इंडिया को डायरेक्ट करेगा । जब केंद्र सरकार ने एक स्वतंत्र बॉडी ख़ास इसके लिए बनाई है तो फिर केंद्र सरकार इसको डायरेक्ट क्यों कर रही है।

सरकार की पारदर्शिता पर सवाल
 

कानून मंत्रालय का दावा है कि यह विधेयक कानूनी शिक्षा और पेशे को वैश्विक स्तर का बनाने के लिए है, लेकिन वकीलों का मानना है कि यह विधेयक उनकी स्वतंत्रता और अधिकारों को सीमित करने के लिए लाया गया है। वकील समुदाय का कहना है कि सरकार की पारदर्शिता तब दिखती, जब पहले सभी हितधारकों से बातचीत की जाती, न कि सीधे संशोधन लागू करने का प्रयास किया जाता।  

शालिनी जो पिछले 3 साल से एडवोकेसी कर रही है लॉ फाउंडेशन के साथ जुड़ कर वो बताती हैं कि “ केंद्र सरकार इसमें हस्तक्षेप क्यों करना चाह रही है जबकि बीसीआई एक स्वतंत्र बॉडी है जो लॉयर्स और अधिवक्ताओं का ख़्याल रखती है। ऐसे में सरकार का हस्तक्षेप करना उनकी नीतियों को बताता है हालांकि सरकार ने इसे वापस ले लिया है और बदलाव करने का वादा किया है तो रुकते हैं और देखते हैं की क्या सरकार अधिवक्ताओं के अधिकार का इज़्ज़त रखती है या नहीं।”

अब आगे क्या?


सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025 का मसौदा वापस ले लिया है। यह विधेयक अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन का प्रस्ताव करता था, जिसका उद्देश्य कानूनी पेशे में सुधार और व्यावसायिक मानकों को बढ़ाना था।

सरकार ने 13 फरवरी, 2025 को विधि कार्य विभाग की वेबसाइट पर इस विधेयक का मसौदा सार्वजनिक परामर्श के लिए उपलब्ध कराया था। इसके बाद, विभिन्न हितधारकों और विशेषज्ञों से सुझाव और टिप्पणियां प्राप्त की गईं।

हालांकि, सरकार ने अब कहा है कि उन्हें मिले सुझावों और चिंताओं पर विचार करने के बाद, विधेयक को फिर से तैयार किया जाएगा और हितधारकों के साथ परामर्श किया जाएगा।
प्राप्त फीडबैक के आधार पर संशोधित विधेयक के मसौदे पर हितधारकों के साथ परामर्श के लिए नए सिरे से विचार किया जाएगा।