मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करने वाली गंगा कब उन्हीं मनुष्यों से अपने मोक्ष की आस देखने लगी पता ही नहीं चला. गंगा है- सब अपने में समा लेगी, गंगा है- कभी मैली नहीं होगी इस तरह की ना जाने कितनी आम धारणाएं लोगों ने अपने मन में आजतक बिठाई हुई हैं. इन्हीं प्रचलित धारणाओं के कारण गंगा किनारे बसे शहरों और गांवों के लोगों ने इसे प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है.
वही सरकारी उदासीनता के कारण उद्योग कराखानों, शहरों से निकलने वाले बड़े नाले, बांध, पुल और बिजली परियोजनाओं, अवैध बालू खनन ने इसे कई शहरों से कोसों दूर कर दिया है.यही कारण है की लगभग 2500 किलोमीटर लंबी गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी होने के साथ-साथ सबसे अधिक प्रदूषित नदी भी बन गई है.
साल 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से वादा करते हुए कहा था कि वो साल 2020 तक प्रदूषित गंगा नदी को साफ करने का काम करेंगे. हालांकि मोदी अपने पहले कार्यकाल में जनता से किया वादा पूरा नहीं कर पाए. वहीं मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के समाप्त होने में भी कुछ ही महीने शेष हैं. ऐसे में जनता यह जरुर जानना चाहेगी कि निर्मल, अविरल और पावन गंगा का सपना दिखाने वाली सरकार कब गंगा को स्वच्छ घोषित करेगी.
राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक सात सालों में केवल दो बार
गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के उद्देश्य को लेकर भारत सरकार की गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक बीते सात सालों में केवल दो बार ही हुई है, जबकि नियमानुसार इसे प्रत्येक साल कम से कम एक बार होना चाहिए था.
केंद्र सरकार की ओर से सात अक्टूबर 2016 को गंगा नदी (संरक्षण, सुरक्षा एवं प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश जारी किया गया था, जिसके मुताबिक पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा परिषद को वर्ष में कम से कम एक बार या उससे ज्यादा बार बैठक कर गंगा की सफाई और परियोजनाओं के पूरा होने का जायजा लेना था.
लेकिन राष्ट्रीय गंगा परिषद की पहली बैठक इसके गठन के तीन सालों बाद 2019 में हुई. वहीं दूसरी बैठक इसके तीन सालों बाद वर्ष 2022 के दिसंबर माह में हुई थी. बैठक में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भाग लिया था. तेजस्वी यादव ने इस बैठक में गाद के मुद्दे को उठाते हुए केंद्र से आग्रह किया कि इस मुद्दे को हल करने के लिए राज्यों के परामर्श से आवश्यक दिशा निर्देश तैयार किया जाए.
परियोजनाओं की रफ्तार धीमी
नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत परियोजनाओं के पूरे होने की रफ्तार काफी धीमी है. विपक्ष और कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई है कि नमामि गंगा के तहत संचालित योजनाओं की रफ्तार काफी सुस्त है. 2014 में सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने गंगा की स्वच्छता को अपनी उच्च प्राथमिकता वाला काम बताया था. और इसके लिए नमामि गंगे योजना की घोषणा की गई थी. इस योजना का लक्ष्य गंगा में बढ़े प्रदूषण को कम करना और ठोस प्रदूषक के सीधे नदी में बहाए जाने पर रोक लगाना था. हालांकि, योजना पर काम अक्टूबर 2016 में आए आदेश के बाद से शुरु हो सका था.
वित्त वर्ष 2014-15 से लेकर 2020-2021 तक इस नमामि गंगे योजना के तहत पहले 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का रोडमैप तैयार किया गया था जो कि बाद में बढ़ाकर 30 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया. वहीं 2022-23 में योजना मद में 2047 करोड़ आवंटित किए गए थे. वित्त वर्ष 2023-24 में 4000 करोड़ रूपए का बजट अनुमान रखा गया हालांकि आवंटन केवल 2400 करोड़ रूपए का ही किया गया. वहीं वित्तीय वर्ष 2024-25 में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के फेज दो के लिए 3500 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है.
बजट प्रस्ताव और आवंटन से इतर योजनाओं को पूरा किए जाने की रफ्तार काफी सुस्त है. सरकार की आलोचना के बाद बीते वर्ष मई महीने में परियोजना की धीमी रफ्तार पर सरकार का पक्ष रखते हुए जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि “1985 से 2014 तक करीब 30 वर्षों में चार हजार करोड़ रुपये खर्च करके जितनी जल-मल शोधन क्षमता सृजित की गई, उससे कहीं अधिक क्षमता नमामि गंगे परियोजना के तहत 2014 से 2022 तक आठ वर्ष के दौरान विकसित की गई है.”
हालांकि गंगा की सफाई को लेकर योजना की शुरुआत से अबतक 458 परियोजनाओं को मंजूरी दी गयी है, जिसमें अबतक 278 परियोजना को ही पूरा किया जा सका है. NMCG पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार 127 प्रोजेक्ट पर अभी काम चल रहा है जबकि 40 प्रोजेक्ट के लिए प्रस्ताव जारी किया गया है.
बिहार में 69 में मात्र 36 परियोजना हुई पूरी
सीवेज उपचार के मामले में सबसे खराब स्थिति बिहार की है. रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 1100 एमएलडी सीवेज की निकासी होती है और सिर्फ 99 एमएलडी (एसटीपी क्षमता का 44 फीसदी) सीवेज का उपचार किया जा रहा है. यानी 1010 एमएलडी सीवेज सीधे गंगा में गिराया जा रहा है.
बिहार में 224.50 एमएलडी क्षमता वाले सात एसटीपी हैं जो अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं. साल 2022 में जारी कैग की रिपोर्ट में भी बताया गया था कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट (Namami Gange project) के तहत बिहार को चार साल में 684 करोड़ रुपये का इस्तेमाल करना था, लेकिन बिहार स्टेट गंगा रिवर कंजरवेशन एंड प्रोग्राम मैनेजमेंट सोसायटी (बीजीसीएमएस) इसका इस्तेमाल नहीं कर सकी.
बिहार के पुराने और जर्जर हो चुके सीवरेज सिस्टम पर कैग ने रिपोर्ट में कहा कि बिहार में सीवरेज ढांचे की कमी के कारण 2016-17 में मेक्सिमम टोटल कोलीफॉर्म (TC) और फीकल कोलीफॉर्म (FC) का स्तर 9000 mpn/100 एमएल और 3100 mpn/100 एमएल से बढ़कर 2019-20 में 160,000 mpn/100 एमएल हो गया है.
फीकल कोलीफॉर्म जीवाणुओं का एक समूह है जो कि समतापी जीवों (warm blooded animals) के आंतों और मल में पाया जाता है.
पानी के नमूनों में इसका उपस्थित होना यह संकेत देता है कि संबंधित पानी इंसानी या दूसरे जानवर के मल से संक्रमित है. नदियों में यह संक्रमण बिना शोधित किए गए सीवेज के डिस्चार्ज से पहुंचता है. नदी के जल नमूनों में इसकी वांछनीय मात्रा 500mpn/100 एमएल है जबकि अधिकतम मात्रा 2,500mpn/100 एमएल होती है.
757 एमएलडी की क्षमता वाले एसटीपी लगाए जाने का लक्ष्य रखा गया है जिसमें अबतक मात्र 274 एमएलडी की क्षमता विकसित की गई है. वहीं सीवेज नेटवर्क 1793 KMS बनाए जाने के लक्ष्य में 1330 KMS ही बनाया जा सका है.
NMCG के आंकड़े कहते हैं कि बिहार में गंगा सफाई (Ganga cleaning in Bihar) के लिए 69 योजनायें चल रही है, जिसमें 36 योजनाएं ही अबतक पूरी हुई हैं और 22 योजनाओं पर काम चल रहा है. इन योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए 6912 करोड़ रुपए खर्च करने का लक्ष्य रखा गया था जिनमें से अबतक 4498 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं.
6143 करोड़ रूपए वर्ल्ड बैंक और एनजीपी (NGP) की ओर से दिए गये हैं. वर्ल्ड बैंक द्वारा 2579 करोड़ रुपए दिये गए थे.
लेकिन सरकारी मशीनरी की विफलता के कारण हजारों करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी गंगा स्वच्छ नहीं बन सकी है.