मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के सशक्तिकरण का वादा खोखला, मदद के लिए भटक रही महिलाएं

वो मुझे मारा करते थे. जब भी खाना देने में देर होती गालियां दिया करते. 2010 में उन्होंने मुझे तलाक दे दिया. लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे संभाला. लेकिन पिता की मौत के बाद मैं अकेली पड़ गई. दोनों बच्चों की पढ़ाई छूट गई.

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नाजिश महताब
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तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं

पटना के अजीमाबाद कॉलोनी में तबस्सुम अपने दो बेटों के साथ रहती है. तबस्सुम के पति ने उन्हें तब तलाक दे दिया जब उनका बड़ा बेटा एक साल का और छोटे महज कुछ महीनों का था. तलाक के बाद तबस्सुम अपने पिता के पास चली आई. लेकिन पिता की मौत के बाद तबस्सुम के ऊपर आर्थिक परेशानियों का पहाड़ टूट गया.  

तबस्सुम तलाक़ का कारण बताते हुए कहती हैं  "वो मुझे मारा करते थे. जब भी खाना देने में देर होती  गालियां दिया करते. 2010 में उन्होंने मुझे तलाक दे दिया. लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे संभाला. लेकिन पिता के मौत के बाद मैं अकेली पड़ गई. दोनों बच्चों की पढ़ाई छूट गई."

तबस्सुम काफ़ी परेशान रहती है क्योंकि उनके पास आय का कोई श्रोत नहीं है. जबकि बिहार सरकार मुसलमान तलाकशुदा या परित्यक्ता महिलाओं के लिए वर्ष 2006-07 से ही सहायता कार्यक्रम चला रही है. 

महिलाओं को 25 हजार रुपए की सहायता

बिहार सरकार ने वर्ष 2006-07 में इस योजना का आरंभ तलाकशुदा या परित्यक्ता मुसलमान महिलाओं के लिए किया था. शुरुआत में महिलाओं को 10,000 रूपए की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराया जाता था. बाद में वर्ष 2017-18 में इस राशि को बढ़ाकर 25,000 रूपए कर दिया गया. वर्ष 2018-19 से लाभार्थियों को ई-कल्याण (ई-वेल्फेयर) पोर्टल के जरिए यह सुविधा दी जा रही है. योजना का लाभ 18 से 50 साल तक की महिलाओं को दिया जा सकता है.

बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2023-24 में 430 जरूरतमंद महिलाओं के बीच 1.08 करोड़ रुपए वितरित किए गए हैं. हालांकि सरकार का यह दावा ज़मीनी स्तर पर कुछ और ही हालात बयां करते हैं. जहां महिलाओं को योजनाओं की जानकारी नहीं है. और ना ही सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा है जिसके आधार पर योजना के लिए बजट आवंटन बनाया जा रहा है.

योजना का लाभ नहीं मिलने के कारण तबस्सुम काफी मुश्किलों का सामना कर रही हैं. किसी तरह वह अपने बच्चे को पढ़ाई करा रही हैं. उन्हें कभी भूखे पेट सोना पड़ता है तो कभी अपने ज़रूरतों का गला घोटना पड़ता है. 

योजना का लाभ नहीं मिलने पर तबस्सुम कहती हैं “काफ़ी मुश्किलों से मैं अपने बच्चों की परवरिश कर रही हूं. उनका भविष्य अच्छा बनाना चाहती हूं इसीलिए उन्हें पढ़ाना चाहती हूं. लेकिन किसी तरह की सहायता नहीं मिलती. स्कूल की फीस भरने के लिए दूसरों से उधार लेना पड़ता है. मैंने कई बार योजना का फॉर्म भरा है और कई बार ऑफिस भी गई हूं, परंतु योजना का लाभ अब तक नहीं मिला है.” 

सरकार की कोशिश है कि स्वरोजगार कर ऐसी महिलाएं अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें. घर में कुछ स्वरोजगार खड़ा कर आगे बढ़े. लेकिन योजना के प्रति समाज में जागरूकता और जानकारी का अभाव है. गया जिले में इस वित्तीय वर्ष में अब तक महज़ 25 आवेदन प्राप्त हुए हैं. 

समाज में योजना को लेकर जागरूकता का अभाव

ज्यादातर तलाकशुदा महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती है. शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के बीच आर्थिक मजबूरियां उन्हें कमजोर बना देती हैं. लेकिन सरकारी मदद के दावे केवल कागजों पर दर्ज किये जाते हैं. जबकि वास्तविकता में पीड़ित महिलाएं मदद के लिए भटकती रहती हैं.  

फरहीन (बदला हुआ नाम) भी तबस्सुम की तरह ही लाचार हैं. जब हमने उनसे बात की तो वो रो पड़ीं. उन्होंने बताया कि उनकी शादी काफ़ी छोटे उम्र में हो गई थी. पति उनपर शक करते और अक्सर मारपीट करते. 

बड़े बेटे के जन्म के बाद उत्पीड़न काफ़ी बढ़ गया. कुछ सालों बाद उनका दूसरा बेटा भी हुआ. लेकिन उनके पति प्रताड़ना बढ़ती ही गई. कई बार जान से मार देने की कोशिश भी की गई. जिसके बाद फरहीन वापस अपने घर आ गई. कई सालों तक केस चला. अंत में फरहीन को तलाक मिल गया. 

फरहीन अब अपने पैरों पर खड़े होने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं. क्योंकि दोनों बच्चों के पढ़ाई का खर्च फरहीन के सर आ गया. योजना का लाभ मिलने में आने वाली परेशानी साझा करते हुए फरहीन कहती हैं “योजना का लाभ केवल उनलोगों को ही मिलता है जिनके पास पैरवी होती है. मैं कई सालों से लगातार कोशिश कर रही हूं लेकिन मुझे योजना का लाभ नहीं मिल सका. मैं बस अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर अच्छा इंसान बनाना चाहती हूं लेकिन पैसों की तंगी हमारा पीछा नहीं छोड़ रही है.” 

नूर अपनी बेटी के साथ

पटना के हनुमान नगर की रहने वाली नूर इमाम को योजना की जानकारी भी नहीं है. नूर कहती हैं "जानकारी होती तो मैं ज़रूर इस योजना के लाभ के लिए प्रयास करती. सरकार को चाहिए की योजना के बारे में जागरूकता फैलाए. चुनाव के समय सरकार प्रचार के लिए करोड़ों रुपए ख़र्च करती है लेकिन योजनाओं के प्रचार के लिए कुछ नहीं करती." 

सरकार के पास नहीं है पर्याप्त आंकड़ा

बिहार में कितनी तलाकशुदा महिलाएं हैं इसका आंकड़ा सरकार के पास नहीं है. सरकार को चाहिए की आंकड़ा खोज कर हर ज़रूरतमंद महिलाओं की मदद की जाए. सरकार आख़िर किस तरह से योजना का आवंटन कर रही है ये सोचने वाली बात है.

साल 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की कुल आबादी 10,40,99,452 है. इसमें पुरुषों की संख्या 5,42,78,686 और महिलाओं की तादाद 4,98,21,295 है. कुल आबादी में मुसलमानों का प्रतिशत महज 16.9 फीसदी है. वर्तमान में बिहार में मुसलमानों की कुल आबादी 1,75,5,78,09 है. जिसमें पुरूष 90,44,086 और महिलाएं 85,13,723 है.

लाइव मिनट के एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक 1,000 विवाहित हिंदू महिलाओं में से 2.6 तलाकशुदा हैं, जबकि 1,000 विवाहित मुस्लिम महिलाओं में से 5.6 तलाकशुदा हैं. हालांकि पुरुषों के लिए, अनुपात लगभग समान है (हिंदू पुरुषों के लिए 1.5 और मुस्लिम पुरुषों के लिए 1.6)

तलाकशुदा महिलाओं के आंकड़े

रिसर्च गेट की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में कुल मुस्लिम महिलाओं में 0.42 फीसदी मुस्लिम महिलाएं तलाकशुदा हैं.

जब हमने बिहार सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधिकारी से बात करने की कोशिश की, तो उनसे हमारी बात नहीं हो पाई. दिए गए और दूरभाष संख्या पर जब कोशिश की तो सारे के सारे अधिकारी टाल-मटोल करने लगे. एक ने कहा की मैं इसके लिए अधिकृत नहीं हूं तो किसी ने कहा की इसकी जानकारी हम नहीं दे पाएंगे.

एक तो सरकार के पास पर्याप्त आंकड़ा नहीं है की बिहार में कितनी मुस्लिम महिला तलाकशुदा है. दूसरी तरफ़ कोई भी अधिकारी ज़िम्मेदारी नहीं लेते हैं. एक तरफ़ सरकार अल्पसंख्यक महिलाओं के उत्थान की बात करती है. वहीं दूसरी तरफ़ अल्पसंख्यक महिलाओं को योजना का लाभ नहीं मिलता है. ऐसे में यह सरकार की जिम्मेदारी है की वह इन कमियों को दूर कर समस्याओं का निदान करे.

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